रामगोपाल जाट
भले ही राजस्थान की सरकार ने एक झटके में 9 जिले और 3 संभाग खत्म कर दिए हों, लेकिन अगले चार महीने के लिए उत्तर प्रदेश में 75 की जगह 76 जिले हो जाएंगे। इस नये जिले का नाम महाकुंभ नगर रखा गया है, जबकि इसके कलेक्टर को कुंभाधिकारी और एडीएम को अपर कुंभाधिकारी कहा गया है। इसी तरह से इस जिले का अलग से पुलिस अधिक्षक भी नियुक्त किया गया है। जिले में 4 तहसील और 67 गांव शामिल किये गये हैं।
दरअसल, इन दिनों यूपी के प्रयागराज में महाकुंभ की तैयारी चल रही है। योगी आदित्यनाथ सरकार कई महीनों से इस मेले की तैयारी कर रही है। इस बार का महाकुंभ इसी प्रयागराज में संगम के तट पर होने वाला है। इससे पहले 2019 में अर्दकुंभ का आयोजन भी यहीं पर हुआ था। हर 6 साल में अर्दकुंभ और 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। इस बार महाकुंभ में करीब 40 से 45 करोड़ लोगों के स्थान करने की संभावना है। इसी को ध्यान में रखते हुए योगी सरकार ने तैयारियां की हैं।
पूरे विश्व में कुंभ मेले से बड़ा धार्मिक आयोजन नहीं होता है। वैसे तो दुनिया 56 इस्लामिक देश हैं, लेकिन मक्का—मदीना में भी इतने लोग शामिल नहीं होते, जितने कुंभ के मेले में आते हैं। राज्य सरकार और केंद्र सरकार कुंभ मेले की शांति, सुरक्षा और सफलता के लिए जुटी हुई है। योगी सरकार को यह पहला अवसर मिल रहा है, जब महाकुंभ का आयोजन किया जाएगा। इससे पहले 2013 में कुंभ मेले का आयोजन किया गया था, तब समाजवादी पार्टी की सरकार थी, लेकिन तब मेले में घटी अनैक दुर्घटनाओं ने पूरे मेले को बदनामी दे दी थी। जिस भव्यता से इस बार तैयारियां की जा रही हैं, उससे साफ है कि सरकार इस कुंभ को अब तक का सबसे जोरदार आयोजन करने जा रही है। योगी सरकार ने कुंभ मेले की तैयारियों के लिए ही करीब 7 हजार, 500 करोड़ रुपये खर्च करने का बजट रखा है।
इसके अलावा केंद्र सरकार भी 2100 करोड़ रुपये दे रही है। आखिरी महाकुंभ 1882 में हुआ था, जिसमें अंग्रेज सरकार ने 20228 रुपये खर्च कर 49840 रुपये कमाए थे, यानी करीब 250 प्रतिशत लाभ हुआ था। जिला प्रशासन के अनुसार इस बार कुंभ में 3.2 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होने की उम्मीद है। वैसे तो कुंभ 45 दिन तक चलेगा और जब तक हर दिन संगम स्नान का महत्व है, लेकिन इस दौरान भी मकर संक्रान्ति, पौष पूर्णिमा, एकादशी, मौनी अमावस्या, वसन्त पंचमी, रथ सप्तमी, माघी पूर्णिमा, भीष्म एकादशी और महाशिवरात्रि के दिन कुंभ मेले में स्नान का विशेष महत्व होता है।
सवाल यह खड़ा होता है कि कुंभ मेल की शुरुआत कहां, कब और कैसे हुई। आज के इस वीडियो में ऐसे सभी सवालों के जवाब जानने का प्रयास करेंगे। कुंभ मेला आरम्भ होने का तो किसी को ठीक से नहीं पता, लेकिन कहा जाता है कि महर्षि दुर्वासा के श्राप से जब इंद्रदेव और अन्य देवता कमजोर पड़ गए, तब राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया। ऐसे में सब देवता मिलकर विष्णु भगवान के पास गए और राक्षसों से उन्हें बचाने की गुहार लगाई। इसपर विष्णु भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर, यानी समुद्र में मंथन करके अमृत निकालने को कहा। भगवान ने कहा कि क्षीरसागर ब्रह्मांड के आकाशीय क्षेत्र में स्थित है।
इसके बाद सारे देवता भगवान विष्णु के कहने पर दैत्यों से संधि करके अमृत निकालने के प्रयास में लग गए। जैसे ही समुद्र मंथन से अमृत निकला तो देवताओं के इशारे पर इंद्रदेव के पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर उड़ गये। इस पर दैत्यों के गुरु शंकराचार्य के कहने पर दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और काफी परिश्रम करने के बाद जयंत को पकड़ लिया। इसके उपरांत अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देवताओं और दैत्यों में 12 दिन तक भयानक युद्ध चला। इस युद्ध के दौरान प्रथ्वी के चार स्थानों पर अमृत कलश में से अमृत की 4 बूंदे गिरीं। जिनमें से पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी नासिक में गिरी थीं।
इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। देवताओं के 12 दिन पृथ्वी पर 12 साल के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 साल में महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है। इसी तरह से 12 को 12 से गुणा किया जाता है, तब 144 साल में पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। कुंभ मेले का पहला लिखित प्रमाण भागवत पुराण में उल्लेख है। साथ ही समुंद्र मंथन के बारे में भागवत पुराण, विष्णु पुराण, महाभारत और रामायण में भी उल्लेख किया गया है।
कुंभ मेले का एक अन्य लिखित प्रमाण चीनी यात्री ह्वेन त्सांग की पुस्तकों में भी है, जो हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान 629-645 ईस्वी में भारत आया था। कहा जाता है कि सूर्य में लगातार हो रहे विस्फोट 11वें साल से 12वें साल तक बढ़ जाते हैं, जिसका धरती पर विपरीत असर होता है। हमारे ऋषि—मुनि इस बात को अच्छे से जानते थे, इसलिए कुंभ मेले का आयोजन किया गया था। इस दौरान संगम में स्नान करने से सूर्य में विस्फोट से निकली किरणों का मानव शरीर पर नकारात्मक असर कम हो जाता है। माना जाता है कि संगम के जल में पारा और चुबंकीय गुण पाये जाते हैं, जिसके कारण सूर्य की किरणों की नैगेटिविटी कम हो जाती है।
ज्योतिषियों के अनुसार कुंभ मेला ग्रहों के मेल—मिलाप से तय होता है। कुंभ मेले का आयोजन किस स्थान पर किया जाएगा, यह सब राशियों पर निर्भर करता है। कुंभ मेले में सूर्य और ब्रहस्पति का खास योगदान माना जाता है। जब सूर्य एवं ब्रहस्पति एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तभी कुंभ मेले को मनाया जाता है। इसी आधार पर स्थान और तिथि निर्धारित की जाती है। ब्रहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करते हैं और सूर्य मकर राशि में, तब कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज में किया जाता है। जब सूर्य मेष राशि और ब्रहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में किया जाता है। जब सूर्य और ब्रहस्पति का सिंह राशि में प्रवेश होता है, तब यह महाकुंभ मेला नासिक में आयोजित होता है। इसी तरह से जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं, तब कुंभ मेले का आयोजन उज्जैन में किया जाता है। जब सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करते हैं, इसी कारण उजैन में जो कुंभ मनाया जाता है, उसे सिंहस्थ कुंभ कहते हैं।
सारे नवग्रहों में से सूर्य, चंद्र, गुरु और शनि की भूमिका कुंभ में महत्वपूर्ण मानी जाती है। जब अमृत कलश को लेकर देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था, तब कलश की खींचातान में चंद्रमा ने अमृत को बहने से बचाया, गुरु ने कलश को छुपाया, सूर्य ने कलश को फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से रक्षा की। इसीलिए जब इन गृहों का योग—संयोग एक राशि में होता है, तब कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। हर तीसरे वर्ष कुंभ का आयोजन होता है। गुरु ग्रह एक राशि में एक साल तक रहता है और हर राशि में जाने में लगभग 12 वर्षों का समय लग जाता है।
इसीलिए हर 12 साल बाद उसी स्थान पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। निर्धारित चार स्थानों में अलग-अलग स्थान पर हर तीन साल में कुंभ मेला लगता है। प्रयाग का कुंभ के लिए विशेष महत्व है। प्रत्येक 144 वर्ष बाद यहां पर महाकुंभ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले चार प्रकार के होते हैं, जिनमें सबसे बड़ा मेला महाकुंभ होता है। यह केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। यह प्रत्येक 144 वर्षों में या 12 पूर्ण कुंभ मेले के बाद आता है।
इसके बाद पूर्ण कुंभ मेला होता है, जो हर 12 साल में आता है। भारत में 4 कुंभ मेला स्थान, यानि प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में आयोजित किए जाते हैं। यह हर 12 साल में इन 4 स्थानों पर बारी-बारी आता है। तीसरा होता है अर्ध कुंभ मेला। इसका अर्थ है आधा कुंभ मेला, जो हर 6 साल में केवल दो स्थानों हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। चौथा कुंभ मेला होता है। यह चार अलग-अलग स्थानों पर राज्य सरकारों द्वारा हर तीन साल में आयोजित किया जाता है। इस मेले में लाखों लोग आध्यात्मिक उत्साह के साथ भाग लेते हैं। पांचवां माघ कुंभ मेला होता है। इसे मिनी कुंभ मेले के रूप में भी जाना जाता है जो प्रतिवर्ष होता है और केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है। यह हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ के महीने में आयोजित किया जाता है। कुंभ मेला दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक सम्मेलन है, जिसे "धार्मिक तीर्थयात्रियों की दुनिया की सबसे बड़ी मंडली" के रूप में भी जाना जाता है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कुंभ मेला कमाई का भी एक प्रमुख अस्थायी स्रोत है, जो लाखों लोगों को रोजगार देता है। मेले में पहले स्नान का नेतृत्व संतों द्वारा किया जाता है, जिसे कुंभ के शाही स्नान के रूप में जाना जाता है और यह सुबह 3 बजे शुरू होता है। संतों के शाही स्नान के बाद आम लोगों को संगम में स्नान करने की अनुमति मिलती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, यह माना जाता है कि जो इन पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाते हैं, वे अनंत काल तक धन्य हो जाते हैं। यहां स्थान करने वाले पाप मुक्त हो जाते हैं। दुनिया की सबसे बड़े सम्मेलन कुंभ मेले को यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची 'मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत' में शामिल किया गया है।
इस बार कुंभ मेले के लिए यूपी की योगी सरकार ने अर्दकुंभ से करीब दोगुणा किया है। केंद्र सरकार भी मदद कर रही है। इस मेले में काम करने वाले करीब 45 हजार परिवारों को रोजगार मिला हुआ है। प्रयागराज के दो बड़े पुलों का काम किया जा चुका है। मेले का आयोजन 4000 हेक्टेयर क्षेत्र में होगा। क्षेत्र में स्वच्छ पेयजल के लिए 1250 किलोमीटर की पाइपलाइन बिछाई जा चुकी है। उजाले के लिए 67000 एलईडी लाइटें लगाई गई हैं। एक लाख पचास हज़ार शौचालय बनाए गये हैं, जिनकी सफ़ाई के लिए 10000 कर्मचारी तैनात किए गये हैं। क्षेत्र में संगम पर 30 पॉन्टून, यानी अस्थायी पुल बनाए गये हैं। पूरे मेला क्षेत्र में 488 किलोमीटर लंबी सड़कें बनाई गई हैं।
सुरक्षा के लिए पुलिस, अर्धसैनिक बल पीएसी, होमगार्ड और सिविल डिफ़ेंस के 50 हज़ार सुरक्षाकर्मी मेला क्षेत्र में तैनात होंगे। रेलवे ने कुंभ के लिए 5000 करोड़ खर्च कर 3000 स्पेशल ट्रेने चलाने का काम किया है, मेले में कुल 13000 ट्रेनों का संचालन किया जाएगा, जबकि यूपी सरकार ने अलग से 7000 बसें शुरू की हैं। पूरे मेले में हाई क्वालिटी वाले 300 एआई कैमरे लगाए गये हैं, इसके अलावा 10 जगह पर खोया—पाया के कम्प्यूटर सेंटर बनाए गए हैं। देश-दुनिया से आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के ठहरने के लिए टेंट सिटी बनाई गई है। इसमें योग और यज्ञ करने की सुविधा भी है।
आधुनिक सुविधाओं से लैस पेइंग गेस्ट हाउस भी बनाए गये हैं, इनमें रहने वालों को वाई-फ़ाई और आरामदायक माहौल मिलता है। इनमें कईयों का किराया 40 हजार रुपये तक है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं को राशन मुहैया कराने के लिए कई इंतज़ाम किए गये हैं। मेले के सभी सेक्टर्स में राशन की दुकानें लगाई जाती हैं। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ अब तक ही यहां पर तीन बार निरक्षण करने पहुंच चुके हैं, जबकि खुद पीएम मोदी ने भी एक बार मेलास्थल का जायजा लिया है। यूपी सरकार के अनुसार इस बार का महाकुंभ अब तक का सबसे भव्य, बड़ा और ऐतिहासिक होगा।
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