राजस्थान की 25 सीटों को तीसरी बार जीतने का दबाव झेल रही भाजपा को अब कई सीटों पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है। पिछले वीडियो में मैंने आपको बताया था कि राज्य की 25 में से 5 सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशी बीजेपी उम्मीदवारों पर भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं। इनमें से नागौर और बाड़मेर सीट की नेगेटिव रिपोर्ट भाजपा के मुख्य रणनीतिकार अमित शाह तक पहुंच चुकी है, जिसके बाद राज्य भाजपा में जबरदस्त हलचल मची हुई है। पार्टी ने इन सीटों पर अधिक फोकस कर दिया है। सोशल मीडिया के हिसाब से देखें तो अभी तक भाजपा के प्रत्याशी पश्चिमी राजस्थान की कई सीटों पर कमजोर पड़ते दिखाई दे रहे हैं, लेकिन हकीकत में ग्राउंड पर भाजपा एकजुट और कांग्रेस अपने ही नेताओं में कलह से जूझ रही है। रैलियों में मंच पर कांग्रेस नेता एकजुट होते हैं, लेकिन प्रचार के दौरान पार्टी के सभी नेता प्रत्याशियों के पक्ष में उस ताकत से नहीं प्रचार नहीं कर रहे हैं, जितना करना चाहिए।
विधानसभा चुनाव की तरह ही भाजपा जहां लोकसभा चुनाव में भी पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है, तो कांग्रेस ने स्थानीय नेताओं और मुद्दों को आगे कर रखा है। भाजपा ने यदि विधानसभा चुनाव में भी मोदी के बजाए प्रदेश के नेताओं को आगे कर चुनाव लड़ा होता तो शायद परिणाम और बेहतर हो सकते थे, लेकिन दमखम से आगे बढ़कर चुनाव की तस्वीर बदलने की ताकत रखने वाले पार्टी के स्थानीय नेता कमजोर किए जा रहे हैं, जबकि भाजपा पूरी तरह से मोदी के सहारे पर खड़ी हुई दिखाई दे रही है।
राजस्थान की लोकसभा सीटों के विश्लेषण की इस कड़ी में आज हम बात करेंगे कोटा—बूंदी लोकसभा सीट की, जहां पर प्रदेश की अन्य सीटों की तरह ही 10 साल से भाजपा का कब्जा है। फसल उत्पादन के कारण इस क्षेत्र को राजस्थान का पंजाब कहा जाता है। पानी की प्रचूरता और उपजाउ मिट्टी होने के कारण पंजाब से कई किसान महंगी जमीनें बेचकर यहां बस चुके हैं। यहां पर भाजपा ने लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने भाजपा के पूर्व विधायक प्रहलाद गुंजल को मैदान में उतारा है। दोनों ने अपने नामांकन पत्र भर दिए हैं, और अब चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। दोनों प्रत्याशियों की स्थिति को लेकर आगे बढ़ने से पहले कोटा लोकसभा सीट के इतिहास पर एक नजर डालेंगे। कोटा का इतिहास राजा कोटिया भील से शुरू होता है। इन्होंने कोटा में नीलकंठ महादेव मंदिर स्थापित किया, लेकिन जेत सिंह से युद्ध करते हुए वे शहीद हुए। कोटा कभी बूंदी राज्य का एक हिस्सा था। मुगल शासक जहांगीर ने 1624 में जब बूंदी के शासकों को पराजित किया तो कोटा एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित हुआ।
कोटा महलों, संग्रहालयों, मंदिरों और बगीचों के लिए लोकप्रिय है। यह शहर नवीनता और प्राचीनता का अनूठा मिश्रण है। जहां एक तरफ शहर के स्मारक प्राचीनता का बोध कराते हैं, तो दूसरी ओर चंबल नदी पर बना हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट और मल्टी मेटल उद्योग आधुनिकता का अहसास कराते हैं। यह शहर हाल ही में वर्ल्ड ट्रेड फोरम की सूची में दुनिया का सातवां सबसे ज्यादा भीड़भाड़ वाला शहर बना है। कोटा अपने बागों के लिये भी प्रसिद्ध है। कोटा को देश की शिक्षा नगरी के रूप में भी पहचाना जाता है। कई दशकों से कोटा में हवाई अड्डा चुनाव का प्रमुख मुद्दा रहा है, जिसको वर्तमान सांसद ओम बिरला ने पूरा कर दिया है। राजधानी जयपुर से कोटा के लिए अब हवाई सेवा शुरू हो चुकी है।
देश आजाद होने के बाद पहली बार हुए 1952 के आम चुनाव से लेकर 57 तक यहां पर कांग्रेस के नेमी चंद्र कासलीवाल जीते, इसके अगले चुनाव में भारतीय जनसंघ के ओंकार लाल बैरवा जीते, जो 77 तक तीन बार सांसद रहे। आपातकाल के बाद 1977 और 1980 में जनता पार्टी के कृष्ण कुमार गोयल जीते, लेकिन 1984 में कांग्रेस के प्रत्याशी शांति धारीवाल जीत गए। इसके पांच साल बाद पहली बार भाजपा के दाऊ दयाल जोशी विजयी हुए, जो लगातार 1998 तक सांसद रहे। अगले चुनाव 1998 में कांग्रेस के रामनारायण मीणा जीते, लेकिन 1999 और 2004 में भाजपा के रघुवीर सिंह कौशल जीत गए। मनमोहन सिंह सरकार के समय 2009 में कोटा से कांग्रेस के इज्यराज सिंह जीते, लेकिन मोदी लहर में 2014 और 2019 का आम चुनाव भाजपा के ओम बिड़ला जीते, जो पांच साल से लोकसभा अध्यक्ष हैं। ओम बिरला को तीसरी बार टिकट मिला है। उनके सामने कांग्रेस के प्रहलाद गुंजल हैं, जो कुछ दिन पहले ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इससे पहले भाजपा के टिकट पर प्रहलाद गुंजल 2018 और 2023 का विधानसभा चुनाव हारे हैं।
उनके सामने जितनी बड़ी चुनौती भाजपा के प्रत्याशी ओम बिरला की दिग्गज छवि है, उससे कहीं अधिक बड़ी परेशानी खुद कांग्रेस के ही बुजुर्ग नेता शांति धारीवाल हैं, जो टिकट मिलने के बाद भी गुंजल के खिलाफ जमकर भड़ास निकाल चुके हैं। शांति धारीवाल के यूएचडी मंत्री रहते प्रहलाद गुंजल द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों पर धारीवाल ने माफी मांगने या अथवा उनको गलत मानने का दबाव बनाया है, जिसको लेकर कांग्रेस में कशमकश चल रही है। शांति धारीवाल और ओम बिरला, दोनों ही बणिया समाज से आते हैं, और दोनों ही कोटा में बड़ा राजनीतिक वर्चस्व रखते हैं, जबकि प्रहलाद गुंजल गुर्जर समाज से आते हैं और उनका भी कोटा जिले की राजनीति में बड़ा दखल है। अभी तक सचिन पायलट कांग्रेस प्रत्याशी प्रहलाद गुंजल के साथ दिखाई नहीं दे रहे हैं, उससे लग रहा है कि ओम बिरला जैसी विराट छवि से प्रहलाद गुंजल कैसे मुकाबला करेंगे?
कोटा—बूंदी लोकसभा क्षेत्र में कोटा उत्तर, कोटा दक्षिण, लाडपुरा, सांगोद, पीपल्दा, रामगंजमंडी विधानसभा और बूंदी जिले की केशोरायपाटन और बूंदी विधानसभा सीट शामिल हैं। इन 8 विधानसभा सीटों में से 4 पर भाजपा और 4 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है, यानी विधानसभा सीटों के हिसाब से दोनों दलों में मुकाबला बराबरी को दिखाई दे रहा है। कोटा में 20 लाख 62 हज़ार 730 मतदाता हैं, जिसमें से 10 लाख 61 हजार 228 पुरुष और 10 लाख 1 हजार 502 महिला मतदाता हैं।
जातिगत आधार पर मतदाताओं की बात करें तो 2 लाख गुर्जर, 2 से 2.5 लाख मीणा, 2.5 लाख मुस्लिम, सवा लाख ब्राह्मण, 1 से सवा लाख वैश्य, इतने ही ठाकुर, सवा लाख माली, साढ़े तीन लाख SC और एक लाख ओबीसी वोटर्स हैं। कांग्रेस जहां गुर्जर जाति के प्रत्याशी को मैदान में उतारकर गुर्जर मुस्लिम मीणा के साथ बड़ी संख्या में मौजूद एससी वोटर पर दाव खेल रही है। कोटा में हवाई सेवा के मुद्दे के साथ 10 साल में सांसद ओम बिरला की एंटी इनकम्बेंसी के साथ जनता के बीच पहुंच रही है, जबकि बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ केंद्र सरकार की योजनाएं, भाजपा प्रत्याशी लोकसभा स्पीकर की लोकप्रियता और उनके सामाजिक कार्यों को जन जन तक पहुंचने में जुटी हुई है।
प्रहलाद गुंजल को सबसे अधिक डर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से ही है। कारण यह है कि इस क्षेत्र में अब तक प्रहलाद गुंजल कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करते रहे हैं, लेकिन अचानक से पार्टी बदलने के कारण उनकी टीम भाजपा में रह गई। भाजपा के कार्यकर्ता अपने नेता के साथ पार्टी कम ही बदलते हैं। ऐसे में इतने कम समय में कार्यकर्ताओं की नई टीम तैयार करना कठिन है। इस सीट पर गुर्जर और मीणा मतदाताओं को सामान्यत: कांग्रेस का वोट माना जाता है, लेकिन इसके इतर बणिया, ब्राह्मण, ठाकुर, भील जैसे समाजों का वोट भाजपा को जाता रहा है। शांति धारीवाल जैसे कांग्रेस नेता कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी सीट पर भाजपा का नेता आकर स्थापित हो जाए। दूसरी तरफ भाजपा के उम्मीदवार ओम बिरला पांच साल से लोकसभा अध्यक्ष हैं, जिसके चलते उनके कद में भारी वृद्धि हुई है। उन्होंने पांच साल में इस क्षेत्र में काम भी खूब करवाए हैं। चाहे राज्य सरकार के काम हों या फिर केंद्र सरकार के कार्यों की बात है, हर तरह का काम ओम बिरला ने खूब करवाया है।
एक तरफ कांग्रेस के पास भाजपा के पूर्व विधायक हैं, जो लगातार दो चुनाव हारे हुए हैं, जबकि दूसरी ओर भाजपा के प्रत्याशी हैं, जो न केवल विधानसभा चुनाव जीते हुए हैं, बल्कि उसके बाद लगातार दो बार से लोकसभा का चुनाव भी जीत रहे हैं। ऊपर से उनको मोदी सरकार के 10 साल के कार्यों का भी सहारा है। ऐसे में देखना यह होगा कि कोटा लोकसभा की जनता इस बार पार्टी बदलकर कांग्रेस प्रत्याशी बने प्रहलाद गुंजल को जिताकर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचाती है, या फिर 10 साल से जीत रहे ओम बिरला को ही अपना नेता बनाकर फिर से केंद्र में भेज पाती है।
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