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दोगुनी ताकत से फिर मैदान मारने आ रही है बीएसएनएल

Ram Gopal Jat

बीएसएनएल एकमात्र ऐसी कंपनी, जो आज से 22 साल पहले मोबाइल सिम लेकर आई और 22 दिन के भीतर ही इंडिया की सबसे बड़ी कंपनी बन गई। जब बड़ी प्राइवेट कंपनियां बैंकों से पैसा लेकर अपना धंधा स्थापित करने का प्रयास कर रही थीं, तब बीएसएनएल के पास 35 हजार करोड़ रुपये का बैंक बैलेंस हुआ करता था। सरकार इसे अपनी 9 रत्न कंपनी मानती थी और देश-दुनिया के बड़े-बड़े बिसनेसमैन इन्वेस्ट करने के लिए लाइन लगाकर खड़े रहते थे। 

जनता बीएसएनएल की सिम लेने के लिए 4-4 किलोमीटर लाइन लगाकर खड़ी रहती थी, लेकिन बाद में टाइम चेंज हुआ, गवर्नमेंट ने बीएसएनएल के हाथ बांध दिए, करप्शन ने कंपनी को चारों ओर से जकड़ लिया, जिम्मेदार कस्टमर्स को जानबूझकर परेशान करने लगे थे, पॉलिसी बनाने वालों ने ही इसे पैरालाइज करने काम करना शुरू कर दिया था, नतीजा यह हुआ कि बीएसएनएल के 16 साल बाद आई रिलायंस जियो कुछ ही महीनों में 47 करोड़ कस्टमर्स के साथ बहुत आगे निकल गई। 

परमानेंट ऐसेट होने के बाद भी बीएसएनएल गवर्नमेंट से पौने दो लाख करोड़ का पैकेज लेने के बावजूद अपने अस्तित्व के लिए बैंकों की दया पर जीवित रहने की कोशिश कर रही है। कैसे बीएसएनएल बनी, कैसे उसने आसमान को छुआ और फिर कैसे देश की टॉप मोबाइल कंपनी को गर्त में धकेल दिया गया? पूरा वीडियो देखकर आप समझ जाएंगे कि इंडिया में करप्शन का सिस्टम कैसे काम करता है...

बीएसएनएल, यानी भारत संचार निगम लिमिटेड.... इंडिया के मोस्ट ओफ पोपुलेशन तो बीएसएनएल की फुल फॉर्म भी नहीं जानती होगी, क्योंकि कभी यह जानने की नीड ही नहीं रही। आज मोस्टली इंटरनेट यूज करने वाला यूथ इन चीजों को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है। इंटरनेट यूज करना है, उसको कंपनी कौनसी है, इससे क्या ही मतलब है? लेकिन रिलायंस जियो, एयरटेल, वीआई की मनमानी हावी होने लगी तो यूथ को भी बीएसएनएल का होना समझ आ रहा है। 

पिछले दिनों एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें दावा किया गया कि एक ही दिन में दूसरे मोबाइल कंपनियों से 95 लाख कस्टमर्स ने अपना सिम बीएसएनएल में पोर्ट किया है। बीएसएनएल भारत की एकमात्र सरकारी मोबाइल इंटरनेट सप्लाई करने वाली कंपनी हुआ करती थी, जो पहली बार 2002 में सेलवन नाम से मोबाइल सिम शुरू करती है, उस जमाने में बीएसएनएल केंद्र सरकार की 9 रत्न कंपनियों में थी, जो सर्वाधिक प्रॉफिट देती थी। 

बीएसएनएल के प्रति दीवानगी ऐसी होती है कि सिम लेने के लिए लोग चान—चार किलोमीटर की लाइनें लगाकर कई दिनों तक इंतजार करते हैं। जिसे सेलवन मिल जाती है, वो खुद को बहुत लकी समझता है।

आते ही 1 नंबर कैसे बनी बीएसएनएल?

डिपार्टमेंट ऑफ़ टेलिकॉम, यानी डीओटी से बीएसएनएल का अक्टूबर 2000 को जन्म होता है। इसमें भारत सरकार की 100 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है। बीएसएनएल की डोर डीओटी के हाथों में है जो भारत सरकार के Ministry of Communications का पार्ट है। एमटीएनएल मुंबई और दिल्ली में ऑपरेट करती है, जबकि बाकी देश में बीएसएनएल की काम करती है। 

साल 2000 में स्थापना के बाद बीएसएनएल के अधिकारी जल्द से जल्द मोबाइल सर्विस स्टार्ट करना चाहते हैं, ताकि निजी ऑपरेटर्स को चुनौती दे सकें, लेकिन उन्हें ज़रूरी government consent नहीं मिलती हैं। कंपनी के अधिकारी काफी निराश होते हैं। करीब दो साल बाद 19 अक्टूबर 2002 को प्राइम मिनिस्टर अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से बीएसएनएल मोबाइल सर्विस लॉन्च करते हैं और लॉन्च होने के शुरुआती मंथ में ही बीएसएनएल इंडिया की नंबर वन मोबाइल सर्विस कंपनी बन जाती है। 

जब बीएसएनएल की सर्विसेज की शुरुआत होती है, तब प्राइवेट ऑपरेटर 16 रुपए प्रति मिनट कॉल के अलावा 8 रुपए प्रति मिनट इनकमिंग के चार्ज कर रहे होते हैं। बीएसएनएल आते ही इनकमिंग को फ्री कर देती है और आउटगोइंग कॉल्स की कीमत डेढ़ रुपए तक कर देती है, इससे प्राइवेट ऑपरेटर्स की हालत खराब हो जाती है। 

ये वो दौर होता है, जब कंपनी 35 हज़ार करोड़ तक का कैश रिजर्व के साथ टॉप मोस्ट कंपनी होती है। जान-पहचान वाले बीएसएनएल ओफिसर्स से सेलवन की सिम के लिए मिन्नतें करते हैं। इस तरह से लगातार चार साल तक बीएसएनएल इंडिया के मोबाइल ऑपरेटिंग मार्केट पर छाई रहती है।

2004 में भारत की सत्ता बदलती है और ईयर 2006 से ही बीएसएनएल की उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। यूपीए सरकार में 2004-07 तक दयानिधि मारन संचार मंत्री होते हैं, उसके बाद अगले तीन साल तक ए. राजा मंत्री रहते हैं। 

साल 2010 में 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी होती है, जिसमें बीएसएनएल को हिस्सा नहीं लेने दिया जाता है। बाद में बीएसएनएल को पूरे देश के लिए स्पेक्ट्रम तो मिलते हैं, लेकिन जिस वैल्यू पर प्राइवेट कंपनियां स्पेक्ट्रम खरीदती हैं, सरकार बीएसएनएल से भी वही कीमत चार्ज करती है। 

इसके कारण बीएसएनएल को वाईमैक्स तकनीक पर आधारित ब्रॉडबैंड वायरलेस ऐक्सेस स्पेक्ट्रम के लिए भी मोटी रकम चुकानी पड़ती है। जिसके कारण बीएसएनएल की इकॉनोमिक हेल्थ बिगड़ने लगती है। बीएसएनएल को इस नीलामी में 18000 करोड़ खर्च करने पड़ते हैं, जिससे खजाना खाली हो जाता है, जबकि एमटीएनएल को बैंकों से कर्ज़ लेना पड़ता, जिसे चुकाने के लिए उसे 100 करोड़ रुपए महीना देना पड़ता है।

इन्वेस्ट के रास्ते बंद किये

2010 से 2012 तक बीएसएनएल के विस्तार का छठा चरण चल रहा होता है। उस वक्त भारत में मोर देन 22 करोड़ मोबाइल कनेक्शन में अकेले बीएसएनएल का मार्केट शेयर 22 पर्सेंट पर होता है। इस दौरान कंपनी ने 93 मिलियन लाइन कैपेसिटी बढ़ाने के लिए टेंडर निकालती, लेकिन करप्शन के कारण टेंडर लटका रहता है। 

इस दौरान कई डिसिजन होते हैं, जो बीएसएनएल की प्रगति पर पूरी तरह से रोक लगा देते हैं। नतीजा ये होता है कि 2006-12 के बीच बीएसएनएल की क्षमता में जहां मामूली बढ़ोतरी के साथ कंपनी के मार्केट शेयर में गिरावट आती है, जबकि इसी पर्टिकूलर टाइम में प्राइवेट ऑपरेटर्स आगे निकल जाते हैं। ईयर 2006 में बीएसएनएल के पास 7.5 करोड़ कस्टमर होते हैं। एयरटेल के पास 5 करोड़ और रिलायंस के पास 4 करोड़ कस्टमर होते हैं। 

तब बीएसएनएल रेवेन्यू और कस्टमर, दोनों बेस पर सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी होती है। उस पर्टिकूलर टाइम पर कंपनी का रेवेन्यू 39715 करोड़ रुपए, और नेट प्रॉफिट 7805 करोड़ रुपए होता है। ईयर 2008 का वह दौर आपको भी याद होगा, जब मोबाइल मार्केट तेजी पर होता है। प्राइेवट कंपनियां तेजी से पांव पसार रही होती हैं और इसके कारण बीएसएनएल प्राइवेट ओपरेटर्स से कम्पीटिशन करने के लिए 2008 में 15000 करोड़ के आईपीओ की योजना बनाती है। 

मार्केट में फाइटिंग पोजीशन पर इंवेस्टमेंट के लिए बीएसएनएल 2010 तक 60 हजार करोड़ के आईपीओ की स्कीम बनाती है, लेकिन उसे गवर्मेंट से परमिशन ही नहीं मिलती। इसके कारण ईयर 2010 में शुरू हुआ घाटा 2014 तक मोर देन 39000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है। कंपनी लगातार लॉस में जाने लगती तो कंपनी के बंद होने की अफवाह से 1.70 लाख कर्मचारियों में से 80 हजार एक साथ वीआरएस ले लेते हैं। 

एम्पलोई की कमी से जूझ रही कंपनी को बड़ा झटका होता है, लेकिन इसको लेकर भी विवाद हो जाता है, जो कई दिनों तक चलता है। इस विवाद के कारण कंपनी की इमेज भी डेंट होती है। ईयर 2016 में जब 4जी स्पेक्ट्रम की नीलामी होती है, तब बीएसएनएल मैनेजमेंट स्पेक्ट्रम परचेज करने के लिए सरकार को 17 पत्र लिखता है, लेकिन उसे सरकार से परमिशन नहीं मिलती है।

स्पेक्ट्रम नीलामी में हिस्सेदार नहीं बनती

ईयर 2018 के बाद प्राइवेट कंपनियां 4जी सर्विस देने लगती हैं और बीएसएनएल 2जी सर्विस भी कम्पलीट नहीं कर पाती हैं, जिसके कारण कस्टमर टूटते चले जाते हैं और कंपनी जबरदस्त लॉस में चली जाती है है। इसके कारण 2020 तक कंपनी को करीब 54000 करोड़ का नुकसान होता है। कंपनी को बचाने के लिए सेंटर गवर्नमेंट पहली बार 2017 में राहत पैकेज देती है। 

इसके बाद डूबती कंपनी को बचाने के लिए 2019 में गवर्नमेंट 69000 करोड़ का दूसरा पैकेज देती है। फिर भी कंपनी मार्केट में ठहर नहीं पाती है, तो ईयर 2022 में 1.64 लाख करोड़ का तीसरा पैकेज दिया जाता है। परिणाम यह होता है कि एक साल के भीतर ही कंपनी को फिर से प्रॉफिट होने लगता है और टोटल लॉस 39000 करोड़ से घटकर 22000 करोड़ पर आ जाता है। 

इससे मोटिवेट होकर बीएसएनएल 15000 करोड़ रुपये में 4जी सर्विस का टेंडर देती है। आप कहेंगे प्राइवेट ऑपरेटर्स जहां 5जी से 6जी शुरू करने जा रहे हैं और बीएसएनएल अभी 4जी पर काम कर रही है तो कैसे फाइट कर पाएगी? असल में 5जी का रास्ता 4जी से और 6जी का रास्ता 5जी से निकलता है। इसलिए जब तक 4जी सर्विस नहीं होगा, तब तक 5जी शुरू नहीं की जा सकती है।

मोदी काल में क्या हुआ?

ईयर 2014 में जब मोदी पहली बार पीएम बनते हैं तो उसके एक साल बाद ही बीएसएनएल 5 साल में पहली बार 58 करोड़ का प्रॉफिट बनाने में सक्सेज हो जाती है, लेकिन यह उंट के मुंह में जीरा के समान होता है। और इसी पर्टिकूलर टाइम पर ईयर 2017 में मुकेश अंबानी की रिलायंस जियो के नाम से मार्केट में एंट्री मारती है। 

जियो की प्लानिंग और फ्री डेटा प्लान ऐसा होता कि तमाम दूसरी कंपनीज के हाथ पांव फूल जाते हैं। सडन्ली एयरटेल, वोडाफोन जैसी कंपनियां समझ नहीं पाती हैं कि क्या किया जाए? जियो 2017 में 4जी सर्विस लॉन्च करती है और शुरुआत में एकदम अनलिमिटेड डेटा फ्री कर देती है। 

हालात यह हो जाते हैं कि सारा काम छोड़कर यूथ देर रात तक सड़क किनारे बने जियो टावर्स के नीचे फ्री डेटा यूज करने बैठ जाता था। जियो के आने से पहले कोई भी कंपनी सार्वजनिक स्पॉट पर टावर नहीं लगा सकती थी, लेकिन रिलायंस जियो स्टेट गवर्नमेंट्स के साथ ऐसा अलाइंस बनाती है कि सड़कों के बीचों—बीच लाखों टावर लगाने की परमिशन मिल जाती है। कंपनी एक साल बाद पूरे देश में प्लान शुरू करती, जो दूसरी कंपनियों से 80 फीसदी सस्ते होते हैं। 

एक साल तक कंपनी 49 रुपये महीना में अनलिमिटेड 4जी डेटा प्लान देती है। इसके कारण टाटा डोकामो जैसी तीन—चार छोटी कंपनियां बंद हो जाती हैं। जियो ऐसा धमाका करती है कि अगले तीन साल में कंपनी के 30 करोड़ कस्टमर हो जाते हैं। इसमें यूथ कस्टमर का बड़ा सेग्मेंट होता है तो बीएसएनएल जैसी दूसरी कंपनियों से पोर्ट होकर आए कस्टमर भी होते हैं।

सबसे चीप प्लान ओफर करने के कारण जियो के पास कस्टमर का बड़ा बेस तैयार हो चुका होता है तो एक साल में 49 रुपये के प्लान को 99 रुपये कर दिया जाता है, फिर अगले साल 149 कर दिया जाता है। 2020 में उसी प्लान को 299 रुपये, फिर 399, 499, 599 और 699 रुपये करते हुए 720 में एक महीना अनलिमिटेड 4जी डेटा प्लान कर कर दिया जाता है। 

2023 में कंपनी अपनी 5जी सर्विस शुरू करती है, जिसे फ्री कर रखा जाता है, लेकिन 6जी की तरफ बढ़ती जियो 4जी के कॉस्टली प्लांस के जरिए इंडायरेक्ट 5जी का चार्ज कर रही होती है। जियो के कारण एयरटेल और वीआई को भी भारी नुकसान होता है, लेकिन कर्ज लेकर ये दोनों कंपनियां मार्केट में सस्टेंन कर जाती हैं। आज पहले नंबर पर जियो, दूसरे पर एयरटेल, तीसरे पर वीआई और चौथे नंबर पर बीएसएनएल है, जो 22 साल पहले नंबर वन हुआ करती थी।

सबसे बड़ी कंपनी सबसे नीचे

देखिए रिलायंस जियो, एयरटेल, वीआई के न्यूनतम रिचार्ज प्लान 249 रुपये 28 दिन का है, जबकि बीएसएनएल 94 रुपये में महीना दे रहा है। आज की डेट में जियो के पास 47.24 करोड़, एयरटेल के 37.90 करोड़, वीआई के पास 21.90 करोड़ और चौथे नंबर पर बीएसएनएल के पास 8.90 करोड़ कस्टमर हैं। जियो आज एक रिचार्ज पर 10 रुपये भी बढ़ाती है तो उसे पौने पांच सौ करोड़ का रैवेन्यू होता है, जबकि सेम प्लान से बीएसएनएल को केवल 180 करोड़ का रैवेन्यू बढ़ता है.... 

150 करोड़ की आबादी वाले देश में देश की एकमात्र गवर्नमेंट कंपनी के पास 9 करोड़ से कम कस्टमर इसकी वास्ट सिचुवेशन दिखाती है। सवाल यह उठता है कि आखिर बीएसएनएल के साथ ऐसा क्या हुआ जो अपने अस्तित्व के लिए लड़ना पड़ रहा है? बीएसएनएल की 2008 में मार्केट वैल्यू 12 लाख करोड़ रुपये होती है। तब एयरटेल या दूसरी कंपनियां उसके आसपास भी नहीं होती हैं। 

आज रिलायंस जियो की मार्केट वैल्यू मोर देन 11 लाख करोड़ रुपये है। बीएसएनएल के पास देशभर में बहुत बड़ा लैंडबेस है, जिसकी बाज़ार में कीमत एक लाख करोड़ के आसपास है, कंपनी के पास 20,000 करोड़ मूल्य के टॉवर हैं और 64,000 करोड़ रुपए के ऑप्टिकल फाइबर्स हैं, जिनकी लंबाई करीब 8 लाख किलोमीटर है।

क्या कर रही है बीएसएनएल?

देखिए किसी भी कंपनी के टॉप करने या डूबने के कई रीजन होते हैं, और इन्हीं में छिपा बीएसएनएल की बर्बादी का कारण। कश्मीर से कन्याकुमारी और जैसलमेर से मणिपुर तक बराबर सर्विस देने वाली बीएसएनएल वन एण्ड ओनली गवर्नमेंट कंपनी है। उसको जो भी डिसिजन करने होते हैं, उसके लिए गवर्नमेंट से परमिशन लेनी होती है। जबकि जियो, एयरटेल, वीआई जैसी कंपनी अपने बोर्ड में मिनटों में फैसला करती हैं। 

नई स्कीम लॉन्च करनी हो या इंवेस्टमेंट के डिसिजन करने हो तो बीएसएनएल हमेशा गवर्मेंट की ओर देखती है। जब 2010 में सारी टेलीकॉम कंपनियां 3जी के लिए स्पेक्ट्रम खरीद रही होती हैं, तब बीएसएनएल को इसमें शामिल होने की अनुमति ही नहीं मिलती है। बाद में उसे अपना पूरा फंड लगाकर स्पेक्ट्रम खरीदने पड़ते हैं। इसी तरह से 4जी की बोली लग रही होती है, तब भी बीएसएनएल को परमिशन नहीं मिलती है। 

आज काफी समय बाद टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टीसीएस को बीएसएनएल के 4जी टावर का टेंडर दिया गया है। दूसरी कंपनियां 5जी की सेवाएं दे रही हैं, तो बीएसएनएल 4जी टावर इंस्टॉल करने में लगी है। जब तक प्राइवेट कंपनियां 5जी पर चली जाएंगी, तब तक बीएसएनएल 5जी तक पहुंच पाएगी।

अपनों ने लूट ली बीएसएनएल!

देखिए होता क्या है कि गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स में ऐसे कई अफसर रेड स्ट्रिप फोबिया के शिकार होते हैं, जो डायरेक्ट—इनडायरेक्ट करप्शन कर प्राइवेट कंपनियों को प्रॉफिट देने का काम करते हैं। होता क्या है कि जब बीएसएनएल को 3जी और 4जी स्पेक्ट्रम परचेज करने का टाइम होता है, तब इसकी फाइल रेड स्ट्रिप की शिकार हो जाती है। 

टॉप अधिकारियों की टेबल से फाइल निकल नहीं पाती है। वहां से निकलती है तो मिनिस्ट्री से अप्रूवल नहीं मिलती है। इतने में स्पेक्ट्रम की नीलामी हो जाती है। और ये सब कोई अनजाने में नहीं होता है, बल्कि एक विशेष प्रकार के अलाइंस से किया जाता है। 

होता क्या है कि एक टॉप अधिकारी जब 55—56 साल का होता है, चार साल बाद उसे रिटायर होना है, उसको 80 हजार रुपये सैलरी मिल रही होती है। उसके पास डिसिजन पावर है कि स्पेक्ट्रम परचेज की फाइल को टाइम पर मिनिस्ट्री अप्रूवल के लिए भेजना है, लेकिन इसी दौरान एक प्राइवेट ऑपरेटर का एजेंट आता है, उसे फाइल को डिले करने के लिए 15 करोड़ की रिश्वत देता है। 

इसके बाद अधिकारी सडनली अर्जेंट काम के बहाने छुट्टी पर चला जाता है। उसके बिना फाइल आगे नहीं बढ़ सकती, और जब वापस लौटता है, तब उसे नियमों में उलझा देता है। ऐलिगेशन से बचने के लिए गवर्नमेंट को लेटर लिखे जाते हैं, जब तक गवर्नमेंट की नींद खुलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

आप खुद कैलकुलेट कीजिए कि जिस अधिकारी को 80 हजार रुपये मासिक मिल रहा है, उसको 15 करोड़ कुछ नहीं करने के मिल जाते हैं, उसको कहीं पर साइन नहीं करना है कि कल को करप्शन के चार्जेज लगें, तब उसे क्या दिक्कत होगी? देखा जाए तो उसे इतना पैसा सैलरी के रुप में 1875 महीनों में, यानी 156 ईयर्स में मिलेगा। आपको भी पता है कितने गवर्नेमेंट असफर राजा हरिश्चंद्र हैं?

इन डाइरेक्ट करप्शन का खेल

आपने अक्सर सुना या देखा होगा कि गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में फाइल महीनों तक पड़ी रहती है, लेकिन जैसे ही ओफिसर की जेब गर्म होती है, फाइल उसी दिन गोली की स्पीड से दौड़ने लगती है। बीएसएनएल के साथ ही बहुत कुछ ऐसा ही हुआ होगा। बीएसएनएल 2 दशक पहले जब देश की नंबर एक कंपनी थी, तब उसके लैंडलाइन फोन के लिए लंबी लाइन लगती थीं। जब किसी को कनेक्शन मिल जाता था, तो उसकी सोसाइटी में वैल्यू काफी बढ़ जाती थी। 

जब इस कनेक्शन में कोई गड़बड़ी हो और बार—बार कंपलेंड करने के बाद भी कई दिनों तक लाइन ठीक नहीं की जाए, तब उसका इम्पोर्टेंस क्या रह जाता है? जो पहले एग्जांपल दिया गया है, वही यहां पर लागू होता है। ईयर 2010 के आसपास प्राइवेट कंपनियां फिक्स फोन लेकर मार्केट में आई, लेकिन उनके लिए मार्केट में स्पेस नहीं था। उनको पता था कि जब तक बीएसएनएल के लैंडलाइन फोन हैं, तब तक उनके फोन कौन लगाएगा?

इसलिए रास्ता निकाला जाता है और बीएसएनएल के ही जिम्मेदारों को टारगेट दे दिया जाता है। प्राइवेट कंपनियों ने बीएसएनएल के कई अधिकारियों को काम नहीं करने के बदले रिश्वत दी जाती है। रेड स्ट्रिप कल्चर के ऑफिसर के लिए काम नहीं करना कौनसी बड़ी बात होती है। काम रोकना ही तो होता है। 

एक दशक तक बीएसएनएल के साथ भी ऐसा ही होता है, कस्टमर परेशान होते रहे और कनेक्शन कटते रहे। प्राइवेट कंपनियों ने टाइम टू टाइम सर्विस दी और कुछ ही बरसों में बीएसएनएल का स्थान प्राइवेट ऑपरेटर्स ने ले लिया। बीएसएनएल की सर्विस अपग्रेड नहीं की गई। प्राइवेट कंपनियों के ट्रेप में फंसे अधिकारियों के कारण कंपनी को बहुत बड़ा इकॉनोमिक लॉस हुआ।

वास्तव में देखा जाए तो उसे सबसे अधिक Loss 2005 से 2012 के बीच हुआ। किसी भी बिजनेस की नीतियों का रिजल्ट लॉंग टाइम में आता है। पहले बीएसएनएल बड़े प्रॉफिट में थी, उसे मार्केट से पैसा मिल रहा था, तो एक्सपेंडीचर और वर्कर्स की सैलरी में कोई प्रॉब्लम नहीं थी, लेकिन जब उसका मार्केट कम हुआ तो इनकम भी कम हो गई और प्रॉफिट घटता चला गया। ईयर 2010 के आसपास कंपनी को पहला लॉस शुरू हुआ, जिसका एक दशक तक मेजर इम्पेक्ट रहा। बीएसएनएल बचाने के लिए गवर्नमेंट ने तीन बार में 2 लाख करोड़ से ज्यादा की हेल्प की, लेकिन उसके बाद भी कंपनी उभर नहीं पा रही है।

कस्टमर फिर से बीएसएनएल को चुनेंगे?

कुछ टाइम पहले ही बीएसएनएल ने अपने 4जी टावर इंस्टॉल करने के लिए 15 हजार करोड़ का पहला टेंडर टीसीएस को दिया है। इसके बाद 5जी अपग्रेडेशन के लिए अलग से 15 हजार करोड़ का वर्क ऑर्डर दिया जाएगा। हाल ही में सेंट्रल इंफॉर्मेशन मिनिस्ट्री ने दावा किया है कि अगले दो—तीन साल में बीएसएनएल को फिर से उसी स्थिति में पहुंचा दिया जाएगा, जहां 2002 में थी। कंपनी ने नेक्सट थ्री ईयर्स में दोगुने कस्टमर जोड़ने का टारगेट रखा है। 

मोर देन आधे वर्कर्स वीआरएस ले चुके हैं, जिसके कारण कंपनी के ऊपर अब सैलरी की लाइबेलिटी कम है और मोस्टली काम प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों से करवाया जा रहा है, जिसके कारण वर्किंग टाइम पर हो रही है और सर्विस में भी सब टेंडरिंग की जा रही है। पिछले दिनों जियो ने 12 से 27 परसेंट, एयरटेल ने 11 से 21 परसेंट और वीआई ने 10 से 24 परसेंट टैरिफ बढ़ाया है। बीएसएनएल के पास आज भी इन तीनों कंपनियों से 60—70 परसेंट तक लॉ कॉस्ट प्लान हैं। 

इसके चलते सोशल मीडिया पर मोबाइल यूजर फिर से बीएसएनएल से जुड़ने का दावा कर रहे हैं। मीम्स के थ्रू कस्टमर बीएसएनएल में पोर्ट करने की बातें कर रहे हैं। देखिए मीम्स जो बनते हैं, वो कहीं न कहीं देश के लोगों की भावनाओं का प्रतिबिंब होते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या लॉ कॉस्ट प्लांस के लिए कस्टमर एक बार फिर से बीएसएनएल से जुड़ने लगेंगे? 

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