रामगोपाल जाट
अशोक गहलोत की लीडरशिप में तीन बार सत्ता से बाहर हो चुकी कांग्रेस को सचिन पायलट और उनके युवा योद्धा फिर से जिंदा करने में जुट गये हैं। हालांकि, अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं, लेकिन वो कांग्रेस ही काम कर रही है, जो सचिन पायलट के साथ है।
अशोक गहलोत की लीडरशिप में तीन बार सत्ता से बाहर हो चुकी कांग्रेस को सचिन पायलट और उनके युवा योद्धा फिर से जिंदा करने में जुट गये हैं। हालांकि, अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हैं, लेकिन वो कांग्रेस ही काम कर रही है, जो सचिन पायलट के साथ है।
इससे पहले साल 2014 से 2018 तक भी इन्हीं सचिन पायलट की लीडरशिप में कांग्रेस को पुन: सत्ता तक पहुंचाने का काम किया गया था। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट वैसे तो टोंक से विधायक हैं, लेकिन राजस्थान में उनकी सक्रियता और समर्थकों की संख्या किसी भी नेता को ईर्ष्या करने के लिए काफी है।
दरअसल, तीन दिन पहले कांग्रेस ने जयपुर के शहीद स्मारक पर मणिपुर बेरोजगारी को लेकर प्रदर्शन किया था, तब सचिन पायलट समेत तमाम कांग्रेसी नेताओं को पानी की बौछारों से खदेड़ा गया था।
इसके बाद शनिवार को एक बार फिर यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष अभिमन्यु पूनिया के नेतृत्व में उसी शहीद स्मारक पर प्रदर्शन किया गया।
बाद में सीएम हाउस घेरने का प्रोग्राम किया गया, लेकिन पुलिस ने रोक लिया और पानी की बौछारों से खदेड़ा गया। दोनों ही प्रदर्शन इसलिए सफल हुए, क्योंकि सचिन पायलट और उनके युवा साथियों ने पूरी ताकत से काम किया है।
संभवत: इसी वजह से नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी कहा है कि यदि कांग्रेस आलाकमान गोविंद सिंह डोटासरा को अध्यक्ष पद से हटाता है तो फिर एक बार पुन: सचिन पायलट को अध्यक्ष बनाना चाहिए, तभी 2028 में कांग्रेस को सत्ता प्राप्त हो सकती है।
इधर, अशोक गहलोत और उनकी पूरी टीम एक तरह से निष्क्रिय होकर बैठी है। यह अशोक गहलोत की हमेशा की रणनीति रही है। जब भी कांग्रेस सत्ता से बाहर होती है तो गहलोत और उनके समर्थक चुप हो जाते हैं, लेकिन अंतिम वर्ष में गहलोत सक्रिय होने लगते हैं।
आखिर जब कभी परसराम मदेरणा, कभी शीशराम ओला, सीपी जोशी और कभी सचिन पायलट जैसे नेताओं के कारण सत्ता प्राप्त कर लेती है तो गांधी परिवार के पास जादूगरी करके मुख्यमंत्री का पद हथिया लेते हैं।
एक बार फिर से अशोक गहलोत उसी रणनीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन इस बार फर्क यह है कि सचिन पायलट ने कांग्रेस को अपने पाले में पुख्ता करने का काम शुरू कर दिया है। यह पहला अवसर है, जब गहलोत को लगातार 11वें साल एक ही नेता से चुनौती मिल रही है। साल 2014 की जनवरी में सचिन पायलट को पीसीसी चीफ बनाया गया था, तब से अशोक गहलोत उनको अपना सबसे बड़ा राजनीतिक दुश्मन मानते हैं।
11 जुलाई 2020 के बाद लगातार 34 दिन तक तो गहलोत ने सचिन पायलट को पार्टी का गद्दार साबित करने में कोई कसर ही नहीं छोड़ी थी। उसके बाद भी साढ़े तीन साल तक गाहे—बगाहे उन्होंने पायलट को पार्टी का गद्दार कहा था। किंतु अब सचिन पायलट दुबारा गहलोत को ऐसा अवसर नहीं देना चाहते हैं। यही वजह है कि सभी युवा विधायकों और युवा नेताओं को सचिन पायलट ने अपने पाले में लेने का काम युद्ध स्तर पर आरंभ कर दिया है।
इसके साथ ही सरकार की नाकामियों को भी मीडिया के द्वारा जनता तक ले जाने के लिए धरने, प्रदर्शन, घेराव के कार्यक्रम शुरू कर दिए हैं। सचिन पायलट का इन कामों में साथ देने वाले मुख्यत: विधायक हरीश चौधरी, मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, अभिमन्यू पूनिया, मनीष यादव, डॉ. विकास चौधरी, शिखा मील बराला, डीसी बैरवा जैसे नेता और पूर्व सांसद बृजेंद्र ओला, संजना जाटव, हरीश मीणा, भजनलाल जाटव, उम्मेदाराम बेनीवाल, मुरारीलाल मीणा जैसे नेता हैं।
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