राजस्थान में एक बार फिर से पर्ची का इंतजार होने लगा है। सरकार बने 9 महीने ही हुए हैं, लेकिन प्रदेश में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। इतने कम समय में नई सरकार को विपक्ष ने पहले कभी भी इस तरह से नहीं घेरा था। भाजपा ने पर्ची से इस बार इतना कमजोर सीएम दिया है कि विपक्ष को तीखे हमले करने का अवसर मिल रहा है। एक ओर कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट विफल सरकार पर शालीनता से अटैक कर रहे हैं, तो दूसरी ओर पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने दबंग अंदाज में पर्ची सरकार के खिलाफ जबरदस्त मोर्चा खोल रखा है।
इधर, पर्ची सरकार पर कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के हमलों से भजन मंडली की दुर्गति साफ दिखाई दे रही है। सीएम भजनलाल शर्मा किसी न किसी बहाने हर दिन देश-प्रदेश में घूम ही रहे हैं, लेकिन अभी तक राजस्थान में भाजपा सरकार ने एक वादा पूरा नहीं किया है। ऐसे में कहा जाए कि दिल्ली की पर्ची से बनी सरकार अभी तक हनीमून टाइम में ही चल रही है, जबकि विपक्ष ने 7 विधानसभा सीटों पर नवंबर में प्रस्तावित उपचुनाव के लिए कमर कस ली है।
डोटासरा के हमलों का भाजपा के पास जवाब नहीं है, जबकि किरोड़ी लाल मीणा का अटैक सरकार के गले की फांस बन गया है। अपराधी बेलगाम हैं, सरकार का पता नहीं है, सड़कों पर डामर कम गड्डे ज्यादा दिखाई दे रहे हैं, सरकार में एकता नाम की कोई चीज नहीं है, बल्कि सरकार नाम की भी कोई चीज दिखाई नहीं देती है। ऐसे में राजस्थान की जनता अयोग्य सीएम की विदाई के लिए दिल्ली से पर्ची का इंतजार करने लगी है। देखने वाले वाली यह होगी कि मोदी शाह की जोड़ी कब तक अपनी दूसरी पर्ची भेजकर प्रदेश को डमी सीएम से मुक्ति दिलाते हैं?
आपको शायद अंदाजा भी नहीं होगा कि केवल 9 महीनों में ही किसी सरकार की हालत बदतर हो चुकी है। जिसको उखाड़ फैंकने के लिए विपक्ष जितना लालायित है, उससे कहीं अधिक राजस्थान की जनता बेसब्र दिखाई दे रही है। सरकार कहां से चल रही है? सीएमओ से चल रही है या मंत्रालय से, सचिवालय से चल रही है कि भाजपा कार्यालय से? अभी तक जनता को समझ ही नहीं आ रहा है।
सीएम तो पहले भी कई पहली बार ही बने, लेकिन जिस तरह का अयोग्य चेहरा इस बार राज्य के ऊपर थोपा गया है, उसके बाद कहने को कुछ बचा ही नहीं है। जिस दिन दिल्ली की आई पर्ची से सीएम का नाम घोषित किया गया था, उससे कुछ ज्यादा अंतर आज भी नहीं पड़ा है।
लाभान्वित कार्यकर्ताओं, सरकार के साथ एडजस्ट होकर दलाली करने वाले दलालों, अधिकारियों के एजेंटों, मलाईदार पदों पर बैठे अधिकारियों, कुछ व्यवस्थावादी नेताओं के अलावा राज्य में जनता के कोई काम नहीं हो रहे हैं। स्थितियां इस कदर बिगड़ चुकी हैं कि भाजपा के जिन कार्यकर्ताओं ने पांच साल तक मेहनत कर कांग्रेस की सरकार को उखाड़ फेंकने का काम किया था, वही कार्यकर्ता दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर है।
भाजपा की विचारधारा से जुड़े हुए लोगों के काम नहीं हो रहे हैं। सरकार ने भले ही कुछ दिनों पहले संघ से जुड़े लोगों को संघ की गतिविधियों में खुलकर भाग लेने की अनुमति दे दी हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि संघ, विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल जैसे संगठनों के कार्यकर्ताओं का ऐसी जगह पर ट्रांसफर किया जा रहा है, जहां उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।
इतना होता तो भी बात हजम हो जाती, लेकिन हालात इससे भी बदतर यह है कि भाजपा की विचारधारा के लिए सरकार में रहते हुए लड़ने वाले कर्मचारियों की घोर कांग्रेस और भयंकर वामपंथियों को पदस्थापित किया जा रहा है। जिसके कारण भाजपा के कार्यकर्ताओं में दोहरा रोष है।
एक तो उनको अपनी सरकार आने पर जिन कामों के होने की उम्मीद थी, वो नहीं हो रहे हैं, ऊपर से उनको दंडित कर कांग्रेसियों को पुरस्कृत किया जा रहा है। नतीजा यह हो रहा है कि भाजपा से जुड़े लोग ही इस पर्ची सरकार के खिलाफ खुलकर बोलने लगे हैं।
पर्ची सरकार के अयोग्य सीएम का आभामंडल न केवल नौसिखिया है, बल्कि अपनी धन उगाही व्यवस्था में लगा हुआ है। सीएम के इर्द गिर्द रहने वाले लोग बिना कमिशन के कोई काम नहीं करते हैं। यहां तक कि सीएम से मिलाने का तक का भी धन वसूला जा रहा है। इस बात का या तो सीएम को ध्यान नहीं है, और यदि ध्यान होते हुए भी इस बीमारी को खत्म नहीं कर रहे हैं तो फिर सीएम की योग्यता सवालों के घेरे में होगी ही।
सीएम के करीबियों द्वारा यदि जनता को लूटा जा रहा है, उनके काम नहीं होने दिये जा रहे हैं या उनको परेशान किया जा रहा है तो फिर सीधा सवाल सीएम के ऊपर ही उठता है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद यदि एक आम कार्यकर्ता से सीएम बना व्यक्ति भाजपा के लोगों का दुखड़ा नहीं जा पा रहा है कि तो उसे तुरंत प्रभाव से पदमुक्त करने का काम आलाकमान को कर देना चाहिए।
दस साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि भाजपा राज्य की 25 में से 11 लोकसभा सीटें हारी है। इसका मतलब यह है कि सीएम का काम बिलकुल बेकार है, उसे जनता पसंद नहीं करती है, मंत्री, अधिकारी, विधायक और पार्टी के कार्यकर्ता परेशान हैं।
अपराधों की बढ़ती संख्या, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार, दलितों का बढ़ता शोषण, किसानों को किये गये वादों का नहीं होना, पेपर लीक वाली भर्तियों के लिए एसओजी जांच जैसा झुनझुना पकड़ाकर बेरोजगारों के साथ छलावा करना। ये तमाम मुद्दे ऐसे हैं जो नवंबर में होने वाले 7 सीटों के उपचुनाव में सरकार के कार्यों का परिणाम बताने वाले हैं।
यदि इन 7 सीटों में से भाजपा ने 4 सीट जीत ली तो माना जाएगा कि राजस्थान की पर्ची सरकार से जनता खुश है और यदि इससे कम सीटों पर जीत मिलती है तो साफ हो जाएगा कि पर्ची सरकार से दुखी जनता दिल्ली से आने वाले दूसरी पर्ची का इंतजार कर रही है। संगठन की बात की जाए तो वसुंधरा राजे, सतीश पूनियां, राजेंद्र राठौड़, गुलाबचंद कटारिया, ओम माथुर जैसे कद्दावर नेताओं के बिना बेजान हो चुका है।
मदन राठौड़ भले ही जमीनी अध्यक्ष हों, लेकिन सरकार के रहते संगठन को मजबूत करना उनके लिए भी बेहद चुनौती है। जब तक सरकार काम नहीं करती है, तब तक संगठन जनता के बीच जाकर किस मुंह से वोट देने की अपील करेगा?
चुनाव से पहले बड़े बड़े वादे किये गये, जबकि सरकार बनने के बाद जोश ही जोश में सीएम ने लोकसभा चुनाव की सभाओं में बहुत कुछ करने के दावे भी खूब कर डाले, लेकिन हकीकत यह है कि राज्य में अभी वादों का एक प्रतिशत काम भी नहीं हुआ है। यही वजह है कि राज्य की जनता जल्द से जल्द दिल्ली से दूसरी पर्ची आने का इंतजार कर रही है।
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