होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है?

 (Photo: Google photo)

जयपुर। होली का त्योहार भारतभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। प्रश्न यह उठता है कि होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है? इसकी शुरुआत कैसे हुई? किस काल में होली का त्योहार इस रुप में मनाया जाने लगा? होली के बाद धुलंडी का क्या महत्व है? धुलंडी को कैसे मनाया जाता है? इन सभी प्रश्नों के उत्तर इस लेख में जानने का प्रयास करेंगे। 

होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत और प्रेम, उल्लास तथा आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर होली के दिन विष्णु भगवान के भक्त और हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद की रक्षा करने के लिए जलती चिता में बैठने वाली हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के दहन की कथा ​बेहद प्रसिद्ध है। 

भगवान विष्णु द्वारा भक्त प्रह्लाद की रक्षा करना

राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला हुआ था, जिसके कारण अग्नि में जलने से सुरक्षित थी। उन्होंने प्रह्लाद को मारने के लिए आग में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गये और नहीं जलने वाली होलिका जल गई। इसलिए आज जब होली दहन किया जाता है, तब उसमें पेड़ की एक छोटी टहनी गाडी जाती है और होली दहन करते समय उसे उखाड़ लिया जाता है। इसमें भगवान विष्णु द्वारा भक्त प्रह्लाद को जलने से बचाने के रुप में समझा जाता है।

बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में 

होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। यहां बुराई यानी होलिका जलकर राख हो जाती है और अच्छाई यानी, भक्त प्रह्लाद बच जाते हैं। कहा जाता है कि ठीक इसी तरह से जब बुराई हावी होने लगती है तो इसी तरह से अच्छाई उसको समाप्त कर देती है।

इस अवसर पर बसंत ऋतु का आगमन होता है

होली का त्योहार केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक ही नहीं है, बल्कि इसके साथ ही बसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है, जिसको प्रेम और नवचेतना की ऋतु माना जाता है। सनातन संस्कृति के मानने वालों का नववर्ष भी इसके बाद ही आता है।

प्रेम और सौहार्द है होली

यह तो सबको पता है कि होली रंगों का त्योहार है, जो प्रेम, भाईचारा, उल्लास और आपसी सौहार्द को बढ़ावा देता है। सभी लोग मिलकर आपस में रंग लगाते हैं और होली दहन पर उल्लास से भरे होते हैं।

दूसरी मान्यताएं भी हैं

होली दहन और धुलंडी के अलावा कुछ लोगों का मानना है कि होली का संबंध कामदेव और शिवजी से है। एक बार कामदेव ने शिवजी पर पुष्प बाण से प्रहार किया था, जिससे शिवजी की समाधि भंग हो गई थी। कुछ लोगों का मानना है कि होली का संबंध राधाजी और कृष्णजी की प्रेम लीला से भी है, जहां वे दोनों प्रेम के वसीभूत होकर एक दूसरे पर रंग डालते हैं। 

अंतत: काल से चल रही है

वैसे तो होली दहन की परंपरा पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ी है, किंतु यह त्योहार हजारों वर्षों से यूं ही अनवरत चलता आ रहा है। मान्यता है कि होली दहन का त्योहार अंतत: काल से चला आ रहा है।

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