लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने मोदी सरकार के खिलाफ अग्निवीर योजना को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है, तो साथ ही महिला पहलवान का मामला भी जोर शोर से उठाया जा रहा है, जबकि भाजपा धारा 370, राम मंदिर, विकसित भारत, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी ताकत जैसे मुद्दों को लेकर मैदान में हैं। हर दल क्षेत्र के हिसाब से अपने मुद्दे भी बदल देताा है। राजस्थान के चार क्षेत्रों में भी चार अलग मुद्दे हैं। शेखावाटी में धारा 370 हटाना काफी असरकारक हो सकता है। कारण यह है कि यह क्षेत्र देश में सबसे अधिक सैनिक पैदा करता है। इस क्षेत्र में हर घर में सैनिक होता है। खासकर झुंझुनूं जिले में तो प्रत्येक घर सैनिकों की अगुवानी करता है। ऐसे में जिले में मुद्दा भी धारा 370 और अग्निवीर सबसे बड़े हैं। लोकसभा चुनाव विश्लेषण की कड़ी में आज हम झुंझुनूं लोकसभा सीट की बात करेंगे।
झुंझुनूं जिला सबसे अधिक सैनिकों के लिए जाना जाता है, लेकिन इसके साथ ही इस क्षेत्र में तांबा की खदानें भी खासी चर्चित हैं। जिले के खेतड़ी में सूरज की पहली किरण के साथ सोने सी आभा में दमकती पहाड़ियां राजस्थान में अरावली पर्वत माला का हिस्सा हैं। झुंझुनूं जिले के खेतड़ी और आसपास के हिस्से में तांबे के अकूत भंडार हैं। यह पूरा क्षेत्र ताम्र नगरी कहलाता है, देश का 50 प्रतिशत तांबा इन्हीं पहाड़ों से निकाला जाता है। इन पहाड़ियों में खनन का काम भारत सरकार का उपक्रम हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड करता है। 5 फरवरी 1975 में शुरू हुई खेतड़ी की माइंस को खेतड़ी कॉपर कॉर्पोरेशन कहा जाता है। इस पहाड़ के नीचे खेतड़ी व कोलिहान क्षेत्र में करीब 324 किमी के दायरे में 300 से अधिक भूमिगत खदानें हैं और 200 टनल हैं, जहां समुद्र तल से माइनस 102 मीटर की गहराई पर तांबा निकाला जाता है। हर साल खनन करके 11 लाख टन कच्चा माल निकाला जाता है। कच्चे माल की प्रोसेस के बाद 11 हजार टन तांबा मिलता है। खेतड़ी कॉपर खदान एशिया की पहली भूमिगत खदान है। ये देश की पहली सबसे बड़ी व सबसे गहरी तांबा की माइंस हैं। यहां से निकाले गए तांबे की गुणवत्ता के कारण लंदन मेटल एक्सचेंज की ए ग्रेड में शामिल है। देश में सुरक्षा उपकरण इसी तांबे से बनाए जाते हैं।
चुनाव की एतिहासिक पृष्ठभूमि की बात की जाए तो आजादी के बाद पहली बार हुए आम चुनाव 1952 से 1967 तक कांग्रेस के राधेश्याम मोरारका सांसद रहे। उसके बाद अगले चुनाव में निर्दलीय आरके बिडला जीते। 1971 के चुनाव में फिर से कांग्रेस के विश्वनाथ जीत गए। आपातकाल के बाद 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी के कन्हैयालाल और 1980 में भीमसिंह जीते। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में कांग्रेस के मोहम्मद अयूब खान जीते, जबकि 1989 में फिर से जतना दल के जगदीप धनकड़ जीते, जो अभी देश के उपराष्ट्रपति हैं। दो साल बाद 1991 के चुनाव में फिर से अयूब खान जीत गए। इसके उपरांत 2014 तक उस रजनेता का दौर आया, जिसे आज झुंझुनू में सांसद के तौर पर सबसे अधिक याद किया जाता है।
1996 में पहली बार शीशराम ओला जीते, जो आजीवन यहां से सांसद रहे। 2014 में पहली बार भाजपा ने झुंझुनू में खाता खोला और 2019 में लगातार दूसरी बार जीती। भाजपा ने लगातार तीसरी बार टिकट बदला है। भाजपा ने वर्तमान सांसद नरेंद्र खीचड़ का टिकट काट दिया है, जो दिसंबर 2023 में मण्डावा से विधासनभा चुनाव हार गए थे। पार्टी ने इस बार पूर्व विधायक शुभकरण चौधरी को मैदान में उतारा है, जो 2018 और 2023 में उदयपुरवाटी से विधानसभा चुनाव हारे हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और झुंझुनू से विधायक बृजेंद्र ओला को टिकट दिया है, जो झुंझुनू की राजनीति के भीष्म कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री शीशराम ओला के बेटे हैं। कांग्रेस ने पार्टी संकट में है का हवाला देकर अपने सबसे मजबूत विधायक को आम चुनाव के मैदान में उतारा है।
झुंझुनूं लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में से 6 कांग्रेस के पास है, जबकि दो पर भाजपा का कब्जा है। इस हिसाब से कांग्रेस बहुत भारी पड़ रही है। झुंझुनूं सीट लंबे समय से शीशराम ओला के कब्जे में रही है। एक समय ऐसा था, तब शीशराम ओला राजस्थान के मुख्यमंत्री की रेस में थे, लेकिन अशोक गहलोत ने एक एक कर सभी दिग्गज कांग्रेसियों को ठिकाने लगाने का काम किया। 2008 में जब कांग्रेस को 96 सीटों पर जीत मिली, लेकिन पार्टी के सबसे बड़े दावेदारों में से एक सीपी जोशी एक वोट से चुनाव हार गए थे, तब शीशराम ओला सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार थे, किंतु सोनिया गांधी ने अशोक गहलेात दूसरी बार सीएम बना दिया था। उसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस की केंद्र में दूसरी बार सरकार बनी, तब शीशराम ओला केंद्र में कैबिनेट मंत्री बने। केंद्रीय मंत्री रहते ही शीशराम ओला का निधन हो गया था।
बृजेंद्र ओला ने पहली बार 2008 में झुंझुनूं सीट पर चुनाव लड़ा, जहां से जीत के बाद लगातार चौथी बार विधायक हैं। कांग्रेस पार्टी में बृजेंद्र ओला सचिन पायलट कैंप से आते हैं, उनको नवंबर 2021 में गहलोत सरकार में मंत्री बनाया गया था। निर्विवाद रहने वाले बृजेंद्र ओला को स्थानीय जनता बेहद पसंद करती है, यही वजह है कि बीते 15 साल से लगातार विधायक हैं। कांग्रेस के लिए इस सीट पर बृजेंद्र ओला से मजबूत उम्मीदवार नहीं है। खुद ओला ने कहा है कि पार्टी ने संकट के कारण उनको टिकट दिया है, इसलिए उनका दायित्व है कि संकट के समय पार्टी का साथ दें। शुभकरण चौधरी झुुंझुनूं की उदयपुरवाटी से 2013 में पहली बार विधायक बने थे। उसके बाद दो चुनाव हार चुके हैं, लेकिन फिर भी भाजपा ने शुभकरण चौधरी पर विश्वास जताया है। शुभकरण को दबंग नेता के तौर पर जाना जाता है। नरेंद्र खीचड़ का टिकट कटने और संतोष अहलावत को टिकट नहीं मिलने के कारण भाजपा खेमेबाजी से त्रस्त है। दूसरी ओर कांग्रेस में भी गहलोत कैंप कभी नहीं चाहेगा कि पायलट कैंप के बृजेंद्र ओला जीतकर संसद पहुंचें।
यह जिला देश में सबसे अधिक सैनिक देने वाला जिला है। इसलिए यहां पर अग्निवीर योजना के साथ ही हरियाणा से लगता होने के कारण महिला पहलवान का मुद्दा भी भाजपा पर काफी दबाव बना रहा है। किसान आंदोलन भले ही ढ़ीला पड़ा हो, लेकिन मुद्दा खत्म नहीं हुआ है। हालांकि, जातिगत आंकड़े भाजपा के खिलाफ हैं, लेकिन राष्ट्रवाद, राम मंदिर, धारा 370, सीएए जैसे बड़े मुद्दों पर सवार भाजपा अपनी लगातार तीसरी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रही है। धारा 370 हटाने का सीधा प्रभाव जम्मू कश्मीर में पड़ा होगा, लेकिन परोक्ष रुप से झुंझुनूं भी प्रभावित हुआ है। कहा जाता है कि झुंझुनूं के हर घर में एक सैनिक पैदा होता है। यहां के हर घर में एक सदस्य या तो सैनिक बनकर रिटायर हो चुका है, या फिर अभी सेना में है। धारा 370 हटाने से पहले कश्मीर में सबसे अधिक इसी क्षेत्र से बलिदान होते थे, इस धारा के हटाने के बाद कश्मीर में आतंकवाद लगभग समाप्ति की ओर है, जिसके कारण सैनिकों के शहीद होने का सिलसिला भी थम सा गया है। जिसके कारण क्षेत्र के लोग मोदी सरकार के पक्ष में भी दिखाई देते हैं।
ऐसे में दोनों ही ओर से जीत का दावा भले किया जा रहा हो, लेकिन रास्ता बेहद कठिन है। देखने वाली बात यह होगी कि क्षेत्र की जनता पर धारा 370 हटने, राम मंदिर बनने, सीएए और तीन तलाक कानून बनने का असर भाजपा के पक्ष में होता है या फिर सैनिक परिवारों में अग्निवीर योजना के खिलाफ कथित रोष कांग्रेस को फायदा पहुुंचाता है।
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