दिल्ली चुनाव से किसे मिलेगी सत्ता?

Ram Gopal Jat

मतदाता भले ही दिल्ली में केवल 1 करोड़ 55 लाख ही हों, लेकिन इस चुनाव पर पूरे देश की नजरें होती हैं। बीते 12 साल में दिल्ली ने वो देखा है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। अन्ना आंदोलन से उपजे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 12 साल शासन किया है। उससे पहले लगातार 15 साल तक कांग्रेस की शीला दीक्षित ने राज किया था। 

कुल मिलाकर भाजपा को दिल्ली में सत्ता से हटे 27 साल बीत चुके हैं। बीते 11 साल से देश पर भाजपा का शासन है, लेकिन दिल्ली जैसे अर्द राज्य में भाजपा सत्ता से इतना दूर क्यों है? जब 2014 में पूरे देश पर मोदी का जादू चल रहा था, तब भी दिल्ली ने शासन नहीं दिया। 

हालांकि, यह लगातार तीसरा अवसर है, जब दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटें भाजपा ने जीती हैं, लेकिन विधानसभा में भाजपा सत्ता से पीछे ही रह जाती है। आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लग रहे हैं, हजारों करोड़ के शराब घोटाले से लेकर शीश महल भी दिल्ली चुनाव में अहम मुद्दा है। 

सीधा मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी में है, कांग्रेस खुद को रेस से बहुत पीछे मान रही है। दिल्ली में जबकि भाजपा इस बार कड़ी टक्कर दे रही है, तब आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के जाटों को आरक्षण का वादा करके नया दांव चल दिया है। क्या जाटों का वोट आरक्षण के वादे के सहारे आम आदमी पार्टी को मिल पाएगा? 

क्या इस वादे से दूसरी जातियों का वोट कम नहीं होगा? क्या भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा आम आदमी पार्टी को घेर पाएगी? क्या दिल्ली में अबकी बार भाजपा का जादू चल पाएगा? इन सवालों के जवाब तो 8 फरवरी को नतीजों के साथ सामने आ ही जाएंगे, लेकिन अभी दिल्ली के दिल में क्या चल रहा है? 

17 मार्च 1952 से एक अक्टूबर 1956 तक दिल्ली को राज्य का दर्जा था, लेकिन 1956 में जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली के राज्य के दर्जे को समाप्त कर दिया। इसके बाद दिल्ली में विधानसभा का गठन 1991 में किया गया था। उसके 2 साल बाद चुनाव हुए तो मदनलाल खुराना सीएम बने। 

उसके बाद कुछ समय सुषमा स्वराज और फिर साहिब सिंह वर्मा भी दिल्ली के सीएम बने। 1998 के चुनाव में दिल्ली की सत्ता कांग्रेस के पास चली गई जो लगातार 15 साल तक रही। उसके बाद 2013 से आम आदमी पार्टी राज कर रही है। कहने का मतलब यह है कि दिल्ली राज्य बनने से अब तक भाजपा केवल पांच साल शासन कर पाई है। 

दिल्ली में आम शहरों की तरह ही ज्यादातर आबादी बाहरी है। राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण यहां पर पूर्व से लेकर पश्चिम और उत्तर से लेकर दक्षिण भारत की तमाम जाति—धर्मों के लोग रोजगार, राजनीति, शिक्षा, चिकित्सा, पैसे और पावर के लिए आकर बसते हैं। 

दिल्ली की जनसंख्या करीब 3 करोड़ है, जबकि अधिकांश आबादी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे बाहरी राज्यों की है। यहां पर बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम भी बड़े पैमाने पर रहते हैं, जिनके राशन कार्ड से लेकर वोटर आईडी कार्ड तक बन चुके हैं। ये लोग मुख्यतः: मुफ्त की रेवड़ियों के सहारे जीवित हैं। अत: आम आदमी पार्टी का बड़ा वोट ये ही लोग होते हैं। 

देश में जितने अधिक पढ़े हुए और पैसे वाले लोग बढ़े हैं, उतना ही इनका वोटिंग प्रतिशत भी कम होता जा रहा है। आमतौर पर देखा गया है कि कम पढ़े लोग अधिक संख्या में वोट करते हैं। दिल्ली में बाहर से आने वाले लोग अधिकांश कम पढ़े होते हैं, जो दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में यहां आकर बसते हैं। 

जब इन लोगों को वोटर आईडी कार्ड मिलता है तो वोटिंग का अधिकार भी मिल जाता है। ये लोग उस पार्टी को वोट करते हैं, जो इनको नि:शुल्क सुविधाएं देते हैं। देश में मुफ्त रेवड़ी बांटने का सर्वाधिक चलन आम आदमी पार्टी ने ही चलाया है। बाहर से आए इन लोगों को दिल्ली में बिजली, पानी से लेकर एक दर्जन से ज्यादा योजनाएं नि:शुल्क मिल रही है। 

यही वजह है कि बांग्लादेशी मुस्लिमों और रोहिंग्या मुसलमानों के साथ ही बिहार, बंगाल, उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों से आने गरीबों के कारण बीते 10—12 साल में आम आदमी पार्टी लगातार चुनाव जीतकर सत्ता पर काबिज है। 

सत्ता के हिसाब से देखें तो दिल्ली में मुख्य लड़ाई प्रशासनिक अधिकारों को लेकर है। सत्ताधारी पार्टी चाहती है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिले, लेकिन देश की राजधानी होने के कारण हकीकत में ऐसा संभव नहीं है। कारण यह है कि दिल्ली केवल एक राज्य नहीं है, बल्कि भारत की कैपिटल भी है। 

ऐसे में देश की तमाम बड़ी योजनाएं यहीं से संचालित होती है, केंद्र की सरकार यहीं से चलती है, राष्ट्रपति भवन, उपराष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री आवास से लेकर संसद और सर्वोच्च न्यायालय से लेकर विदेशी राजदूत भी यहीं बैठते हैं। पूरी दुनिया की नजर दिल्ली पर होती है। इसलिए पूर्ण राज्य का दर्जा देकर इसे एक पार्टी के अधीन नहीं किया जा सकता। 

तमाम राजनीतिक मतभेद होने के बाद भी इस मामले में भाजपा-कांग्रेस एक साथ होती है। आम आदमी पार्टी लगातार आरोप लगा रही है कि इस बार भाजपा और कांग्रेस का गठबंधन हो गया है, जबकि आम आदमी पार्टी खुद इंडिया ब्लॉक का हिस्सा है। कांग्रेस इस चुनाव में भी खुद को सत्ता की दहलीज से कोसों दूर मान रही है, तो भाजपा 27 साल बाद वापसी करने को आतुर दिखाई दे रही है। 

अधिकारों की जंग के बीच दिल्ली में सत्ता की जंग बेहद रोचक हो गई है। इस बीच आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के जाटों को ओबीसी में आरक्षण का वादा करे भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी करने का प्रयास कर रही है। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 10 सीटों पर जाट बहुल हैं, जबकि 30 अतिरिक्त सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इसलिए जब फ्री की रेवड़ियों पर सवार आम आदमी पार्टी का हथियार कुंद हो रहा है, तब जाट आरक्षण का मुद्दा छेड़कर आम आदमी पार्टी ने फिर से सत्ता पाने का प्रयास किया है। 

भाजपा की ओर से पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा जाट समाज के बड़े चेहरे के रूप में सामने आ रहे हैं। दिल्ली में भाजपा ने अभी तक सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया है, जिसको भी आम आदमी पार्टी मुद्दा बना रही है, जबकि कांग्रेस की ओर से अघोषित रूप से शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित सीएम फैस हैं। कांग्रेस भले ही ऊपरी मन से चुनाव लड़ रही हो, लेकिन भाजपा इस बार सत्ता प्राप्त करने के तमाम प्रयास कर रही है। 

यदि आम आदमी पार्टी सत्ता से बाहर हो जाती है, तो उसे फिर से सत्ता पाना कठिन हो जाएगा। दो साल बाद उसे पंजाब से भी हाथ धोना पड़ सकता है। ऐसे में आम आदमी पार्टी का आधार दिल्ली है, जिसको बरकरार रखना चाहती है। इस द्वंद का अंत तो 5 फरवरी को चुनाव और 8 को परिणाम के साथ ही अंत हो जाएगा, लेकिन दिल्ली में अधिकारों की लड़ाई लंबी चलने वाली है। 

असल बात यह है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं है। इसके चलते दिल्ली की पुलिस भी केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन आती है। यहां के अधिकारियों के ट्रांसफर भी दिल्ली सरकार नहीं कर सकती है। इसको लेकर मई में सुप्रीम कोर्ट ने अहम निर्णय सुनाया था, लेकिन केंद्र सरकार ने अध्यादेश के जरिये उस निर्णय को निष्प्रभावी कर दिया। अब दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर करने का अंतिम निर्णय उपराज्यपाल के पास है। 

आम आदमी पार्टी का कहना है कि दिल्ली की पुलिस और तमाम अधिकारों के साथ दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए, लेकिन केंद्र इसके पक्ष में नहीं है। दरअसल, दिल्ली को यदि पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाए और केंद्र में दूसरी विचारधारा की सरकार हो तो टकराव होना निश्चित है। ऐसी स्थिति में दिल्ली की सुरक्षा को लेकर भी दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं। यही वजह है कि कई राज्यों से अधिक जनसंख्या होने के बावजूद भी दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। 

जब तक दिल्ली को पूर्ण राज्य नहीं बनाया जायेगा, तब तक यह टकराव चलता रहेगा। देखिये दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी होने के कारण जिस तरह से जनसंख्या को बोझ अधिक है, ठीक वैसे ही इसे सबसे अधिक टैक्स भी मिलता है। सरकार के पास जिम्मेदारियां कम होने के कारण यहां की सरकार मुफ्त की रेवड़ियां भी बांटकर आराम से सरकार चला सकती है। जब 2013 में आम आदमी पार्टी सत्ता में आई, तब दिल्ली जल बोर्ड समेत अधिकांश विभाग लाभ में थे, लेकिन तभी से लगातार फ्री जल और मुफ्त बिजली वितरण के कारण घाटा होता जा रहा है। 

इस दिल्ली को अधिक पैसे की जरूरत पड़ती है। केंद्र सरकार दिल्ली को अधिक टैक्स देने के मूड में नहीं है। यही वजह है कि दोनों सरकारों में टकराव होता है। इसके साथ ही अधिकारियों का ट्रांसफर जब केंद्र सरकार अथवा उपराज्यपाल करते हैं, तो उनका दायित्व भी दिल्ली सरकार के बजाए उपराज्यपाल के प्रति अधिक हो जाता है। जब दोनों जगह अलग अलग सरकारें होती हैं तो ट्रांसफर को लेकर टकराव बढ़ता है। 

हालांकि, 2013 से पहले कभी भी दोनों जगह अलग विचारधारा की सरकारें होने के बावजूद टकराव नहीं हुआ, लेकिन आम आदमी पार्टी अधिक महत्वाकांक्षी है और भाजपा ने उसपर अंकुश लगा रखा है। भाजपा सरकार अंकुश कम करने के मूड में नहीं है, तो आम आदमी पार्टी को दिल्ली में पूर्ण राज्य की सरकार चलाना है। यह तीसरी वजह है, जिसके कारण टकराव है। 

दिल्ली की पुलिस केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करती है। आम आदमी पार्टी बीते दस साल से लगातार कर रही है कि दिल्ली में क्राइम कंट्रोल करने के लिए दिल्ली पुलिस उसकी सत्ता के पास होनी चाहिए। इस दौरान ऐसे मौके भी आए हैं जब दिल्ली के सीएम ने कहा कि यदि दिल्ली पुलिस उनके पास होती तो केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी जेल भेज सकते थे। 

केंद्र सरकार के पास केवल दिल्ली की जिम्मेदारी नहीं होती है, बल्कि तमाम विदेशी मेहमानों की सुरक्षा भी करनी होती है। केंद्र और दिल्ली में अलग अलग विचारधारा की सरकारें होने की स्थिति में दिल्ली की सुरक्षा को लेकर मतभेद हो सकते हैं। इसलिए केंद्र सरकार पुलिस को अपने पास रखी है। केंद्र और दिल्ली के बीच टकराव का यह चौथा कारण है। 

इसी तरह से कई प्रकार के अधिकार केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार के बीच टकराव के कारण बने हुए हैं। यदि केंद्र और दिल्ली में एक ही विचार की सरकार होगी, तो यहां पर सफाई, शिक्षा, चिकित्सा जैसे कार्यों को सहजता से किया जा सकता है। भाजपा का कहना है कि केंद्र में उनकी सरकार है, यदि दिल्ली में भी सरकार होगी तो दिल्ली का विकास आसान होगा। 

यही वजह है कि तमाम सियासी हथियार चलाकर भाजपा दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने का प्रयास कर रही है, जबकि आम आदमी पार्टी लगातार तीसरी बार सत्ता प्राप्त करने को लालायित दिखाई दे रही है। एक महीने के भीतर चुनाव और परिणाम के साथ ही अगली सत्ता और सीएम का फैसला हो जाएगा। इसलिए देखना दिलचस्प होगा कि इन 20 दिनों के भीतर दिल्ली फतह के लिए दोनों और से क्या—क्या हथियार आजमाये जाते हैं।

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