जयपुर। राजस्थान में भाजपा की 11 लोकसभा सीटों का नुकसान कई नेताओं के लिए गले ही हड्डी बन गया है। ऊपरी तौर पर देखा जाए तो सत्ता और संगठन ने 11 सीटों की हार का जिम्मेदार पार्टी में जारी गुटबाजी को बताया गया है, लेकिन माना जा रहा है कि अंदरखाने कुछ और चर्चाएं भी चल रही हैं, जो कुछ नेताओं के लिए बड़ा सबक हो सकती हैं। दूसरी तरफ भाजपा के कद्दावर नेता देवी सिंह भाटी ने राजस्थान में भाजपा की हार के पीछे पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ को जिम्मेदार बताकर संगठन की पोल भी खोल दी है। भाटी ने जो कहा है, वो वाकई भाजपा के लिए काफी मंथन का विषय है, क्योंकि भाटी जिस कद के नेता हैं उसके अनुसार उनकी बात को हल्के में लेना भविष्य के लिए दुखदाई हो सकता है।
भाटी का कहना कि राठौड़ ने राहुल कस्वां का टिकट कटवा कर राजस्थान के पूरे जाट समाज को नाराज कर दिया और उसका परिणाम कई सीटें खोने के तौर पर सामने आया है। भाटी ने कस्वां को अच्छा काम करने वाला नेता भी बताया है, तो साथ राठौड़ की जिद को भाजपा के लिए भारी बताया है। देवीसिंह भाटी बोले कि राजेंद्र राठौड़ ने राहुल कस्वां का टिकट कटवाकर प्रदेश का जातिगत माहौल खराब किया, जिसका भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा। उन्होंने यह भी दावा किया कि ब्यूरोक्रेसी सरकार के काबू में नहीं, मुख्य सचिव सुधांशु पंत के कमरे के बाहर भाजपा के विधायक लाइन में खड़े रहते हैं, जबकि प्रोटोकॉल के हिसाब से विधायक चाहे तो सीएस को अपने पास बुला सकते हैं।
गौरतलब है कि टिकट कटने के साथ ही राहुल कस्वां के पक्ष में जनसमर्थन जुटना शुरू हो गया था, लेकिन राजस्थान में संगठन की नींद ही नहीं खुली। इसका फायदा कांग्रेस ने उठाया। जिस तरह की सहानुभूति कस्वां के पक्ष में बन रही थी, उसको समय रहते भाजपा समझ पाती तो संभवत: चूरू के अलावा, सीकर, नागौर, बाड़मेर और झुंझुनूं की सीटें भी भाजपा नहीं खोती। किसान बनाम सामंतवाद के मुद्दे को हवा मिलने के बाद भी भाजपा ने राजेंद्र राठौड़ को चुनाव में उतार दिया, जबकि लगातार रिपोर्ट मिल रही थी कि राठौड़ की वजह से कांग्रेस को फायदा हो रहा है। भाटी की बात को यदि भाजपा ने गंभीरता से लिया और सुधार करने का प्रयास किया तो आगे आने वाले पंचायती राज और निकाय चुनाव में फायदा मिल सकता है।
दूसरी तरफ निर्दलीय विधायक यूनुस खान ने शुक्रवार को जोधपुर में दादा कायम खान दिवस पर आयोजित एक समारोह में भजनलाल सरकार को नसीहत देते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री अब घूमना—फिरना बंद करें और काम पर लग जाएं, क्योंकि डबल इंजन की सरकार में प्रदेश की जनता पानी लिए त्राहिमाम—त्राहिमाम कर रही है। यूनुस खान पूर्व में भाजपा के विधायक थे और पिछली वसुंधरा सरकार में पॉवरफुल मंत्री थी। उनको वसुंधरा का करीबी माना जाता है। इसी तरह से लोकसभा में हार के बहाने इस्तीफा देने के मामले में हां, ना कर रहे मंत्री किरोड़ी लाल मीणा भी सरकार के लिए गले की हड्डी बनते जा रहे हैं। चुनाव से पहले 7 सीटों में एक भी हारने पर मंत्री पद से इस्तीफा देने का दावा करने वाले मंत्री मीणा ने इस्तीफा देने का वादा करके अभी तक इस्तीफा नहीं किया है, जिसकी अलग तरह से चर्चा हो रही है। उन्होंने सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर भी खुलकर बात की है, जो साबित करती है कि सरकारी स्तर पर जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है, लेकिन सरकार कुछ नहीं कर पा रही है। भाटी ने भी कहा है कि अफसरशाही हावी है, जिसके कारण पार्टी के कार्यकर्ता और यहां तक कि पदाधिकारी भी खुद को ठगे से महसूस कर रहे हैं। लोगों के काम नहीं हो रहे हैं, जबकि आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि पूर्व के दो मुख्यमंत्रियों का सरकार में काफी हस्तक्षेप है, जिसके चलते भाजपा के कार्यकर्ताओं के काम नहीं हो पा रहे हैं।
जिन तीन नेताओं ने अपने बयानों से भाजपा सरकार को परेशान किया है, वो सभी वसुंधरा के करीबी माने जाते हैं। उल्लेखनीय है कि देवीसिंह भाटी वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं, माना जाता है कि उनकी भाजपा में वापसी भी राजे ने ही करवाई थी। जबकि करीब 6 साल पहले किरोड़ी लाल मीणा को भी फिर से वसुंधरा ने ही भाजपा ज्वाइन करवाई थी। यूनुस खान वसुंधरा के नंबर एक मंत्री रह चुके हैं, दोनों नेताओं की राजनीतिक करीबी किसी से छिपी नहीं है।
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