लोकसभा चुनाव में भाजपा 370 और एनडीए 400 पार के नारे के साथ प्रचार कर रही है, तो राजस्थान में सभी 25 सीटों को लगातार तीसरी बार जीतकर हैट्रिक बनाने का दावा भी कर रही है। किंतु हकीकत में भाजपा का यह सपना पूरा होने की संभावना धूमिल होती जा रही हैं। कारण है उम्मीदवारों की व्यक्तिगत कमजोरी, दल बदलकर चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी, स्थानीय मुद्दे और आरएलपी के साथ भाजपा के बजाए कांग्रेस का गठबंधन होना। यही वजह है कि खुद पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह राजस्थान में प्रचार के लिए जान लगा रहे हैं, फिर भी ऐसा क्या कारण है कि भाजपा के तीसरी बार सभी 25 सीट जीतने पर संशय खड़ा हो गया है। ये कौन सी पांच लोकसभा सीटें हैं, जहां भाजपा कमजोर पड़ रही है? तो यह भी जानना जरूरी है कि इन सीटों पर भाजपा के कमजोर पड़ने और कांग्रेस के मजबूत होने के क्या कारण हैं?
पिछले चुनाव में भाजपा ने आरएलपी से गठबंधन कर नागौर सीट हनुमान बेनीवाल को चुनाव लड़ाया था। इस बार बेनीवाल का भाजपा के बजाए कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ है। नागौर सीट पर हनुमान बेनीवाल फिर से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि खींवसर से विधायक हैं, जैसे 2019 के चुनाव में थे। पिछले चुनाव में इसी सीट पर कांग्रेस की उम्मीदवार ज्योति मिर्धा थीं, जो इस बार भाजपा की प्रत्याशी हैं। पिछले चुनाव में नागौर सीट पर एक तरफ भाजपा और आरएलपी को वोटर था तो इस बार कांग्रेस और आरएलपी का वोटर एक साथ है। 2019 में हनुमान बेनीवाल को 660051 वोट मिले थे, जबकि ज्योति मिर्धा को 478791 वोट मिले थे। इसके अलावा 13049 वोट नोटा को मिले थे। इस चुनाव में बेनीवाल ने ज्योति मिर्धा को 182250 वोटों से हरा दिया था। उससे पहले के आंकड़ों पर गौर करें जब बेनीवाल निर्दलीय मैदान में थे और ज्योति कांग्रेस की प्रत्याशी थीं, तब बेनीवाल को 159980 वोट मिले थे, जबकि ज्योति को 339573 वोट मिले। तब भाजपा के सीआर चौधरी ने ज्योति को 75218 वोटों से हराया था। यदि 2014 के वोटों को एक दिया जाए तो इस बार कांग्रेस—आरएलपी का उम्मीदवार भारी पड़ रहा है। इस सीट पर हनुमान बेनीवाल का क्रेज बढ़ता हुआ माना जा रहा है, लेकिन विधानसभा चुनाव में मिली शिकस्त के बाद बेनीवाल के कमजोर होने की बातें सामने आ रही हैं।
इसी तरह से दूसरी सीट है चूरू, जहां पर भाजपा के सांसद राहुल कस्वां इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। उनके सामने पैरा ओलंपिक खिलाड़ी देवेंद्र झाझड़िया भाजपा के प्रत्याशी हैं। राहुल कस्वां दो बार के सांसद हैं, जबकि इसी सीट से उनके पिता रामसिंह कस्वां चार बार सांसद रहे हैं। यहां की 8 में दो विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है, जबकि कांग्रेस के पास 5 और एक सीट बसपा के पास है। इस लिहाज से देखा जाए तो कांग्रेस बहुत भारी पड़ रही है, ऊपर से सीपीआईएम का कांग्रेस के साथ गठबंधन होने से भी भाजपा को नुकसान हो रहा है। हालांकि, लोकसभा चुनाव का इतिहास देखें तो भाजपा भारी पड़ रही है। यहां पर सीधे तौर पर राहुल कस्वां ने अपनी अस्मिता को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बना लिया है। कांग्रेस का फोकस जहां किसान, जवान और महिला पहलवान है, तो भाजपा का मुद्दा 10 साल का विकास, नरेंद्र मोदी की विराट छवि और टिकट कटने पर अपने स्वार्थ के लिए राहुल कस्वां द्वारा पार्टी बदल लेना भी बड़ा मुद्दा है। आज की तारीख में चूरू सीट पर भाजपा कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है।
तीसरी सीट बाड़मेर है, जहां पर कांग्रेस ने आएलपी के नेता उम्मेदाराम बेनीवाल को मैदान में उतारा है। यह सीट कभी जसवंत सिंह जैसे कद्दावर नेता की बपौती हुआ करती थी, लेकिन 2014 में भाजपा ने उनकी जगह कर्नल सोनाराम को टिकट दे दिया था। तब जसवंत सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए थे। 2019 में भाजपा ने कैलाश चौधरी को टिकट दिया, जो अभी केंद्र में कृषि राज्य मंत्री हैं। पिछले चुनाव में भाजपा को आरएलपी का साथ था। विधानसभा की 8 में से पांच सीट भाजपा, दो निर्दलीय और एक सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। दो में से एक प्रियंका चौधरी ने भाजपा को समर्थन दे दिया है, जबकि रविंद्र भाटी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं, जो शिव से विधायक हैं। हालांकि, चर्चा चल रही है कि अंत समय में भाटी भी भाजपा को समर्थन दे सकते हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा ने यह सीट सवा 2 लाख वोटों के बड़े अंतराल से जीती थी। किंतु इस बार आरएलपी और कांग्रेस के एक होने के कारण भाजपा के मुकाबला आसान नहीं है। फिर भी भाजपा को पूरा भरोसा है कि 10 साल के विकास कार्यों और पीएम मोदी की छवि का उसे पूरा फायदा मिलेगा। उम्मेदाराम बेनीवाल सरल स्वभाव के हैं और रविंद्र भाटी के निर्दलीय लड़ने की स्थिति में ठाकुर वोट का भाजपा को नुकसान हो सकता है। जबकि विधानसभा सीट पर जीत के हिसाब से भाजपा काफी मजबूत दिखाई दे रही है। प्रत्याशियों के अलावा यहां पर पीएम मोदी और हनुमान बेनीवाल के बीच भी मुकाबला देखने को मिलेगा।
दौसा लोकसभा सीट पर भाजपा के कन्हैयालाल मीणा का सीधा मुकाबला कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा से है, जो अभी विधायक हैं। कन्हैयालाल भी चार बार के विधायक हैं, जबकि मुरारीलाल भी चौथी बार विधायक हैं। दौसा लोकसभा की 8 विधानसभा सीटों में से 5 सीट भाजपा के पास हैं, जबकि 3 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। इस सीट पर भाजपा के कन्हैयालाल के साथ वर्तमान सांसद जसकौर मीणा और पूर्व सांसद किरोड़ी लाल मीणा का साथ है, जबकि कांग्रेस के पास मुरारी लाल के मीणा मतदाताओं के अलावा सचिन पायलट की वजह से गुर्जर वोटर्स का भी सहारा है। पिछली बार भाजपा प्रत्याशी जसकौर ने यह सीट केवल 78 हजार वोटों से जीती थी, जो राज्य की 25 सीटों में सबसे कमजोर जीत थी। दौसा लोकसभा सीट पर यदि मीणा—गुर्जर एक होकर किसी एक पार्टी के पक्ष में चले जाएं तो जीत तय है। इस लिहाज से मुरारी के मीणा वोट और पायलट के गुर्जर वोट मिलकर भाजपा पर भारी पड़ते दिख रहे हैं। यदि जसकौर और किरोड़ी ने ईमानदारी से कन्हैया का साथ नहीं दिया तो यह सीट भाजपा के हाथ से छिटक भी सकती है।
भाजपा के लिए राज्य की पांचवी कमजोर सीट जोधपुर दिखाई दे रही है, जहां पर गजेंद्र सिंह शेखावत तीसरी बार मैदान में हैं। अभी केंद्र में जल शक्ति जैसे बड़ा मंत्रालय उनके पास है, लेकिन इस बार आरएलपी कांग्रेस के साथ है, जिसकी पिछले चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को जिताने में महती भूमिका थी। 2014 में भाजपा यहां पर 4 लाख 10 हजार वोटों से जीती थी, लेकिन 2019 में जीत का अंतर 3 लाख 74 हजार ही रहा गया था। कांग्रेस ने इस बार स्थानीय ठाकुर समाज के नेता करणी सिंह को टिकट दिया है, उन्होंने गजेंद्र सिंह के बाहरी होने का मुद्दा पकड़ रखा है। इस लोकसभा सीट की 8 में से 7 विधानसभा सीटों पर भाजपा को कब्जा है, जबकि एक सीट कांग्रेस के पास है। यहां पर स्थानीय मुद्दों को महत्व दिया गया तो कांग्रेस उम्मीदवार को बड़ा लाभ मिल सकता है। हालांकि, यह भी पक्का है कि पायलट कैंप से आने वाले करणी सिंह को गहलोत गुट हराने में कसर नहीं छोड़ेगा। गजेंद्र सिंह पर 10 साल में वादाखिलाफी करने के आरोप हैं, जबकि जोधपुर शहर में एलिवेटेड रोड सबसे बड़ा मुद्दा है। इसी तरह से यहां पर पाकिस्तान से आए हिंदुओं को बसाने का भी एक मुद्दा है। भाजपा जहां मोदी के कामकाज पर वोट मांग रही है तो कांग्रेस ने गजेंद्र सिंह को बाहरी बताकर स्थानीय को चुनने के मामले पर अधिक फोकस किया है।
इस तरह से देखा जाए तो भाजपा के सामने इस बार सभी 25 सीटों पर हैट्रिक करने का दबाव है तो कांग्रेस 10 साल से एक अदद सीट की तलाश में है। भाजपा जहां राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, सीएए के साथ ही मोदी सरकार के विकास कार्यों के नाम पर वोट मांग रही है तो कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार ने लोकतंत्र को खत्म करने का काम किया है। कांग्रेस में सबसे बड़ी कमी सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच कभी नहीं मिटने वाली गहरी खाई है तो भाजपा एकजुट होकर मैदान में उतर रही है। भाजपा के अनुसार आने वाला चुनाव देश का भविष्य तय करेगा तो कांग्रेस का मानना है कि यदि भाजपा इस बार भी सत्ता में आई तो देश में संविधान और लोकतंत्र खत्म हो जाएगा। अब यह राज्य की जनता को तय करना है कि लगातार तीसरी बार भाजपा को सभी 25 सीटें देनी है, या फिर एक सीट की तलाश में जुटी कांग्रेस का खाता खुलवाना है।
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