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राजस्थान की सभी 6 सीटों पर भाजपा हार की कगार पर!



राजस्थान में अगले 3 महीनों में 6 विधानसभा सीटों पर बाय इलेक्शन होगा। इनमें से 5 सीटें से सिटिंग विधायकों के एमपी का इलेक्शन लड़ने करने के कारण खाली हुई हैं, तो उदयपुर जिले की सलूम्बर सीट भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा का निधन होने के कारण खाली हो गई है। नागौर की खींवसर विधायक रहे हनुमान बेनीवाल लगातार दूसरी बार नागौर से सांसद बने, जो पिछले साल दिसंबर में ही खींवसर से लगातार चौथी बार विधायक बने थे। झुंझुनूं की झुंझुनूं सीट से कांग्रेस विधायक बृजेंद्र ओला झुंझुनूं से लोकसभा का चुनाव लड़कर सांसद बन चुके हैं। दौसा से विधायक मुरारी लाल मीणा दौसा से सांसद बने हैं। 

देवली-उनियारा से हरीश मीणा अब टोंक सवाई माधोपुर से सांसद बन चुके हैं तो चौरासी से विधायक राजकुमार रोत बांसवाड़ा से सांसद बन चुके हैं। इस तरह से पांच विधानसभा सीटें खाली हो चुकी हैं। इनमें से तीन कांग्रेस के पास थीं, एक आरएलपी के पास और एक सीट बीएपी के पास थी। अब सलूम्बर सीट भाजपा की खाली हो चुकी है। इस तरह से 6 विधानसभा सीटों पर उप चुनाव होना है। 

विपक्ष में बैठी कांग्रेस पांच सीटों पर अपने प्रभारी बनाकर तैयारी जोरों से कर रही है, तो बीएपी ने दक्षिणी राजस्थान में भील प्रदेश के सहारे चौरासी सीट पर फिर से दावा ठोक रही है। खींवसर सीट को हनुमान बेनीवाल नहीं छोड़ेंगे। पिछली बार उप चुनाव में अपने भाई नारायण बेनीवाल को जिता चुके हनुमान इस बार भी इस सीट पर अपने भाई या पत्नी को चुनाव लड़ाने की योजना बन रहे हैं। चर्चा है कि पिछली बार भाई को जिताया था, इसलिए इस बार अपनी पत्नी को विधानसभा भेजना चाहते हैं। 

हालांकि, आरएलपी के कार्यकर्ता भी दमदार तरीके से अपना पक्ष रख रहे हैं, फिर भी किसी अन्य के लिए संभावना नहीं के बराबर है। जब से खींवसर सीट अस्तित्व में आई है, तब से यहां पर चार बार हनुमान बेनीवाल और एक उपचुनाव में उनके भाई नारायण बेनीवाल चुनाव जीतकर विधायक बने हैं। हालांकि, आखिरी चुनाव में हनुमान बेनीवाल को भाजपा के रेवंतराम डांगा ने कड़ी टक्कर दी थी। दिसंबर 2023 के उस चुनाव में हनुमान बेनीवाल केवल 2059 वोट से बमुश्किल जीत पाए थे। 

फिर भी उनका दावा काफी मजबूत है। विधानसभा चुनाव में यहां पर कांग्रेस का भी उम्मीदवार था, लेकिन लोकसभा चुनाव में उनका कांग्रेस के साथ गठबंधन होने के कारण इस बार उनको राजस्थान की प्रमुख विपक्षी पार्टी का भी सहारा मिलने की पूरी उम्मीद है। इसमें कोई शक नहीं है कि लोकसभा की तरह ही विधानसभा के इस उपचुनाव में भी बेनीवाल और कांग्रेस का अलाइंस होगा। ऐसे में वोट प्रतिशत की ही बात करें तो हनुमान बेनीवाल को 79492 वोट मिले थे, जबकि भाजपा के रेवंत राम डांगा को 77433 वोट मिले थे। ठीक ऐसे ही कांग्रेस के तेजपाल मिर्धा को 27763 वोट मिले थे। 

यदि इस बार कांग्रेस पार्टी हनुमान बेनीवाल के साथ रहती है तो दोनों का वो मिलकर एक लाख से अधिक हो जाता है। उपर से सांसद के रूप में चुने जाने के बाद विधायकी में करवाए कामों का भी उनको फायदा मिलेगा। कांग्रेस की यहां पर हनुमान बेनीवाल के साथ अलाइंस करने की मजबूरी है, उसे पता है कि वो कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन जीत नहीं पाएंगे, इसलिए बेनीवाल को इंडिया अलाइंस में बनाए रखने के लिए कांग्रेस को आरएलपी से अलाइंस रखना ही पड़ेगा। 

दूसरी सीट झुंझुनूं है, जहां बृजेंद्र ओला अब झुंझुनूं लोकसभा सीट से सांसद बन चुके हैं। यहां पर ओला परिवार का दबदबा है। बृजेंद्र ओला यहां दिसंबर 2023 में लगातार चौथी बार विधायक का चुनाव जीते थे। जबकि झुंझुनूं लोकसभा सीट उनके पिता शीशराम ओला की परंपरागत सीट रही है। झुंझुनू सीट पर वैसे तो कई कांग्रेसी दावा कर रहे हैं, लेकिन पूरी संभावना है कि बृजेंद्र ओला की बहू आकांक्षा ओला को ही टिकट मिलेगा, जो शीशराम ओला के समय से ही पर्दे के पीछे से राजनीति में खासी सक्रिय रही हैं। 

बृजेंद्र ओला ने 2023 में यहां पर 86798 वोट लेकर 28863 वोटों से जीते। भाजपा के बबलू चौधरी को 57935 वोट मिले, जबकि 42407 वोट लेकर राजेंद्र सिंह भांमू तीसरे नंबर पर रहे। भाजपा इस बार किसको टिकट देगी, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। यदि राजेन्द्र भांमू और भाजपा के बबलू चौधरी एक हो जाते हैं, तो कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकती है, अन्यथा ओला परिवार एक बार फिर से भारी पड़ने वाला है। 

तीसरी सीट दौसा है, जहां पर कांग्रेस के मुरारीलाल मीणा ने 98238 वोट लेकर भाजपा के शंकरलाल शर्मा को 31204 वोटों से हराया था। यहां पर भी मुरारीलाल के दौसा सांसद बनने के कारण उपचुनाव होने वाला है। भाजपा में यहां पर खींचतान मची हुई है। कृषि मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके डॉ. किरोड़ी लाल मीणा और पूर्व सांसद जसकौर मीणा के बीच खींचतान लंबे समय से चल रही है। किरोडीलाल अपने भाई जगमोहन मीणा को टिकट दिलाना चाहते हैं तो जसकौर अपनी बेटी अर्चना मीणा को उम्मीदवार बनाना चाहती हैं। इससे पहले दोनों के बीच लोकसभा चुनाव में भी जंग रही थी, जिसका फायदा कांग्रेस को मिला और मुरारीलाल चुनाव जीत गए। दौसा विधानसभा सीट पर मीणा-गुर्जर बाहूल में हैं। 

इसलिए मुरारीलाल मीणा और सचिन पायलट मिलकर उम्मीदवार तय करेंगे। कांग्रेस पार्टी इस सीट को अपनी सुरक्षित सीट मानती है, इसलिए प्रत्याशियों की लंबी लिस्ट तैयार हो चुकी है। भाजपा के पास अभी दमदार चेहरा नहीं है। भाजपा यदि जगमोहन मीणा को टिकट देती है तो कांग्रेस को दिक्कत हो सकती है, अन्यथा भाजपा के लिए यहां के रास्ते भी बंद पड़े हैं। इस सीट पर कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा तीन बार विधायक रहे हैं, इसके अलावा कांग्रेस कभी नहीं जीती।

टोंक जिले की देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस के हरीश मीणा लगातार दूसरी बार विधायक बने थे, लेकिन लोकसभा में उनको टोंक सवाई माधोपुर से टिकट मिला और जीत गए। इसके कारण देवली सीट खाली पड़ी है। अब यहां पर भी उपचुनाव होगा। उपचुनाव को लेकर कांग्रेस में उम्मीदवारों की लिस्ट लंबी होती जा रही है। इस सीट पर सबसे अधिक गुर्जर—मीणा मतदाता हैं। इसलिए सचिन पायलट और हरीश मीणा की पसंद का उम्मीदवार बनना तय है। पायलट और हरीश मीणा प्रचार करेंगे तो भाजपा के लिए चुनाव जीतना असंभव हो जाएगा। 

भाजपा ने पिछली बार विजय बैंसला को टिकट दिया था, लेकिन वो हार गए। विजय बैंसला फिर से टिकट मांग रहे हैं। साथ में उनकी बहन अनीता बैंसला भी टिकट की दावेदारी जता रही हैं, तो पिछले चुनाव में आरएलपी के उम्मीदवार रहे डॉ. विक्रम गुर्जर भी दावेदार हैं। भाजपा टिकट किसी को भी दे, लेकिन यहां के जातिगत और राजनीतिक समीकरण कांग्रेस के पक्ष में हैं। 

पांचवी सीट चौरासी है, जहां से राजकुमार रोत बांसवाड़ा के सांसद बन चुके हैं। राजकुमार ने यहां पर दूसरी जीत दर्ज की थी। उन्होंने भाजपा के प्रत्याशी सुशील कटारा को करीब 69 हजार वोटों से हराया था। कांग्रेस के ताराचंद भगौरा करीब 28 हजार वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे। लोकसभा चुनाव में राजकुमार रोत ने बीएपी के टिकट पर बांसवाड़ा से चुनाव लड़ा और भाजपा के उम्मीदवार महेंद्रजीत सिंह मालवीया को 2.47 लाख वोटों से करारी शिकस्त दी थी। महेंद्रजीत मालवीया उससे पहले बागीदौरा से कांग्रेस के विधायक थे। लोकसभा चुनाव से पहले महेंद्रजीत मालवीया ने भाजपा ज्वाइन कर बांसवाड़ा से चुनाव लड़ा था, जिसमें उनको बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा था। अब मालवीया न विधायक हैं और न ही सांसद बन पाए, जबकि कांग्रेस में उनका बड़ा कद था। 

एक समय वो प्रदेशाध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के भी दावेदार थे, लेकिन जब उनको नहीं बनाया गया तो भाजपा ज्वाइन कर ली। मालवीया कांग्रेस के बड़े आदिवासी नेता माने जाते थे, लेकिन अब इस क्षेत्र में समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। बीएपी और बीटीपी के कारण हालात यह हो गए हैं कि भाजपा-कांग्रेस को यहां पर चुनाव लड़ने में पसीने छूट रहे हैं। इसलिए चौरासी सीट पर टिकट का फैसला राजकुमार रोत और बीएपी मिलकर लेंगे। जिस तरह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मजबूरन बीएपी का साथ देना पड़ा था, ठीक वैसे ही इस उपचुनाव में भी उसे बीएपी के अलाइंस करना होगा। 

उदयपुर की आदिवासी सीट सलूम्बर से भाजपा विधायक अमृतलाल मीणा का हाल ही में निधन हो गया है। इसके चलते यह सीट भी खाली हो गई है, जहां उपचुनाव होना है। अमृतलाल मीणा तीसरी बार विधायक थे। दिसंबर 2023 में वो 14691 वोटों से जीते थे। इस सीट पर भी अब आदिवासी पार्टियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। वैसे तो आदिवासी पार्टियां और उनके सांसद—विधायक भीलों के नाम पर भील प्रदेश की मांग करते हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करवाकर उनको ईसाई बनाया जा चुका है। 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार डूंगरपुर, बांसवाड़ा की सभी विधानसभा सीटों पर 25 से 35 हजार तक आदिवासी ईसाई बनाए जा चुके हैं। इसी तरह से प्रतापगढ़, उदयपुर जैसे जिलों में भी बड़े पैमाने पर धर्मांतरण का खेल चल रहा है। जब कोई हिंदू या अन्य धर्म का व्यक्ति मुस्लिम बनता है तो उसका नाम बदल लिया जाता है, लेकिन इसाई बनाने के बाद भी मिशनरी लोगों का नाम नहीं बदला जाता है, इसलिए किसी को पता भी नहीं चलता है कि कौन किस धर्म को मान रहा है। जिनका धर्मांतरण हो चुका है, वो लोग भी आदिवासियों की सुविधाएं ले रहे हैं। 

सलूम्बर में भाजपा किसे टिकट देगी, यह कहना काफी कठिन है। हालांकि, अमृतलाल मीणा का निधन होने के कारण उनके परिवार से किसी को टिकट देकर सहानुभूति का फायदा उठाने का प्रयास किया जा सकता है। यदि यहां पर टिकट अमृतलाल मीणा के परिवार को नहीं दिया जाएगा तो भाजपा की राह बेहद कठिन होगी। इस तरह से देखा जाए तो सभी 6 सीटों पर भाजपा मुश्किल में फंसती दिखाई दे रही है। 

अब बात पार्टियों में गुटबाजी से होने वाले नुकसान की करें तो कांग्रेस में गहलोत के कमजोर पड़ने और डोटासरा-जूली के मजबूत होने के कारण नये समीकरण बन रहे हैं। झुंझुनूं, दौसा, देवली—उनियारा में टिकट सचिन पायलट कैंप से मिलेगा, जबकि खींवसर सीट पूरी तरह हनुमान बेनीवाल पर निर्भर करती है, जबकि चौरासी में बीएपी हावी है, तो सलूम्बर में दोनों प्रमुख दलों के अलावा आदिवासी दलों की भी महती भूमिका रहने वाली है। यानी इस उपचुनाव में विपक्ष के पास कई मोहरे होंगे, जबकि भाजपा के नये नवेले प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के कंधों पर भारी वजन होगा। 

इस चुनाव में राज्य की सत्ता का खास रोल नहीं होगा, जिससे राज्य की जनता बुरी तरह से त्रस्त हो चुकी है। इस उपचुनाव में भाजपा की तरफ से कौन ताकत लगाएगा और किसकी ताकत काम आएगी यह कहना अभी बेकार ही है। केवल दौसा, देवली—उनियारा सीटों पर डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की निर्णायक भूमिका होगी, यदि भाजपा संगठन ने उनकी ताकत का सही इस्तेमाल किया। बाकी भाजपा के पास आज की तारीख में ऐसा कोई नेता नहीं है, जो अपने दम पर इनमें से कोई भी सीट जिता सके।

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