रोशनलाल शर्मा
एक नेता की विदाई के साथ ही राजनीति में एक युग का अंत हो जाता है और दूसरे युग की शुरुआत हो जाती है। नेता का युग कभी कभी आधी शताब्दी तक भी चल जाता है, तो कभी पांच साल भी नहीं टिकता है। जो राजनेता समय की चाल और जनता की नब्ज को पकड़ लेता है, उसकी पारी बिना गॉडफादर के भी लंबी चलती है, और जो नेता इनको समय रहते नहीं समझ पाता है, उसकी पारी का निकट ही अंत भी हो जाता है।
राजस्थान की राजनीति में भी बीते दो साल में ऐसा ही कुछ हुआ है। बीते 25 साल से जो राजनेता राजस्थान की राजनीति पर राज कर रहे थे, उनका युग समाप्त हो गया है तो नये नेताओं के आगमन से नये युग का सूत्रपात हुआ है। यूं तो अशोक गहलोत की राजनीति पारी 1975 में ही आरम्भ हो गई थी, लेकिन जब 1998 में राजस्थान के सीएम बने तब से उनका युग बोला जाता है।
इसी तरह से गहलोत के आसपास ही राजनीति शुरू करने वालीं वसुंधरा राजे का युग भी 21 साल पहले शुरू हुआ, जब वो राजस्थान की सीएम बनीं। ये दोनों ही नेता मिलकर लगातार 25 साल तक राजस्थान की राजनीति पर हावी रहे हैं, लेकिन दिसंबर 2023 वो समय था, जब दोनों ही नेताओं की राजनीति का अंत हो गया। यानी दोनों ही नेताओं की राजनीति का युग समाप्त हो गया।
हालांकि, दोनों ही नेताओं को अपने आखिरी समय में दो नये नेताओं से कड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा, किंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि गहलोत-वसुंधरा के सियासी युग की समाप्ति पर इन नये नेताओं का राजनीतिक युग शुरू नहीं हुआ, जो 25 साल के अवैध गठबंधन को तोड़ने में कामयाब रहे हैं। गहलोत-वसुंधरा के युग को समाप्त करने में सबसे बड़े कारक रहे हैं भाजपा के सतीश पूनियां और कांग्रेस के सचिन पायलट।
आज सतीश पूनियां और सचिन पायलट अपने-अपने दलों के लिए दूसरे राज्यों में सत्ता दिलाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अपने ही राज्य में उनको कोई जिम्मेदारी नहीं है। सत्ता में रहते भी सत्ता से संघर्ष करने वाले सचिन पायलट को इसलिए सत्ता नहीं मिली, क्योंकि गहलोत के कारण कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई, तो आज की सत्ताधारी पार्टी भाजपा में सतीश पूनियां का युग इसलिए आरम्भ नहीं हुआ, क्योंकि विपक्ष में बैठने की आदी हो चुकी आमेर की जनता ने उनको हरा दिया।
सचिन पायलट भले ही टोंक से लगातार दूसरी बार विधायक चुने जा गये हों, लेकिन सत्ता भाजपा के पास होने के कारण उनके पास भी करने को कुछ है नहीं। पायलट को कांग्रेस ने जहां राष्ट्रीय महासचिव और छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना रखा है, तो देश में जहां भी चुनाव होते हैं, वहां पायलट को स्टार प्रचारक बनाकर भेजा जाता है।
कांग्रेस में बड़े कहे जाने वाले गांधी परिवार के करीबी नेताओं को छोड़ दिया जाए तो सचिन पायलट ही एकमात्र नेता हैं, जिनको पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर हर प्रदेश में स्टार प्रचारक बनाती है। कारण यह है कि पायलट की हिंदी और इंग्लिश पर मजबूत पकड़ है, दिखने में आकर्षक हैं, युवाओं को लुभाते हैं, दमदार तरीके से शालीन भाषा में स्पष्ट शब्दों में जनता के सामने अपनी बात रखते हैं।
किसी नेता पर व्यक्तिगत हमला करने से बचते हैं। जिस तरह से राजस्थान के हर कोने में पायलट को चाहने वाले मिल जाएंगे, ठीक वैसे ही देश के हर कोने में उनके समर्थकों की एक लंबी कतार है। इसलिए कांग्रेस को मजबूरन सचिन पायलट को हर राज्य में स्टार प्रचारक बनाकर भेजना पड़ता है।
अशोक गहलोत की टीम द्वारा पायलट को एक जाति का नेता बनाने की भरकस कोशिश की गई, लेकिन अपनी प्रतिभा के दम पर उन्होंने गहलोत के मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया। अपना हक मांगने के लिए गहलोत के खिलाफ संग्राम छोडने पर पार्टी में ही उनको गद्दार तक बनाने का खूब प्रयास किया, लेकिन पायलट इस अग्नि परीक्षा में भी पास हो गये।
उसके बाद राजस्थान की जनता ने दिसंबर 2023 में अशोक गहलोत को सत्ता से बाहर फेंककर घर बिठा दिया तो सचिन पायलट के दम पर 70 सीटों तक पहुंची कांग्रेस ने पायलट को पुरस्कृत कर राष्ट्रीय महासचिव बनाकर छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी भी दी। उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़े गहलोत ने अपने आखिरी कार्यकाल में गांधी परिवार से ही गद्दारी करके अपनी राजनीति का अंत कर लिया तो अपनी मेहनत, ईमानदारी, जूनून और पार्टी के प्रति वफादारी करते हुए सचिन पायलट अपने युग के शुरू होने की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं।
ठीक ऐसे ही जब 2018 में वसुंधरा राजे के कारण भाजपा सत्ता से बाहर हुई तो पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष की तलाश तेज हुई, जो सतीश पूनियां पर जाकर पूरी हुई। करीब सवा तीन साल तक अध्यक्ष रहते सतीश पूनियां ने जो आयाम स्थापित किये, वो आज भी इतने बड़े बने हुए हैं कि दो अध्यक्ष बदलने के बाद भी उनके आसपास नहीं पहुंच पा रहे हैं।
पार्टी में जिस रिफॉर्म की सख्त जरुरत थी, वो सतीश पूनियां दिनरात एक करके किये। जो भाजपा कभी वसुंधरा राजे की मोहताज बन गई थी, उसको मजबूत संगठन बनाने का काम सतीश पूनियां ने किया। दिसंबर 2023 तक भी वसुंधरा को यही लगता था कि उनके बिना तो सत्ता पाई ही नहीं जा सकती।
जिस मजबूत इमारत की नींव सतीश पूनियां ने अपने कार्यकाल में भरी, उसी पर नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान पूर्ण बहुमत का भवन खड़ा कर दिया। हालांकि, उसके बाद मोदी ने राजस्थान में इतना कमजोर नेतृत्व थोप दिया कि जनता 9 महीनों में ही भाजपा को वोट देना अपनी गलती मानने लगी है। गहलोत की गंदी राजनीति और वसुंधरा की तानाशाही से मुक्ति पाने को तरस रही जनता को मोदी ने अयोग्य नेता सौंपकर अन्याय की पराकाष्ठा कर डाली।
हार में न जीत में, किंचित भी भयभीत में वाली अटल बिहारी वाजपेयी की पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए सतीश पूनियां ने आमेर की हार से तुरंत उभरते हुए लोकसभा चुनाव में हरियाणा की जिम्मेदारी संभाल ली। वहां पर भाजपा 10 से सीधे 0 सीटों पर जा रही थी, उसको सतीश पूनियां ने अपने कौशल से 5 सीटें दिला दीं।
इसके बाद पार्टी ने उनका प्रमोशन कर हरियाणा का नियमित प्रभारी बना दिया। आजकल सतीश पूनियां हरियाणा में भाजपा की सत्ता रिपीट कराने का सबसे जोखिम भरा खेल खेल रहे हैं। हालांकि, एंटी इनकंबेंसी और मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में भाजपा का एक तरफा जाट विरोध पार्टी ही हालत खस्ता करता है, लेकिन सतीश पूनियां ने इस बेहद असामान्य चुनौती को अपने हाथ में ले रखा है।
यहां पर यदि सतीश पूनियां कामयाब हो जाते हैं, तो आने वाले दिनों में पार्टी में उनका कद इतना ऊंचा बढ़ जाना है कि राज्य से विदा हो चुके गुलाबचंद कटारिया, ओम माथुर और साइड लाइन बैठीं वसुंधरा राजे के रिक्त हुए स्थान को भरने वाला नेता मिल जाएगा।
इसलिए यह कहना कतई ही गलत नहीं होगा कि राजस्थान की राजनीति से अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे के निपट जाने के कारण सचिन पायलट कांग्रेस की ओर से तो सतीश पूनियां भाजपा में आने वाले समय के सुपर स्टार हैं, जिनका सियासी युग शुरू होने का उनके समर्थक इंतजार कर रहे हैं। देखने वाली बात यह होगी कि इनमें से पहले किस नेता का राजनीतिक युग शुरू होगा।
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