लोकसभा चुनावों को लेकर राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के उम्मीदवारों की घोषणा का काम चल रहा है। भाजपा ने 15 उम्मीदवारों की अपनी पहली सूची जारी कर दी है तो बची हुई 10 सीटों पर भी जबरदस्त मंथन चल रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस पहली सूची में करीब 10 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने की तरफ बढ़ रही है।
संभवत: दो दिन में कांग्रेस भी अपनी पहली लिस्ट जारी कर देगी, उसके बाद ही भाजपा बचे हुए नाम अनाउंस करेगी। बीजेपी ने अपनी पहली लिस्ट में 7 टिकट बदले हैं, जिनमें एक टिकट चूरू सांसद राहुल कस्वां का भी है, जिनको लगातारी तीसरी बार टिकट का भरोसा था, लेकिन उनको टिकट नहीं मिला है। इसका फायदा कांग्रेस उठाने का प्रयास करेगी। बताया जा रहा है कि कांग्रेस ने चूरू से राहुल कस्वां को टिकट देने का प्रस्ताव भी दे दिया है।
आपको याद होगा कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनाव लगातारी सभी 25 सीटें हार रही है, लेकिन इस बार कम से कम आधी सीटों पर जीतने का प्रयास कर रही है। हालांकि, कांग्रेस में नेताओं की खींचतान चल रही है, लेकिन फिर भी पार्टी आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर मौजूदा विधायकों को लोकसभा लड़ाने पर मंथन कर रही है। राजस्थान से कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी ने इन विधायकों के नाम केंद्रीय चुनाव समिति को भिजवाए हैं।
इन नामों में जालोर-सिरोही से अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत, बीकानेर से पूर्व मंत्री गोविंद राम मेघवाल, बारां-झालावाड़ से पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया का नाम पैनल में है। पाली से लगातार दो बार से हार रहे बद्रीराम जाखड़ का टिकट इस बार कट जाएगा, उनकी जगह पूर्व विधायक दिव्या मदेरणा को मैदान में उतारने पर सहमति बन गई है।
कांग्रेस राजस्थान में पहली सूची में उन सीटों पर फोकस कर रही है, जिनको ए श्रेणी में रखा गया है। जहां कांग्रेस के अधिक विधायक जीते हैं, उन लोकसभा सीटों को ए श्रेणी में रखा गया है। बीकानेर, श्रीगंगानगर, जालोर-सिरोही, अजमेर, अलवर, टोंक-सवाईमाधोपुर, झुंझुनूं, भीलवाड़ा, कोटा-बूंदी, बारां-झालावाड़ और राजसमंद सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर सकती है।
भाजपा जहां लगातार तीसरी बार मोदी के नाम पर मैदान में उतरेगी तो कांग्रेस के पास उनके नेताओं का जनाधार ही एकमात्र जीत का आधार होगा, क्योंकि नरेंद्र मोदी की तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी की स्वीकार्यता नहीं है। इस वजह से कांग्रेस कुछ सीटों पर बीजेपी के नाराज नेताओं के साथ संपर्क में है।
चूरू से बीजेपी का टिकट कटने के बाद से सांसद राहुल कस्वां नाराज चल रहे हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार राहुल कस्वां के संपर्क में हैं, अगर वे बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होते हैं, तो उन्हें चूरू से टिकट का प्रस्ताव दिया गया है। हालांकि, राहुल कस्वां ने अभी तक भी अपना रुख साफ नहीं किया है, इसलिए कांग्रेस वेट एंड वॉच की रणनीति अपना रही है।
कांग्रेस का मानना है कि बड़े नेताओं को आगे बढ़कर मैदान में उतरना चाहिए, अन्यथा छोटे कद के या कम पॉपुलर नेताओं को फिर से हार का मुंह देखना होगा। इस वजह से पार्टी अपने सबसे बड़े नेताओं को मैदान में उतराने पर मंथन कर रही है। इस कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी, पूर्व मंत्री शांति धारीवाल, पूर्व मंत्री हरीश चौधरी, हेमाराम चौधरी, बृजेंद्र ओला, मुरारी मीणा को टिकट देने पर विचार किया गया है।
दूसरी तरफ हनुमान बेनीवाल की आरएलपी का भाजपा से गठबंधन नहीं हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस राजस्थान में तीन सीटों पर गठबंधन को लेकर सहयोगी दलों के साथ बातचीत कर रही है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन को लेकर चर्चा चल रही है। हनुमान बेनीवाल की पार्टी से नागौर और बाड़मेर सीट पर गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है।
फिलहाल गठबंधन को लेकर बातचीत फाइनल स्टेज पर बताई जा रही है, लेकिन आधिकारिक रूप से कांग्रेस ने अभी कोई रुख सामने नहीं रखा है। आरएलपी के साथ अशोक गहलोत गठबंधन करना चाहते हैं, लेकिन सचिन पायलट इसके पक्ष में नहीं हैं। इसका कारण यह है कि जिस नागौर में हनुमान बेनीवाल का पलड़ा भारी है, जहां पर मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया जैसे पायलट कैंप के नेता जीतकर आते हैं।
इसी तरह से बाड़मेर में हरीश चौधरी भी आरएलपी से अलाइंस के पक्ष में नहीं हैं। हरीश चौधरी और हनुमान बेनीवाल के बीच काफी समय तक शब्द बाण चल चुके हैं, तो हेमाराम चौधरी भी अलाइंस के पक्ष में नहीं हैं। बेनीवाल का सबसे अधिक प्रभाव नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर की सीटों पर ही है। यहीं पर सचिन पायलट, हरीश चौधरी और हेमाराम चौधरी आरएलपी के साथ अलाइंस करने के लिए सहमत नहीं हैं। इस वजह से कहा जा रहा है कि पायलट—गहलोत के बीच हनुमान बेनीवाल फंस गए हैं।
दरअसल, अशोक गहलोत इन्हीं नेताओं का जनाधार कम करने के लिए अलाइंस के लिए गांधी परिवार को मनाने में जुटे हैं। हमेशा की तरह अशोक गहलोत दूसरे नेताओं के कंधों पर बंदूक रखकर चला रहे हैं, जबकि खुद शेफ रह जाना चाहते हैं। गहलोत का अब अपने बेटे को चुनाव जिताकर राजनीति में स्थापित करने का एक सूत्री कार्यक्रम रह गया है।
गहलोत के लिए पार्टी की जीत पहले भी मायने नहीं रखती थी और अब भी नहीं रखती है। पिछले चुनाव में पार्टी की बुरी तरह से हार के बाद खुद गांधी परिवार ने ही कहा था कि गहलोत और कमलनाथ अपने बेटों को जिताने में लगे हुए थे। इस बार भी गहलोत उसी रणनीति पर चल रहे हैं।
तमाम बड़े नेताओं के नाम चुनाव में सामने आ रहे हैं, लेकिन गहलोत अपने जिले जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। उनको पता है कि जनता उनको पसंद नहीं करती है। हर बार गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस चुनाव हारी है।
दूसरी तरफ भाजपा भी अपनी बची हुई 10 सीटों पर उम्मीदवार का मंथन कर रही है। भाजपा के पास मोदी का चेहरा है, जिसके सहारे चूरू से देवेंद्र झाझड़िया और यहां तक की उदयपुर से आरटीओ अधिकारी तक को टिकट दिया गया है।
जिस हालात से कांग्रेस गुजर रही है और भाजपा एकजुट होकर चुनाव लड़ती है, उससे दोनों की जीत भी सुनिश्चित दिखाई दे रही है। देशभर में भाजपा 370 और एनडीए 400 पार का लक्ष्य लेकर चल रही है, उसके पीछे कई वजह हैं। लेकिन राजस्थान में भाजपा लगातार तीसरी बार 25 में से 25 सीटों की तरफ बढ़ती दिख रही है।
पहली सूची में उन टिकटों को काटा गया है, जहां सांसद कमजोर पड़ रहे थे। अब 10 सीटों पर निर्विवाद उम्मीदवार तय किए जाने हैं। इन 10 में जयपुर, जयपुर ग्रामीण, अजमेर, राजसमंद, झुंझुनू, धौलपुर—करौली, दौसा, टोंक—सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा और श्रीगंगानगर लोकसभा सीटें हैं। इनमें से राजसमंद और जयपुर ग्रामीण सीटें अभी खाली हैं, जबकि अजमेर और झुंझुनू सांसदों के विधानसभा चुनाव हारने के कारण यहां पर प्रत्याशी बदलने की पूरी संभावना है।
जयपुर ग्रामीण सीट पर भाजपा के द्वारा डॉ. सतीश पूनियां या चौथमल सामोता को टिकट दे सकती है। सतीश पूनियां आमेर से विधायक रहे हैं, जबकि सामोता यहां के निवासी हैं और बीते 45 साल से भाजपा के लिए आम कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं।
इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी सामोता को शाहपुरा से टिकट देने की तैयारी थी, लेकिन भाजपा के ही दो बड़े नेताओं के वीटो कर दिया था। चौथमल सामोता तब से भाजपा को खड़ा कर रहे हैं, जबसे पार्टी का गठन हुआ था। संघ के बेहद करीबी चौथमल सामोता को पार्टी टिकट देती है, तो उनके सामने कांग्रेस का उम्मीदवार टिक भी पाएगा, इसमें संशय है।
अजमेर से डॉ. सतीश पूनियां को उतारने की प्रबल संभावना है, जबकि वर्तमान सांसद भागीरथ चौधरी को संगठन में सक्रिय किया जाएगा। राजसमंद से राजेंद्र राठौड़ टिकट मांग रहे हैं, लेकिन दिया कुमारी के करीबी को टिकट देने की चर्चा चल रही है। यहां पर जाट, गुर्जर, रावत सबसे बड़ी जातियां हैं, जो जीत—हार तय करेगी।
राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ तीनों जातियों में रोष है, उससे बचने के लिए भाजपा दिया कुमारी की बात को महत्व देगी। यहां पर यदि भाजपा ने राठौड़ के अलावा विचार किया तो पहला नाम डॉ. अरविंद सिंह का नाम सामने आ रहा है, जो वरिष्ठ पत्रकार और पॉलिटिकल एडवाइजरी हैं।
अरविंद सिंह का नाम इसलिए सामने आ रहा है, क्योंकि काफी समय से सक्रिय हैं और रावत समाज में रासा सिंह रावत के बाद किसी को नेता बनाने पर विचार किया जाता है, जो यह नाम फिट बैठता है। इसके बाद रासा सिंह रावत के बेटे तिलक सिंह रावत उनकी बहू सुशीला रावत का नाम भी प्रमुखता से सामने आ रहा है। इस सीट पर रावत समाज के सर्वाधिक वोटर हैं, जबकि जाट वोट राजेंद्र राठौड़ के नाम से बुरी तरह से चिढ़ा हुआ है।
दौसा में भाजपा वर्तमान सांसद जसकौर मीणा की बेटी अर्चना मीणा को उतार सकती, क्योंकि पार्टी अब कम से कम 5 सीटों पर महिलाओं को उतारने पर विचार कर ही है। इसके साथ ही टोंक—सवाईमाधोपुर से कर्नल किरोड़ी बैंसला की बेटी सुनीता बैंसला या उनके बेटे विजय बैंसला को टिकट दे सकती है।
धौलपुर—करौली सीट पर इस बार मनोज राजोरिया का टिकट भी संकट में है। जयपुर सीट से रामचरण बोहरा का टिकट कटना लगभग तय हो चुका है। झुंझुनू सीट पर राहुल कस्वां की पत्नी नीलू कस्वां को टिकट दे सकती है, जो कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ भतीजी हैं।
यहां पर सांसद नरेंद्र खीचड़ काफी निष्क्रिय हैं, जो मंडावा से विधानसभा चुनाव हार गए थे। कुल मिलाकर भाजपा कांग्रेस के बीच हनुमान बेनीवाल ही एकमात्र तीसरी ताकत हैं, जो खुद सीटों पर प्रभाव डालते हैं, अन्यथा मुकाबला बिलकुल सीधा है।
आपको याद होगा कांग्रेस पिछले दो लोकसभा चुनाव लगातारी सभी 25 सीटें हार रही है, लेकिन इस बार कम से कम आधी सीटों पर जीतने का प्रयास कर रही है। हालांकि, कांग्रेस में नेताओं की खींचतान चल रही है, लेकिन फिर भी पार्टी आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर मौजूदा विधायकों को लोकसभा लड़ाने पर मंथन कर रही है। राजस्थान से कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी ने इन विधायकों के नाम केंद्रीय चुनाव समिति को भिजवाए हैं।
इन नामों में जालोर-सिरोही से अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत, बीकानेर से पूर्व मंत्री गोविंद राम मेघवाल, बारां-झालावाड़ से पूर्व मंत्री प्रमोद जैन भाया का नाम पैनल में है। पाली से लगातार दो बार से हार रहे बद्रीराम जाखड़ का टिकट इस बार कट जाएगा, उनकी जगह पूर्व विधायक दिव्या मदेरणा को मैदान में उतारने पर सहमति बन गई है।
कांग्रेस राजस्थान में पहली सूची में उन सीटों पर फोकस कर रही है, जिनको ए श्रेणी में रखा गया है। जहां कांग्रेस के अधिक विधायक जीते हैं, उन लोकसभा सीटों को ए श्रेणी में रखा गया है। बीकानेर, श्रीगंगानगर, जालोर-सिरोही, अजमेर, अलवर, टोंक-सवाईमाधोपुर, झुंझुनूं, भीलवाड़ा, कोटा-बूंदी, बारां-झालावाड़ और राजसमंद सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर सकती है।
भाजपा जहां लगातार तीसरी बार मोदी के नाम पर मैदान में उतरेगी तो कांग्रेस के पास उनके नेताओं का जनाधार ही एकमात्र जीत का आधार होगा, क्योंकि नरेंद्र मोदी की तरह कांग्रेस नेता राहुल गांधी की स्वीकार्यता नहीं है। इस वजह से कांग्रेस कुछ सीटों पर बीजेपी के नाराज नेताओं के साथ संपर्क में है।
चूरू से बीजेपी का टिकट कटने के बाद से सांसद राहुल कस्वां नाराज चल रहे हैं। कांग्रेस के रणनीतिकार राहुल कस्वां के संपर्क में हैं, अगर वे बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होते हैं, तो उन्हें चूरू से टिकट का प्रस्ताव दिया गया है। हालांकि, राहुल कस्वां ने अभी तक भी अपना रुख साफ नहीं किया है, इसलिए कांग्रेस वेट एंड वॉच की रणनीति अपना रही है।
कांग्रेस का मानना है कि बड़े नेताओं को आगे बढ़कर मैदान में उतरना चाहिए, अन्यथा छोटे कद के या कम पॉपुलर नेताओं को फिर से हार का मुंह देखना होगा। इस वजह से पार्टी अपने सबसे बड़े नेताओं को मैदान में उतराने पर मंथन कर रही है। इस कड़ी में कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व अध्यक्ष सचिन पायलट, पूर्व विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी, पूर्व मंत्री शांति धारीवाल, पूर्व मंत्री हरीश चौधरी, हेमाराम चौधरी, बृजेंद्र ओला, मुरारी मीणा को टिकट देने पर विचार किया गया है।
दूसरी तरफ हनुमान बेनीवाल की आरएलपी का भाजपा से गठबंधन नहीं हो रहा है। ऐसे में कांग्रेस राजस्थान में तीन सीटों पर गठबंधन को लेकर सहयोगी दलों के साथ बातचीत कर रही है। बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी से गठबंधन को लेकर चर्चा चल रही है। हनुमान बेनीवाल की पार्टी से नागौर और बाड़मेर सीट पर गठबंधन को लेकर बातचीत चल रही है।
फिलहाल गठबंधन को लेकर बातचीत फाइनल स्टेज पर बताई जा रही है, लेकिन आधिकारिक रूप से कांग्रेस ने अभी कोई रुख सामने नहीं रखा है। आरएलपी के साथ अशोक गहलोत गठबंधन करना चाहते हैं, लेकिन सचिन पायलट इसके पक्ष में नहीं हैं। इसका कारण यह है कि जिस नागौर में हनुमान बेनीवाल का पलड़ा भारी है, जहां पर मुकेश भाकर और रामनिवास गावड़िया जैसे पायलट कैंप के नेता जीतकर आते हैं।
इसी तरह से बाड़मेर में हरीश चौधरी भी आरएलपी से अलाइंस के पक्ष में नहीं हैं। हरीश चौधरी और हनुमान बेनीवाल के बीच काफी समय तक शब्द बाण चल चुके हैं, तो हेमाराम चौधरी भी अलाइंस के पक्ष में नहीं हैं। बेनीवाल का सबसे अधिक प्रभाव नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर की सीटों पर ही है। यहीं पर सचिन पायलट, हरीश चौधरी और हेमाराम चौधरी आरएलपी के साथ अलाइंस करने के लिए सहमत नहीं हैं। इस वजह से कहा जा रहा है कि पायलट—गहलोत के बीच हनुमान बेनीवाल फंस गए हैं।
दरअसल, अशोक गहलोत इन्हीं नेताओं का जनाधार कम करने के लिए अलाइंस के लिए गांधी परिवार को मनाने में जुटे हैं। हमेशा की तरह अशोक गहलोत दूसरे नेताओं के कंधों पर बंदूक रखकर चला रहे हैं, जबकि खुद शेफ रह जाना चाहते हैं। गहलोत का अब अपने बेटे को चुनाव जिताकर राजनीति में स्थापित करने का एक सूत्री कार्यक्रम रह गया है।
गहलोत के लिए पार्टी की जीत पहले भी मायने नहीं रखती थी और अब भी नहीं रखती है। पिछले चुनाव में पार्टी की बुरी तरह से हार के बाद खुद गांधी परिवार ने ही कहा था कि गहलोत और कमलनाथ अपने बेटों को जिताने में लगे हुए थे। इस बार भी गहलोत उसी रणनीति पर चल रहे हैं।
तमाम बड़े नेताओं के नाम चुनाव में सामने आ रहे हैं, लेकिन गहलोत अपने जिले जोधपुर से गजेंद्र सिंह शेखावत के सामने चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। उनको पता है कि जनता उनको पसंद नहीं करती है। हर बार गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस चुनाव हारी है।
दूसरी तरफ भाजपा भी अपनी बची हुई 10 सीटों पर उम्मीदवार का मंथन कर रही है। भाजपा के पास मोदी का चेहरा है, जिसके सहारे चूरू से देवेंद्र झाझड़िया और यहां तक की उदयपुर से आरटीओ अधिकारी तक को टिकट दिया गया है।
जिस हालात से कांग्रेस गुजर रही है और भाजपा एकजुट होकर चुनाव लड़ती है, उससे दोनों की जीत भी सुनिश्चित दिखाई दे रही है। देशभर में भाजपा 370 और एनडीए 400 पार का लक्ष्य लेकर चल रही है, उसके पीछे कई वजह हैं। लेकिन राजस्थान में भाजपा लगातार तीसरी बार 25 में से 25 सीटों की तरफ बढ़ती दिख रही है।
पहली सूची में उन टिकटों को काटा गया है, जहां सांसद कमजोर पड़ रहे थे। अब 10 सीटों पर निर्विवाद उम्मीदवार तय किए जाने हैं। इन 10 में जयपुर, जयपुर ग्रामीण, अजमेर, राजसमंद, झुंझुनू, धौलपुर—करौली, दौसा, टोंक—सवाई माधोपुर, भीलवाड़ा और श्रीगंगानगर लोकसभा सीटें हैं। इनमें से राजसमंद और जयपुर ग्रामीण सीटें अभी खाली हैं, जबकि अजमेर और झुंझुनू सांसदों के विधानसभा चुनाव हारने के कारण यहां पर प्रत्याशी बदलने की पूरी संभावना है।
जयपुर ग्रामीण सीट पर भाजपा के द्वारा डॉ. सतीश पूनियां या चौथमल सामोता को टिकट दे सकती है। सतीश पूनियां आमेर से विधायक रहे हैं, जबकि सामोता यहां के निवासी हैं और बीते 45 साल से भाजपा के लिए आम कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं।
इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी सामोता को शाहपुरा से टिकट देने की तैयारी थी, लेकिन भाजपा के ही दो बड़े नेताओं के वीटो कर दिया था। चौथमल सामोता तब से भाजपा को खड़ा कर रहे हैं, जबसे पार्टी का गठन हुआ था। संघ के बेहद करीबी चौथमल सामोता को पार्टी टिकट देती है, तो उनके सामने कांग्रेस का उम्मीदवार टिक भी पाएगा, इसमें संशय है।
अजमेर से डॉ. सतीश पूनियां को उतारने की प्रबल संभावना है, जबकि वर्तमान सांसद भागीरथ चौधरी को संगठन में सक्रिय किया जाएगा। राजसमंद से राजेंद्र राठौड़ टिकट मांग रहे हैं, लेकिन दिया कुमारी के करीबी को टिकट देने की चर्चा चल रही है। यहां पर जाट, गुर्जर, रावत सबसे बड़ी जातियां हैं, जो जीत—हार तय करेगी।
राजेंद्र राठौड़ के खिलाफ तीनों जातियों में रोष है, उससे बचने के लिए भाजपा दिया कुमारी की बात को महत्व देगी। यहां पर यदि भाजपा ने राठौड़ के अलावा विचार किया तो पहला नाम डॉ. अरविंद सिंह का नाम सामने आ रहा है, जो वरिष्ठ पत्रकार और पॉलिटिकल एडवाइजरी हैं।
अरविंद सिंह का नाम इसलिए सामने आ रहा है, क्योंकि काफी समय से सक्रिय हैं और रावत समाज में रासा सिंह रावत के बाद किसी को नेता बनाने पर विचार किया जाता है, जो यह नाम फिट बैठता है। इसके बाद रासा सिंह रावत के बेटे तिलक सिंह रावत उनकी बहू सुशीला रावत का नाम भी प्रमुखता से सामने आ रहा है। इस सीट पर रावत समाज के सर्वाधिक वोटर हैं, जबकि जाट वोट राजेंद्र राठौड़ के नाम से बुरी तरह से चिढ़ा हुआ है।
दौसा में भाजपा वर्तमान सांसद जसकौर मीणा की बेटी अर्चना मीणा को उतार सकती, क्योंकि पार्टी अब कम से कम 5 सीटों पर महिलाओं को उतारने पर विचार कर ही है। इसके साथ ही टोंक—सवाईमाधोपुर से कर्नल किरोड़ी बैंसला की बेटी सुनीता बैंसला या उनके बेटे विजय बैंसला को टिकट दे सकती है।
धौलपुर—करौली सीट पर इस बार मनोज राजोरिया का टिकट भी संकट में है। जयपुर सीट से रामचरण बोहरा का टिकट कटना लगभग तय हो चुका है। झुंझुनू सीट पर राहुल कस्वां की पत्नी नीलू कस्वां को टिकट दे सकती है, जो कि उप राष्ट्रपति जगदीप धनकड़ भतीजी हैं।
यहां पर सांसद नरेंद्र खीचड़ काफी निष्क्रिय हैं, जो मंडावा से विधानसभा चुनाव हार गए थे। कुल मिलाकर भाजपा कांग्रेस के बीच हनुमान बेनीवाल ही एकमात्र तीसरी ताकत हैं, जो खुद सीटों पर प्रभाव डालते हैं, अन्यथा मुकाबला बिलकुल सीधा है।
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