जयपुर, भरतपुर, करौली—धौलपुर और टोंक सवाईमाधोपुर सीट से लगती दौसा लोकसभा सीट दस साल से भाजपा के खाते में है। यहां पूर्वी राजस्थान से भाजपा के दिग्गज नेता और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोड़ीलाल मीणा अपने भाई जगमोहन मीणा के लिए टिकट मांग रहे थे, जबकि वर्तमान सांसद जसकौर मीणा अपनी बेटी डॉ. अर्चना मीणा के लिए टिकट मांग रही थीं। इस खींचतान के चलते भाजपा अपनी लगभग आखिरी सूची में इस सीट का फैसला कर पाई। मजेदार बात यह रही कि किरोड़ीलाल और जसकौर की इस सियासी जंग में कन्हैयालाल मीणा ने बाजी मार ली। कन्हैयालाल मीणा को वैसे तो किरोड़ीलाल मीणा के करीब माना जाता है, लेकिन बेटी के लिए टिकट मांग रहीं सांसद जसकौर ने कहा है कि टिकट भले ही उनके मन मुताबिक नहीं मिला हो, लेकिन भाजपा को 400 पार करने के लिए वो पूरी ताकत से कन्हैयालाल को जिताने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही हैं।
कांग्रेस ने इस सीट पर विधायक और पूर्व कैबिनेट मंत्री मुरारी लाल मीणा को टिकट दिया है। दोनों उम्मीदवारों की खूबियों, कमियों के बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन उससे पहले दौसा लोकसभा सीट के सियासी इतिहास पर एक नजर डाल लेते हैं। दौसा लोकसभा सीट भी देश में पहले आम चुनाव के साथ ही अस्तित्व में आ गई थी। शुरुआत में कांग्रेस ही देश की सबसे बड़ी पार्टी थी और इसलिए प्रदेश की अन्य सीटों की तरह यहां पर भी कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। आजादी के बाद 1952 और 1957 में यहां पर कांग्रेस जीती। उसके बाद 1962 में तीसरा चुनाव हुआ, जिसमें निर्दलीय पृथ्वीराज जीते, लेकिन 1967 में दूसरे निर्दलीय आरसी गणपत जीत गए। इसके बाद 1968 के उपचुनाव में कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा जीते, जो 1977 तक सांसद रहे। 1977 के चुनाव में राजस्थानी फिल्मों के हीरो जनता दल के नाथूसिंह गुर्जर ने जीत हासिल की, लेकिन अगला चुनाव फिर से कांग्रेस के नवल किशोर शर्मा जीत गए।
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए 1984 के चुनाव में कांग्रेस के राजेश पायलट जीते, लेकिन पांच साल बाद 1989 में भाजपा के नाथूसिंह गुर्जर फिर जीत गए। 1991 से 1999 तक लगातार 4 आम चुनाव में राजेश पायलट जीते। 11 जून 2000 को सड़क हादसे में राजेश पायलट का निधन होने पर हुए उपचुनाव में दौसा से कांग्रेस के टिकट पर राजेश पायलट की पत्नी रमा पायलट जीतीं। उसके बाद 2004 में राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट जीते। अगले चुनाव में यह सीट आरक्षित हो गई, जिसके कारण सचिन पायलट अजमेर चले गए और दौसा सीट पर 2009 में निर्दलीय किरोड़ी लाल मीणा जीते। इसके बाद मोदी लहर के चलते 2014 में भाजपा के हरीश मीना और 2019 में जसकौर मीना जीतीं। 2018 में हरीश मीना कांग्रेस में चले गए थे। इस बार भाजपा ने कन्हैयालाल मीणा को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने पूर्व मंत्री मुरारीलाल मीणा को टिकट दिया है।
भाजपा के उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं विधानसभा के सदस्य रह चुके हैं। 12वीं विधानसभा में कन्हैयालाल खेलकूद, युवा विभाग के राज्य मंत्री रह चुके हैं। उससे पहले कन्हैयालाल ने 1978-1990 तक लूणियावास ग्राम पंचायत के सरपंच बनकर सियासी कॅरियर की शुरुआत की थी। सामान्य जीवन जीने में विश्वास करने वाले कन्हैयालाल एसटी समाज से भाजपा के डेड हॉनेस्ट नेताओं में से एक हैं। चार बार विधायक और मंत्री बनने के बाद भी उनको टिकट नहीं मिलने के उपरांत भी कन्हैयालाल ने कभी भाजपा के खिलाफ जाने का काम नहीं किया। यही वजह रही है कि जब किरोड़ीलाल मीणा और जसकौर के बीच दौसा से टिकट को लेकर जंग चल रही थी, तब भाजपा आलाकमान ने अपने पुराने कार्यकर्ता कन्हैयालाल पर भरोसा जताया है।
दूसरी तरफ कांग्रेस के मुरारीलाल मीणा भी अशोक गहलोत की पिछली सरकार में मंत्री रह चुके हैं। सचिन पायलट गुट से आने वाले मुरारीलाल मीणा को पायलट परिवार का विश्वसनीय माना जाता है। सरकारी अधिकारी से नेता बने मुरारीलाल मीणा सरकारी सेवा में रहते राजेश पायलट के साथ काम कर चुके हैं। मुरारा लाल मीणा ने 1982 में सरकारी सेवा में कनिष्ठ सहायक के पद पर सार्वजनिक निर्माण विभाग गंगानगर में उन्होंने अपनी सेवाएं शुरू कीं। मुरारी लाल मीना ने 1986 में सार्वजनिक निर्माण विभाग सिकराय क्षेत्र में कनिष्ठ सहायक के पद पर सरकारी सेवा दी। मुरारीलाल ने 1991 और 1997 में राज्य मंत्री रहे राजेश पायलेट के पास निजी सचिव के रूप में सेवा दीं। इसके बाद उन्होंने 1997 में सार्वजनिक निर्माण विभाग दौसा में सहायक अभियंता के पद काम किया। इस दौरान भी उनका पायलट परिवार से गहरा रिश्ता रहा।
मुरारीलाल ने 2003 में बसपा के टिकट पर पहला चुनाव बांदीकुई जीता। उसके बाद बसपा के ही टिकट पर 2008 में दौसा से चुनाव लड़कर दूसरी बार विधायक बने। इसके बाद अपने सभी 5 साथियों के साथ उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर ली और तीन साल तक गहलोत सरकार में सार्वजनिक निर्माण राज्यमंत्री रहे। 2013 में मुरारी ने कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें उनकी हार हुई। उसके बाद 2018 में फिर दौसा से कांग्रेस विधायक बने।
तब अशोक गहलोत सीएम थे और सचिन पायलट कांग्रेस अध्यक्ष के साथ साथ डिप्टी सीएम भी थे। सीएम नहीं बनाए जाने से नाराज होकर 2020 में जब सचिन पायलट ने गहलोत सरकार से बगावत की, तब मुरारीलाल भी पायलट कैंप के विश्वसनीय नेताओं में से एक थे। बाद में कांग्रेस ने पायलट को राजी किया तो उन्होंने सरकार का समर्थन दे दिया। गहलोत सरकार के आखिरी 2 साल में मुरारीलाल भी मंत्री बने। तीन महीने पहले 2023 का चुनाव लड़कर मुरारी चौथी बार विधायक बने हैं। मुरारीलाल को पूर्वी राजस्थान में किरोड़ीलाल के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। यही वजह है कि कांग्रेस ने मुरारी लाल पर दांव खेला है। सोने पर सुहागा यह है कि दौसा में मीणा और गुर्जर सबसे बड़ी आबादी हैं, इसलिए मुरारीलाल के साथ मीणा और पायलट के साथ गुर्जर कांग्रेस को वोट देंगे तो कन्हैयालाल की काफी मुश्किल हो सकती है।
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