Popular

चुनाव बाद सचिन पायलट का प्रमोशन तय है



जयपुर। कांग्रेस ने कई दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा है। हालांकि, इतिहास में पहली बार इतनी कम सीटों पर चुनाव लड़ा है। ऐसे में यदि कांग्रेस का गठबंधन जीतता भी है तो भी कांग्रेस अकेले सरकार नहीं बना पाएगी, लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं की ईमानदारी से की गई मेहनत के कारण कांग्रेस को फायदा जरूर मिलेगा। इनमें पहले नंबर पर सचिन पायलट हैं, जिन्होंने कांग्रेस के लिए सबसे अधिक राज्यों में प्रचार किया है। पायलट 7 मई तक 10 राज्यों में 81 जनसभायें कर चुके हैं। जिनमें राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, झाड़खंड, उत्तराखण्ड और दिल्ली में 41 लोकसभा सीटों पर रैलियाँ की हैं।

पायलट ने राजस्थान से अपने प्रचार अभियान की शुरुआत की थी। राज्य में दो चरणों में चुनाव होने के बाद देश के दूसरे राज्यों में चले गए, जहां पर सर्वाधिक रैलियां की हैं। कांग्रेस महासचिव बनने के बाद पायलट की सक्रियता कई गुणा बढ़ गई है। इस दौरान देखा गया कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, कमलनाथ जैसे पुराने नेता बेहद कम सीटों पर सक्रिय रहे। जिन सीटों पर कांग्रेस के युवा नेताओं ने चुनाव लड़ा, वहां पर पायलट ने जमकर प्रचार किया है। 

दूसरी तरफ गहलोत जैसे नेता अपने बेटों के लिए प्रचार करने में ही व्यस्त रहे हैं। गहलोत ने अपनी कुल सभाओं में से आधी सभाएं अकेले जालोर में की है, जहां उनका बेटा वैभव चुनाव लड़ रहा है। ऐसे समय में पायलट ने राज्य की अधिकांश सीटों पर प्रचार किया है। प्रचार के दौरान पायलट की सक्रियता अन्य नेताओं के लिए परेशानी का सबब बन गईं।

जिस गति से पायलट सक्रिय हुए हैं और गहलोत लगातार साइड लाइन होते जा रहे हैं, उससे ऐसा लग रहा है कि गांधी परिवार भी दोनों के काम को बारीकी से देख रहा है। ऐसे में कहा जा रहा है कि चुनाव के बाद दोनों के कामकाज की समीक्षा अवश्य होगा, जिसके आधार पर प्रमोशन-डिमोशन किया जाएगा। क्योंकि गहलोत के पास खोने को अब कुछ भी नहीं है, लेकिन पायलट के पास पाने को बहुत कुछ है। ऐसे में गहलोत का भले ही डिमोशन नहीं हो, लेकिन पायलट का प्रमोशन तय है। 

पायलट अभी राष्ट्रीय महासचिव हैं, लेकिन प्रदेशाध्यक्ष के पद पर पूर्व सीएम अशोक गहलोत के खास गोविंद सिंह डोटासरा हैं, जिनको चुनाव बाद परिणाम के आधार पर हटाया जा सकता है। चर्चा है कि पायलट को फिर से प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है, लेकिन हकीकत यह है कि पायलट अब प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनेंगे, बल्कि अपने किसी खास को अध्यक्ष बनाकर काम कर सकते हैं। यह बात सही है कि राज्य कांग्रेस में अब पायलट के बिना कुछ होने की संभावना नहीं के बराबर है। 

इसलिए जब राज्य में अध्यक्ष बदलने या जिलाध्यक्षों को भी बदलने की बारी आएगी तो पायलट से ही पूछा जाएगा। सुनने में आया है कि कांग्रेस ने राज्य के 400 नेताओं की लिस्ट तैयार कर ली है, जो चुनाव प्रचार के दौरान निष्क्रिय थे, उनको चुनाव परिणाम के बाद हटाया जाएगा। जिलाध्यक्षों से लेकर ब्लॉक अध्यक्षों तक की छुट्टी हो जाएगी।

ग़ौरतलब है कि पायलट-गहलोत के बीच बीतें चार साल से मुक़ाबला चल रहा है। गहलोत के दो कार्यकाल बहुत आराम से निकले, किंतु तीसरे कार्यकाल में पायलट ने चैन से नहीं बैठने दिया, जिसके चलते “मीडिया कर्मियों” द्वारा बनाई गहलोत की कथित जादूगरी और मारवाड़ के गांधी की छवि धूमिल हो चुकी है।

Post a Comment

Previous Post Next Post