अक्सर लोग राजनीति में इसलिए आते हैं, ताकि अपना और अपनों का भविष्य बनाया जा सके। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो खुद चाहकर सियासत में नहीं आते, बल्कि एक्सीटेंडल राजनीति का हिस्सा बन जाते हैं। और कुछ ऐसे होते हैं, जिनको मजबूरी राजनीति में ले आती है तो कुछ अन्य लोगों को घटनाओं के कारण राजनीति करनी पड़ती है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि जो एक्सीटेंडल राजनीति में पहुंच जाते हैं, वो सामान्य नेताओं से अधिक सफल हो जाते हैं।
भाजपा नेताओं का एक वाक्य वाकई में बहुत बार दोहराया जाता है, 'गांधी परिवार पार्ट टाइम राजनीति करता है।' यह तो तब है जब भाजपा 240 और कांग्रेस 99 सीटों पर है। मान लीजिए इसका उलट होता तो क्या होता? इसमें कोई विरोधाभास नहीं कि गांधी परिवार राजनीति को उस अंदाज में नहीं करता, जिस जूनून से भाजपा का टॉप आर्डर करता है। भाजपा वाले हमेशा 'मिशन मोड' में रहते हैं, यानी 24 घंटे राजनीति के हवाई जहाज को चाबी लगाकर रखते हैं। इसके विपरीत गांधी परिवार चुनाव के कुछ समय पहले स्टार्ट होता है और मतदान के बाद स्विच आफ वाली पोजीशन में चला जाता है।
यही वो अंतर है जो भाजपा को कांग्रेस से अलग करता है। बाकी देखा जाए तो आज भाजपा का कांग्रेसीकरण हो ही चुका है। लोग कहते हैं, 'आज कांग्रेस में उतने कांग्रेसी नेता नहीं हैं, जितने भाजपा में हैं।'
भाजपा पिछले 10 साल से ऐसे घोषणा पत्र ला रही है, जिनको आसानी से पूरा किया जा सके। कुछ वादों को छोड़ दिया जाए तो भाजपा फ्री वाली चीजों से देश की जनता के मन से बाहर निकालना चाहती है। वैसे भी एक वर्ग को छोड़कर विकास के बदले में कोई फ्री पाना भी नहीं चाहता है। जिस वर्ग को फ्री सुविधाएं चाहिए, उसको देश के विकास से मतलब भी नहीं है। तो यही अंतर कांग्रेस को भाजपा से कमजोर कर देता है। हिमाचल में जो हालात हैं, ठीक वैसे ही कर्नाटक में हैं। कांग्रेस ने फ्री योजनाओं के वादे तो खूब कर डाले, लेकिन अब उनको पूरा करने का धन ही नहीं है।
नतीजा यह हो रहा है कि हिमाचल में सुक्खू सरकार को सरकारी नौकरियों में रिक्त पदों को विलुप्त करना पड़ रहा है। कर्नाटक में सरकार के पास कर्मचारियों को देने के लिए पैसा ही नहीं है। ऐसी स्थितियां भाजपा शासित राज्यों के पास नहीं है। पंजाब सरकार इतनी घाटे में है कि अगले कई बरसों तक उसे नई विकास योजनाओं से ध्यान हटाना पड़ रहा है। भाजपा धीरे—धीरे मोदी, शाह, योगी जैसे चेहरों के नाम पर, विकास के साथ अपने मतदाताओं को फ्री योजनाओं की बीमारी से बाहर निकालने पर काम कर रही है।
जब कोई नेता फुल टाइम पॉलिटिशियन होता है तो उसे जनता की नब्ज पता चल जाती है। वैसे भी भाजपा के लिए निचले तबके की सोच को समय—समय पर ऊपर तक पहुंचाने का माध्यम संघ जैसे संगठन करते ही हैं। कांग्रेस में ऐसा संगठन सेवादल था, लेकिन उसको मृतप्राय: कर दिया गया है। जब से कांग्रेस का सेवा दल अपने मुख्य काम से विमुख हुआ है, तभी से कांग्रेस का पतन होता चला गया है।
राजीव गांधी अचानक से राजनीति में आए, तो सोनिया गांधी को मजबूरीवश ही सही, पर राजनीति में आने में काफी समय लग गया। राहुल गांधी राजनीति के योग्य नहीं थे, लेकिन उनको सोनिया गांधी ने सियासत में धकेल दिया।
राजीव गांधी अचानक से राजनीति में आए, तो सोनिया गांधी को मजबूरीवश ही सही, पर राजनीति में आने में काफी समय लग गया। राहुल गांधी राजनीति के योग्य नहीं थे, लेकिन उनको सोनिया गांधी ने सियासत में धकेल दिया।
मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल राजनीति का हिस्सा बने तो कुछ अन्य नेताओं के बेटे इसलिए राजनीति में आए कि उनके पिताओं का अचानक से निधन हो गया था। राजेश पायलट, माधवराव सिंधिया, जितेंद्र प्रसाद, प्रमोद महाजन सरीखे नेताओं के वारिश इसलिए सियासत में आए, क्योंकि उनके पिताओं का अचानक निधन हो गया। इन सभी नेताओं के बच्चे राजनीति सीख रहे थे, लेकिन इनको अचानक बिना तैयारी के सियासत का हिस्सा बनना पड़ा, क्योंकि ये लोग यदि तब राजनीति में नहीं आते तो आज इनका स्थान दूसरे लोग भर चुके होते। एक समय राहुल महाजन को प्रमोद महाजन का वारिश माना गया, लेकिन उनका क्या हश्र हुआ, ये किसी से छुपी हुई बात नहीं है।
इसलिए राजनीति अवसर का, भाग्य का, रणनीति का, मेहनत और आजकल धन का भी खेल है। इन सब चीजों को समझने के लिए श्रीकृष्ण के उपदेशों को पढ़ना होगा, जो पूरी तरह से कर्म प्रधान हैं। किसे, कब राजनीति में सफलता मिल जाए, इसका कोई पता नहीं है। कर्म करते हुए यदि कोई भाग्य के सहारे अचानक से सबसे बड़ा पद हासिल कर ले, तो समझ लेना चाहिए कि भाग्य विधाता ने लिखते समय बिलकुल भी कंजूसी नहीं बरती। इसका सबसे बड़ा उदाहरण राजस्थान के सीएम भजनलाल शर्मा हैं।
जिसके भाग्य में मेहनत ही लिखी है, लेकिन भाग्य में राजयोग लिखते समय बेहद कंजूसी की गई है, तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण भाजपा के हरियाणा प्रभारी सतीश पूनियां हैं। बात यह नहीं है कि किसे क्या पद मिला या नहीं मिला। सियासत में बात यह है कि आप कब तक इंतजार करते रहते हैं। खुद नरेंद्र मोदी को देख लीजिए, जब पहली बार सीएम बने, तब उनकी उम्र करीब 50 साल हो गई थी, लेकिन उससे पहले वो विधायक तक नहीं बने।
आज दुनिया के सबसे बड़े नेता हैं, और इतने बरसों से लगातार अविजित हैं। कहने का मतलब यही है कि राजनीति हो या जीवन, परिश्रम करते हुए हमेशा लगे रहना चाहिए, कभी शॉर्टकट का इंतजार नहीं करना चाहिए। शॉर्टकट व्यक्ति का जीवन शॉर्ट कर देता है, बल्कि करियर ही शॉर्ट कर देता है। अत: भाग्य के इस खेल में अथक परिश्रम करते रहना चाहिए।
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