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संविधान को असली खतरा किससे है?



पिछले दिनों आम चुनाव के दौरान संविधान खत्म होने का भारत में खूब हल्ला हुआ। आजकल वही हल्ला अमेरिका में चल रहा है। अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है, जिसको लेकर दोनों ही दलों से उम्मीदवार लगभग तय हो चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार हैं तो डेमोक्रेटिक पार्टी से कमला हैरिस का नाम सामने आ रहा है। 

ट्रंप ने दो दिन पहले ईसाई समुदाय से कहा कि 'आप इस बार वोट दीजिए, आपको बार—बार वोट देने की जरूरत नहीं पड़ेगी।' ट्रंप ने यह बयान अपने संदर्भ में दिया था। अमेरिका में एक व्यक्ति अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बन सकता है, इसलिए ट्रंप ने दूसरी बार वोट देने के बाद तीसरी बार वोट नहीं देने की बात कही, लेकिन कमला हैरिस ने इसको तानाशाही से जोड़कर प्रचार शुरू कर दिया। भारत में जैसे 10 साल से नरेंद्र मोदी पीएम हैं और संविधान पूरी तरह से सुरक्षित है, बल्कि पहले से अधिक सुरक्षित है, फिर भी लोकसभा चुनाव में संविधान खत्म करने का डर दिखाकर विपक्ष ने खूब दुष्प्रचार किया। 

ठीक इसी तरह से अब अमेरिका में कमला हैरिस ने शुरू कर दिया है। असल बात यह है कि न तो भारत में संविधान को खतरा है और न ही अमेरिका में। चुनाव के बाद यह बात सच साबित भी हो जाती है। लेकिन फिर भी चुनाव जीतने के लिए ऐसा ही प्रचार किया जाता है।

अब प्रश्न यह उठता है कि संविधान को किससे खतरा है? वास्तव में देखा जाए तो संविधान की मूल भावना को बदलने से खतरा होता है, जो इसकी प्रस्तावना में बसती है। जिसको आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने 'पंथ—निरपेक्ष' और 'समाजवाद' शब्द जोड़कर बदल दिया था। संविधान में समय अनुसार संशोधन करने का मार्ग खुद संविधान निर्माताओं ने ही खुला रखा है। 

संविधान में संघ और राज्यों को अलग—अलग अधिकार और कर्तव्य बताए गए हैं। दोनों की सीमाएं निर्धारित की गई हैं। दोनों को कानून बनाने का अधिकारी भी एक दायरे में दिया गया है। विदेश मामले और रक्षा का पूरा अधिकार संघ सरकार, यानी केंद्र सरकार के पास है। इन मामलों में किसी भी राज्य सरकार को कानून बनाने, किसी देश से समझौता करने, विदेशी कारोबार करने, पड़ोसी देश से मैत्री स्थापित करने या शत्रुता करने का अधिकार नहीं है। इसी तरह से बाहरी सुरक्षा का दायित्व भी संघ सरकार के पास है। इसमें भी राज्य सरकारें दखल नहीं दे सकतीं।

इसके बावजूद पश्चिमी बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने दावा किया है कि बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थियों को उनकी सरकार शरण देगी। बांग्लादेश से आने वाले किसी भी नागरिक को शरण देने, नागरिकता देने या नागरिकता छीनने का अधिकार केवल संघ सरकार हो है।

दूसरी ओर केरल सरकार ने हाल ही में अपना विदेश सचिव नियुक्त किया है। कितनी गंभीर बात है कि एक राज्य संविधान को धत्ता बताकर अपना अलग से विदेश सचिव नियुक्त कर रहा है, जिसका उसको संविधान में अधिकार ही नहीं है। इसका मतलब ये दोनों सरकारें संविधान का खुला उल्लंघन कर रही हैं। 

यदि यही परिपाटी चली तो फिर दूसरी राज्य सरकारें भी अपने अनुसार विदेश नीति पर चलने लगेंगी। राजस्थान भी पाकिस्तान के साथ अलग से समझौता करेगा। पंजाब भी खालिस्तानियों के साथ बात करने लगेगा। जम्मू—कश्मीर में भी सरकार बनते ही पाकिस्तान या चीन से संबंध ​स्थापित करने का प्रयास शुरू किया जाएगा। हिमाचल प्रदेश चीन से कारोबार आराम्भ करेगा। तमिलनाडु भी श्रीलंका से अपने रिश्ते प्रगाढ़ करेगा। 

क्या होगा यदि संविधान में राज्यों को विदेश नीति अपने हाथ में लेने का अधिकार मिल जाए? आप खुद कल्पना कीजिए कि राज्य कैसे अपनी मर्जी से विदेश नीति बनाने लगेंगे। इसके बाद संघ का और संघ की सरकार का मतलब ही क्या रह जाएगा? संविधान का इससे बड़ा उल्लंघन क्या होगा कि हमारे देश की दो राज्य सरकारें अपने हिसाब से विदेश नीति तय करने काम गंभीर काम कर रही हैं। यह खतरनाक उदाहरण है और राष्ट्रपति को इसके उपर कार्यवाही करनी चाहिए।

अब आप समझिए, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का कांग्रेस के साथ 'इंडिया' अलाइंस में गठबंधन है। इसी तरह से केरल में सीपीआईएम के ​पिनाराई विजयन का भी कांग्रेस के साथ गठबंधन है। यानी इंडिया अलाइंस के दलों वाली दो राज्य सरकारें खुलेआम संविधान की धज्जियां उड़ा रही हैं और संविधान की दुहाई देने वाले कांग्रेस पार्टी के नेता चुप हैं। वही नेता, जो आम चुनाव में दिनभर हाथ में संविधान की कॉपी लेकर संविधान बचाने का प्रचार कर रहे थे। 

अब संविधान का सबसे अधिक उल्लंघन कांग्रेस के इंडिया अलाइंस के दलों द्वारा किया जा रहा है, लेकिन फिर भी राहुल गांधी चुप हैं, एक शब्द तक नहीं बोल रहे हैं। इससे साबित होता है कि संविधान को खतरा किससे है। आपातकाल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब कैसे इंदिरा गांधी ने चुनी हुई सरकारों को रातों—रात बर्खास्त कर दिया था। संविधान की रक्षा करने का कर्तव्य भारत के प्रत्येक नागरिक का है। 

जब तक संविधान है, तब तक हम आजाद हैं, अन्यथा इंदिरा गांधी की तरह कोई व्यक्ति तानाशाह बन जाएगा तो हमारी गुलामी ​तय है। नेताओं को दलगत राजनीति से उपर उठकर केवल संविधान की बातें करने का नहीं, संविधान की वास्तव में रक्षा करने का दायित्व लेना चाहिए। भाषण देने और जनता को संविधान के नाम से भड़काने से तो उलटा लोकतंत्र कमजोर ही होता है।


रामगोपाल जाट

वरिष्ठ पत्रकार


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