तीसरी बार मोदी सरकार का असली मंत्र क्या है?



चुनाव के परिणाम से पहले एक्जिट पोल बहुत कुछ बता देते हैं। देश में चुनाव समाप्त होते ही एक घंटे के भीतर सभी एजेंसियों और टीवी चैनल्स ने अपने—अपने एग्जिट पोल जारी कर दिए। सभी के पोल को मिलाकर औसत निकाला जाए तो भाजपा को 330 और एनडीए को करीब 375 सीटें मिल रही हैं। हालांकि, भाजपा के 400 पार के दावे से 25—30 सीट कम हैं, लेकिन विपक्ष के द्वारा जिस तरह से की बातें कही जा रही थीं, उसके मुकाबले काफी बढ़िया स्थिति में हैं। मैं इस वीडियो में सभी राज्यों के परिणाम के बारे में बात करूंगा और यह बताने का प्रयास करुंगा कि किस वजह से भाजपा और एनडीए ने इतनी बढ़त हासिल की है।

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सबसे पहले राजस्थान की बात करते हैं। राजस्थान में भाजपा लगातार तीसरी बार सभी 25 सीटें जीतने का दावा करती रही है, लेकिन हकीकत में इस बार कुछ सीटों को नुकसान हो सकता है। मोटे तौर पर देखा जाए तो भाजपा को 2 से लेकर 7 सीटों तक का नुकसान बताया गया है। सबसे करीबी पोल बताने वाले चैनल ने भी भाजपा को 5 से लेकर 7 सीटों का नुकसान बताया है। भाजपा को जिन सीटों पर हार की संभावना है, उनमें दौसा, झुंझुनूं, बाड़मेर, चूरू, भरतपुर, सीकर सीट पर कड़ा मुकाबला बताया गया है। यानी राजस्थान में भाजपा की हैट्रिक लगने की संभावना इस बार बेहद कठिन है। 4 जून को परिणाम आएगा तब पता चलेगा कि हुआ क्या है। हालांकि, भाजपा के इन सीटों में हार के कारणों में जातिगत और क्षेत्रवार रहा है। दौसा में किरोड़ी लाल मीणा को मीणा समाज ने साथ नहीं दिया, तो झुंझुनूं में भाजपा का उम्मीदवार कांग्रेस प्रत्याशी से कमजोर साबित हुआ, यहां पर किसान आंदोलन, अग्निवीर, महिला पहलवान का मुद्दा भाजपा के लिए घातक साबित हुए हैं। बाड़मेर में जातिगत लड़ाई ने भाजपा को नुकसान किया है। इसी तरह से चूरू सीट पर भी किसान बनाम सामंतवाद ने भाजपा की मुश्किलें की हैं। भरतपुर में जाट आरक्षण का मामला भाजपा को भारी पड़ा है। एक लाइन में कहें तो राजस्थान में जाट, गुर्जर, मीणा समाज ने ही भाजपा को हैट्रिक से रोका है।

दूसरे राज्यों में बात करें तो उत्तर प्रदेश में भाजपा इस बार पहले के मुकाबले 5 से 8 सीट अधिक जीत रही है। यानी चुनाव के दौरान विपक्ष के द्वारा चुनाव बाद योगी को हटाने जो प्रचार किया गया था, वो यहां पर पूरी तरह से हवा हो गया है। भाजपा ने 2019 में 60 सीट जीती थीं, यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से इस बार आंकड़ा 65 को क्रॉस कर रहा है। योगी को हटाना इतना आसान नहीं है, यह बात यूपी की जनता भी जानती है। कांग्रेस, सपा, आप समेत तमाम दलों को मिलाकर यहां अधिकतम 13 सीटों पर जीत मिल सकती है। यूपी में सुशासन और विकास ने मोदी का भरपूर साथ दिया है। यही राज्य है, जो किसी भी सरकार को बनाने या बिगाड़ने का माद्दा रखता है।  

यूपी के बाद महाराष्ट्र में सर्वाधिक 48 लोकसभा सीटें हैं, जहां पर भाजपा इस बार शिवसेना शिदें के साथ चुनाव लड़ी है, जबकि सामने कांग्रेस, राकांपा, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना थीं। यहां पर एनडीए को करीब 29 सीट मिल सकती है, जबकि विपक्ष को 19 सीटों तक जीत मिल सकती है। महाराष्ट्र में विपक्ष के पास मुद्दों की कमी और बिखराव का होना बड़ा कारण माना जा रहा है। भाजपा की सरकार और ऊपर से केंद्र सरकार के कामकाज के दम पर एनडीए को बढ़त मिली है। तीसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल है, जहां कुल 42 सीटें हैं। इनमें से भाजपा को 23 सीट पर जीत बताई गई है। टीएमसी ने यहां गठबंधन नहीं किया था, उसको 18 सीट और एक पर कांग्रेस को जीत मिल सकती है। पश्चिमी बंगाल में भाजपा और टीएमसी के बीच सीधा मुकाबला रहा है। यहां पर बांग्लादेशी मुस्लिम, रोहिंग्या और संदेशखाली की घटना ने टीएमसी को नुकसान किया है। लोकसभा सीटों की संख्या के मामले में बिहार 40 सीटों के साथ चौथे स्थान पर है। जहां भाजपा को 33 और विपक्ष को 7 सीट मिल सकती है। भाजपा के साथ नीतीश कुमार की जेडीयू थी, जबकि विपक्ष में कांग्रेस, आरजेडी, सपा जैसे दल थे। बिहार में भी मोदी के नाम पर वोट मिले हैं।

मध्य प्रदेश एक बार फिर से 29 में से 28 सीट भाजपा को दे रहा है। यहां पर विपक्ष के पास करने को कुछ है ही नहीं। यहां बीच के डेढ साल को छोड़ दें तो लंबे समय से भाजपा की सरकारें हैं। गुजरात 26 और छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटों पर भाजपा जीत रही है। ओडिशा में भाजपा को बहुत बड़ी बढ़त मिल रही है, यहां की 21 में से 16 भाजपा को और 5 सीट सत्ताधारी बीजेडी को मिल सकती है। सीएम नवीन पटनायक की बीजेडी लोकसभा में बाहर से मोदी सरकार को समर्थन देती है। आंध्र प्रदेश में भी एनडीए को 25 में से 20 सीट मिल रही है। आंध्रा में भाजपा ने चंद्रबाबू नायडू के साथ अलाइंस किया था, जबकि सामने सत्ताधारी वाईएसआर पार्टी है। नायडू पिछले चुनाव में कांग्रेस के साथ थे, लेकिन उनको कुछ हासिल नहीं हुआ तो इस बार भाजपा के साथ आ गए। अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी चंद्रबाबू भाजपा के साथ थे। तमिलनाडु में भाजपा 39 में से चार सीट जीत सकती है। यहां पर कांग्रेस अलाइंस को 34 सीट मिल सकती है। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन फिर भी कांग्रेस केवल 5 सीटों पर सिमट रही है। यहां की 28 में से भाजपा वाले अलाइंस को 23 सीट मिल रही है। तेलंगाना की 17 में से भाजपा को 10 और कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिल सकती है। भाजपा केरल में भी खाता खोल रही है। यहां की 20 में से 2 सीट भाजपा को, 16 यूडीएफ को और 2 सीट एलडीएफ को मिल सकती है। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में भाजपा को नुकसान हो रहा है। पंजाब की 13 में से 6 कांग्रेस को, 3 भाजपा को और 3 आप को मिल सकती हैं। भाजपा ने पिछली बार 10 सीट जीती थीं। हरियाणा में भाजपा हैट्रिक नहीं लगा पा रही है। यहां पर 10 में से 6 सीट पर भाजपा और 4 पर कांग्रेस जीत सकती है। इसी तरह से दिल्ली की 7 में से 6 भाजपा और एक कांग्रेस जीत सकती है।

करीब पौने चार से से लेकर 400 पार तक जीत के साथ भाजपा वाला एनडीए अलाइंस भले ही लगातार तीसरी बार सरकार बना रहा हो, लेकिन जहां पर किसान आंदोलन, महिला पहलवान आंदोलन और अग्निवीर योजना का असर रहा है, वहां भाजपा को सीट कम मिल रही हैं। वास्तव में देखा जाए तो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान में इन्हीं तीन मुद्दों के कारण भाजपा को नुकसान हो रहा है। इन तीन मुद्दों मे अलावा विपक्ष के पास प्रचार करने के लिए कुछ था भी नहीं, जिसके दम पर वोट हासिल किए जा सकते। इन तीन मामलों ने भी वोट तभी डिसाइड कर दिए थे, जब ये मुद्दे चरम पर थे। अभी चुनाव के दौरान भाजपा को इन मामलों से नुकसान नहीं हुआ है, बल्कि चुनाव प्रचार के दौरान काफी डैमेज कंट्रोल किया गया है। इनके अलावा राजस्थान और हरियाणा में सीएम चेहरे को लेकर भी भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा है।

कमजोरी का विपक्ष को फायदा मिला, लेकिन उतना नहीं मिल पाया, जितना मिलना चाहिए था। कांग्रेस ने भले ही 292 सीटों का दावा किया हो, लेकिन एग्जिट पोल बताता है कि देश को आज भी मोदी पर उतना ही भरोसा है, जितना 2014 में था। मतलब एक उम्मीद के साथ सत्ता में आए मोदी ने देश का भरोसा नहीं तोड़ा है। यही वजह है कि 2014 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनी और 2019 में बड़ी जीत के साथ फिर से पूर्ण बहुमत मिला। इस बार जिस तरह के रुझान मिले हैं, उससे साबित होता है कि मोदी को देश ने प्रचंड बहुमत के साथ तीसरी बार सत्ता में ला दिया है।

मोदी सरकार के कामकाज की बात की जाए तो सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर रहा है। उसके साथ ही धारा 370 का निपटारा और सोने पर सुहागा का काम किया है तीन तलाक, सीएए जैसे कानून तो विदेश में भारत की बढ़ती ताकत मोदी को पहले के मुकाबले अधिक ताकतवर बनाती है। विपक्ष वोटर इस बार अधिक वोकल था, लेकिन मोदी के वोटर ने साइलेंट मोड में अपना वोट दिया और परिणाम का इंतजार करने लगा। इसी कारण विपक्ष को पता ही नहीं चला कि आखिर वो है किस जगह है। ऊपर से विपक्ष के पास ऐसा कोई चमत्कारी चेहरा नहीं है, जो मोदी के सामने खड़ा करके वोट हासिल किया जा सके।

मोदी का चेहरा न केवल देश में टॉप रहा है, बल्कि विदेश में भी मोदी सबसे बड़े ब्रांड हैं। आज दुनिया का कोई भी शक्तिशाली देश भारत की मर्जी के बिना बड़ा फैसला नहीं कर सकता है। लगातार तीन बार लोकतांत्रिक तरीके से जीतकर मोदी ने साबित कर दिया है कि काम के दम पर किसी भी देश की जनता अपने शासक को पसंद कर सकती है। मोदी को मिल रहा समर्थन दुनिया के चीन, उत्तरी कोरिया, जॉर्डन जैसे उन देशों के नेताओं को जरूर देखना चाहिए, जो तानाशाह बनकर राज कर रहे हैं। मोदी ने कहा है कि 4 जून के बाद अगले 6 महीने राजनीतिक रूप से बहुत भयानक परिणाम लेकर आएंगे तो योगी ने दावा किया है कि अगले 6 महीने में पाकिस्तान से पीओके वापस ले लिया जाएगा। पाकिस्तान के बिगड़ते हालात, पीओके में लोगों का भारत के साथ मिलन का आंदोलन और नवाज शरीफ का भारत के साथ समझौता करने की बातें इसी तरह इशारा कर रही है कि मोदी पीओके को लेकर कुछ करने जा रहे हैं। 

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