राजस्थान की 12 सीटों पर पहले चरण में मतदान हुआ, जिसमें करीब 8-10 फीसदी मतदान कम हुआ। इस कम हुए मतदान से दोनों ही प्रमुख दल चिंतित हैं, लेकिन फिर भी अपनी अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। पहले चरण की 12 सीटों में दो से तीन सीट भाजपा के लिए फंसी हुई हैं, जबकि कांग्रेस कह रही है कि उसे हार की हैट्रिक नहीं बनानी, चाहे एक सीट ही मिल जाए, लेकिन उसे जीत का खाता खोलना है। कांग्रेस ने जैसे अपनी हार पहले ही स्वीकार कर ली है। हालांकि, रैलियों में कांग्रेस के नेता कई सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन जब पर्दे के पीछे बात होती है तो एक सीट के लिए बगले झांकने लगते हैं। ऊपरी मन से कुछ भी कहा जा रहा हो, लेकिन सचिन पायलट के अलावा कोई भी कांग्रेसी दावे से नहीं कह पा रहा है कि वास्तव में पार्टी कितनी सीटों पर जीत सकती है या जीतने का दावा किया जा सकता है।
पायलट ने अपने करीबियों को टिकट भी दिलाए और उनको जिताने के लिए जान लगाकर मेहनत भी की। तभी तो जयपुर ग्रामीण सीट पर चार—चार रैलियां करने वाले सचिन पायलट गहलोत के बेटे वैभव गहलोत की सीट पर एक रैली करने भी नहीं गए, न ही नागौर सीट पर रैली की, जहां पर हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़ रहे थे। मतलब साफ है कि जो पायलट को पसंद नहीं, उस नेता के लिए प्रचार ही नहीं किया, जो उनके करीबी थे, उनके लिए दिन रात एक कर दिए। पहले चरण की जिन 12 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है, उनमें से भाजपा के लिए 3 सीटों पर पेंच फंसा हुआ है, जहां पर कांग्रेस जीत का दावा कर रही है तो भाजपा चुप्पी साधे बैठी है। इनमें दौसा सबसे मुश्किल सीट बन गई है, जहां पर सचिन पायलट और भाजपा के डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की इज्जत दांव पर लग है। इसी तरह से नागौर सीट पर हनुमान बेनीवाल जीत का दावा कर रहे हैं, और झुंझुनूं सीट पर अग्निवीर योजना के कारण भाजपा को नुकसान हो सकता है।
दूसरे चरण की 13 सीटों पर 26 तारीख को मतदान हो चुका है। इसके बाद प्रदेश की सभी 25 सीटों के हालात साफ होते नजर आ रहे हैं। मतदान के बाद मत प्रतिशत कम रहने के अपने अपने दावे हैं, लेकिन एक बात तय है वोटिंग कम होने के मुख्य कारणों भाजपा का 400 पार का दावा और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव सबसे प्रमुख है। भाजपा के मतदाताओं ने सोच लिया कि उनकी पार्टी वैसे भी पूर्ण बहुमत की सरकार तो बना ही रही है, तो उनके एक वोट नहीं डालने से क्या प्रभाव पड़ेगा, जबकि कांग्रेस के वोटर को पार्टी की जीत होने का भरोसा ही खत्म सा हो गया है।
दूसरे चरण की 13 सीटों पर 26 तारीख को मतदान हो चुका है। इसके बाद प्रदेश की सभी 25 सीटों के हालात साफ होते नजर आ रहे हैं। मतदान के बाद मत प्रतिशत कम रहने के अपने अपने दावे हैं, लेकिन एक बात तय है वोटिंग कम होने के मुख्य कारणों भाजपा का 400 पार का दावा और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव सबसे प्रमुख है। भाजपा के मतदाताओं ने सोच लिया कि उनकी पार्टी वैसे भी पूर्ण बहुमत की सरकार तो बना ही रही है, तो उनके एक वोट नहीं डालने से क्या प्रभाव पड़ेगा, जबकि कांग्रेस के वोटर को पार्टी की जीत होने का भरोसा ही खत्म सा हो गया है।
कांग्रेस वोटर्स को पता है कि उनकी पार्टी सत्ता में तो आने वाली है नहीं, फिर वोट डालने से भी क्या प्रभाव पड़ जाएगा। कांग्रेस के लिए इन 25 में से चार या पांच सीटों पर फाइट दिखाई दे रही है, जबकि दो सीटों पर जीत की संभावना बनती दिख रही है। दौसा के अलावा बाड़मेर सीट भी कांग्रेस जीत सकती है। इनके अलावा टोंक—सवाईमाधोपुर, चूरू, झुंझुनूं, नागौर सीट पर भी जीत का दावा किया जा रहा है। बांसवाड़ा सीट पर भाजपा और भारत आदिवासी पार्टी के बीच सीधा मुकाबला है, जो कांग्रेस उम्मीदवार के वोट काटने पर तय होगा।
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