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न्यायपालिका में कॉलेजियम भी एक प्रकार का आरक्षण ही है



भारत की न्यायपालिका में जजों का अपॉइंमेंट जज ही करते हैं। इस सिस्टम को कॉलेजियम कहते हैं। कोर्ट्स में यह कॉलेजियम भी एक प्रकार का आरक्षण ही है। कॉमन मैन भले ही रिजर्वेशन के लिए आपस में लड़ रहे हों, लेकिन हमारे कोर्ट्स में नए जज आज भी रिजर्वेशन या कंडीडेट्स की योग्यता के बजाए वंशवाद से अपॉइंट होते हैं। 

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की संतान ही जस्टिस बनती है। इसका कारण कॉलेजियम नामक अघोषित खतरनाक रिजर्वेशन है। कॉलेजियम के तहत चीफ जस्टिस और चार अन्य जजों का पैनल तय करता है कि किस जज या वकील की औलाद न्यायाधीश बनेगी? 

इसलिए सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों और बड़ी अप्रोच वाले वकीलों की औलादें ही इन कोर्ट्स में जज बनती हैं। इस बीमारी से निपटने के लिए मोदी सरकार ने 2015 में नए जज अपॉइंट करने के लिए एनजेएसी एक्ट बनाया था।

जिसमें प्रोविजन किया गया था कि सीजेआई, दो सीनियर जस्टिस, लॉ मिनिस्टर और दो सोशल एक्टिविस्ट का पैनल तय करेगा कि नए जज कैसे अपॉइंट करने हैं, किंतु सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर उस कानून को अनकॉन्सटीट्यूशनल बताकर खारिज कर दिया था। जिसके कारण आज भी देश के तमाम नागरिकों की योग्यता को धत्ता बताकर जज का बेटा ही जज बन रहा है।


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