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भारत ने निकाली चाइना की हेकड़ी

भारत के एनएसए अजित डोभाल और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में एक अहम बैठक के तुरंत बाद चीन ने एलओसी पर गलवान घाटी समेत 4 जगहों से अपनी सेना को वापस बुला लिया है। रसियन प्रेसिडेंट व्लादिमीर पुतिन और एनएसए अजीत डोभाल के बीच हुई स्पेशल मीटिंग के बाद चाइना पीछे हटा है। गलवान घाटी में चीन ने 4 साल बड़े पैमाने पर पहले अपनी आर्मी डिप्लोई कर दी थी। 

गलवान में दोनों देशों की आर्मी के बीच झड़प में कई सैनिक मारे गए थे। विस्तारवादी पॉलिसी वाला चाइना गलवान घाटी से यूं ही पीछे नहीं हटा है। इसके पीछे रसिया के दबाव से लेकर चीन का भारत के साथ घटता ट्रेड है। बीते चार साल में चीन से भारत को होने वाला इंपोर्ट तेजी से कम हुआ है। कुछ टाइम पहले तक भारत को इलेक्ट्रॉनिक आइटम से लेकर मोबाइल फोन और खिलौनों से लेकर मेडिकल उपकरणों का इंपोर्ट चीन से होता था। चाइना जैसे देशों पर डिपेंडेंसी कम करने के लिए भारत काफी समय पहले ही मैक इन इंडिया पॉलिसी लॉन्च कर चुका था। उस पॉलिसी का असर यह हुआ कि चाइना कारोबारी दबाव महसूस कर रहा है।

देखने में तो यह छोटी सी बात लगती है, लेकिन भारत के पीएम मोदी, विदेश मंत्री सुब्रमण्यम जयशंकर और एनएसए अजीत डोभाल की तिकड़ी ने जो खेल खेला है, उसके जाल में फंसे चाइना के पास अपनी आर्मी हटाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। हाल ही में बांग्लादेश में गृहयुद्ध के बाद वहां हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों को लेकर भी विदेश मंत्री जयशंकर ने यूएन के माध्यम से बांग्लादेश पर काफी दबाव बनाया है, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार ने हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम करने का भरोसा दिलाया है। 

दुनिया की कई ग्लोबल कंपनियां जब से भारत में ​इन्वेस्ट करने लगी, तब से चाइना को दिक्कत होने लगी है। यानी भारत का चाइना के उपर दोहरा दबाव बन रहा है, और इसी का नतीजा है कि उसने बिना किसी शर्त पर गलवान घाटी से अपनी आर्मी हटा ली है।

2020 में जब चाइना ने गलवान घाटी में जमीन कब्जाने का प्रयास किया तब भारत ने मेक इन इंडिया को सब्सिडी बढ़ाकर तेजी से काम किया। नतीजा यह हुआ कि भारत जो आइटम चाइना से इंपोर्ट करता था, वो अब एक्सपोर्ट कर रहा है। ऊपर से भारत के साथ अमेरिकी रिश्ते तेजी से मजबूत हो रहे हैं, जिसके कारण चाइना परेशान है। अमेरिका ने हाल ही में एक कानून बनाया है, जिसके तहत अमेरिका की कंपनियां चाइना में काम नहीं करेगी। इसका लाभ यह होगा कि अमेरिकी कंपनियां अब भारत में निवेश करेगी। कोरोना के दौरान भी अमेरिका समेत कई देशों की ग्लोबल कंपनियों ने चाइना से अपना कारोबार समेटकर भारत में इन्वेस्ट किया है।

एफडीआई में भी चाइन तेजी से पिछड़ रहा है। एक तो चाइना का भारत को होने वाला एक्सपोर्ट घट रहा है, दूसरी ओर अमेरिका और रसिया जैसे धुर विरोधी देशों के साथ भारत की मित्रता ने भी चाइना को परेशान कर दिया है। भारत ने पिछले 10 साल के दौरान एक ओर जहां अमेरिका से अपने संबंध बहुत मजबूत किये हैं तो पूरे अमेरिका, यूरोप जैसी महाशक्तियों से युद्ध में लोहा ले रहे रसिया के साथ भारत के रिश्तों के कारण पूरा विश्व आश्चर्यचकित है। आज दिन तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि दो देश आपस में युद्ध कर रहे हों, और किसी तीसरे देश के साथ दोनों के ही संबंध मजबूत होते चले जाएं।

अमेरिका-यूरोप के पूर्ण प्रतिबंध के बीच युद्ध जैसे मुश्किल टाइम में भारत ने रसिया से क्रूड ओयल खरीदकर उसकी इकॉनॉमी को कोलेप्स होने से बचाया है, तो साथ ही दोनों पक्षों में शांति बहाली के लिए भी प्रयास कर महाशक्ति के रूप में उभरा है। इस दौरान अमेरिका और यूरोपियन कंट्रीज ने साफ कहा है कि रसिया और यूक्रेन युद्ध को रोकने का काम केवल भारत ही कर सकता है। चाइना आज दुनिया का दूसरा महाशक्ति है, लेकिन वह भी इस युद्ध को रोकने की पहल नहीं कर सकता है। अमेरिका और यूरोप जहां यूक्रेन के साथ हैं तो चाइना आज रसिया का सबसे बड़ा अलाय है। 

ऐसे में भारत ही वो सबसे बड़ा देश बचता है, जो इस युद्ध को रोकने का साहस रखता है। यूक्रेन लगातार भारत को युद्ध रोकने की गुहार लगा रहा है तो हाल ही में रसिया ने भी भारत की मध्यस्थता की शर्त पर यूक्रेन से बातचीत करने पर सहमति जताई है। भारत के पक्ष में अमेरिका, यूरोप और रसिया जैसे कई देशों के भारी दबाव होने के कारण चाइना को पीछे हटना पड़ा है। ऊपर से ग्लोबल कंपनीज का चाइना छोड़कर भारत में इंवेस्ट करना, चाइना का एक्सपोर्ट कम होना, रसिया द्वारा चाइना पर दबाव बनाना, अमेरिका द्वारा अपनी कंपनियों को चाइना छोड़ने का कानून बनाना जैसे कई अहम मुद्दे हैं, जिनके कारण चाइना झुकने को तैयार हुआ है। वैसे चाइना का इस तरह से झुकना शक भी पैदा करता है। धोखा देने का चाइना का इतिहास रहा है। इसलिए भारत का ऐसे समय में सावधान रहने की भी जरूरत है।
आर्थिक थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के मुताबिक साल 2023-24 में भारत और चीन के बीच 118.4 अरब डॉलर का कारोबार हुआ।

आज भी भारत का चीन सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने चीन को 16.67 अरब डॉलर का निर्यात किया, जो 2022-23 के मुकाबले 8.7 प्रतिशत ज्यादा है। इसी दौरान भारत ने चीन से 101.7 अरब डॉलर का आयात किया, जो पिछले साल के मुकाबले 3.24 प्रतिशत ज्यादा है। यानी भारत को चाइना से होने वाले इंपोर्ट की बढ़ती रफ्तार में कमी आई है, जबकि भारत के निर्यात में तेजी से वृद्धि हो रही है। वैसे देखा जाए तो आज भी भारत का चाइना के साथ करीब 85 अरब डॉलर का व्यापार घाटा हे। 

आज भी भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 13.8 प्रतिशत है। बीते वित्त वर्ष में भारत ने चीन से टेलीकॉम और मोबाइल फ़ोन के लिए 4.2 अरब डॉलर का इंपोर्ट किया, जो चाइना से होने वाले कुल आयात का 44 प्रतिशत है। भारत ने चीन से कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी के लिए कुल आयात का 77 प्रतिशत, नवीकरणीय ऊर्जा से जुड़े उपकरणों के लिए 65.5 प्रतिशत, और ईवी बैटरी के लिए 75 प्रतिशत आयात किया है।

भारत ने मैक इन इंडिया के तहत इन्हीं प्रोडक्ट्स पर अधिक फोकस किया है, जो चाइना से अधिक इंपोर्ट किए जाते हैं। इसी तरह से जो उत्पाद भारत द्वारा चाइना को एक्सपोर्ट किये जाते हैं, उनको बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है, ताकि चाइना के साथ भारत का व्यापार घाटा कम किया जा सके। जैसे-जैसे चाइना के साथ भारत का कारोबारी घाटा कम होता चला जाएगा, वैसे ही चाइना कमजोर होगा, जिससे चाइना की इकोनॉमी कमजोर होगी। आज चाइना की सबसे बड़ी मजबूती उसका निर्यात ही है। 

दुनिया के जिस देश का निर्यात अधिक है, वो तेजी से विकास कर रहा है। भारत ने इस दिशा में बीते 10 साल में बहुत काम किया है। कोरोना काल में पता चला कि मेडिकल मास्क और वेंटीलेटर जैसी चीजों के लिए विदेशों पर निर्भर है, फिर भारत ने इसके ऊपर काम किया तो एक चार साल में एक्सपोटर बन गया है। आज भारत उन चीजों पर अधिक ध्यान दे रहा है, जिनको आयात किया जाता है। सबसे पहले इंपोर्ट कम से कम करने का टारगेट रखा गया है, उसके बाद ​एक्सपोर्ट करने पर फोकस किया जाएगा।

इसी तरह से रसिया और चाइना के बीच बहुत मजबूत रिश्ते हैं। रसिया को सबसे अधिक ताकत चाइना से ही मिलती है, लेकिन कारोबार के स्तर पर भारत और रसिया भी पारंपरिक देश हैं। यहां पर भारत के साथ चाइना और यूक्रेन, दोनों ही स्तर पर अलग तरह से संबंध हैं। भारत की रसिया से भी मित्रता है तो यूक्रेन के साथ ही मधुर संबंध हैं। इसी तरह से चाइना से कारोबार भी है तो साथ ही उसके साथ सर्वाधिक कारोबारी रिश्ते भी हैं। 

अमेरिका को दुनिया में भारत से अच्छा मित्र नहीं मिल सकता, तो अमेरिका के मना करने के बाद भी रसिया के साथ जिस तरह का खुला कारोबार भारत कर रहा है, वैसे दुनिया का कोई देश नहीं कर सकता। चाइना यह बात भी जानता है कि जब अमेरिका जैसा महाशक्ति ही भारत को नहीं रोक पाया है, तब उससे दुश्मनी मोल लेकर अपना नुकसान क्यों करवाया जाए।

पाकिस्तान में बलूच लड़ाके सिर उठाकर आजादी मांग रहे हैं, पाकिस्तानी आर्मी को मार भगा रहे हैं। गिलगित में अलग तरह की समस्या सामने आ गई है। पाकिस्तानी आर्मी से बलूच लड़ाके कंट्रोल नहीं हो रहे हैं, जहां से चाइना की सीपेक गुजर रही है। इस महा परियोजना में चाइना अरबों डॉलर फूंक चुका है, जबकि अब उसको पीछे हटना पड़ा है। चाइना और पाकिस्तान को लगता है कि बलूच में जो कुछ हो रहा है, उसके पीछे भारत का हाथ है, जबकि भारत हमेशा इससे इनकार करता रहा है। 

पाकिस्तान की सीपेक चाइना का अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट था, जिसको बलूचों ने बेकार कर दिया है। श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, बांग्लादेश जैसे देशों को सड़क पर लाने वाले चाइना भारत पर अपनी दादागिरी नहीं जमा पाया। अंतत: उसको समझ आ चुका है कि भारत से लंबे समय तक दुश्मनी करके खुद को महाशक्ति बनाये रखना कठिन होगा। ऐसे में चाइना ने अपनी आर्मी वापस बुला ली है। 

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