हिंदू राष्ट्र के लिए हिंदू संविधान बनकर तैयार

Ram Gopal Jat

भारत में लगातार हिंदू राष्ट्र की मांग उठाई जा रही है। केंद्र में 2014 से नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है, तब से इस मांग ने जोर पकड़ रखा है। देश के कोने-कोने में रहने वाले हिंदू समाज के लोग देश को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की अपील कर रहे हैं। भारत में अभी संविधान से शासन चलता है। ब्रिटिशर्स की गुलामी से मुक्त होते समय 15 अगस्त 1947 को भारत में रहने वाले मुसलमानों के लिए अलग देश बनाने की शर्त पर पाकिस्तान बनाया गया था। 

1947 में पहले पाकिस्तान बना, फिर 1971 में उसके पूर्वी हिस्से को बांग्लादेश बनाया गया। दोनों आज इस्लामिक देश हैं, लेकिन भारत अब भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। जिस तरह से मुसलमानों के लिए पाकिस्तान और बांग्लादेश बने, ठीक उसी तरह से भारत को पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की जा रही है। मोदी के केंद्र में सत्तारूढ़ होने और उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के बाद हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग बढ़ने लगी है। 

हालांकि, सरकारें पूरी तरह से संविधान के अनुसार चलती हैं, लेकिन फिर भी मोदी-योगी से लोगों की अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। सरकार भले ही हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग पूरी नहीं कर पा रही हो, लेकिन हमारे साधु, संतों और ऋषियों ने हिंदुओं के लिए अलग से संविधान बनाने का काम कर दिया है। 

मैंने 14 अगस्त 2022 को एक वीडियो बनाया था, जिसमें हिंदू राष्ट्र के लिए हिंदू संविधान बनाने और उसे महाकुंभ में लागू करने की बात कही थी। इसी साल 13 जनवरी से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 144 साल बाद महाकुंभ का आयोजन किया जा रहा है। इसी में 'हिंदू संविधान' अथवा 'हिंदू आचार संहिता' या 'हिंदू कोड ऑफ कंडक्ट' को समाज के लिए रखा जाएगा। 

दुनिया के मुसलमान कुरान, हदीस और शरीयत के मुताबिक बर्ताव करते हैं तो ईसाई बाइबल के अकोर्डिंग चलते हैं, जबकि हिंदुओं के पास आज एक भी ऐसी सर्वमान्य संहिता नहीं है, जिसके अनुसार पूरा समाज व्यवहार, आचार-विचार या विवाह संस्कार, मृत्यु संस्कार करता हो। इसके कारण सदियों से सनातन समाज में जातिगत भेद बढ़ता जा रहा है तो इसी फूट का फायदा उठाते हुए दूसरे मजहबों के लोग हिंदुओं का धर्मांतरण कराने में कामयाब हो जाते हैं। 

कई सदियों से हिंदुओं के लिए धर्म संविधान अथवा धर्म आचार संहिता नहीं है। ईसा से करीब 500 वर्ष पूर्व पराशर ऋषि द्वारा पाराशर स्मृति की रचना की गई थी। जिसमें धर्म के अनुसार व्यवहार पर बल दिया गया था। इसके बाद ईसा से करीब 200 वर्ष पूर्व मनु ऋषि द्वारा मनुस्मृति लिखी गयी थी। 

इसमें 12 अध्याय हैं और न्याय, दंड, विवाह आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। मनुस्मृति के उपरांत 6ठी सदी में देवल ऋषि द्वारा देवल स्मृति की रचना की गई। माना जाता है कि सम्राट मिहिर भोज के शासनकाल देवल स्मृति की रचना हुई थी। इसमें भी हिंदुओं के जन्म, मरण, परण संस्कार से लेकर न्याय और अपराधियों को दंड देने के बारे में विस्तार से बताया गया है। 

उसके बाद ऐसी कोई आचार संहिता, स्मृति की रचना नहीं की गई, जिससे सभी हिंदू संगठित रहकर एक समान व्यवहार कर सकें। यही कारण हुआ कि विदेशी आक्रांताओं ने भारत आकर लूटमार की। उस कालखंड में हिंदुओं के आचार, विचार, संस्कार, विवाह और मृत्यु भोज तक में कुरीतियों ने घर कर लिया। 

करीब 800 साल तक मुसलमानों का शासन रहा, उस दौरान बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन किया गया, समाज को बेआबरू किया गया, मंदिरों को तोड़ा गया, उनको जमकर लूटा गया, यहां के भव्य भवनों को मस्जिदों में तब्दील कर​ दिया गया, बड़े स्तर पर हिंदू समाज की संस्थाओं को बर्बाद करने का काम किया गया। 

हजारों वर्षों से समृद्ध रही सनातन सभ्यता, संस्कृति को तहस-नहस किया गया। सदियों की गुलामी के कारण पाराशर, मनु और देवली स्मृति जैसी महान रचनाओं के अनुसार चलने वाले हिंदू समाज ने सभी आचार संहिताओं को पूरी तरह से त्याग दिया।

आज पूरे विश्व में हिंदू रहते हैं, लेकिन सबके अपने-अपने तौर तरीके हैं। अपनी-अपनी सभ्यता है, अपनी-अपनी संस्कृति विकसित कर ली है। केवल भारत में ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक और अरुणाचल से लेकर गुजरात तक हजारों तक की रीति-नीति बनी हुई है। 

कहने को तो पूरा हिंदू समाज एक है, लेकिन 100 करोड़ हिंदुओं में एक हजार तरह के अलग-अलग रीति-रिवाज हैं। यही वजह है कि हिंदुओं में समय-समय पर जातिगत जंग होती है, तो दूसरे धर्मों के लोग आसानी से हिंदुओं का धर्मांतरण कराने में कामयाब हो जाते हैं।

इस तरह की सभी बुराइयों से मुक्ति दिलाने के लिए हिंदू संतों, ऋषियों और साधुओं ने बीड़ा उठाया है। देश-दुनिया में रहने वाले हिंदुओं को एक डोर में पिरोने के लिए हमारे संतों द्वारा 'हिंदू आचार संहिता' तैयार की गई है। 

15 साल से इसके ऊपर मंथन किया जा रहा था। पिछले चार बरसों से 70 विशेषज्ञों की 11 टीमें हिंदू आचार संहिता तैयार करने के लिए जुटी हुई थीं। हर टीम में उत्तर और दक्षिण के पांच-पांच विद्वानों को रखा गया था। इसके लिए 40 से ज्यादा बड़ी बैठकें हुईं और सैकड़ों छोटी मीटिंग्स आयोजित की गईं। सभी धर्मगुरुओं, शंकराचार्यों, महामंडलेश्वरों से इसको प्रमाणित करवाया गया है। 

इस हिंदू संविधान को बनाने में श्रीमद्भागवत गीता, रामायण, महाभारत, पुराणों, मनुस्मृति, पराशर स्मृति, देवल स्मृति की भी मदद ली गई है। हिंदुओं के लिए 351 साल बाद आचार संहिता बनकर तैयार हुई है। 

इस आचार संहिता में हिंदुओं को मंदिरों में बैठने, पूजा-अर्चना करने के लिए समान नियम बताए गए हैं, जिससे समाज में एकरूपता रहे। इसके अलावा महिलाओं को भी 

यज्ञ-अनुष्‍ठान कराने को लेकर अधिकार दिए गए हैं। महिलाओं की अशौच अवस्था, यानी मासिक धर्म के समय को छोड़कर वेद अध्ययन करने की अनुमति दी गई है। मुगलकाल में लड़कियों को उठा लिया जाता था, जिससे बचने के लिए हिंदुओं ने रात में शादी करना शुरू कर दिया था। 

आचार संहिता में शादी-विवाह का आयोजन रात की बजाय दिन में करने को बढ़ावा दिया गया है। जन्‍मदिन मनाने के लिए विदेशी परंपरा को छोड़कर भारतीय संस्कृति का पालन करने पर जोर दिया गया है। विधवा स्त्री के विवाह की व्यवस्था को भी शामिल किया गया है तो हिंदू समाज में जात-पात का भेद और छुआछूत को समाप्त करने के लिए सभी मंदिरों और आध्यात्मिक केंद्रों पर बिना किसी जाति-भेद के लोगों को शामिल होने का अवसर दिया जाएगा। 

जो लोग हिंदू धर्म को छोड़कर दूसरे मतों को मान चुके हैं, उनको घर वापसी का पूर्ण माहौल और उचित अवसर दिया जाएगा। ऐसे लोगों को पुन: हिंदू धर्म में शामिल करने वाले ब्राह्मणों के द्वारा दिया गया गोत्र मान्य होगा। मृत्युभोज के नियम बनाए गए हैं, जिसके अनुसार न्यूनतम 16 जनों को इस तरह के भोज में शामिल किया जा सकता है। विवाह संस्कार में प्री वैडिंग शूट, अनेक प्रकार की कुरितियों को मुक्त करने पर बल दिया गया है।

 नई हिंदू आचार संहिता की प्रतियां महाकुंभ में वितरित की जाएंगी और फिर उन्हें देश भर में भी पहुंचाया जाएगा। इसके लिए पहली बार में ही हिंदू आचार संहिता की 1 लाख प्रतियां छापी जाएंगी। शुरू में प्रतियां निशुल्क होंगी, बाद में उसका उचित शुल्क लिया जाएगा। 

प्रश्न यह उठता है कि हिंदू आचार संहिता यानी हिंदू संविधान से क्या फायदा होगा? देखिये हुआ क्या है, कि जब से भारत में मुसलमानों का आगमन हुआ और बाद में अंग्रेजों को शासन रहा तो हिंदू अपनी सभ्यता, संस्कृति, परंपराओं और धर्म से विमुख होता चला गया। 

सदियों तक दूसरों की परंपराओं में रहने के कारण हिंदुओं की वर्तमान पीढ़ियों को तो पता भी नहीं है कि वास्तव में हिंदू या सनातन धर्म क्या है? जन्म से लेकर विवाह और मृत्यु तक जितने भी संस्कार होते हैं, उनको हिंदू समाज पूरी तरह से भूल चुका है या फिर उसका रुप ही बहुत बदल चुका है। 

हिंदू धर्म में कर्म के अनुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र के रुप में चार वर्ण और रक्त संबंधों के अनुसार 11 गोत्र होते हैं। जब देश में मुसलमानों को आगमन हुआ तो इसमें कुरीतियों ने जन्म ले लिया। जो वर्ण कर्म पर आधारित था, उसको जन्म पर आधारित कर दिया गया। सैकड़ों वर्षों तक देश गुलाम रहा और इस दौरान वर्णों की जगह जातियों ने ले ली। इसके कारण कई दशकों से देश में जाति आधारित दंगे हो रहे हैं। 

हिंदू समाज में अपनी जाति को श्रेष्ठ बताने की होड लगी रहती है। ऊंची जातियों के लोग नीची जातियों के साथ बुरा बर्ताव करते रहे हैं। इसका फायदा मुसलमानों व ईसाइयों ने उठाया, जिन्होंने उनके धर्म में समानता, समृद्धि और ईश्वर से सीधे साक्षात्कार कराने का झांसा देकर हिंदुओं का जमकर धर्मांतरण करवाया है। 

जन्म, मरण और परण जैसे संस्कारों का बाजारीकरण कर दिया गया है। आज यदि किसी हिंदू के बच्चा जन्म लेता है तो उसका विवाह होता या किसी हिंदू की मृत्यु भी होती है तो लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करवाए जाते हैं। किसी गरीब के पास खाने के दाने भले ही नहीं हों, लेकिन इन संस्कारों पर कर्ज लेकर भी उसे खर्च करना पड़ता है। 

इसका दुष्परिणाम यह होता है कि न अच्छे कपड़े होते हैं, न शिक्षा पर खर्च किया जाता है और न ही भविष्य के लिए धन की बचत होती है। इन्हीं कुरीतियों को दूर करने, दूसरे धर्मों के झांसे में आने से बचने और हिंदुओं को एकजुट करने के लिए हिंदू आचार संहिता का निर्माण किया गया है। 

यदि लिखित संविधान होगा तो दूसरे धर्मों की भांति हिंदू भी अपने धर्म संविधान के अनुसार एकजुट होकर परंपराओं का निर्वहन करेंगे और आपसी फूट का दूसरे लोग फायदा नहीं उठा पाएंगे। 

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