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तीन नए कानून क्या हैं?



सेंटर गवर्नमेंट ने तीन नए कानून बनाए हैं, जिनको एक जुलाई से लागू कर दिया गया है। आईपीसी की जगह बीएनएस, सीआरपीसी की जगह बीएनएसएस और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह बीएसएस ने ले ली है। इन तीनों कानूनों के लागू होने के बाद आजाद भारत में पहली बार लीगल नजरिए से बहुत कुछ बदलने जा रहा है। गवर्मेंट ने दावा किया है कि ये तीनों कानून लोगों की जरूरतों के अनुरूप टाइम फ्रेम रीयल जस्टिस के लिए बनाए गए हैं। पनिशमेंट की जगह जस्टिस के लिए लॉ बनाए गए हैं।

—कैसे बने कानून?

मुगल काल के बाद ब्रिटिशर्स जब भारत पर काबिज हो गए थे, तब तक यहां के लिए लिखित में कानून नहीं थे। 1857 की क्रांति के बाद फर्स्ट टाइम ब्रिटिशर्स को लगा कि अब इंडिया पर रुल करना कठिन हो जाएगा, तब उन्होंने पहली बार यहां के अलग से लॉज बनाने का फैसला किया। इसकी शुरुआत करीब 30 साल पहले 1833 में ही हो गई थी, तब ब्रिटिश सरकार ने इंडिया पर रुल करने के लिए कानून बनाने का जिम्मा लॉड मैकाले को लॉ कमिश्नर बनाकर दिया था। मैकॉले भारत को हमेशा मानसिक गुलाम बनाने के लिए इससे पहले एजुकेशन पॉलिसी बना चुका था, जिसका वीडियो मैंने अलग से बना दिया है, आप चाहें तो उसको चैनल पर देख सकते हैं। तो ब्रिटिश गवर्नमेंट के कहने पर मैकाले ने 1837 में आईपीसी का ड्राफ्ट तैयार किया गया, लेकिन ड्राफ्ट को कानून बनाकर लागू नहीं किया गया। इंडिया की डायवर्सिटी, कास्ट—रिलीजन, रुलर्स, सामंतों के कारण ब्रिटिशर्स तय नहीं कर पाए कि कहां पर कौन सा कानून लागू किया जाए। 

इसलिए अगले 30 साल तक आईपीसी का ड्राफ्ट बनकर पड़ा रहा। जब 1857 को इंडिया की आजादी की जंग हुई, तब ब्रिटिशर्स को लगा कि भारत पर लंबे समय तक शासन करने के लिए एक कानून की जरूरत होगी। इसे देखते हुए ब्रिटिश पार्लियामेंट में 6 अक्टूबर 1860 को इंडियन पीनल कोड, यानी आईपीसी को पास कर 1 जनवरी 1864 को लागू कर दिया गया, जिसमें 23 चेप्टर और 511 आर्टिकल थे। इसके कुछ ईयर बाद इंडियन एविडेंस एक्ट 15 मार्च 1872 को ब्रिटिश पार्लियामेंट में पास किया गया था, जिस 1 सितंबर 1872 को लागू किया गया। ब्रिटिशर्स जब तक इंडिया पर रुल कर रहे थे, तब तक ये ही दो कानून थे, आज हम देखते हैं कि भारत में तीन कानून हैं। 

—सीआरपीसी भारत की संसद ने बनाया

तीसरा लॉ सीआरपीसी भारत की आजादी के बाद बना था, जिसे हमारी पार्लियामेंट ने 1973 में पास किया और 1 अप्रैल 1974 से लागू किया गया। इस तरह से देश में ये तीन लॉज काम कर रहे थे, लेकिन ये काफी पुराने हो चुके थे। टाइम पर जजमेंट एण्ड जस्टिस के लिए 11 अगस्त 2023 को होम मिनिस्टर अमित शाह ने पार्लियामेंट में भारतीय न्याय संहिता बीएनएस, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता बीएनएसएस और भारतीय साक्ष्य संहिता बीएसएस के रुप में 3 नए लॉ पेश किए, जिनको लंबी डिबेट के बाद पास हुए और एक जुलाई से देशभर में लागू हो गए। बीएनएस, बीएनएसएस और बीएसएस के आने से ब्रिटिशर्स के बनाए दोनों कानून और 1974 में बना सीआरपीसी खत्म हो गया है। इनका उपयोग 1 जुलाई से पहले के क्राइम के लिए ही किया जा सकेगा।

—क्या नुकसान था पुराने कानूनों से?

आपने अक्सर देखा होगा पॉलिटिकल प्रेशर के कारण कई सीरियस केस भी कोर्ट से रिटर्न हो जाते हैं, लेकिन एक जुलाई से तीन नए लॉज लागू होने के बाद ऐसा नहीं होगा। आईपीसी में धाराएं तो बहुत हैं, लेकिन विक्टिम को जस्टिस के लिए लंबी जर्नी तय करनी पड़ती है। केस दर्ज होना कठिन था, एफआईआर की आती थीं कि पुलिस थानों में विक्टिम को ही डराया जाता है, उनको बिना बताए ही पुलिस मामले को रफा—दफा कर देती थी। कई केसेज में पुलिस के पास एविडेंस की कमी के चलते अक्सर कोर्ट में अपमान का सामना करवा पड़ता था, जिसके कारण पुलिस भी मामलों को कोर्ट में चालान पेश करने के बजाए खुद के स्तर पर ही निपटाने का प्रयास करती थी। करप्शन, प्रेशर, पुलिस की पार्शलिटी, डर और मनमानी के कारण लोग थानों में जाने से ड़रते हैं। लंबे समय तक सुनवाई और तारीख पर तारीख पड़ने के कारण कई बार गरीब को न्याय नहीं मिलता था। 

—स्टाफ की कमी से जस्टिस नहीं मिलता

इंडिया में ज्यूडिशरी अभी तक भी क्राइम जस्टिस पॉलिसी, मनी पॉवर, मैन पॉवर और फैसिलिटी की कमी से ग्रस्त है। जजेज, गवर्नमेंट एडवोकेट्स, पुलिस मैन, फोरेंसिक स्पेशलिस्ट और लीगल हेल्प करने वाले एडवोकेट्स की कमी है। 150 करोड़ की आबादी वाले देश में एक मिलियन लोगों पर केवल 21 न्यायाधीश हैं। हाई कोर्ट में जजेज के करीब 400 पद रिक्त हैं और निचली अदालतों में जजों के 35% पद खाली पड़े हैं।

इंवेस्टिगेशन एजेंसियां अक्सर through, impartial and professional investigation करने में विफल रहती हैं। पॉलिटिकल प्रेशर, क्रप्शन और लाइबलटीज नहीं होने के कारण विक्टिम को रीयल टाइम एण्ड कम्पलीट जस्टिस नहीं मिलता है। criminal justice system पर अक्सर एक्यूज्ड, विक्टिम्स, विटनिश के ह्यमनराइ्स के उल्लंघन करने का आरोप लगाया जाता है। पुलिस कस्टडी में टॉर्चर, कस्टडी में मर्डर, फेक अरेस्ट, इलीगल कस्टडी, फोर्सड कन्फेशन, unfair trial and punishment के एग्जांपल आए दिन मीडिया की न्यूज बनते हैं। इन तीनों लॉज के बाद इसमें कमी आने की उम्मीद की जा रही है।

इंडिया में जस्टिस सिस्टम 1860 में ब्रिटिशर्स द्वारा बनाए लॉज पर आधारित था। ये कानून 140 साल पुराने हैं, जो प्रजेंट टाइम के अकॉर्डिंग नहीं हैं। ये कानून साइबर क्राइम, टेरेरिज्म, Organized crime, मॉब लिंचिंग जैसे क्राइम के अनुरुप नहीं थे। एआरसी ने पाया है कि भारत में पुलिस और जनता रिलेशन ठीक नहीं हैं, क्योंकि टाइम पर जस्टिस नहीं मिलने और थानों में लोगों के साथ क्रिमिनल्स की तरह बर्ताव करने से लोग पुलिस को क्रप्ट, अनस्किल्ड और अनरिस्पांसिव मानते हैं। नेशनल जस्टिस डेटा ग्रिड के अनुसार अभी ज्यूडिशरी में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी शमिल है। कहते हैं 'लेट जस्टिस इज अनजस्टिस'.... जस्टिस में देरी होती है, फास्ट हियरिंग के राइट का उल्लंघन होता है, जिससे ज्यूडिशरी पर से जनता को भरोसा कम होता है।

—अब क्या बदलाव होगा?

देखिए इन तीन नए कानूनों में ऐसे कई प्रोविजन हैं, जो रीयल जस्टिस का काम करते हैं। कोर्ट में चल रहे क्रिमिनल केस को वापस लेने के लिए विक्टिम को कोर्ट में अपनी बात रखने का मौका दिया जाएगा। देश का कोई भी कोर्ट विक्टिम को सुनवाई का अवसर दिए बिना केस वापस लेने की अनुमति नहीं देगा।

टाइम फ्रेस जस्टिस के लिए पुलिस व कोर्ट को टाइम तय किया है। इनमें पहली बार 6 छोटे क्राइम में सजा के तौर पर सोशल सर्विस की पेनल्टी देने का प्रोविजन किया गया है। पुलिस केस को डीपली इन्वेस्टिगेट कर सके, इसके लिए टेक्नोलॉजी को लीगल किया गया है। डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस को बीएसएस में शामिल किया गया है। साथ ही ई-एफआईआर और जीरो एफआईआर शुरू की गई है। 

इंडिया कई डिकेड से टेरेरिज्म का दर्द झेल रहा है, लेकिन आईपीसी में टेरेरिज्म और ग्रुप क्राइम को डिफाइन नहीं किया गया था, अब इन कानूनों में इनको अलग से धाराओं में डिफाइन कर पेनल्टी का प्रोविजन किया गया है। इन दिनों खालिस्तानियों द्वारा इंडिया में क्राइम करने के कई मामले सामने आए हैं। अब फोरेन में रहने वाला कोई व्यक्ति यदि कोई क्राइम कराता है तो वह भी क्रिमिनल बनेगा, इंडियन गवर्नमेंट की अपील पर संबंधित देश में ऐसे क्रिमिनल की प्रॉपर्टी जब्त की जाएगी। क्राइम में किसी माइनर को शामिल करने वाले को 3 से 10 वर्ष तक की सजा मिलेगी। 

इंडिया में मॉल लिंचिंग एक बड़ी प्रॉब्लम बन गई थी, जिससे निपटने के लिए नए लॉज में प्रोविजन किया गया है। पांच या उससे अधिक लोगों की मॉब यदि वंश, कास्ट, रिलिजन, लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति की हत्या करते हैं तो क्रिमिनल को लाइफ पेनल्टी से डेथ पेनल्टी का प्रोविजन किया गया है। ब्रिटिशर्स के टाइम इंडियन्स को सजा देने के लिए चल रहे राजद्रोह की जगह देशद्रोह की पेनल्टी तय की गई है। देश की संप्रभुता, एकता व अखंडता को खतरे में डालने वाले को धारा बीएनएस के आर्टिकल 152 के तहत क्राइम है।  

छोटे अपराध जिनमें तीन वर्ष से कम की सजा है, उनमें आरोपित यदि 60 वर्ष से अधिक एज अथवा गंभीर बीमार है, उसकी गिरफ्तारी के लिए डीएसपी या एसपी से अनुमति लेनी होगी। सीरियस क्राइम पर घटनास्थल पर बिना विचार करे जीरो एफआईआर दर्ज होगी। इसके साथ ही कहीं पर भी बैठे व्यक्ति को ई-एफआईआर कराने राइट दिया गया है, ऐसे व्यक्ति को 3 दिन के भीतर एफआईआर पर सिग्नेचर करने होंगे। रेप व एसिड अटैक के मामले में विक्टिम का स्टेटमेंट लेडीज मजिस्ट्रेट लेगी। लेडीज मजिस्ट्रेट नहीं होने पर जेंट्स मजिस्ट्रेट किसी लेडी ऑफिसर के सामने स्टेटमेंट दर्ज करेगा।

इन तीनों लॉज के लागू होने से कई चेंजेज आएंगे। बीएनएस में आतंकवाद और अलगाववाद, गवर्नमेंट के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह, देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसे क्राइम को डिफाइन किया गया है। जिनका पहले के कानूनों में प्रोविजन नहीं था। नया कानून राजद्रोह की जगह देशद्रोह का प्रोविजन किया गया है। 

शादी का झूठा वादा करके महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने पर 10 साल की कैद होगी, जो कि अब तक धोखाधड़ी और शोषण का एक सामान्य मामला दर्ज होता था। छोटे—मोटे 6 अपराधों की सजा के रूप में सोशल सर्विस करनी होगी, जिससे क्रिमिनल्स में सुधार लाने तथा जेलों में भीड़भाड़ कम करने में मदद मिल सकती है। चालान पेश करने के लिए अधिकतम 180 दिन की सीमा तय की गई है, जिससे केस के प्रोसेस में तेजी आएगी।

इसी तरह से से बीएसएस में अपील और स्टेटमेंट की रिकॉर्डिंग के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाएगा। कोर्ट में कार्यवाही के लिए वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति होगी। रेप क्राइम से बचे विक्टिम के स्टेटमेंट की वीडियो रिकॉर्डिंग को अनिवार्य किया गया है, जिससे एविडेंस को सुरक्षित रखने और हेराफेरी को रोकने में मदद मिलेगी। सीआरपीसी की धारा 41ए को धारा 35 नाम दिया गया है। इस परिवर्तन में एक एडिशनल सिक्योरिटी प्रोविजन है, जिसके तहत कम से कम डीएसपी के पद के अधिकारी की पूर्व अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है। 

पुलिस सात वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले मामले को वापस लेने से पहले पीड़ित से परामर्श करेगी, ताकि पुलिस की ओर से गड़बड़ नहीं की जा सके। भगोड़े अपराधियों पर कोर्ट को केस फाइल करने तथा पेनल्टी का प्रोविजन किया गया, जिसके अभाव में क्राइम करके क्रिमिनल भारत से भागकर बच जाते थे। 

मजिस्ट्रेट्स को ईमेल, एसएमएस, व्हाट्सएप मैसेज जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के आधार पर क्राइम का संज्ञान लेने का अधिकार दिया गया है, जिससे एविडेंस जुटाने और उसे वेरीफाई करने में सुविधा होगी। डेथ पेनल्टी के मामलों में मर्सी पिटिशन गवर्नर के पास 30 दिन के भीतर तथा प्रेसिडेंट के पास 60 दिनों लगानी होगी। राष्ट्रपति के निर्णय के विरुद्ध किसी भी कोर्ट में कोई पिटीशन नहीं जाएगी।

— इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस की इंपोर्टेंस बढ़ेगी

इसी तरह से बीएसएस में प्रोविजन किया गया है कि इलेक्ट्रॉनिक एविडेंस को किसी भी इक्युपमेंट या टेक्नोलॉजी से प्राप्त या भेजी इंफॉर्मेशन के रूप में डिफाइन किया गया है, जिसे किसी भी मीडियम से सेव या रिस्टोर किया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की एक्सेप्टेबिलिटी के लिए स्पेसिक क्राईट एरिया निर्धारित किया है, जैसे ऑथेंटिसिटी, अखंडता, रिलायबिलिटी जैसे प्रोविजन हैं, जिससे डिजिटल डेटा के मिसयूज या छेड़छाड़ को रोका जा सकेगा। अब तक क्या होता था कि किसी मर्डर जैसे मामले में भी फोटो प्रिंट का इस्तेमाल किया जाता था।

डीएनए एविडेंस जैसे एग्रीमेंट, कस्टडी के लिए स्पेशल प्रोविजन किए गए हैं, जिससे ऑर्गन एविडेंस को एक्जेक्ट और रिलायबल बनाया जा सकेगा। क्राइम होने पर जरूरत के अनुसार एफएसएल की टीम को पुलिस अपनी मर्जी से बुलाया करती थी, लेकिन अब 7 साल से ऊपर की सजा वाले सभी केसेज में पुलिस को एफएसएल टीम को मौके पर बुलानी होगा। इससे पुलिस की एफएसएल पर निर्भरता 10 गुणा तक बढ़ जाएगी। केंद्र सरकार ने कहा है कि इन कानूनों के आने से देश में जस्टिस इन 3 ईयर लागू हो जाएगा, किसी भी केस में 3 साल के भीतर सजा हो जाएगी। इन तीनों कानूनों के लागू होने के बाद कई तरह की समस्या ज्यूडीशरी को भी झेलनी पड़ेगी। 

—नए कानून कैसे बने?

अब सवाल यह उठता है कि आखिर इस तरह से एक साथ तीनों कानूनों को बदलने का कारण क्या है? देखिए इन लॉज के आने की स्टोरी करीब 30 साल पहले ही शुरू हो गई थी। पॉलिटिक्स के क्रिमिनलाइजेशन, पॉलिटिशियंस, ब्यूरोक्रेट्स, क्रिमिनल्स के बीच अलाइंस की बढ़ती प्रॉब्लम से निपटने के लिए 1993 में वोहरा कमेटी बनाई गई थी। इसके 20 साल बाद 2003 में मलिमथ कमेटी बनी, जिसमें छोटे क्राइम के लिए सोशल सर्विस पेनल्टी की सिफारिश की गई थी। उ

सी के अनुसार criminal justice system में सुधार और छोटे-मोटे उल्लंघनों के लिए 'social welfare crime' नामक क्राइम्स की एक नई पेनल्टी शुरू की गई है, जिनसे जुर्माना लगाकर या सोशल सर्विस करके निपटा जा सकता है। मलिमथ कमेटी के चार साल बाद 2007 में माधव मेनन कमेटी बनी। इस कमेटी का गठन क्रिमिनल जस्टिस पर नेशनल पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए किया गया था। इसके एक साल पहले 2006 में पुलिस सुधार पर सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस बल की फ्रीडम वर्किंग, लाइबेलिटी तय करने को कहा गया।

—एफएसएल की भूमिका बड़ी होगी

एक जुलाई से देश में पहली बार बहुत कुछ बदल गया है। इसलिए ज्यूडिशरी से लेकर एडवोकेट्स, पुलिस से लेकर आमजन को इनके अकोर्डिंग ट्रेंड करने की जरूरत है। टाइम पर एविडेंस जुटाकर उसकी रिपोर्ट देने के कारण सबसे अहम रोल एफएसएल का रहने वाला है, जिसके लिए मैन पॉवर से लेकर इक्यूपमेंट्स की भी बहुत आवश्यकता है। 

राज्य सरकारें इसकी पूर्ति करने के लिए मैन पॉवर नहीं दे रही हैं। अब एफएसएल की लायबिलिटी 10 गुणा तक बढ़ जाएगी, जिसके लिए बहुत संसाधन चाहिए। डिमांड के मुकाबले एफएसएल के पास काफी कम संसाधन हैं। टाइम फ्रेस जस्टिस का कानून तो आ गया, लेकिन इन्वेस्टीगेशन में कमी रहने के कारण अब ज्यूडिशरी और पुलिस के बीच रिलेशन खराब होने की संभावना बढ़ जाएगी। 

इन न्यू लॉज के आने से आमजन को बहुत प्रॉफिट होने की संभावना है। असल में देखा जाए तो अब तक ज्यूडिशरी पर लोगों का भरोसा इसलिए कम हो रहा था, क्योंकि जस्टिस में काफी टाइम लग रहा था। पुलिस थानों में लोग चक्कर काटते थे, लेकिन एफआईआर तक दर्ज कराने में पसीने छूट जाते थे। 

एविडेंस जुटाने में पुलिस को दिक्कतें होती थीं और जब केस कोर्ट में चला जाता था, तब उसका फैसला कब होगा, इसका कोई टाइम निर्धारित नहीं था। परिणाम यह होता था कि लोगों का सिस्टम पर से विश्वास खत्म हो गया था। अब जनता को एक उम्मीद जगाई गई है, देखने वाली बात यह होगी कि नए लॉज से जनता को फायदा मिलता है, या पहले वाला डर्रा ही चलता रहेगा।

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