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पायलट, गहलोत, वसुंधरा, भजनलाल, जनता की फिक्र किसे है?



राजनीति में होने और दिखने वाली चीजों में भारी अंतर होता है। सामने देखकर लगता है कि नेता सदन में और सड़क पर जो बातें बोल रहा है, वो ही सही होंगी, लेकिन ये सच नहीं है। सड़क पर पुलिस की लाठियां खाकर भी विपक्ष का नेता सरकार का हो सकता है। बल्कि सदन में सरकार को बुरी तरह से घेरने वाला नेता भी सीएम और मंत्रियों का विशेष प्रेमी हो सकता है। लोकसभा की 11 सीटें हारने के बाद राजस्थान की भाजपा सरकार पर सवाल तो बहुत उठे, लेकिन पार्टी ने तुरंत कोई एक्शन नहीं लिया। करीब 2 महीनों के उपरांत पार्टी अध्यक्ष सीपी जोशी को हटाकर खानापूर्ति करने का प्रयास भी किया गया, लेकिन क्या सीपी जोशी ही इन 11 सीटों की हार के जिम्मेदार हैं? 

जोशी के अलावा कोई जिम्मेदार नहीं था? या फिर जोशी को तो हटाकर गुस्सा ठंडा करने का दिखावा करना था? बीते 8 महीने से राज्य की बागडौर किसके हाथ में है? हारने से निराशा होकर मंत्री पद छोड़ने वाले डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की दौसा सीट जिताने की जिम्मेदारी थी, प्रभारी मंत्रियों की भी 11 सीटें हारने की भी जिम्मेदारी मानी गई, लेकिन इतनी बड़ी हार के बाद भी सीएम भजनलाल शर्मा की कोई जिम्मेदारी नहीं है? ऐसा पहली बार हुआ कि लोकसभा की करीब आधी सीटें हारने के बाद भी सीएम जिम्मेदार नहीं माना गया है। 

मंत्री किरोड़ीलाल मीणा की लोकसभा सीट जीत या हार की कोई जिम्मेदारी नहीं थी, किंतु उन्होंने भी हार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाई और इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा कोई नेता ऐसा नहीं था, जिसने जिम्मेदारी अपने उपर लेते हुए इस्तीफा देने का प्रस्ताव भी पार्टी को दिया हो। 2014 में भाजपा की सरकार थी, तब भी और जब 2019 में सरकार नहीं थी, तब भी भाजपा ने सभी 25 सीटें जीतकर भाजपा संगठन ने मोदी के तूफान का अहसास करवाया, लेकिन जब सीएम का चेहरा 25 साल बाद नया है, उसके उपरांत भी भाजपा को 14 सीटें ही मिलीं, तो इसका जिम्मेदार कौन है? मोदी, शाह, नड्डा तो वही पुराने नेता हैं, जो बदला है, वो तो राजस्थान के सीएम का चेहरा है। इसका मतलब राजस्थान के सीएम के कारण ही भाजपा 11 लोकसभा सीटें हारी। इतना बड़ा नुकसान होने के बाद भी मीडिया का एक वर्ग और सत्ता के करीबी लोग सीएम के बजाए मंत्रियों और भाजपा कार्यकर्ताओं को ही दोषी साबित करने में जुटे हैं।

लोकसभा चुनाव के बाद राजस्थान में भी राजनीतिक सीजन खत्म हो गया है। आम चुनाव में रिक्त होने के कारण अगले तीन महीनों में 6 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उससे पहले बजट सत्र पूरा कर लिया गया है। सत्र में सत्तापक्ष की महा—कमजोरी और विपक्ष की हठधर्मिता साफ नजर आई है। अध्यक्ष के रूप में वासुदेव देवनानी बहुत ही कमजोर साबित हुए और अपनी कमजोरी छिपाने के लिए आखिरी दिन की आखिरी मिनट में कांग्रेस के लाडनू से विधायक मुकेश भाकर को अगले 6 महीने के लिए निलंबित करके खुद को सांत्वना दे रहे होंगे। वैसे इस निलंबन के ​पीछे सरकार की मंशा साफ दिखाई दे रही है। एक जरा से इशारे पर निलंबित कर देना कहीं न कहीं भाकर को बलि का बकरा बनाने वाली मंशा की तरफ इशारा कर रहा है। 

आज के इस वीडियो में हम पहले विपक्ष की कमजोरी और मूर्खता पर बात करेंगे। उसके बाद अगले वीडियो में बीते 8 महीनों में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की जबरदस्त प्रतिभा पर पूरा फोकस करेंगे। साथ ही उनके मंत्रियों की प्रतिभा पर भी प्रकाश डालेंगे और विधानसभा अध्यक्ष के कार्यों पर भी ध्यान केंद्रित करने का प्रयास करेंगे। 

कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार के निकम्मेपन के कारण 8 महीने पहले राजस्थान की सत्ता भाजपा के हाथ चली गई। सत्ता से बाहर होते ही गहलोत हमेशा की तरह बीमार होने, दूसरे कामों में बिजी होने, पार्टी के साथ तालमेल नहीं रखने, पर्दे के पीछे से खेल करने के काम में जुट गए। और वैसे भी 25 सितंबर 2022 की घटना के बाद कांग्रेस आलाकमान उनको महत्व नहीं दे रहा था तो अपनी इज्जत बचाने के लिए बीमार होना ही था। 

इसके बाद अध्यक्ष बदलने की चर्चा आई, लेकिन लोकसभा चुनाव को देखते हुए अध्यक्ष नहीं बदला गया, बल्कि नेता प्रतिपक्ष एससी समुदाय से आने वाले पूर्व मंत्री टीकाराम जूली को बनाया गया। जूली कोई अ​तिरिक्त प्रतिभाशाली विधायक नहीं हैं, लेकिन पार्टी को सोशल इंजिनियरिंग भी करनी थी तो 'बिल्ली के भाग का छींका' टूट गया। जूली के एलओपी बनते ही उनमें भी बड़े नेता के भाव आ गए। सदन के अंदर और बाहर ​कांग्रेस विधायकों के साथ उनका बर्ताव एकदम से बदल गया। कांग्रेसी चर्चा करते हैं कि एक कम अयोग्य व्यक्ति को नेता बनाया गया है, लेकिन पार्टी के फैसले पर वो कोई सवाल नहीं उठा सकते। यह बात सदन में साफ हो गई है कि नेता प्रतिपक्ष जैसे प्रतिष्ठि पद के लिए जूली की योग्यता में भारी कमी है।

नेता प्रतिपक्ष होते हुए बेल में चले जाना और अध्यक्ष को धृतराष्ट्र तक कह देना टीकाराम जूली की अयोग्यता का सबसे बड़ा प्रमाण है। हालांकि, विरोध के बाद टीकाराम जूली ने अध्यक्ष वासुदेव देवनानी से माफी मांग ली, लेकिन जब विधायक मुकेश भाकर को निलंबित किया गया तो जूली बेल में ही चले गए। ऐसा पहली बार हुआ जब नेता विपक्ष सदन की बेल में गए हों, अन्यथा इससे पहले कितना भी गतिरोध हुआ हो, लेकिन नेता विपक्ष कभी बेल में नहीं गए। नियमों की जानकारी का अभाव और अपरिपक्व नेता के यही लक्षण होते हैं। सबसे मजेदार यह है कि मीडिया में छपने का शौक जूली को सबसे अधिक है। इसके लिए वो अपने सभी वरिष्ठ साथियों को दरकिनार तक कर देना चाहते हैं।

सरकार बदलने के बाद सदन का पहला सत्र खानापूर्ति था, केवल सरकार चलाने को बजट लेना था, इसलिए लेखानुदान की मांगें पारित करवाई गईं। उसी सत्र में कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने अपने इरादे साफ कर दिए थे, तो अशोक गहलोत ने सदन से दूरी बनाकर अपनी कमजोरी भी साबित कर दी थी। पहले ही सत्र में कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा ने सीधे सीएम पर अटैक किये, जिसके कारण न केवल उनके आत्मविश्वास में बढ़ती ताकत को दिखाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि अगले पांच साल वो सरकार के साथ क्या करने वाले हैं। गहलोत के निपटते ही डोटासरा ने वो स्थान भरने का काम तेज कर दिया है। चुनाव से पहले लगता था कि यदि गहलोत बाहर हुए तो सचिन पायलट सबसे पॉवरफुल और कांग्रेस के एकमात्र सर्वमान्य नेता होंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि पार्टियों द्वारा समय समय पर अपने नेता बनाए जाते हैं। डोटासरा को कांग्रेस और खुद अशोक गहलोत ने ही नेता बना दिया है। 

सदन में अपनी आक्रामक शैली के कारण डोटासरा कांग्रेसियों के चहेते बनते जा रहे हैं, जबकि सड़क पर उनका मुकाबला करने के लिए भाजपा का कोई नेता तैयार नहीं है। डोटासरा ने 'पर्ची सरकार' और 'दिल्ली की पर्ची सरकार' बोल—बोलकर भाजपा की सरकार को खूब सुनाया है। इसका जवाब भाजपा नेताओं के पास है भी नहीं।। राजनाथ सिंह के जेब से निकली पर्ची जब वसुंधरा राजे के हाथ में आई और उन्होंने सीएम की घोषणा की तो पूरा देश चौंक गया था। हाल ही में खुद भजनलाल शर्मा ने भी कहा है कि उनको तो विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका ही नाम सीएम पद के लिए पुकारा जा रहा है। इससे अंदाजा लगा लिजिए कि सीएम और सरकार कैसे बनी होगी। डोटासरा भी भाजपा की इसी कमजोर कड़ी पर बार—बार प्रहार कर रहे हैं, जैसे एक परिपक्व राजनेता करता है। 

डोटासरा ने दिखा दिया है कि अब वो गहलोत की छाया से बाहर निकलकर अपने लिए स्थान पक्का कर रहे हैं। कांग्रेस में किसान कौम से आने वाले नेताओं के लिए हाल ही में एक वैक्यूम भी बन गया है, जिसे डोटासरा भरने का प्रयास कर रहे हैं। यदि डोटासरा अगले चार साल अध्यक्ष बने रहे तो कांग्रेस में भारी खींचतान मचनी तय है।

सदन में सचिन पायलट का कम से कम उपस्थित होना और बिलकुल भी नहीं बोलना काफी निराशाजनक रहा है। पायलट के बोलने की शैली खासकर युवाओं को बेहद प्रभावित करती है, उसके बाद भी उन्होंने सदन में न तो एक प्रश्न पूछा और न ही किसी भी बहस में भाग लिया। यदि विधानसभा में पहुंचे भी तो अपने साथियों के साथ फोटो—रील बनवाने तक ही सीमित रह गए। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भी हैं और छत्तीसगढ़ के प्रभारी भी हैं, लेकिन जब बात विधानसभा में बोलने की आए तो कम से कम जिस दिन सदन में आएं, उस दिन तो बोलना ही चाहिए। अन्यथा अशोक गहलोत, वसुंधरा राजे और सचिन पायलट में क्या ही अंतर रह जाएगा। वैसे भी यदि राजस्थान की राजनीति करनी है तो यहां बोलना ही पड़ेगा, पायलट यदि नहीं बोलेंगे तो कांग्रेस में ही उनका स्थान लेने वाले कतार लगाकर खड़े हैं।

पुराने मंत्रियों और नेताओं की बात करें तो गहलोत के नंबर एक रहे शांति धारीवाल का घंमड़ सातवें आसमान पर पहुंच चुका है। मंत्री रहते अपने आलाकमान तक को चुनौती देने वाले धारीवाल ने आसन को गाली—गलौच तक कर दी, लेकिन फिर भी वो सदन को हिस्सा बने रहे, जबकि सत्तापक्ष के एक विधायक को बैठने का इशारा करने से ही स्पीकर देवनानी ने सरकार के साथ साजिश करके मुकेश भाकर को 6 महीने के लिए निलंबित कर अपनी कुंठा शांत करने आ विफल प्रयास किया। 

धारीवाल ने सभापति संदीप शर्मा को न केवल गालियां दीं, बल्कि कोटा में आने पर देख लेने की धमकी दी, लेकिन इसके बावजूद स्पीकर देवनानी ने धारीवाल को केवल दो दिन सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेने की खानापूति की सजा देकर खुद की इज्जत बचाने का विफल प्रयास किया। धारीवाल को इन चीजों से रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ता, लेकिन 'खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे' वाली कहावत को चरित्रार्थ करते हुए स्पीकर देवनानी ने धारीवाल का गुस्सा बेवजह कांग्रेस के युवा विधायक मुकेश भाकर को 6 महीने के लिए सदन से निलंबित करके निकाला। इससे साबित होता है कि स्पीकर भी पुराने मंत्रियों से खौफ खाते हैं, लेकिन अपनी खाल बचाने के लिए नये विधायकों पर कार्यवाही करके अपनी कुंठित भूख शांत करने का प्रयास करते हैं। 

विपक्ष में रहते यही देवनानी पत्रकारों को घर बुलाकर नियमों की दुहाई देते थे, लेकिन जब इनको स्पीकर बनाया गया तो अपने चहेतों को छोड़कर किसी को पत्रकार ही नहीं मानते। बल्कि इनके स्टाफ ने जो मनमानी कर रखी है, उसको जिक्र करना भी पत्रकारिता के साथ बेमानी होगा। पूर्व अध्यक्ष सीपी जोशी ने कोरोना की आड़ में पत्रकारों के साथ जो अन्याय किया, उसका परिणाम उनको हार के रूप में मिला है, लेकिन देवनानी को लगता है कि वो हमेशा विधानसभा अध्यक्ष बने रहेंगे, ​इ​सलिए जो कुकर्म सीपी जोशी ने किए, वही अन्याय अब वास्तविक पत्रकारों के प्रवेश पत्र नहीं बनाकर वासुदेव देवनानी कर रहे हैं, जबकि पहली बार पत्रकारिता शुरू करने वाली लड़कियों के नियमित प्रवेश पत्र बनाकर चाय—नास्ते के साथ सदन में आवभगत हो रही है। समय के पास सबके कर्मों का लेखा जोखा रहता है, कुछ लोगों को पद मिलते ही सोचने लगते हैं कि यह हमेशा उनके पास रहने वाला है, लेकिन उनको यह पता नहीं कि समय आने पर समय ही सबका हिसाब कर देता है।

अशोक गहलोत तीन बार सीएम रहे और तीनों ही बार विपक्ष में रहते कभी सरकार को आइना नहीं दिखाया। गहलोत अच्छे से जानते हैं कि उनकी सफलता का मार्ग गांधी परिवार से ही निकलता है। इसके अलावा मेहनत या ईमानदारी किसी काम की नहीं। तीन बार सीएम बने, तीनों बार सोनिया गांधी ने बनाया। इन बातों को खुलेआम दावे के साथ कहने वाले गहलोत एक बार फिर सदन से गायब रहे। बहाना तो बीमारी को बनाया गया, लेकिन इनकी इस बीमारी पर भी कौन भरोसा करेगा, जो चुनाव सेए ध् पहले ममता बनर्जी स्टाइल में पैरों के नाखून तुड़वाने की पट्टियां करवाकर बैठे थे। 

चुनाव खत्म होते ही गहलोत के भी नाखून ठीक उसी तरह से सही हो गए, जैसे विधानसभा चुनाव सम्पन्न होते ही ममता बनर्जी की टांग ठीक हो गई थी। गहलोत खुद को सदन से भी उपर मानते हैं, इसलिए वो सदन में जाना उचित नहीं मानते। जाते भी हैं तो शहंशाह की तरह जाते हैं और बैठकर वापस चले निकल जाते हैं। न कभी प्रश्न पूछते, न बहस में हिस्सा लेते, न किसी बिल के उपर सरकार को सुझाव देते और न ही कभी सरकार के खिलाफ धरने—प्रदर्शनों में हिस्सा लेते। इससे साबित होता है कि गहलोत ने खुद को संविधान, लोकतंत्र और सदन की परंपराओं से उपर मान लिया है। 

प्रदेश का दुर्भाग्य यह है कि ऐसे नेता को क्षेत्र की जनता चुनकर विधानसभा में भी भेज देती है और लोकतंत्र की आड़ में राजा बने बैठे इनकी पार्टियों के मठाधीश अपनी मर्जी से सीएम और मंत्री भी बना देते हैं, जबकि उनसे कहीं अधिक मेहनत करने वाले और ईमानदार लोग परिश्रम करते ही रह जाते हैं। गहलोत की उम्र काफी हो चुकी है, लेकिन अभी भी वो 2028 में पायलट, डोटासरा की मेहनत से बनने वाली सरकार के मुखिया बनने का सपना देख रहे हैं। हालांकि, इस बार रास्ता इतना आसान नहीं है, क्योंकि उन्होंने 25 सितंबर 2022 को उसी गांधी परिवार की बेइज्जती की थी, जिसके दम पर 3—3 बार सीएम बन चुके हैं। इस बार कांग्रेस की ओर से सचिन पायलट, गोविंद सिंह डोटासरा, टीकाराम जूली समेत कई अन्य नेता दौड़ में होंगे। समय बताएगा कि कौन आगे रहेगा, लेकिन गहलोत जैसे निकम्मे नेताओं को लोकतंत्र के सिस्टम से बाहर करना जनता का दायित्व है। 

विपक्ष के अन्य नेताओं ने सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई तो पहली बार चुनकर आए विकास चौधरी, मनीष यादव, अभिमन्यु पूनिया, रविंद्र भाटी, शिखा बराला जैसे युवा विधायकों ने अपनी छाप छोड़ने का प्रयास किया है। इनमें से अधिकांश नेता विवि से निकले हुए हैं, जिनको शांति धारीवाल को छोड़कर पुराने नेताओं से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। हालांकि, कुछ युवा नेता सीखने के बजाए सिखाने की स्टाइल में नजर आते हैं। रील वाले एक युवा नेता ने तो यहां तक दावा कर दिया कि वो बड़े नेताओं को सबक सिखा देंगे। ऐसे में लगता भी नहीं है कि इस तरह का युवा विधायक कुछ सीख पाएगा। 

सदन स्थगित होने से ठीक पहले मुकेश भाकर को 6 महीने के लिए निलंबित कर दिया गया, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और शांति धारीवाल के मुकाबले भाकर का गुनाह तो न के बराबर था। उन्होंने केवल अपने बोलने की बारी में बार बार खड़े हो रहे भाजपा विधायक को ​बैठने का इशारा किया था, जो स्पीकर को इतना नागवार गुजरा की सदन से निलंबित ही कर दिया। ऐसा लग रहा था कि धारीवाल को गुस्सा भाकर पर निकाला जा रहा था।

सत्तापक्ष की ओर से बजट पेश किया गया, उसके गुण अवगुण अपनी जगह हैं, लेकिन इसके ​अलावा सदन में क्या हुआ, किसी को पता नहीं। केवल एक चीज अगले सत्र तक याद रहेगी कि मुकेश भाकर को अकारण निलंबित कर सरकार और स्पीकर ने तानाशाही दिखाई थी। इस सत्र में सरकार की ओर से कौन कैसा परफॉर्म कर पाया? सीएम भजनलाल शर्मा के साथ उनके मंत्री कितने समझदार रहे? सरकार की सदन में हालत कैसी रही? सदन का स्तर पहले के मुकाबले कितना गिराया गया? मंत्रियों के इस्तीफे और सीएम बदलने की चर्चा के बीच वो सबकुछ चल रहा है, जो राजनीति के हिसाब से जानना बेहद जरूरी है। अगले वीडियो में सदन के भीतर सीएम भजनलाल शर्मा, स्पीकर वासुदेव देवनानी और मंत्रियों की परफॉर्मेंस के उपर चर्चा करूंगा। 

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