अब 5 मिनट में पार्टी बदल सकेंगे भाजपा-कांग्रेस के नेता!


Ram Gopal Jat

आयाराम गयाराम की कहानी तो आपने सुनी ही होगी! आयाराम गयाराम का किस्सा 1967 में पंजाब से अलग होने के बाद हरियाणा के पहले विधानसभा चुनाव के दौरान हुआ था। इस घटना को अमर कर देने वाले शख्स थे निर्दलीय विधायक गयालाल। गयालाल हरियाणा के पलवल जिले के हसनपुर सीट पर महज 360 वोटों से विधायक चुने गए थे। किस्सा इसलिए हुआ, क्योंकि गयालाल ने एक ही दिन में 3 बार दल बदला था। इस कहानी के बाद देश की राजनीति में भूचाल आ गया था और इसे रिपीट होने से रोकेन के लिए एक कानून बना, जिसको हम दल बदल कानून के नाम से जानते हैं। लेकिन क्या उस कानून के बाद भी दल बदलने वालों पर कोई अंकुश लगा है? क्या आयाराम गयाराम की कहानी पहले की तरह ही नहीं चल रही है? असल बात यह है कि इस कानून के बाद भी कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ है। केवल इतना फर्क पड़ा है कि जो काम पहले पांच साल में कभी भी हो जाता था, वो अब चुनाव के समय हो रहा है। बाकी इससे अधिक असर नहीं पड़ा है। बल्कि आप यदि शिव सेना, राकंपा जैसे दलों की हालत देखेंगे तो पाएंगे कि पहले अकेला नेता दल बदलता है, लेकिन अब तो पूरा दल ही दूसरे दल में बदल देता है। 

अब इसको आसान बनाने का काम कांग्रेस ने कर दिया है। पहले जहां कांग्रेस से भाजपा और भाजपा से कांग्रेस जाने वालों को घंटों का समय लगता था, उन्हें अब चंद मिनटों में दल बदलने की सुविधा मिल गई है। दरअसल होता क्या है कि जब किसी नेता को मनचाहा पद, टिकट या सुविधा नहीं मिलती है तो वो भावावेश में पार्टी बदलने का काम करता है। यदि उसको अपना निर्णय लेने में थोड़ा समय मिल जाता है तो वो पुनर्विचार कर लेता है और अपना फैसला बदलने से रुक भी जाता है। ऐसा ​इसलिए हो पाता है कि नेता जब गुस्से में एक दल के कार्यालय से निकलता है तो दूसरे कार्यालय जाकर दूसरी पार्टी ज्वाइन करता है। इसमें उसे दो—चार घंटों का समय लग जाता है। इस समय में उसका गुस्सा भी कुछ कम हो जाता है और अपने भविष्य का निर्णय करने के लिए भी सोचने का टाइम मिल जाता है। यदि दो दलों के कार्यालयों की दूरी कम होगी तो उसे सोचने का समय नहीं मिलेगा और जब तक उसका गुस्सा ठंडा होगा, उतनी देर में वो दूसरे दल का सदस्य बन चुका होगा। 

दल बदलने के लगने वाले इसी समय को कम करने का काम किया है कांग्रेस पार्टी ने। हाल ही में कांग्रेस ने 47 साल बाद पार्टी का नया मुख्यालय बनाया है। अब तक कांग्रेस का मुख्यालय 24 अकबर रोड पर चल रहा था, लेकिन अब पार्टी कार्यालय का नया पता 9 कोटला रोड हो गया है। 

यह बात सही है कि कांग्रेस पार्टी को 2 दिन पहले ही दिल्ली में नया दफ्तर मिल गया है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, विपक्ष के नेता राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी समेत कांग्रेस के कई बड़े नेता इस अवसर के गवाह बने। कांग्रेस अपने नए दफ्तर का नाम इंदिरा भवन रखा है। इस 6 मंजिला भवन में एक लाइब्रेरी भी होगी, जिसका नाम पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के नाम पर होगा। इसके अलावा यहां पर कांग्रेस के पूरे इतिहास को तस्वीरों के जरिये संजोने का काम किया है।

कांग्रेस के पुराने कार्यालय 24 अकबर रोड का बहुत पुराना इतिहास रहा है। देश की आजादी से पहले यहां वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो की कार्यकारी परिषद के सदस्य रहते थे। नोबेल शांति पुरस्कार की विजेता आंग सान सू का बचपन 1960 के समय इसी जगह बीता था। कांग्रेस का इतिहास बहुत उतार-चढ़ाव से भरा हुआ रहा है। साल 1978 में 24 अकबर रोड को कांग्रेस का मुख्यालय बनाए जाने के बाद पार्टी ने एक नया मोड़ लिया। उस समय कांग्रेस पार्टी विपक्ष में थी और पूर्व पीएम इंदिरा गांधी और संजय गांधी सरकारी एजेंसियों के निशाने पर थे। उससे पहले 1975 में इमरजेंसी लगाने के कारण पार्टी की स्थिति कमजोर हो गई थी। आपातकाल के कारण देश में कांग्रेस की बहुत अधिक बदनामी हो चुकी थी, उसके चलते पार्टी की सत्ता में वापसी की राह आसान नहीं लग रही थी।

इसके केवल दो साल बाद 1980 में कांग्रेस ने वापसी करते हुए केंद्र की सत्ता प्राप्त की। इमरजेंसी लगाने वालीं इंदिरा गांधी के नेतृत्व में ही पार्टी ने लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की और इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। इसके 4 साल बाद 1984 में इंदिरा गांधी के हत्या के बाद उनके बेटे राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने। इस दौरान कांग्रेस ने 24 अकबर रोड के मुख्यालय से लगभग 26 साल तक राजनीति की, जिसमें पूर्व पीएम चंद्रशेखर, एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल जैसे नेताओं का दो साल का कार्यकाल भी शामिल रहा। साल 1995 में सत्ता से बेदखल होने के बाद पार्टी ने सहयोगियों के साथ दो साल सत्ता चलाई, लेकिन 1999 के बाद पांच साल तक उसे सत्ता से बाहर रहना पड़ा। फिर 2004 में सत्ता में आई और 10 साल तक मनमोहन सिंह के नेतृत्व में विवादित शासन किया। ठीक 10 साल बाद 2014 के आम चुनाव में पार्टी बुरी तरह से हारकर सत्ता से बाहर हो गई, जो आज तक सत्ता के लिए संघर्ष कर रही है। एक ओर जहां केवल 42 साल पुरानी भाजपा जिला स्तर पर भव्य और हाइटैक भवन बना चुकी है, वहीं कांग्रेस ने पहली बार इतना शानदार कार्यालय बनाया है। 

अब मुद्दे की बात यह है कि जहां पर कांग्रेस ने 252 करोड़ में अपना नया कायार्लय बनाया है, उससे महत 500 मीटर की दूरी पर ही भाजपा का भी हाइटैक हैडक्वार्टर है। यानी कांग्रेस और भाजपा कार्यालयों के बीच केवल 5 मिनट का फासला है। ऐसे में यदि कांग्रेस के नेता टिकट, पद या सुविधा नहीं मिलने से नाराज होकर भाजपा में जाना चाहेंगे तो उनको पांच मिनट का समय लगेगा। ठीक इसी तरह से यदि भाजपा से नाराज होकर कोई नेता अपना दल बदलने का कदम उठायेगा तो उसे भी केवल पांच मिनट में कांग्रेस की सदस्यता मिल जाएगी। इस तरह से देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी ने नेताओं के दल बदलने के काम को बेहद आसान कर दिया है। 

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