राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में पीढ़ी बदलाव के बाद से भाजपा बड़े बदलावों की तरफ बढ़ रही है। गुजरात से राज्यसभा जाने वाले पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा का इस्तीफा और भूपेंद्र यादव को राजस्थान से लोकसभा का टिकट देना कुछ अलग तरह के संकेत दे रहा है। पार्टी में विपक्ष से आने वालों का मेला सा लग गया है। भले ही गृहमंत्री अमित शाह ने कहा हो कि कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी अपने साथ जोड़ना है, किंतु हकीकत यह है कि केवल नेता ही पाला बदल रहे हैं। नेता भी वो हैं जो बरसों से भ्रष्टाचार कर रहे थे।
कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन करने वाला कोई नेता ऐसा नहीं है, जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हों। किंतु भाजपा उनको माला पहनाकर सबसे पहले अंगीकार कर रही है। समझ नहीं आ रहा है कि भाजपा को भाजपा ही रखना है या इसका कांग्रेसीकरण कर देना है। टॉप टू की पोजीशन भाजपा के लिए बरगद के वृक्ष की भांति बन गई है, जिनके आगे सभी नेता बौने साबित हो रहे हैं। बाकी सभी नेताओं के लिए ऊपर से जो संदेश मिलता है, उसकी पालना ही एकमात्र ध्येय नजर आ रहा है।
राजस्थान में 15 की सूची में 7 नये आए हैं, जिनमें अलवर सीट रिक्त थी। बाकी सीटों पर टिकट बदलकर पार्टी ने स्पष्ट संदेश दे दिया कि जो सक्रिय नहीं होगा, जिसको जनता नकार देगी या जो पार्टी लाइन से हटकर बात करेगा, उसको घर बिठा दिया जाएगा। यह बात और है कि चूरू वाला मामला विवादास्पद हो गया है, जहां असल लड़ाई राजेंद्र राठौड़ और राहुल कस्वां के वर्चस्व की दिखाई दे रही है।
पहले राठौड़ हारे और अब टिकट की रेस में राहुल हार गए। हालांकि, वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार इस टिकट बदलाव के बाद भी भाजपा को नुकसान होने की संभावना बेहद कम है, किंतु फिर भी पार्टी को दूरगामी परिणाम के हिसाब से निर्णय लेना चाहिए था। दो जनों की लड़ाई में एक को शहीद करने के बजाए दोनों में सुलह भी करवाई जा सकती थी, किंतु भाजपा की सोच कुछ और रही होगी।
अब 10 टिकट बकाया हैं। आरएलपी से गठबंधन की संभावना समाप्त हो चुकी हैं। राजेंद्र राठौड़ के अलावा पार्टी के सबसे कर्मठ नेताओं में एक डॉ. सतीश पूनियां को भी लोकसभा टिकट का इंतजार है, तो जयपुर शहर से अरुण चतुर्वेदी की संभावना सर्वाधिक दिखाई दे रही हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि रामचरण बोहरा की दोनों जीतन 100 प्रतिशत मोदी की जीत थीं, लेकिन पार्टी ऐसे नेताओं का बोझ क्यों उठाए, जो 10 साल बाद भी अपना जनाधार नहीं बना पा रहे हों।
अगली सूची में अजमेर, जयपुर ग्रामीण और राजसमंद के अलावा झुंझुनू सीट काफी अहम है। इन सीटों के किरदार अगली सरकार में मंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार होंगे। राठौड़ अपना आखिरी कार्यकाल तलाश रहे हैं, तो डॉ. सतीश पूनियां को अपनी दूसरी पारी शुरू होने का इंतजार है। इन दोनों के अलावा रामलाल शर्मा पर भी पार्टी का फोकस है। ऐसे में बाकी टिकटों पर सबकी निगाहें टिकी हैं।
राजस्थान में भाजपा ने पीढ़ी बदली तो सही, किंतु गहलोत सरकार की ब्यूरोक्रेसी हावी होने की चर्चे शुभ संकेत नहीं हैं। कम से कम टॉप पॉजिशन पर रहे अधिकारियों को तो दूर ही रखना चाहिए। कुछ अधिकारी 'काले अंग्रेज' ही हैं। उनको जनता और सरकारों से कोई मतलब नहीं है। उनका रंग सांवला है, बाकी बर्ताव बिलकुल अंग्रेजों जैसा ही है।
सरकार को सरकार बदलने का अहसास जनता को कराना होगा। भजनलाल शर्मा के रूप में अच्छा निर्णय लिया गया था, लेकिन अपने कार्यों के द्वारा अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी अभी से करनी होगी। गहलोत सरकार के जिन अधिकारियों को प्राइम पोस्ट दी गई हैं, उनको तुरंत हटाना चाहिए, जनता में संदेश विपरीत जा रहा है। यदि एक बार जनता ने मन बना लिया तो अगले चार साल में इस मन को बदलना लगभग नामुमकिन हो जाएगा।
सामान्य परिवार से निकले भजनलाल शर्मा जिस तरह से लोगों से मिलते हैं, उनकी बातें सुनते हैं और समाधान का प्रयास कर रहे हैं, ये भाजपा के लिए शुभ संकेत हैं। मगर जब तक अधिकारियों का रवैया नहीं बदलेगा, तब तक सीएम के अच्छे व्यवहार से कुछ नहीं होने वाला है। जनता यह तो समझ रही है कि सीएम उनके जैसा ही है, किंतु जब तक अधिकारी सीएम की तरह काम नहीं करेंगे, तब तक सरकार का चेहरा दिखाई नहीं देगा।
पेपर लीक वाले मामले की तरह ही दूसरे अपराधों पर भी कड़ा रुख अपनाना होगा। प्रत्येक शहर में यातायात जाम की विकराल समस्या से मुक्ति के लिए स्थाई समाधान निकालना होगा। सरकार को आज से ही पांच साल आगे की तैयारी करना होगी, अन्यथा आखिरी छह महीने में गहलोत द्वारा अरबों रुपये लुटाने के बाद भी नैरेटिव नहीं बदल पाने की समस्या भाजपा के सामने भी खड़ी हो जाएगी।
रामगोपाल जाट
वरिष्ठ पत्रकार
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