लोकसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा छोटे दलों के नेता भी अपने—अपने उम्मीदवारों को जिताने के लिए प्रचार प्रसार कर रहे हैं। भाजपा—कांग्रेस चाहते हैं कि सभी 25 सीटों पर उनके उम्मीदवार जीत जाएं, लेकिन राज्य की 7 सीटों पर भाजपा—कांग्रेस के नेता ही नहीं चाहते हैं कि उनके दल के उम्मीदवार जीत जाएं। ये नेता केवल भाजपा या कांग्रेस के ही नहीं है, अपितु भारत आदिवासी पार्टी, आरएलपी जैसी छोटी पार्टियों के भी हैं। आज इस वीडियो में मैं उन सीटों और नेताओं के बारे में विस्तार से बताउंगा, जहां विपक्षी प्रत्याशियों को जिताने का खेल चल रहा है।
सबसे पहले बात नागौर की, जहां खींवसर के विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर लोकसभा से इंडिया अलाइंस के उम्मीदवार हैं। आगे बढ़ने से पहले आपको बता दूं कि पांच साल पहले भी बेनीवाल खींवसर से विधायक थे और नागौर लोकसभा सीट से भाजपा नीत गठबंधन एनडीए के प्रत्याशी बनाए गए थे। बेनीवाल के जीतने के बाद खींवसर में उपचुनाव हुए, जिसमें उनके भाई नारायण बेनीवाल विधायक बने थे। अब एक बार फिर वही स्थिति दिखाई दे रही है। हालांकि, कांग्रेस इस सीट पर सबसे अधिक चांस देख रही है, कांग्रेस के कई नेता चाहते हैं कि बेनीवाल लोकसभा का चुनाव जीत जाएं, यह वाजिब बात भी लगती है कि उनका गठबंधन जीते, ताकि दूसरे नेताओं को अवसर मिले, लेकिन इसके साथ ही अंदरखाने भाजपा के भी कई नेता चाहते हैं कि हनुमान बेनीवाल नागौर से लोकसभा का चुनाव जीत जाएं, ताकि उनको फिर से चुनाव लड़ने का अवसर मिल सके।
चार महीने पहले खींवसर सीट पर हनुमान के सामने कांग्रेस के तेजपाल मिर्धा थे। दूसरी ओर भाजपा के रेवंत राम डांगा प्रत्याशी थे। उस त्रिकोणीय मुकाबले में बेनीवाल करीब 2000 वोटों से जीत गए। अब हनुमान बेनीवाल को कांग्रेस—आरएलपी ने संयुक्त प्रत्याशी बनाया है, और कांग्रेस चाहती है कि वो जीतकर संसद जाएं, ताकि 10 साल से जारी जीत का सूखा मिटाया जा सके। तेजपाल मिर्धा पर बेनीवाल ने परोक्ष रुप से उनका साथ नहीं देने का आरोप लगाया है, लेकिन हकीकत यह है कि तेजपाल मिर्धा खुद चाहते हैं कि हनुमान बेनीवाल लोकसभा चुनाव जीत जाएं। यदि बेनीवाल ने यह चुनाव जीता तो खींवसर सीट खाली हो जाएगी, जिसके बाद उपचुनाव होंगे और उसके में तेजपाल मिर्धा को फिर से कैंडीडेट बनाने की संभावना पैद होगी।
दूसरी तरफ भाजपा के रेवंतराम डांगा भी यही प्रार्थना कर रहे होंगे कि हनुमान बेनीवाल लोकसभा का चुनाव जीत जाएं, ताकि उपचुनाव में उनको भाजपा अपना प्रत्याशी बनाए और उनको फिर से भाग्य आजमाने का अवसर मिले। सीधे तौर पर कहीं दिखाई नहीं दे रहा है कि रेवंतराम डांगा हनुमान बेनीवाल को चुनाव जिताने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह तय बात है कि अंदर ही अंदर जरूर प्रार्थना कर रहे होंगे कि आरएलपी चुनाव जीते तो सीट खाली हो और उनको चुनाव लडने का मौका मिल सके।
कांग्रेस—भाजपा के अलावा लड़ने वालों में शिव विधानसभा सीट से हाल ही में चुनाव जीते रविंद्र भाटी भी मैदान में हैं। उन्होंने विधानसभा चुनाव में चर्तुष्कोणीय मुकाबले में जीत हासिल की थी। युवाओं की भीड़ के सहारे उन्होंने निर्दलीय ताल ठोक दी है। माना जा रहा है कि सीट को हासिल करने के लिए उनके पीछे कई ताकतें लगी हैं, जो जातिगत आधार पर चुनाव जीतना चाहती हैं। हालांकि, जितनी ताकत रविंद्र लगा रहे हैं, उतनी ही ताकत भाजपा कांग्रेस के कई नेता भी लगा रहे हैं, जो चाहते हैं कि शिव विधनसभा सीट खाली हो जाए तो और यहां पर भी उपचुनाव हो, ताकि उनको फिर से भाग्य आजमाने का अवसर मिल सके। कांग्रेस ने यहां पर अमीन खान को टिकट दिया था, जबकि भाजपा के स्वरूप सिंह खारा प्रत्याशी थे।
इसी तरह से मजबूत उम्मीदवार के तौर पर फतेह खान ने भी चुनाव लड़ा था। चार उम्मीदवार होने के कारण यहां पर वोटों का पोलराइजेशन हो गया और इसका फायदा निर्दलीय रविंद्र भाटी को मिला। फतेह खान कांग्रेस से टिकट मांग रहे थे। अब न केवल फतेह खान, बल्कि भाजपा के स्वरूप सिंह खारा भी चाहते होंगे कि शिव विधायक रविंद्र भाटी लोकसभा का चुनाव जीत जाएं, ताकि उपचुनाव में उनको मौका मिल सके। जबकि भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी हैं और कांग्रेस ने उम्मेदाराम बेनीवाल को उम्मीदवार बनाया है। उम्मेदाराम हाल ही में बायतु से लगातार दूसरी बार चुनाव हारे हैं।
इसी तरह से अलवर की मुंडावर सीट का सीन है, जहां पर अभी कांग्रेस के ललित यादव चार महीने पहले ही चुनाव जीते हैं। उन्होंने भाजपा के धर्मपाल चौधरी को करीब 34 हजार वोटों से हराया था। यह जीत अलवर में कांग्रेस की सबसे बड़ी जीत रही थी और इसीलिए कांग्रेस ने ललित यादव को लोकसभा का टिकट दिया है। मुण्डावरा में यादव और जाट सबसे बड़ी आबादी है। यहां का जाट मतदाता भी इस बार लोकसभा में ललित यादव को वोट दे सकता है। इसका कारण यह है कि ललित यादव यदि लोकसभा जाते हैं तो फिर उपचुनाव होगा और उसमें भाजपा अपना उम्मीदवार धर्मपाल चौधरी को बना सकती है। इसी तरह से कांग्रेस के कई दावेदार जोरदार तैयारी कर रहे हैं, ताकि सीट खाली होते ही उपचुनाव में उनको फिर से मौका मिल सके। वैसे तो कई फैक्टर हैं, लेकिन यहां पर बाहरी बनाम स्थानीय का मुद्दा भी हावी है। भाजपा के लोकसभा प्रत्याशी भुपेंद्र यादव हरियाणा से आते हैं, जो पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं, इससे पहले दो बार राज्यसभा सांसद रहे हैं।
झुंझुनूं लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने झुुंझुनूं के विधायक बृजेंद्र ओला को टिकट दिया है, जो यहां से लगातार चौथी बार जीते हैं। उनके सामने भाजपा के शुभकरण चौधरी हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में झुंझुनूं से भाजपा ने बबलू चौधरी को टिकट दिया था। बबलू चौधरी भी चाहते होंगे कि बृजेंद्र ओला लोकसभा का चुनाव जीत जाएं। यदि बृजेंद्र ओला झुंझुनूं से चुनाव जीतेंगे तो यह विधानसभा सीट खाली होगी और उपचुनाव होगा, जिसमें बबलू चौधरी को फिर से चुनाव लड़ने का अवसर मिल सकता है। ठीक इसी तरह से कांग्रेस के भी कई दावेदार हैं, जो झुंझुनूं विधानसभा सीट पर अपना भविष्य तलाश रहे हैं। यदि बृजेंद्र ओला जीतकर संसद पहुंचते हैं, तो उनमें से किसी को टिकट मिलेगा और चुनाव लड़ने का अवसर मिलेगा। यही वजह है कि इस सीट पर कांग्रेस ही नहीं, बल्कि भाजपा के नेता भी चाहते हैं कि बृजेंद्र ओला चुनाव जीत जाएं।
टोंक सवाईमाधोपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस की ओर से हरीश मीणा प्रत्याशी हैं, जबकि भाजपा ने वर्तमान सांसद सुखबीर सिंह जोनपुरिया को तीसरी बार उम्मीदवार बनाया है। हरीश मीणा इस समय देवली उनियारा से विधायक हैं। उन्होंने यहां पर लगातार दूसरी बार विधायक का चुनाव जीता है, जबकि 2014 में उन्होंने दौसा से भाजपा के टिकट पर सांसद बनने का गौरव हासिल किया था। हरीश मीणा को सचिन पायलट गुट से माना जाता है। पायलट की बगावत के समय चार साल पहले हरीश मीणा भी मानेसर में चले गए थे। देवली उनियारा सीट पर भाजपा के विजय बैंसला प्रत्याशी थे, जिनको हरीश मीणा ने करीब 19175 वोटों से हराया था, जबकि आरएलपी के प्रत्याशी विक्रम गुर्जर को 19773 वोट मिले थे। ऐसे में हरीश मीणा की यह जीत उनकी नहीं होकर विक्रम गुर्जर की कहें तो भी गलत नहीं होगा। विक्रम गुर्जर अब भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
टोंक सवाईमाधोपुर सीट पर यदि हरीश मीणा जीतते हैं तो न केवल कांग्रेस के दावेदारों का भाग्य चमक सकता है, बल्कि विजय बैंसला भी चाहेंगे कि हरीश मीणा लोकसभा का चुनाव जीत जाएं, ताकि देवली उनियारा सीट खाली हों और उनको उपचुनाव लडने का अवसर मिल सके। इसी तरह से भारत आदिवासी पार्टी के राजकुमार रोत चौरासी से विधायक हैं, उनको आदिवासी पार्टी ने बांसवाड़ा से लोकसभा का टिकट दिया है। यदि राजकुमार रोत जीत जाते हैं, तो इसका फायदा उनकी पार्टी के अलावा कांग्रेस और भाजपा के दावेदारों को भी होगा, जो विधायक बनने का सपना देख रहे हैं।
दौसा लोकसभा सीट पर भी यही नजारा बनता दिख रहा है, जहां पर कांग्रेस ने दौसा विधायक मुरारीलाल मीणा को टिकट दिया है। मुरारीलाल भी सचिन पायलट खेमे के खास विधायक हैं। दौसा लोसकभा सीट पर गुर्जर मीणा कॉम्बिनेशन मुरारी के पक्ष में दिखाई दे रहा है। यहां पर भाजपा ने चार बार के विधायक रहे कन्हैयालाल मीणा को टिकट दिया है। उनके साथ कैबिनेट मंत्री डॉ. किरोडीलाल मीणा और वर्तमान सांसद जसकौर मीणा लगे हुए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि मुरारीलाल को जिताने की जितनी लालसा कांग्रेस के नेताओं में है, उतनी ही भाजपा नेताओं ने भी सपने देख रखे हैं। यदि मुरारीलाल जीत जाते हैं, तो दौसा विधानसभा सीट खाली हो जाएगी, जहां उपचुनाव में भाजपा के भी किसी नेता को चुनाव लड़ने का अवसर मिल सकेगा।......इस प्रकार से यह चुनाव न केवल जीते हुए विधायकों के दल के नेताओं को ही सपने नहीं दिखा रहा है, बल्कि विपक्षी दलों के भी कई नेता चाहते हैं कि लोकसभा प्रत्याशी बने सभी विधायक जीत जाएं। अब चुनाव परिणाम बताएगा कि प्रत्याशी दल के नेताओं और विपक्षी दलों के नेताओं ने इसके लिए कितनी मेहतन की है।
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