राजस्थान की 25 सीटों का सबसे सटीक विश्लेषण, The most accurate analysis of 25 seats of Rajasthan



राजस्थान की 12 सीटों पर पहले चरण में मतदान हुआ, जिसमें करीब 8-10 फीसदी मतदान कम हुआ। दूसरे चरण की 13 सीटों पर भी पिछली बार के मुकाबले करीब 4 फीसदी मतदान कम हुआ है। इस कम हुए मतदान से दोनों ही प्रमुख दल चिंतित हैं, लेकिन फिर भी अपनी अपनी जीत के दावे किए जा रहे हैं। पहले चरण की 12 सीटों में दो से तीन सीट भाजपा के लिए फंसी हुई हैं, जबकि कांग्रेस कह रही है कि उसे हार की हैट्रिक नहीं बनानी, चाहे एक सीट ही मिल जाए। इससे लगता है कि कांग्रेस ने जैसे अपनी हार पहले ही स्वीकार कर ली है। हालांकि, रैलियों में कांग्रेस के नेता कई सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन जब पर्दे के पीछे बात होती है तो एक सीट के लिए बगले झांकने लगते हैं। ऊपरी मन से कुछ भी कहा जा रहा हो, लेकिन सचिन पायलट के अलावा कोई भी कांग्रेसी दावे से नहीं कह पा रहा है कि वास्तव में पार्टी कितनी सीटों पर जीत सकती है या जीतने का दावा किया जा सकता है। 

पायलट ने अपने करीबियों को टिकट भी दिलाए और उनको जिताने के लिए जान लगाकर मेहनत भी की। तभी तो जयपुर ग्रामीण सीट पर चार—चार रैलियां करने वाले सचिन पायलट गहलोत के बेटे वैभव गहलोत की सीट पर एक रैली करने भी नहीं गए, न ही नागौर सीट पर रैली की, जहां पर हनुमान बेनीवाल चुनाव लड़ रहे थे। मतलब साफ है कि जो पायलट को पसंद नहीं, उस नेता के लिए प्रचार ही नहीं किया, जो उनके करीबी थे, उनके लिए दिन रात एक कर दिए। पहले चरण की 12 लोकसभा सीटों में से भाजपा के लिए 3 सीटों पर पेंच फंसा हुआ है, जहां पर कांग्रेस जीत का दावा कर रही है तो भाजपा चुप्पी साधे बैठी है। इनमें दौसा सबसे मुश्किल सीट बन गई है, जहां पर सचिन पायलट और भाजपा के डॉ. किरोड़ी लाल मीणा की इज्जत दांव पर लग है। इसी तरह से नागौर सीट पर हनुमान बेनीवाल जीत का दावा कर रहे हैं, और झुंझुनूं सीट पर अग्निवीर योजना के कारण भाजपा को नुकसान हो सकता है।

साफ तौर पर देखा जाए तो झुंझुनूं, जयपुर ग्रामीण, अलवर, दौसा, टोंक सवाईमाधोपुर जैसी सीटों पर सचिन पायलट की साख दांव पर लगी हुई है। इन सीटों पर चुनाव भले ही कांग्रेस के प्रत्याशियों ने लड़ा हो, लेकिन जीत या हार सचिन पायलट के खाते में ही लिखी जाएगी। ठीक इसी तरह से सीकर में अमराराम के बजाए गोविंद सिंह डोटासरा, चूरू में देवेंद्र झाझड़िया की जगह राजेंद्र राठौड़, बाड़मेर में उम्मेदाराम बेनीवाल के बजाए हरीश चौधरी और हेमाराम चौधरी, जालोर में वैभव गहलोत के बजाए अशोक गहलोत और झालावाड़ में दुष्यंत सिंह की जगह वसुंधरा राजे चुनाव लड़ रही थीं।

दूसरे चरण की 13 सीटों पर 26 तारीख को मतदान के बाद प्रदेश की सभी 25 सीटों के हालात साफ नजर आ रहे हैं। मतदान के बाद मत प्रतिशत कम रहने के दोनों ही दलों के अपने—अपने दावे हैं, लेकिन एक बात तय है वोटिंग कम होने के मुख्य कारणों में भाजपा का 400 पार का दावा और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव सबसे प्रमुख है। भाजपा के मतदाताओं ने सोच लिया कि उनकी पार्टी वैसे भी पूर्ण बहुमत की सरकार तो बना ही रही है, तो उनके एक वोट नहीं डालने से क्या प्रभाव पड़ेगा, जबकि कांग्रेस के वोटर को पार्टी की जीत होने का भरोसा ही खत्म सा हो गया है। 

कांग्रेस वोटर्स को पता है कि उनकी पार्टी सत्ता में तो आने वाली है नहीं, फिर वोट डालने से भी क्या प्रभाव पड़ जाएगा। कांग्रेस के लिए इन 25 में से चार या पांच सीटों पर फाइट दिखाई दे रही है, जबकि दो सीटों पर जीत की संभावना बनती दिख रही है। दौसा के अलावा बाड़मेर सीट भी कांग्रेस जीत सकती है। इनके अलावा टोंक—सवाईमाधोपुर, चूरू, झुंझुनूं, नागौर सीट पर भी जीत का दावा किया जा रहा है। बांसवाड़ा सीट पर भाजपा और भारत आदिवासी पार्टी के बीच सीधा मुकाबला है, जो कांग्रेस उम्मीदवार अरविंद डामोर के वोट काटने पर तय होगा। इस त्रिकोणीय मुकाबले को कांग्रेस आमने सामने का करने में जुटी है। जबकि स्थानीय उम्मीदवार अरविंद डामोर भी युवा होने के साथ ही काफी समय से सक्रिय हैं। यदि डामोर ने 20 फीसदी वोट भी हासिल कर लिए तो भाजपा उम्मीदवार जीत की दहलीज पर खड़ा हो जाएगा। अशोक गहलोत के बेटे को दूसरी बार उतारा गया है, लेकिन जालोर में हालात खुशी मनाने जैसे दिखाई नहीं दे रहे हैं। 

जिन 13 सीटों पर दूसरे चरण में मतदान हुआ है, उनमें बाड़मेर सीट की सबसे अधिक चर्चा है। यहां पर भाजपा के केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी दूसरी बार उम्मीदवार हैं, तो कांग्रेस ने आरएलपी छोड़कर आए उम्मेदाराम बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है। दोनों में सीधा मुकाबला नहीं है। यहां पर त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा फंस गई है, तो कांग्रेस को जीत का भरोसा है। बाड़मेर सीट लंबे समय से भाजपा के पास ही है। पिछली बार कैलाश चौधरी ने जीतकर केंद्र में मंत्री बने थे। तब भाजपा का आरएलपी के साथ अलाइंस था, इस बार आरएलपी का कांग्रेस के साथ गठबंधन है। अलाइंस के कारण कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदाराम बेनीवाल खुद को मजबूत मान रहे थे, लेकिन मतदान के ठीक एक दिन पहले आरएलपी की बाड़मेर इकाई ने कांग्रेस के बजाए भाजपा को समर्थन देकर खेल बिगाड़ दिया है। इसको लेकर खुद हनुमान बेनीवाल ने भी मौन सहमति दी है। बेनीवाल और बायतु विधायक हरीश चौधरी के बीच बीते पांच साल से वर्चस्व की जंग चल रही है। बेनीवाल का आरोप है कि पांच साल पहले लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान हरीश चौधरी ने उनके और कैलाश चौधरी पर हमला करवा दिया था। इसी तरह से हरीश चौधरी पर बाड़मेर आरएलपी को भी खत्म करने के आरोप लगाते हैं। 

बाड़मेर से लगती जोधपुर सीट पर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भाजपा के लगातार तीसरी बार उम्मीदवार हैं, उनका सीधा मुकाबला कांग्रेस के करणी सिंह उचियारडा से है। हालांकि, बाड़मेर की तरह यहां पर आरएलपी ने भाजपा को समर्थन नहीं दिया, लेकिन उनके खिलाफ खास प्रचार भी नहीं किया। चुनाव होने के बाद यहां पर भी स्थितियां काफी कुछ भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में दिखाई दे रही हैं। शुरुआत में करणी सिंह भारी पड़ते नजर आ रहे थे, लेकिन उत्तरार्ध में आकर भाजपा ने चुनाव को पूरी तरह से कवर कर लिया। पिछली कांग्रेस सरकार गिराने के जोधपुर सांसद आरोप झेल रहे थे, लेकिन चुनाव के एक दिन पहले अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा के खुलासों ने भी भाजपा को फायदा पहुंचाया है। जोधपुर का परिणाम भाजपा के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है। गजेंद्र सिंह शेखावत को उम्मीद है कि मोदी की तीसरी सरकार में उनको बड़ा कैबिनेट मंत्री पद मिलेगा। 

पाली सीट पर भाजपा के पीपी चौधरी तीसरी बार चुनाव लड़े हैं, जिनका कांग्रेस की संगीता बेनीवाल से मुकाबला है। हालांकि, स्थितियां इतनी ज्यादा अनुकूल नहीं हैं, लेकिन फिर भी संगीता बेनीवाल काफी परिश्रम करने के बाद भी पीपी चौधरी के सामने कमजोर उम्मीदवार साबित हो रही हैं। इस सीट पर कहने सुनने को अधिक कुछ नहीं है। यही वजह है कि भाजपा यहां पर लगभग पिछली बार जितनी बड़ी ही जीत हासिल करती दिख रही है। इसी से लगती जालोर—सिरोही सीट पर कांग्रेस द्वारा अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को चुनाव लड़ाया गया है, जिनकी सीधी टक्कर भाजपा के लुंबाराम चौधरी से है। वैभव पिछली बार जोधपुर से लड़े थे, तब 2.74 लाख वोटों से हार गए थे। लुंबाराम चौधरी की सादगी और जालोर के स्थानीय होने का फायदा उनको मिलना तय है। गहलोत के बेटे की सीट बदलने के बाद भी जीत की राह कोसों दूर दिख रही है। अशोक गहलोत ने यहां पर अपनी पूरी जान लगा दी थी, प्रचार करने में पूरा परिवार झोंक दिया था, लेकिन फिर भी उनको हार से बचा नहीं पाएंगे। 

उदयपुर भाजपा का गढ़ माना जाता है, जहां पर दोनों ही ओर से पूर्व अधिकारी मैदान में हैं। भाजपा के मन्नालाल रावत काफी मजबूत हैं। कारण यह है कि उदयपुर—प्रतापगढ़ में भाजपा लंबे समय से जीत रही है। यह क्षेत्र भाजपा के लिए सबसे अनुकूल स्थानों में से एक है। इसी से सटी हुई बांसवाड़ा—डूंगरपुर लोकसभा सीट भी इस बार काफी सुर्खियों में है। नरेंद्र मोदी सभा करके आदिवासियों को साधने का कार्य कर चुके हैं। बांसवाड़ा में भाजपा के टिकट पर इस बार महेंद्रजीत सिंह मालवीय मैदान में हैं, जो लंबे समय से कांग्रेसी थे। नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाए जाने के कारण उनको कांग्रेस ने काफी नाराजगी थी, जिसके कारण भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस ने पहले अरविंद डामोर को टिकट दिया, लेकिन बाद में बाप को समर्थन कर दिया। नाम वापस लेने के समय अरविंद डामोर गायब हो गए और कांग्रेस के नहीं चाहने पर भी डामोर उम्मीदवार बने रहे। उन्होंने कांग्रेस के सिंबल पर ही प्रचार किया और लोगों ने वोट भी डाला। बाप के उम्मीदवार राजकुमार रोत चौरासी से दूसरी बार विधायक हैं, जबकि इस क्षेत्र में आदिवासी मुद्दा सबसे बड़ा है। जल, जंगल, जमीन के मुद्दे पर ही चुनाव होता है। यहां पर धर्मान्तरण बड़ा मामला बनता जा रहा है, जहां पर ईसाई मिशनरीज़ सक्रिय हैं, जो आदिवासियों को बहला फुसलाकर धर्मान्तरण करवाने के लिए कुख्यात हैं। भाजपा इसको लेकर लंबे समय से काम कर रही है। संघ का वनवासी परिषद यहां पर धर्मांतरण रोकने के लिए ही काम करता है। इस चुनाव में भाजपा के महेंद्रजीत सिंह भारी पड़ते नजर आ रहे हैं।

झालावाड़ में वसुंधरा राजे की प्रतिष्ठा दांव पर है, जहां उनका बेटा पांचवी बार मैदान में है। वर्तमान चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों में चुनाव के लिहाज से दुष्यंत सिंह सबसे सीनियर प्रत्याशी हैं। दुष्यंत सिंह चार बार सांसद बन चुके हैं और पांचवी बार के लिए वसुंधरा ने पांच लाख पार का नारा दिया है। कांग्रेस की प्रत्याशी उर्मिला जैन हैं, जो सामाजिक रूप से सक्रिय बताई जाती हैं, लेकिन इस सीट पर कांग्रेस के लिए करने को कुछ ज्यादा नहीं है। इसी से लगी कोटा सीट पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला हैं, तो कांग्रेस ने भाजपा के विधायक रहे प्रहलाद गुंजल को मौका दिया है। ओम बिरला को यहां पर कांग्रेस नेताओं का बहुत सहारा है। प्रहलाद गुंजल को अशोक चांदना और सचिन पायलट का सहारा है, जबकि ओम बिरला को शांति धारीवाल ने परोक्ष रूप से बहुत फायदा पहुंचाया है। यह सीट भी भाजपा को जाती दिखाई दे रही है। ओम बिरला यदि संसद पहुंचते हैं, तो लगातार दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बनना भी तय माना जा रहा है।

टोंक सवाई माधोपुर सीट पर भाजपा ने तीसरी बार सुखबीर जौनपुरिया को मैदान में उतारा है, जहां उनका मुकाबला कांग्रेस के हरीश मीणा से है। हरीश मीणा दूसरी बार देवली से विधायक हैं, जबकि 2014 में भाजपा के टिकट पर दौसा से सांसद रह चुके हैं। जौनपुरिया दो बार से सांसद हैं, जबकि लगातार 10 साल से सत्ता में रहने के कारण उनके खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी भी है। हरीश मीणा को मीणा और गुर्जर वोटर्स का साथ मिल सकता है, क्योंकि सचिन पायलट भी हरीश मीणा के लिए जमकर प्रचार कर चुके हैं। इस सीट पर गुर्जर—मीणा ही सबसे अधिक मतदाता हैं। यह सीट भाजपा के लिए सबसे अधिक मुश्किल सीटों में से एक है। जौनपुरिया तीसरी बार जीतते हैं, तो उनको मंत्री पद मिल सकता है। 

अजमेर लोकसभा सीट पर भाजपा ने भागीरथ चौधरी को दूसरी बार चुनाव लड़ाया है, जिनके सामने कांग्रेस के रामचंद्र चौधरी हैं। मत प्रतिशत कम होने का मतलब साफ है कि कांग्रेस का मतदाता वोट देने में इंटरेस्ट ही नहीं ले रहा था। भागीरथ चौधरी साफ तौर पर जीतने की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं, साथ ही जीत पर उनको केंद्र में मंत्री पद मिल सकता है। भागीरथ हाल ही के विधानसभा चुनाव में किशनगढ़ से चुनाव हार गए थे। वे 2013 से 2018 तक यहीं से विधायक रहे हैं। भीलवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने सीपी जोशी को चुनाव लड़ाया है, जो विधानसभा अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन इतने कमजोर साबित हुए हैं कि भाजपा के दामोदर अग्रवाल बड़ी जीत की तरफ बढ़ गए हैं। यहीं पर भाजपा ने पिछला चुनाव सबसे अधिक वोटों से जीता था। लगती सीट चित्तौडगढ़ से भाजपा के अध्यक्ष सीपी जोशी का मुकाबला कांग्रेस के पूर्व मंत्री उदयलाल आंजना हैं। यहां पर भी मुकाबला एक तरफा दिखाई दे रहा है। यही हालात राजसमंद सीट के हैं, जहां पर महिमा सिंह को भाजपा ने पहली बार मौका दिया है, जबकि कांग्रेस ने दामोदर गुर्जर को टिकट दिया था। यह सीट भी भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में से एक है। 

पहले चरण की 12 में से 8 सीटों पर भाजपा बहुत मजबूत है, जबकि चार सीटों में से दो पर चुनाव बुरी तरह से फंसा हुआ है। दो सीटों पर कांग्रेस मजबूत दिखाई दे रही है। फंसी हुई सीटों में एक नागौर है, जबकि दूसरी झुंझुनूं सीट है। दौसा और जयपुर ग्रामीण सीट पर कांग्रेस भारी पड़ती नजर आ रही है। इस तरह से देखा जाए तो इस बार भाजपा के लिए पिछली दो जीत के परिणाम को दोहराना बेहद कठिन दिखाई दे रहा है। दोनों प्रमुख दलों के अलावा एक सीट आरएलपी, एक सीपीआईएम, एक पर बाप और एक सीट पर निर्दलीय की भी इज्जत दांव पर लगी हुई है। मोटे तौर पर अनुमान लगाया जाए तो कह सकते हैं कि राजस्थान की 25 में से 22 सीटों पर भाजपा जीत रही है, लेकिन 3 सीटों पर कुछ भी कहना कठिन है। आने वाली 4 जून बताएगी कि भाजपा 25 की हैट्रिक कर पाती है, या 15 साल बाद कांग्रेस अपना खाता खोल पाती है? 

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