वक्फ बोर्ड और वर्शिप एक्ट खत्म करेगी मोदी सरकार?


रामगोपाल जाट 

देश में इन दिनों वक्फ बोर्ड और वर्शिप एक्ट को लेकर सर्वाधिक चर्चा हो रही है। वक्फ बोर्ड को खत्म करने या उसमें बड़े पैमाने पर संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार तैयारी कर चुकी है, जबकि 1991 के प्लेसेस ओफ वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अब शीर्ष कोर्ट या हाईकोर्ट्स में किसी भी मस्जिद के सर्वे का मुकदमा नहीं सुना जाएगा। 

एक तरह से कोर्ट ने कह दिया है कि चाहे जितने भी मंदिर तोड़कर उनपर मस्जिद बनाई गई हों, लेकिन हिंदूओं में मंदिर वापस लेने का अधिकार नहीं दिया जाएगा। यदि ऐसा करना है तो सरकार को संसद के जरिए प्लेसेस ओफ वर्शिप एक्ट— 1991 को खत्म करना होगा, तभी इस तरह के मुकदमें सुने जा सकेंगे। इधर, संघ प्रमुख मोहन भागवत पहले ही कह चुके हैं कि संघ अब किसी भी मंदिर के लिए आंदोलन नहीं करेगा, हर मस्जिद के नीचे शिव मंदिर खोजने की जरुरत नहीं है। देश का अधिकांश हिंदू तबका चाहता है कि उनके मंदिर वापस मिले और वर्शिप एक्ट खत्म हो। 

इसी तरह से वक्फ बोर्ड के द्वारा हड़पी गई जमीनें भी वापस होनी चाहिए। दरअसल, सरकारी आंकड़ें बताते हैं कि देश में रेलवे और रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे अधिक जमीन मालिक वक्फ बोर्ड है। कई जगह पर गांव के गांव हड़पे जा चुके हैं। जानकारी में आया है कि दिल्ली में 77 फीसदी जमीन पर वक्फ ने दावा कर रखा है। ऐसे में आज इन दोनों मामलों को समझने की जरूरत है कि वक्फ एक्ट आया कहां से और क्यों बनाया गया था? साथ ही वर्शिप एक्ट की भी पड़ताल करनी आवश्यक है। 

पहले वक्फ एक्ट की बात करते हैं। वक्फ बोर्ड के बारे में समझने से पहले हमें यह जानना जरूरी है कि वक्फ क्या है? वक्फ अरबी भाषा का शब्द है। इसका अर्थ खुदा के नाम पर अर्पित वस्तु या परोपकार के लिए दिया गया धन होता है। इसमें चल और अचल संपत्ति को शामिल किया जाता है। 

मुस्लिम अपनी संपत्ति वक्फ को दान कर सकता है। कोई भी संपत्ति वक्फ घोषित होने के बाद ट्रांसफरेबल नहीं होती है। देश में शिया और सुन्नी दो तरह के वक्फ बोर्ड हैं, में से शिया मुसलमानों को सुन्नियों के बजाए थोड़ा लिबरल माना जाता है।

वक्फ संपत्ति के मैनेजमेंट का काम वक्फ बोर्ड करता है। प्रत्येक राज्य में अलग वक्फ बोर्ड होता है। वक्फ बोर्ड में संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन होता है। बोर्ड प्रोपर्टीज का रजिस्ट्रेशन, मैनेजमेंट और संरक्षण करने का भी काम करता है। राज्यों में बोर्ड का नेतृत्व अध्यक्ष करता है। 

वक्फ बोर्ड को मुकदमा करने की शक्ति भी है। अध्यक्ष के अलावा बोर्ड में राज्य सरकार के सदस्य, मुस्लिम एमएलए, सांसद, बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामीक विद्वान और वक्फ के मुतवल्ली शामिल होते हैं। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के अलावा बोर्ड वक्फ में मिले दान से मदरसा, मस्जिद, कब्रिस्तान का रखरखाव करता है।

देश में सबसे पहली बार 1954 में वक्फ एक्ट बना था। उसी से वक्फ बोर्ड का जन्म हुआ। दरअसल, आजादी से पहले वक्फ संपत्तियों को रखने के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं था, लेकिन आजादी के बाद मुस्लिम नेताओं ने कहा है कि देश में यदि मुस्लिम समुदाय अपनी संपत्ति खुदा के नाम पर दान करता है तो उसका रखवाला कोई नहीं है, इसलिए एक एक्ट बनाया जाना चाहिए, ताकि संपत्तियों का रख रखाव हो सके और ये संपत्तियां मुस्लिम समुदाय के हित में काम आ सके। 

इस कानून का मकसद वक्फ से जुड़े कामकाज को सरल बनाना था। एक्ट में वक्फ की संपत्ति पर दावे और रख-रखाव तक का प्रोविजन है। एक्ट बनने के बाद 1955 में पहला संशोधन किया गया। इसके तहत हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई। इसके बाद 2013 में इसमें बड़े पैमाने पर संशोधन किया गया, संशोधन इतना बड़ा किया गया कि वक्फ बोर्ड को कानूनी अधिकार तक दे दिये गए। 

जिस जमीन को वक्फ अपनी संपत्ति घोषित कर देता है, उसकी सुनावाई से लेकर समस्त दावे वहीं पर निपटाए जाते हैं। मजेदार बात यह है वक्फ ट्रिब्यूनल की सुनवाई हाईकोर्ट से नीचे की अदालतें कर ही नहीं सकतीं। वक्फ बोर्ड की मनमानी का आलम यह है कि किसी भी संपत्ति को मुगलों के समय दान की हुई घोषित कर हड़पने का काम किया जा रहा है। ऐसे हजारों मामले सामने आए हैं, जहां चार पीढ़ियों से कागजों सहित बैठे लोगों को भी वक्फ ने डरा धमकाकर बाहर निकाल दिया है।  

सेंट्रल वक्फ परिषद माइनोरिटीज मिनीस्ट्री के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक निकाय है। इस परिषद का 1964 में गठन किया गया है, यानी जब पहली बार वक्फ एक्ट बना, उसके करीब 10 साल बाद निकाय बनाई गई थी। 

इसे सभी वक्फ बोर्ड्स की कार्यप्रणाली और वक्फ प्रशासन से संबंधित मामलों में सेंट्रल गर्वंमेंट के एडवाइजर निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। परिषद को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और वक्फ बोर्डों को सलाह देने का अधिकार है। इस परिषद का अध्यक्ष केंद्रीय माइनोरिटीज मंत्री होता है। साल 1995 में वक्फ एक्ट में बड़ा बदलाव कर काफी शक्तिशाली बना दिया गया।

देश में इस समय वक्फ बोर्ड के पास 8 लाख एकड़ से ज्यादा जमीनें हैं, जबकि साल 2009 में 4 लाख एकड़ जमीनें थीं। यानि 2013 में असीम शक्तियां मिलने के बाद केवल 10 साल में ही वक्फ बोर्ड के पास दोगुनी जमीनें हो गईं। इनमें अधिकांश मस्जिद, मदरसा, और कब्रिस्तान शामिल हैं। वक्फ बोर्ड की अनुमानित संपत्ति की कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है। 

इस समय वक्फ बोर्ड में संशोधन के लिए वक्फ अधिनियम के सेक्शन 40 पर इस बड़ी बहस छिड़ी हुई है। इस सेक्शन के तहत वक्फ बोर्ड को रिजन टू बिलीव की शक्ति मिली हुई है। बोर्ड का मानना है कि देश में कोई भी संपत्ति वक्फ की है तो वो खुद से जांच कर सकता है और उसको वक्फ की संपत्ति होने का दावा पेश कर सकता है। 

अगर उस संपत्ति में कोई रह रहा है तो वह अपनी आपत्ति को वक्फ ट्रिब्यूनल के पास दर्ज करा सकता है। ट्रिब्यूनल के फैसले के बाद हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, मगर संपत्ति वापस पाने के लिए वक्फ ट्रिब्यूनल से निकलने की प्रक्रिया काफी जटिल हो जाती है। 

दरअसल, अगर कोई संपत्ति एक बार वक्फ घोषित हो जाती है तो हमेशा ही वक्फ की रहती है। इस वजह से देश में कई विवाद भी सामने आए हैं। विवाद केवल हिंदूओं की संपत्तियों पर ही नहीं है, बल्कि देश में ऐसे दर्जनों मामले हैं, जहां वक्फ बोर्ड की तानाशाही से मुस्लिम पर दुखी हैं और उन्होंने भी कोर्ट में मुकदमें कर रखे हैं। 

सरकार ऐसे ही विवादों से बचने के लिए ही संशोधन विधेयक लेकर आई है। विधेयक के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं को भी बोर्ड में प्रतिनिधित्व मिलेगा और इसमें हिंदू सदस्य भी होंगे, जबकि जो बेइंतहां शक्तियां संपत्ति हासिल करने को लेकर दी हुई हैं, उनको भी कंट्रोल करने का प्रोविजन किया गया है। बोर्ड में अब 2 महिला और अन्य धर्म के 2 लोगों को भी शामिल करने का प्रावधान किया जाएगा। 

अब तक बोर्ड में दूसरे धर्म के लोगों की एंट्री पर पाबंदी रही है। जिला प्रशासन के समक्ष वक्फ की संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया जाएगा। साथ ही कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं, ये तय करने का हक कोर्ट को भी दिया जाएगा। इसके अलावा वक्फ की संपत्तियों का अनिवार्य वेरिफिकेशन भी किया जाएगा। 

नए बिल में संपत्ति मालिक को ट्रिब्यूनल के अलावा रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट और हाईकोर्ट में भी अपील का अधिकार होगा। अब तक संपत्ति के विवाद में वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले को आखिरी माना जाता था, लेकिन अब ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में जाने का भी अधिकार होगा। 

इस्लामिक मकसद से इस्तेमाल होने वाली प्रॉपर्टी अपने आप वक्फ की मान ली जाती थी, लेकिन नए बिल के मुताबिक अब प्रॉपर्टी के दान करने पर ही वक्फ का माना जाएगा, भले ही उस पर कोई मस्जिद क्यों ना हो।

अब तक वक्फ ट्रिबिन्यूनल को ही समस्त अधिकार हैं, लेकिन संशोधन के बाद कोर्ट डिसाइड करेगा कि संपत्ति किसकी है। सरकार का तर्क है कि 1995 में वक्फ अधिनियम से जुड़ा मौजूदा विधेयक है। 2013 में संशोधन करके बोर्ड को असीमित स्वायत्तता प्रदान की गई। सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्डों पर माफियाओं का कब्जा है। 

संशोधन से संविधान के किसी भी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है। इससे मुस्लिम महिलाओं और बच्चों का कल्याण होगा। इसके कारण असद्दूीन ओवैसी ने मोदी सरकार को मुसलमानों का दुश्मन बताया, जब​कि कांग्रेस ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया तो वहीं मायावती ने संकीर्ण राजनीति छोड़ने की सलाह दी है।

वक्फ बोर्ड सर्वाधिक दावे उन संपत्तियों पर करता है, जो आजादी से पहले की हैं, यानी जिनके मालिक आजादी के बाद वहां नहीं हैं। अधिकांश पाकिस्तान जा चुके हैं, या वहां से दूसरे राज्यों में जा चुके हैं अथवा उन जमीनों पर बहुत पहले ही दावा छोड़ चुके हैं। ऐसी जमीनों पर वक्फ बोर्ड दावा कर अपनी बताने लगता है। 

दिल्ली में तमाम प्राइम लोकेशन की जमीनों पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर रखा है। चर्चा है कि मुंबई में मुकेश अंबानी के 7000 करोड़ वाले बंगले पर भी वक्फ ने दावा किया है। इसी तरह से 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के बसाए पूरे थिरुचेंदुरई गांव पर वक्फ होने का दावा ठोक दिया। बेंगलुरू के ईदगाह मैदान पर 1950 से वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा रहा है। 

सूरत नगर निगम भवन को वक्फ संपत्ति होने का दावा किया जा रहा। तर्क यह है कि इसे मुगलकाल में सराय के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। कोलकाता के टॉलीगंज क्लब, रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब और बेंगलुरु में आईटीसी विंडसर होटल के भी वक्फ भूमि पर होने का दावा है। जबकि जिन जमीनों पर दावा किया गया है वो सब मुगलों ने आक्रमण कर कब्जा की थी।

 इस्लाम के जानकार बताते हैं कि किसी की जमीन पर कब्जा करना गुनाह है। मुगलों का शासन कभी का खत्म हो गया, उसके बाद 200 साल अंग्रेज शासन कर गये और 77 साल से भारत में लोकतंत्र है, फिर भी वक्फ बोर्ड वाले 500 साल पुराने दावे कर रहे हैं। इससे समझ आता है कि इस बोर्ड को जो शक्तियां दी गई थीं, उनका पूरी तरह से दुरुपयोग ही हो रहा है। 

दूसरा मामला वर्शिप एक्ट से जुड़ा है, जिसको लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करी है। यह एक्ट कांग्रेस की सरकार ने 1991 में बनाया था। इसके अनुसार 15 अगस्त 1947 से पहले जो मंदिर था, वो मंदिर रहेगा और जहां मस्जिद है, वो मस्जिद रहेगी। इस एक्ट में केवल अयोध्या राम मंदिर को अलग रखा गया था। 

अयोध्या आंदोलन के कारण देश में दंगे हो रहे थे और उसका मुकदमा अदालत में चल रहा था। वर्शिप एक्ट में यह भी प्रोविजन किया गया था कि जो इमारतें एएसआई के अंडर में आती हैं, उनको भी एक्ट के तहत नहीं माना जाएगा। 

उन सभी मंदिरों और मस्जिदों पर यह एक्ट लागू नहीं होगा, वहां पर जो भी बदलाव किये जाएंगे वो सब एसएआई के नीयम कायदों से तय होंगे। आपने हाल ही में संभल का मस्जिद विवाद देखा होगा, यह मस्जिद एएसआई के अधीन ही आती है।

1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता। यह कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी। 

यह कानून तब आया जब बाबरी मस्जिद और अयोध्या का मुद्दा बेहद गर्म था। एक्ट के मुताबिक 15 अगस्त 1947 में मौजूद किसी धार्मिक स्थल में बदलाव के विषय में यदि कोई याचिका कोर्ट में पेंडिंग है तो उसे बंद कर दिया जाएगा। 

किसी भी धार्मिक स्थल को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी दूसरे धर्म में बदलने की अनुमति नहीं है। एक धर्म के पूजा स्थल को दूसरे धर्म के रूप में ना बदला जाए या फिर एक ही धर्म के अलग खंड में भी ना बदला जाए।

साल 2019 में अयोध्या विवाद सुप्रीम कोर्ट में डिसाइड हो गया और उसके बाद वहां राम मंदिर बन रहा है, लेकिन उसके बाद से ही काशी विश्वानाथ मंदिर, मथुर में कृष्ण जनमभूमि जैसे विवाद भी कोर्ट में पहुंच गये। हाल ही में संभल मस्जिद सर्वे पर विवाद हुआ है तो अजमेर दरगाह की याचिका भी कोर्ट ने स्वीकार की है। 

इन मामलों के बाद देश में ऐसे सैकड़ों विवाद सामने आये हैं, जहां मुगलों ने अपने शासनकाल में मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई गई थीं। देश में जब विवाद बढ़ने लगा तो सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है। 

सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अब कोई भी अदालत इस तरह के मुकदमें नहीं सुनेंगे, लेकिन जिस तरह से हिंदूओं में अपने मंदिर वापस लेने की तलब मची है, उससे लगता नहीं है कि विवाद शांत हो जाएगा। अब पूरा प्रकरण सरकार के पाले में चला गया है। 

यदि सरकार चाहे तो वर्शिप एक्ट को समाप्त कर सकती है, या इसमें संसोधन कर सकती है। लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है कि सरकार वर्शिप एक्ट को खत्म करेगी या बदलाव करेगी। सरकार जानती है कि यह काम तो बाद में भी किया जा सकता है, लेकिन इस वक्त सबसे पहली प्राइरिटी वक्फ बोर्ड में बदलाव करना है, जिसके कारण हजारों मामले बेवजह कोर्ट में पहुंच चुके हैं और लोगों को अपनी ही जमीनों से बेदखल किया जा चुका है। 

पिछले सत्र में बिल लाया गया था, जिसे संसद की स्थाई समिति के पास भेज दिया गया था, अब इस सत्र में भी बिल को पास करावाने की संभावना कम ही है। सरकारी सूत्र बताते हैं कि अगले संसद सत्र में इसको पास करवाया जा सकता है। 

जब बिल को संसद में लाया गया है, तब से देश के मुल्ले मोलवी मुस्लिम समुदाय को भड़काने में लगे हैं तो असद्दूीन ओवैशी जैसे नेता भी अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी अपने मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए इस संशोधन बिल का विरोध कर रही है। 

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