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सचिन पायलट बने ongress के सबसे बड़े नेता



जब बरसों मेहनत करने पर भी नेता को टिकट नहीं मिलता, मंत्री या मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री का पद नहीं मिलता, तब नेता बहुत निराश हो जाता है। इसी निराशा में कई बार नेता का सियासी करियर तक तबाह हो जाता है। अच्छे भले नेता को जब मनमाफिक पद नहीं मिलता है तो नेपथ्य में डाल देने के कारण निराशा में राजनीति से दूर हो जाता है। किंतु कुछ नेता ऐसे होते हैं, जिनको तपाया जाता है तो कई गुणा जोश से और अधिक चमकने का काम करते हैं। ऐसे नेता जब संघर्ष में तपकर बाहर निकलते हैं तो राजनीति में कुंदन बन जाते हैं। देश की राजनीति में ऐसा ही एक कुंदन सचिन पायलट हैं, जिसकी चमक बिखरनी अभी बाकी है। 


भले इस बात को कोई स्वीकार करे या नहीं, लेकिन लोगों की संख्या जुटाने के मामले में पायलट आज देश में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता हैं। हमेशा से ही कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के पास है। राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी को बरसों से कांग्रेस लांच करने का काम कर रही है, पिछले कुछ बरसों से उनकी बेटी प्रियंका वाड्रा को भी लांच करने का प्रयास जारी है, लेकिन हकीकत यह है कि आज भी दोनों को राष्ट्रीय स्तर का वैसा नेता नहीं बनाया जा सका है, जैसे सचिन पायलट बन गए हैं। 


जो 22 साल की उम्र में पिता को खोने के बाद सचिन पायलट खुद आगे बढ़े, 2009 में लगातार दूसरा चुनाव जीतकर केंद्रीय में मंत्री बने। उसके बाद राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बने, फिर 2018 में विधायक बनकर उपमुख्यमंत्री बने। अभी दूसरी बार विधायक हैं, लेकिन असल में देखा जाए तो राजस्थान ही नहीं, अपितु देशभर में कांग्रेस के सबसे बड़े जननेता हैं। राहुल गांधी के लिए पूरी कांग्रेस को भीड़ जुटानी पड़ती है, प्रियंका वाड्रा के लिए कांग्रेस के तमाम नेता दिनरात जुटकर भीड़ एकत्रित करते हैं, लेकिन सचिन पायलट एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिनका पता चलते ही अपने आप भीड़ इकट्ठी होने लगती है। व्यक्तिगत आकर्षण तो एक बात हो सकती है, किंतु हमेशा दिखने की सुंदरता ही मायने नहीं रखती है। ऐसा व्यक्तित्व तो हजारों—लाखों के पास है, फिर ऐसा क्या कारण है कि पूरे गांधी परिवार और दूसरे सभी कांग्रेस नेताओं को पीछे छोड़ते हुए सचिन पायलट कांग्रेस पसंद युवाओं की पहली पसंद बन गए हैं। 


जब जून 2000 में केंद्रीय मंत्री रहे राजेश पायलट का अचानक सड़क हादसे में निधन हुआ, तब सचिन पायलट केवल 22 साल के थे। यानी विधानसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ने की न्यूनतम उम्र 25 साल से भी 3 वर्ष कम के थे। जिसके कारण दौसा से उपचुनाव में उनकी मां रमा पायलट को चुनाव लड़ाया गया। इसके बाद 2004 में जब सचिन पायलट 25 साल के हो गए, तो उनको दौसा लोकसभा का टिकट दिया गया। तब सचिन पायलट इतने मासूम थे कि जनता ने राजेश पायलट के नाम और सचिन पायलट की मासूमियत को देखकर ही जिता दिया। आज भले सचिन पायलट धारा प्रवाह बोलते हैं, लेकिन पहला चुनाव लड़े, तब तक उनको ठीक से बोलना तक नहीं आता था। वो खुद कहते हैं कि मंच पर भाषण देते हुए उनके पैर कांपने लगते थे। 


2009 में उनको दौसा से दूसरी बार टिकट मिला और जीतकर केंद्र में मंत्री बने। अपनी ईमानदारी, काम करने के जूनून और राहुल गांधी से दोस्ती के कारण सचिन पायलट ने पांच साल में खुद को साबित कर दिया। 2013 में अशोक गहलोत वाली सरकार के कारण राजस्थान में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से डूब चुकी थी। पार्टी को केवल 21 सीट मिली थी, तब जनवरी 2014 में पायलट को पीसीसी चीफ बनाकर राजस्थान भेजा गया। यहां पर पांच साल में उन्होंने खूब संघर्ष किया और अपने काम के बूते युवाओं के दिलों में छा गए। 


वसुंधरा सरकार की नाकामियों पर से पायलट ने पर्दा हटाया तो जनता ने उनपर विश्वास जताकर पांच साल बाद 2023 में कांग्रेस को 101 सीटों वाला बहुमत दे दिया, लेकिन सोनिया गांधी ने सचिन पायलट की तमाम योग्यता को दरकिनार कर अपने खास सिपहसालार अशोक गहलोत को ही सीएम बना दिया। पायलट डिप्टी सीएम बने, लेकिन उनका मन डेढ़ साल में ही उचट गया। गहलोत की नाकामियों और तानाशाही से तंग आकर पायलट ने जुलाई 2020 में अपनी ही सरकार से बगावत कर दी। 


इसके कारण एक महीने तक कांग्रेस सरकार होटलों में रही। 34 दिन बाद आखिर गांधी परिवार के विश्वास पर पायलट वापस लौटे, लेकिन अगले तीन साल बाद भी उनसे किए गये वादे पूरे नहीं हुए। इससे आहत होकर पायलट ने मई 2023 में गहलोत सरकार के खिलाफ बगावत शुरू कर दी। शहीद स्मारक पर एक दिन का अनशन किया और उसके बाद अजमेर से जयपुर तक पांच दिन की यात्रा निकाली। लोगों का लगा कि अब पायलट कांग्रेस छोड़ देंगे, लेकिन उन्होंने पार्टी के भीतर रहकर ही संघर्ष किया। जो लोग पांच साल तक पायलट के सीएम बनने का सपना देख रहे थे, उनको हताश हाथ लगी। 


हालांकि, 2014 से लेकर 2023 तक उन्होंने आधी से अधिक कांग्रेस को अपने पाले में ले लिया। 2023 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने समर्थकों को खूब टिकट दिलाए और अधिकांश को जिताने में कामयाब भी रहे। इसके कारण सत्ता से बेदखल हुए अशोक गहलोत पूरी तरह से टूट गए तो पायलट और अधिक मजबूत होकर उभरे। फील्ड में उनकी ताकत को देखकर कांग्रेस ने पायलट को राष्ट्रीय महासचिव बनाकर कद बढ़ाया। अभी लोकसभा चुनाव में भी पायलट ने करीब आधे टिकट अपने साथियों को दिलाए। भरतपुर से लेकर झुंझुनूं तक उनके समर्थक कांग्रेसी चुनाव लड़ रहे हैं। इन सभी जगहों पर उन्होंने पूरी ताकत लगाकर प्रचार भी किया है। 


इसी का परिणाम है कि आज कांग्रेस राजस्थान की जिन लोकसभा सीटों पर जीतती हुई दिखाई दे रही है, वो सभी सीटें पायलट समर्थक उम्मीदवारों की ही हैं। विरोधियों को लगता है कि पायलट आज के लिए मेहनत कर रहे हैं, बल्कि हकीकत यह है कि पायलट का टारगेट आज का लोकसभा चुनाव नहीं है, बल्कि उनको 2028 में कांग्रेस को जिताना है और पूर्ण बहुमत की सरकार का मुख्यमंत्री बनना है। ऐसा नहीं है कि पायलट केवल राजस्थान तक सीमित हैं, वास्तविकता यह है कि देश के किसी भी कोने में पायलट के भरपूर समर्थक मिल जाएंगे। 


कांग्रेस ने महासचिव बनाकर पायलट को प्रमोट किया है, लेकिन इससे भी बढ़कर आज सचिन पायलट को कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की जरूरत है। पायलट यदि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे तो मुद्दों के साथ, गंभीरता से बात करेंगे और प्रभावी तरीके से लोगों को कांग्रेस का विचार बता पाएंगे, जो राहुल गांधी कतई नहीं बता पाते हैं। 


अलवर से ललित यादव, जयपुर ग्रामीण से अनिल चौपड़ा, दौसा से मुरारीलाल मीणा, भरतपुर से संजना जाटव, टोंक—सवाईमाधोपुर से हरीश मीणा, झुंझुनूं से बृजेंद्र ओला जैसे नेता पायलट की कोर टीम का हिस्सा हैं। इससे पहले विधानसभा चुनाव में जीतकर आए एक दर्जन से अधिक कांग्रेसी नेता ऐसे हैं, जो सचिन पायलट के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हैं। सधे हुए कदमों पर पायलट 2028 के लिए अपनी कांग्रेस तैयार कर रहे हैं। इस बार पायलट वो कमी नहीं छोड़ेंगे, जो 2018 में छोड़ चुके हैं। 


उनको पता है कि जब तक अपने खास लोगों की संख्या अधिक नहीं होगी, तब तक सत्ता मिलने पर भी सीएम नहीं बना जा सकेगा। इसलिए उन नेताओं के लिए जान लगा रहे हैं, जो उनके लिए हमेशा खड़े रहते हैं, किसी भी हद तक जाने की हिम्मत दिखा सकते हैं। कहते हैं कि गुरू हमेशा गुरु पैदा करता है, जबकि चेले ही चेले पैदा करते हैं। सचिन पायलट गुरु की तरह काम कर रहे हैं। उन्होंने खुद के जैसे ईमानदार, जुनूनी, वफादार और विरोधियों पर भी व्यक्तिगत हमलों से दूर रहने वाले युवाओं की फौज तैयार कर ली है, जो 2028 के चुनाव में टिकट के दावेदार ही नहीं होंगे, बल्कि अपनी मेहनत के दम पर सीट जीतने का जज्बा भी रखेंगे।  


ऐसे में जो भीड़ सचिन पायलट को अन्य नेताओं से अलग करती है, वही भीड़ उनको मजबूत भी करती है। अपने साथियों का डटकर साथ देना, उनके लिए पार्टी के भीतर और बाहर पूरी ताकत से लड़ना, जनता के बीच मुद्दों पर बात करना, विपक्षी दल के भी किसी नेता पर व्यक्तिगत हमला नहीं करने जैसी बातें उनको दूसरे नेताओं से अगले करती है और इसलिए भीड़ सचिन पायलट के आकर्षण में रैलियों तक सहज ही चली आती है। पायलट आज कांग्रेस में लोगों की भीड़ जुटाने के मामले में सबसे बड़े नेता हैं, अब देखने वाली बात यह होगी कि आने वाले पांच साल में देश के सबसे बड़े नेता बन पाते हैं या नहीं।

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