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सीएम थोपने का दुष्परिणाम भोग रहे 8 करोड़ लोग

करीब 9 महीने पहले राजस्थान में सरकार बदली। लोगों को लगा कि भाजपा सरकार आने के कारण अब राजस्थान में राम राज्य आने वाला है। डबल इंजन की सरकार में पूर्ण सुरक्षा, किसानों के अच्छे दिन, बेरोजगारों को सरकारी नौकरी और रोजगार, पेपर लीक से मुक्ति, आरपीएससी भंग होगी और गहलोत सरकार में जो पेपर लीक हुए, उनकी सीबीआई जांच होगी। इसी तरह के तमाम वादों के साथ भाजपा सत्ता में आई थी। 

अब 9 महीने बीत चुके हैं, लेकिन राज्य सरकार की क्या हालात है, यह बयां करना बेहद आसान है। वीडियो में आगे वही सब कुछ बताने वाला हूं, उससे पहले थोड़ा भूतकाल में चलेंगे, जहां पता करेंगे कि कैसे अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट की आपसी जंग के कारण कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई।

दिसंबर 2018 में 100 सीटों के साथ बनी कांग्रेस सरकार में पांच साल तक कांग्रेस सरकार में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच खूब घमासान देखा। इस दौरान सरकार के डेढ़ साल में ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके गुट के 3 मंत्रियों समेत करीब 20 विधायकों ने बगावत की। प्रदेश में 34 दिन तक हाई प्रोफाइल सियासी ड्रामा चला। 

उसके बाद सचिन पायलट को कांग्रेस आलाकमान ने सरकार के ढाई साल पूरे होने पर सीएम बनाने का वादा किया गया, लेकिन जो वादे को याद दिलाते दिलाते सचिन पायलट सरकार के आखिरी साल में पहुंच गए, तब उनके सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने अप्रैल 2023 में एक दिन का अनशन किया, उसके एक महीने बाद पांच दिन की अजमेर से जयपुर तक यात्रा निकाली। 

उस यात्रा की समाप्ति पर सचिन पायलट और उनके साथियों ने जो हुंकार भरी, उससे लगा कि अब पार्टी दो फाड़ हो जाएगी, लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। आखिर चुनाव का समय आ गया। सीएम रहते अशोक गहलोत ने अपनी छवि चमकाने के लिए पानी की तरह सरकारी पैसा बहाया, लेकिन फिर भी उनको सफलता नहीं मिली। 

सचिन पायलट और पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा की मेहनत के कारण कांग्रेस की लाज बच गई। गहलोत के कारण जो कांग्रेस पूरी तरह से डूबने की कगार पर थी, कड़ी मेहनत के दम पर पायलट—डोटासरा ने उसे 70 सीट दिलाकर इज्जत बचा ली गई।

सवा तीन साल तक अध्यक्ष रहे सतीश पूनियां की अथक परिश्रम, किरोड़ी लाल मीणा के पेपर लीक के खिलाफ धरने—प्रदर्शन, सदन में राजेंद्र राठौड़ की जोरदार उपस्थिति और अंत में नरेंद्र मोदी का राजस्थान में जाकर प्रचार करने का प्रतिफल यह मिला कि भाजपा को 115 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत मिल गया। 

यह तो पहले ही तय हो चुका था कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को अब दोबारा सीएम नहीं बनाया जाएगा, लेकिन ऐसी किसी को उम्मीद नहीं थी​ कि बिना किसी अनुभव के पहली बार जीते विधायक भजनलाल शर्मा को तानाशाही से राज्य की जनता पर थोप दिया जाएगा। 7 दिन की मशक्कत के बाद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह दिल्ली से एक पर्ची लेकर आए, जिसे वसुंधरा राजे से खुलवाया गया। 

पर्ची देखकर ही वसुंधरा राजे चौंक गईं। वसुंधरा को यह तो पता चल गया था कि उनको सीएम नहीं बनाया जाएगा, लेकिन यह अंदाजा कतई ही नहीं था कि भजनलाल जैसे व्यक्ति को सीएम बनाकर जनता पर थोप दिया जाएगा। दो डिप्टी सीएम बने और बाद में मंत्रियों में भी वसुंधरा राजे गुट को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया।

एक तरह से कहें तो पार्टी ने वसुंधरा राजे को बीते जमाने की बात मानकर विचार से ही बाहर कर दिया। जैसे सीएम बिना अनुभव के हैं, ठीक वैसे ही अधिकांश मंत्री भी पहली बार ही बने। विधानसभा के पहले ही सत्र में कांग्रेस नेता भाजपा पर हमलावर हो गए। डोटासरा ने भाजपा सरकार को पर्ची सरकार और भजन मंडली कहकर खूब उपहास उड़ाया। 

भजनलाल ने भरतपुर से टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी ने सांगानेर से टिकट दिया, जहां प्रचार में वो आधे क्षेत्र में भी नहीं पहुंच पाए। अपने क्षेत्र को ठीक से नहीं देख पाने का नतीजा यह हुआ कि आज सांगानेर में जो दुर्गति हो रही है, उसका भजनलाल को ज्ञान ही नहीं है। असल बात तो यह है कि आज 9 महीने बीतने के बाद भी सरकार के मंत्री ही भजनलाल को सीएम के तौर पर स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। 

सीएम के करीबी भाजपा कार्यकर्ताओं के अलावा भाजपा के पदाधिकारी, कार्यकर्ता भी खुश नहीं हैं। कई बार जीते हुए विधायक तो छोड़िये, जो पहली बार जीते हैं या संगठन में काम करते हैं, वो भी थोपे हुए सीएम को लेकर दुखी हैं। सरकार बनाने में जीतोड़ मेहनत करने वाले किरोड़ी लाल मीणा दो महीने से मंत्री पद छोड़कर बैठे हैं, लेकिन उनकी पार्टी में ही कोई सुनने वाला नहीं है।

सवा तीन साल कड़ी मेहनत करने के बावजूद चुनाव से कुछ समय पहले अध्यक्ष पद से हटा दिए गए सतीश पूनियां को हरियाणा प्रभारी बनाकर राज्य से बाहर भेज दिए गया। अपना आखिरी चुनाव हार गए राजेंद्र राठौड़ सत्ता और संगठन में अपने लिए स्थान तलाशने का प्रयास कर रहे हैं। राज्य के अधिकारी बेलगाम हो गए हैं, मंत्रियों को कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं है। 

सीएम भजनलाल सहज व्यक्ति हैं, लेकिन उनको आभामंडल ने ऐसे घेर लिया है कि उनको पता ही नहीं चल रहा है कि राज्य की कितनी बुरी दुर्दशा हो गई है। सीएम के करीबी लोग दावा करते हैं कि सीएम तो बहुत ही अच्छे आदमी हैं, जैसे कोई देवता हो। 

हो सकता है यह बात सही हो, लेकिन सीएम देवता उन्हीं लोगों के लिए हैं, जो उनके करीबी हैं, बाकी से जाकर पूछ लीजिए जनता त्रहिमाम—त्राहिमाम कर रही है। जिन्होंने सरकार बनाने में परिश्रम किया था, वो दूर दूर तक नहीं हैं और जिनका कोई योगदान नहीं था, उनको सत्ता की कुर्सी पर थोप दिया है।

सही मायने में देखा जाए तो राजस्थान की जनता को अपमान किया गया है। क्या राज्य की जनता ने भजनलाल को सीएम बनाने के लिए वोट दिया था? वास्तविकता तो यह है​ राज्य तो छोड़ ही ​दीजिए, बल्कि सांगानेर की जनता ने भी भजनलाल को वोट नहीं दिया। सांगानेर के वोटर्स ने कमल का फूल देखकर वोट दिया था, लेकिन अब यही वोटर्स 'कमल का फूल, हमारी भूल' बोल रहा है। 

आप सोचिए कि जहां पार्टी को देखकर वोट दिया जाता है। जब सरकार बन जाती है, तब आभामंडल वाले चंद लोगों के अलावा प्रदेश की 8 करोड़ जनता को कुछ नहीं मिलता है, तब लोकतंत्र का क्या अर्थ रह जाता है? एक विधानसभा क्षेत्र की जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह देखकर वोट देती है और बाद में विधायक की नाकामी के कारण लोगों के काम नहीं होते हैं, तब ये लोग किसे बोलें? 

राजस्थान का इससे अधिक दुर्भाग्य हो नहीं सकता है कि मोदी के नाम पर वोट मांगे गए और भजनलाल जैसा सीएम थोप दिया गया। सांगानेर का भी इससे अधिक दुर्भाग्य नहीं कि ऐसे व्यक्ति को थोप दिया गया, जिसको क्षेत्र की जनता से कोई मतलब ही नहीं है। भजनलाल को पार्टी ने सांगानेर से टिकट देकर जिता दिया, लेकिन उनको मन आज भी भरतपुर में ही लग रहा है।

राज्य में अपराधों की सूची लंबी होती जा रही है। पिछली सरकार के आखिरी 6 महीनों में कितने अपराधी हुए उससे 10 फीसदी ज्यादा इस सरकार के शुरुआती 6 महीनों में हो गए। यानी जो भाजपा अपराध मुक्त राजस्थान का वादा करके सत्ता में आई थी, उसने अपराध कम करने के बजाए बढ़ा दिए हैं। 

सीएम भजनलाल निवेश लेने जापान और कोरिया गए हैं, लेकिन जब तक राज्य में उद्योगों के अनुकूल वातावरण ही नहीं होगा, तब निवेश कौन करेगा। जब वसुंधरा पहली बार सीएम बनीं, तब अपराध कम हुए थे, उसके बाद गहलोत राज में हमेशा की तरह अपराधों का वातावरण बना है, जिसके कारण विदेशी तो क्या, कोई देशी निवेशक भी राज्य में इन्वेस्ट नहीं करेंगे। औधोगिक वातावरण के बिना अधिकारियों के निर्देश में चल रहे सीएम का जापान दौरा खोखला साबित होने वाला है।

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