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लेटरल एंट्री का इतना विरोध क्यों?



संघ लोक सेवा आयोग ने एक बार फिर संयुक्त सचिव और उप सचिव के 45 पदों के लिए सीधी भर्ती का विज्ञापन दिया है। इसमें 10 संयुक्त सचिव और 35 पद उप सचिव के हैं। इसी तरह की एक भर्ती इससे पहले 2018 में की जा चुकी है। उस समय यूपीएससी ने 63 पदों पर भर्ती की थी, जिसमें 6077 उम्मीदवारों ने आवेदन किए थे। तब भी इस लेटरल एंट्री को लेकर काफी बवाल हुआ था। तब विवाद होने के बाद भी भर्ती हुई और बाद में सब शांत गया था। इस बार हरियाणा और जम्मू—कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान होने के बाद यूपीएससी ने यह विज्ञापन निकाला है, जिसके कारण विपक्षी दलों को राजनीति करने का समुचित अवसर भी मिल गया है। जाति जनगणना कराने का दावा करने वाले राहुल गांधी और उनके सहयोगी अखिलेश यादव ने तुरंत प्रभाव से इस मौके को लपककर बयानबाजी भी शुरू कर दी है। दूसरी ओर केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि लेटरल एंट्री में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। इसका तात्पर्य होता है कि जिन 45 पदों पर यह सीधी भर्ती होगी, उसमें आरक्षण नहीं होगा, यानी जो योग्य पाया जाएगा, उसकी भर्ती की जाएगी।

इस समय अखिल भारतीय सेवाओं के स्वीकृत 15106 पदों में से 12162 पद भरे हैं, जबकि 2944 पद रिक्त पड़े हैं, जिनमें संयुक्त सचिव और उप सचिव के पद भी शामिल हैं। इसके कारण कई मंत्रालयों और राज्य सरकारों के विभागों में अनुभवी अधिकारियों की कमी महसूस की जा रही है। इसलिए यूपीएससी ने सीधी भर्ती कर रिक्त पदों को भरने का विज्ञापन जारी किया है। प्रश्न यह उठता है​ कि आखिर लेटरल एंट्री में दिक्कत क्या है? लेटरल एंट्री का मतलब यह है कि यूपीएससी की जो कमेटी साक्षात्कार के आधार पर योग्य सचिवों और उप सचिवों की भर्ती करेगी, उसके लिए न तो यूपीएससी की प्री परीक्षा होगी, न मुख्य परीक्षा का झंझट होगा। सीधे आवेदन लिए जाएंगे और साक्षात्कार में योग्य पाए गए उम्मीदवारों का चयन किया जाएगा। इसके लिए किसी को जाति, धर्म, क्षेत्र या दिव्यांगता के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है।

यूपीएससी की सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया को धत्ता बताकर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर आईएएस बनी पूजा खेडकर का विवाद अभी थमा नहीं है। उसके बाद सोशल मीडिया पर उन तमाम लोगों की जानकारी भी सामने आई है, जो फर्जी दस्तावेज बनाकर यूपीएससी के माध्यम से अधिकारी बनकर देश का सिस्टम चला रहे हैं। आप कल्पना कीजिए, जो व्यक्ति खुद अधिकारी बनने में फर्जीवाड़ा करके आया हो, वो सरकारी तंत्र की आड़ में क्या नहीं करेगा? विपक्षी दलों का कहना है कि लेटरल एंट्री से संविधान प्रदत्त एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण का सीधा उल्लंघन है। इस भर्ती में इन वर्गों के आने वाले उम्मीदवारों का चयन हो भी सकता है और नहीं भी हो, दोनों ही चीजों की गुंजाइश रहेगी। विरोध करने वालों का आरोप है कि मोदी सरकार आरक्षण को खत्म करने का तरीका निकाल रही है, जिसके पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लेटरल एंट्री की जा रही है।

यह बात सही है कि इस भर्ती में आरक्षण नहीं होगा, लेकिन क्या सरकारी तंत्र में काम कर रही सभी भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान होता है? आज जितने कर्मचारी सरकारी भर्ती में हैं, उससे कहीं अधिक संविदा और ठेके पर काम कर रहे हैं। केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकारों में भी संविदा एवं ठेके पर काम हो रहे हैं, जिनमें सरकारी कर्मचारियों से अधिक लोग हैं। उल्लेखनीय बात यह भी है कि संविदा पर जितनी भी प्रकार की भर्ती होती है, उनमें भी आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं होता है। आज सरकारें अपने सभी बड़े प्रोजेक्ट ठेके पर ही करवाती हैं। इन ठेकों में जो कर्मचारी काम करते हैं, वो ठेकेदार की मर्जी से रखे जाते हैं। वहां पर केवल काम करने वालों को ही रखा जाता है, न तो धर्म देखा जाता, न जाति और न ही क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाती है। 

किंतु इसके बाद भी कोई राजनीतिक दल इस तंत्र के खिलाफ आवाज नहीं उठाता है। कारण क्या है? कारण यह है कि संविदा या ठेका प्रथा में काम करने के लिए जाने वाले युवाओं का कोई समूह नहीं बनता है। इसके लिए दिनरात एक करके पढ़ाई नहीं करनी होती है, न परीक्षा होती है, न साक्षात्कार होता है। संविदा या ठेके के कार्यों में जितने भी लोग काम हो रहे हैं, उनकी सीधी भर्ती होती है। एक तरह से कहें तो संविदा और ठेका प्रथा के कर्मचारियों की लेटरल एंट्री होती है। जब युवाओं का समूह नहीं होता है तो वो राजनीतिक दलों का वोटबैंक नहीं बन पाता है। ठेकेदारों द्वारा हर दिन हजारों—लाखों लोगों को काम पर रखा जा रहा है और हटाया जा रहा है, लेकिन इनकी आवाज किसी भी सियासी दल द्वारा नहीं उठाई जाती। 

यह बात सही है कि उप सचिव और संयुक्त सचिव जैसे पदों पर पहुुंचने वाले अधिकारी बहुत अनुभवी होते हैं। ये अधिकारी यूपीएससी भर्ती प्रक्रिया से आईएएस बनते हैं, उसके बाद उनको एसडीएम, डीएम, स्टेट ज्वाइंन सेक्रेटरी, सेक्रेटरी जैसे पदों से होते हुए यहां तक पहुंचना होता है, लेकिन इस सीधी भर्ती में उनको उप सचिव और संयुक्त सचिव की पोस्ट मिलेगी। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि प्राइवेट कंपनियों में काम करके बेहतरीन परिणाम देने वाले कई डिप्टी मैनेजर, मैनेजर, सीईओ अपने कार्य कौशल से अपनी कंपनी को काफी आगे ले जाते हैं। ऐसे योग्य लोगों का मुकाबला आईएएस अधिकारी भी नहीं कर पाते। लेटरल एंट्री के द्वारा यूपीएससी ऐसे ही लोगों की भर्ती करना चाहती है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि सीधी भर्ती में योग्यता के अलावा भाई—भतीजावाद, क्षेत्रवाद, राजनीतिक एप्रोच, भ्रष्टाचार, यूपीएससी में परिवारवाद जैसी चीजें भी हावी रहने की संभावना रहती है। एक तरह से कहें तो यह प्रक्रिया भी न्यायपालिका में चल रही कॉलेजियम प्रणाली जैसा रूप बन सकती है। यदि इन बुराइयों से इतर योग्यतम सचिवों की सीधी भर्ती होती है तो देश के लिए अच्छी बात है, अन्यथा उपर बैठे कुछ लोगों का कॉलेजियम बनकर रह जाती है। 

21 अगस्त को भारत बंद बुलाया गया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी वर्ग के आरक्षण कोटे में कोटा देने की सलाह दी है। जिसके कारण दोनों वर्ग खासे नाराज हैं। हालांकि, केंद्र सरकार ने इस फैसले को कानूनी रूप से बदलने का आश्वासन दिया है, फिर भी दोनों वर्गों ने भारत बंद रखा है। लेटरनल एंट्री वाले विज्ञापन के कारण इसमें ओबीसी वर्ग भी जुड़ गया है। तीनों वर्गों के दबाव के बाद यूपीएससी ने अपना विज्ञापन वापस ले लिया है।

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