साबरमती को साफ किया, अब यमुना की बारी है

दिल्ली विधानसभा इलेक्शन रिजल्ट आए अभी सात दिन ही नहीं हुए हैं कि भाजपा सरकार अपने वादों को पूरा करना भी शुरू कर दिया है। दिल्ली में लेफ्टिनेंट गर्वनर विनय कुमार सक्सैना ने यमुना सफाई का अभियान स्टार्ट कर दिया है। रविवार को शाम चार बड़ी मशीनों ने यमुना में उतरकर कचरा साफ करना शुरू कर दिया। 

दिल्ली सरकार इस काम को मोदी सरकार के सहयोग से पूरा करने जा रही है। यमुना नदी की कुल लंबाई 1370 किलोमीटर है, जिसमें 22 किलोमीटर दिल्ली से होकर गुजरती है। इसको साफ करने का वादा बीते 32 साल से किया जा रहा है, लेकिन पहली बार सफाई के लिए मशीनों को उतारा गया है। 

दिल्ली चुनाव के दौरान भाजपा ने वादा किया था कि सरकार बनी तो यमुना को साफ किया जाएगा। अपने वादे के अनुसार काम शुरू हो गया है, और वो भी, जब सीएम का नाम तक तय नहीं हुआ है। 

यमुना एक्शन फर्स्ट प्लान के तहत 2002 तक 682 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। यमुना एक्शन सैकंड प्लान के तहत 2012 में 1515 करोड़ रुपये खर्च हुए। एक्शन प्लान-3 के तहत करीब 1,656 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। 

साल 2015 से 2023 के बीच केंद्र सरकार ने यमुना की सफाई के लिए 1000 करोड़ रुपये दिए थे। आम आदमी पार्टी की सरकार ने साल 2015 में दिल्ली की सत्ता में आने के बाद से 700 करोड़ रुपये यमुना की सफाई पर खर्च किए थे, लेकिन कहीं भी दिखाई नहीं देता है। पूरा पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। 

दिल्ली वासी आज भी यमुना की सफाई को तरस रहे हैं। यमुना सफाई के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने 11 परियोजनाओं के लिए 2361 करोड़ रुपये दिए थे, जिनका परिणाम जमीन पर कहीं भी दिखाई नहीं देता है। ऐसे में यह अभियान बेहद चुनौतीपूर्ण है।

इससे पहले मोदी ने गुजरात सीएम रहते साबरमती को करीब 12 किलोमीटर साफ कर वहां पर शानदार रिवर फ्रंट बनाया था। वैसे तो साबरमती को साफ करने का प्रस्ताव 1960 में आया था, लेकिन सीएम बनने के बाद 2005 में मोदी ने इस काम को शुरू किया और 900 करोड़ की लागत से 2012 में तैयार कर आमजन के लिए खोल दिया। 

आज साबरमती को रिवरफ्रंट देखने दुनियाभर से लोग आते हैं। ठीक ऐसा ही काम वसुंधरा राजे सरकार ने 2014 में जयपुर की द्रव्यवती नदी के लिए स्टार्ट किया था। चार साल बाद 2018 में नदी का 16 किलोमीटर का पहला चरण 1800 करोड़ की लागत पूरा हुआ और दूसरा चरण 2019 में पूरा होना था, लेकिन दिसंबर 2018 में सरकार बदल गई और फिर पूरा प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 

नदी में हर दिन 170 एमएलडी गंदा पानी छोड़ा जाता है, जिससे पूरा शहर दुर्गंध से भरा रहता है। अब 15 महीनों से राजस्थान में फिर बीजेपी की सरकार है, लेकिन नदी के अधूरे काम को हाथ भी नहीं लगाया गया है। नदी के रखरखाव और सफाई का जिम्मा 20 साल के लिए टाटा कंपनी के पास था, लेकिन अशोक गहलोत सरकार ने पेमेंट नहीं किया और कंपनी ने काम छोड़ दिया। 

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