आरएसएस और भाजपा के एजेंडे में पहले स्थान पर रहे मुद्दों में से एक मुद्दे का 22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन कर निपटारा कर दिया। इसके साथ ही हिंदुओं की आस्था के रोम—रोम में समाए राम के लिए लड़े जा रहे 500 साल के धर्मयुद्ध का अंत हो गया। भाजपा और हिंदू संगठन अयोध्या में राम मंदिर के अलावा काशी विश्वनाथ और मथुरा में कृष्ण जन्म स्थान को वापस लेने का नारा देते रहे हैं। राम मंदिर निर्माण के साथ ही एक मुद्दा पूर्ण हो चुका है, तो काशी विश्वनाथ और मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का प्रकरण कोर्ट में चल रहे हैं। इस बीच वाराणसी की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी परिसर के व्यासजी के तहखाने में पूजा—पाठ शुरू हो गया है।
31 साल पहले 1993 में यहां पूजा-पाठ पर रोक लगा दी गई थी, तब से व्यास परिवार कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा था। ज्ञानवापी परिवार के अंदर 10 तहखाने हैं। व्यासजी का तहखाना इन्हीं में से एक है। इस तहखाने का क्षेत्रफल 900 स्क्वायर फीट है और इसकी 7 फीट ऊंचाई है। व्यासजी का तहखाना ज्ञानवापी मस्जिद के बैरिकेड वाले दक्षिणी हिस्से में स्थित है। यह तहखाना काशी विश्वनाथ परिसर के गर्भगृह के पास नंदी की मूर्ति के ठीक सामने है।
व्यासजी का तहखाना के अंदर भगवान शिव, भगवान गणेश, कुबेरजी, हनुमान जी और मां गंगा की मगरमच्छ की सवारी वाली मूर्तियां हैं। व्यास परिवार के अनुसार तहखाने में 550 साल से पूजा-पाठ करता आ रहा है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार ने ज्ञानवापी के तहखाना के अंदर भी प्रवेश और पूजा पाठ पर रोक लगा दी थी।
इसके बाद से ही व्यास परिवार अदालत में लड़ाई लड़ रहा था। व्यास परिवार की तरफ से 'आचार्य वेद व्यास पीठ मंदिर' के मुख्य पुजारी शैलेंद्र पाठक व्यास ने याचिका दायर कर रखी थी। अदालत के आदेश के बाद व्यासजी के तहखाने में पूजा पाठ शुरू हो गई है। व्यास परिवार ने जिला प्रशासन की मौजूदगी में बैरिकेडिंग को हटाकर लोहे का गेट लगवाया।
व्यासजी के तहखाने में पूजा की अनुमति के बाद मुस्लिम नेता असद्दुदीन ओवैशी ने कहा है कि कोर्ट के आदेश के बाद 6 दिसंबर 1992 की अयोध्या घटना को दोहराया जा सकता है। यहां पूजा शुरू होने के बाद एक तरफ जहां हिंदू पक्ष पूरे ज्ञानवापी परिसर को मुस्लिमों से खाली करने की अपील कर रहा है, तो मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह जमीन खरीदी गई थी, कोई कब्जा नहीं किया गया और ना ही यहां पर मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के पश्चात आर्कियोलॉजी सर्वे ओफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट से यह भी साफ है कि काशी की ज्ञापवापी मस्जिद परिसर में मंदिर होने के सबूत छिपाने की कोशिश की गई थी, किंतु इन्हें मिटाया नहीं जा सका था। सर्वे रिपोर्ट में ज्ञानवापी परिसर में विशाल हिंदू मंदिर होने के कई सबूत सामने आए हैं।
इस रिपोर्ट में जीपीआर से हुई जांच के आधार पर एएसआई ने बताया कि तहखाने में 2 मीटर चौड़ा कुआं भी छिपा हुआ है। 100 दिन के सर्वे के बाद कोर्ट में सौंपी 839 पेज की रिपोर्ट में ASI ने परिसर के प्रमुख स्थानों का जिक्र किया है और कुल 321 साक्ष्य भी कोर्ट में जमा किए हैं। इस विवादित इमारत का सर्वे करने वाली टीम में मुस्लिम समुदाय के भी दो पुरातत्वविद, डॉ. इजहार आलम हाशमी, और डॉ. आफताब हुसैन भी शामिल थे। ASI ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन, सर्वेक्षण, वास्तुशिल्प, अवशेषों के अध्ययन, कलाकृतियों, शिलालेखों, कला और मूर्तियों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना के निर्माण से पहले यहां एक विशाल मंदिर मौजूद था।
कुछ हिस्सों को मॉडिफाई किया गया। मंदिर तोड़कर उसके मूलरूप को प्लास्टर और चूने से छिपाया गया। रिपोर्ट में मंदिर होने के 32 सबूत बताए गए हैं। दीवारों पर कन्नड़, तेलुगु, देवनागरी और ग्रंथ भाषाओं में लेखनी मिली है। दीवारों पर भगवान शिव के 4 में से 3 नाम हैं।
इसको संयोग कहें या तय समय के अनुसार होता काम कहें, किंतु राम मंदिर में रामजी की प्राण प्रतिष्ठा होने के तीन दिन बाद ही आर्कियोलॉजिकल सर्वे ओफ इंडिया की रिपोर्ट भी सार्वजनिक हो गई। इस रिपोर्ट को फास्ट ट्रैक कोर्ट में 25 जनवरी 2024 को पेश करनी थी, किंतु रिपोर्ट एक दिन पहले ही सौंप दी गई। वैसे तो मामला करीब 33 साल पुराना हो चुका है, लेकिन 2021 में इसको लेकर 34 अन्य याचिकाएं कोर्ट में दाखिल होने के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर फास्ट ट्रैक कोर्ट में 33 वर्ष पुराने मूल मुकदमे का ट्रायल शुरू हुआ है।
वाराणसी के काशी विश्वनाथ परिसर का मूल मुकदमा 1991 का है। इसकी सुनवाई करते हुए अगस्त 2021 में इस मुकदमे में सिविल जज की ओर से एएसआई सर्वे का आदेश दिया गया था, किंतु बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ASI सर्वे पर रोक लगा दी थी। इस बीच दिसंबर 2023 में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने फिर से सर्वे करने की इजाजत दी थी। मूल मुकदमे में पूरे ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व के अधिकार को लेकर वाद दाखिल किया गया था, जिसमें ज्ञानवापी मस्जिद और वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का परिसर भी शामिल है।
सर्वे रिपोर्ट के बाद ज्ञानवापी मस्जिद का मामला काफी तूल पकड़ चुका है। मस्जिद परिसर में हुए सर्वे और वीडियोग्राफी के विवाद ने काफी सालों पुराने विध्वंस गाथाओं को पुनः जन्म दे दिया है। हालांकि, सर्वे को लेकर भी मुस्लिम पक्ष तैयार नहीं था। पहले कई तरह के रोडे अटकाने का प्रयास किया गया, लेकिन जब मस्जिद परिसर में वजुखाने को खाली कर उसमें शिवलिंग की जांच कराने की बात आई तो मुस्लिम पक्ष ने नया पैंतरा चला। कहा गया कि वजुखाने में हजारों मछलियां हैं, वजुखाना खाली होने से उनकी मौत हो सकती है। ऐसे में कोर्ट ने आदेश दिया कि वजुखाने का पानी खाली करने से पहले मछलियों को बचाने के लिए आक्सीजन की व्यवस्था की जाए। अब हिंदू पक्ष मामले को आगे ले जाना चाहता है, तो मुस्लिम पक्ष ने बचाव में बयानबाजी शुरू कर दी है। दरअसल, 17वीं शताब्दी में मुगल आक्रांता औरंगेजब ने आखिरी बार इस मंदिर को तोड़कर यहां पर मस्जिद बनवाई थी। जितनी बार काशी विश्वनाथ बाबा के मंदिर को तोड़ा गया, उतना इतिहास में किसी अन्य मंदिर या धर्म स्थल को तोड़ने की जानकारी नहीं है। इस मंदिर का जो वर्तमान ढांचा है, उसको निर्माण औरंगजेब के बाद हुआ है।
पौराणिक मान्यताओं की मानें तो काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास युगों-युगांतर से है। विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। भगवान शिव का यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में गंगा नदी के किनारे स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर को विश्वेश्वर नाम से भी जाना है। विश्वेश्वर शब्द का अर्थ होता है ‘ब्रह्मांड का शासक’। यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है। मुगल शासकों द्वारा कई बार ध्वस्त किये गए काशी विश्वनाथ मंदिर हिंदू धर्म का प्रतीक और पावन मंदिरों में से एक माना जाता है।
यह मंदिर गंगा नदी के पश्चिमी तट पर है। इस मंदिर का दोबारा निर्माण 11 वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने करवाया था। 1194 ईसवीं में मुहम्मद गौरी ने इसे ध्वस्त कर दिया था, किंतु मंदिर का पुन: निर्माण करवाया गया। इसके बाद 1447 ईसवीं में इसे एक बार फिर जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया। इतिहास के पन्नों में झांकने पर यह ज्ञात होता है कि काशी मंदिर के निर्माण और तोड़ने की घटनाएं 11वीं सदी से लेकर 15वीं सदी तक चलती रहीं।
1585 में राजा टोडरमल की मदद से पंडित नारायण भट्ट ने विश्वनाथ मंदिर का एक बार फिर से निर्माण करवाया, लेकिन एक बार फिर 1632 में मुगल शासक शाहजंहा ने मंदिर का विध्वंस करने के लिए अपनी सेना भेजी। हालांकि, उसकी सेना अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई। औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 में इस मंदिर को ध्वस्त करा दिया। इसके बाद करीब 125 साल तक वहां कोई मंदिर नहीं था। वर्तमान में ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में जो बाबा विश्वनाथ का मंदिर है, उसका निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था विशवनाथ मंदिर पर आज जो सोना की परत दिखाई देता है, वो महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम सोने से चढ़वाई थी।
काशी में मंदिर के साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद भी है, जो मंदिर की ही मूल जगह पर बनाई गई है। ज्ञानवापी मस्जिद को मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर तोड़कर बनवाया था। ज्ञानवापी का अर्थ होता है ज्ञान का कुआं। यह शब्द ही बताता है कि यहां पर मस्जिद नहीं मंदिर था। मस्जिद की आधी टूटी दीवारें भी चीख—चीखकर कह रही हैं कि यह ढांचा काशी विश्वनाथ मंदिर का है। औरंगजेब द्वारा मंदिर तोड़कर उसकी जगह मस्जिद बनाने के पीछे एक रोचक कथा बताई जाती है, जिसका उल्लेख वामपंथी इतिहासकार डॉ. विश्वंभर नाथ पांडेय की पुस्तक 'भारतीय संस्कृति, मुगल विरासत: औरंगजेब के फ़रमान'' में मिलता है।
पट्टाभि सीतारमैया की पुस्तक 'फेदर्स एंड स्टोन्स' के हवाले से विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने संबंधी औरंगजेब के आदेश और उसकी वजह के बारे में में डॉ. विश्वंभर नाथ पांडेय अपनी पुस्तक के 119 और 120 पृष्ठ में इसका जिक्र करते हैं। उनकी मनोहर कहानी के अनुसार एक बार औरंगजेब बनारस के निकट के प्रदेश से गुज़र रहा था। सभी हिन्दू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन के लिए काशी आए हुए थे।
विश्वनाथ दर्शन कर जब लोग बाहर आए तो पता चला कि कच्छ के राजा की एक रानी गायब है। जब उनकी खोज की गई तो मंदिर के नीचे तहखाने में वस्त्राभूषण विहीन, भय से त्रस्त रानी दिखाई पड़ीं। जब औरंगजेब को पंडों की यह काली करतूत पता चली तो वह बहुत गुस्सा हुआ और बोला कि जहां मंदिर के गर्भगृह के नीचे इस प्रकार की डकैती और बलात्कार हो, वो निस्संदेह ईश्वर का घर नहीं हो सकता। इसलिए उसने मंदिर को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया।
औरंगजेब के आदेश की तत्काल पालन हुई, लेकिन जब यह बात कच्छ की रानी ने सुनी तो उन्होंने औरंगजेब के पास संदेश भिजवाया कि इसमें मंदिर का दोष नहीं है, दोषी तो वहां के पंडे हैं। इसके साथ ही रानी ने इच्छा प्रकट की कि मंदिर का पुनः निर्माण करवाया जाए, लेकिन औरंगजेब की कट्टर धर्मांधता के कारण मंदिर बनवाना संभव ही नहीं था, इसलिए उसने मंदिर की जगह मंदिर के अवशेषों से ही मस्जिद खड़ी कर दी।
कुछ ऐसे ही कहानीकारों के अनुसार अकबर ने 1585 में नए मजहब दीन-ए-इलाही के तहत विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद बनवाई थी। मस्जिद और विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम ज्ञानवापी रखा गया था।
विश्वनाथ मंदिर का प्रमुख शिवलिंग 60 सेंटीमीटर लंबा और 90 सेंटीमीटर की परिधि में है। मुख्य मंदिर के आसपास काल-भैरव, कार्तिकेय, विष्णु, गणेश, पार्वती और शनि के छोटे-छोटे मंदिर हैं। मंदिर में 3 सोने के गुंबद हैं। मुगलों के आक्रमण के दौरान शिवलिंग को ज्ञानवापी कुएं में छिपा दिया गया था।
इसे लेकर एडवोकेट विष्णु शंकर जैन का मानना है कि अभी जहां पर मुख्य मस्जिद का भाग है, उसके नीचे 100 फीट का शिवलिंग है। जब इस मस्जिद को हटाने का कोर्ट आदेश देगा, तब यह बात सामने आएगी कि मुख्य परिसर जो कभी काशी विश्वनाथ बाबा का स्थान था, उसके नीचे शिवलिंग को दफन कर कैसे मस्जिद का मुख्य स्थान बना दिया गया। इस क्षेत्र में फर्श की पट्टियां जब हटेंगी तो कई रहस्य खुलेंगे।
एएसआई की ताजा रिपोर्ट के अनुसार परिसर में मौजूद रहे विशाल मंदिर में बड़ा केंद्रीय कक्ष था। इसका प्रवेश द्वार पश्चिम से था, जिसे पत्थर की चिनाई से बंद किया है। केंद्रीय कक्ष के मुख्य प्रवेश द्वार को जानवरों व पक्षियों की नक्काशी और एक सजावटी तोरण से सजाया गया था। प्रवेश द्वार के ललाट बिम्ब पर बनी नक्काशी को काटा गया है। कुछ हिस्सा पत्थर, ईंट और गारे से ढक दिया गया है। तहखाने में उत्तर, दक्षिण और पश्चिम के तीन कक्षों के अवशेष को भी देखा जा सकता है, पर कक्ष के अवशेष पूर्व दिशा और उससे भी आगे की ओर हैं। इसका विस्तार सुनिश्चित नहीं हो सका, क्योंकि पूर्व का क्षेत्र पत्थर के फर्श से ढका हुआ है।
इस इमारत में पहले से मौजूद संरचना पर उकेरी गई जानवरों की आकृतियां थीं। ये आकृतियां 17वीं सदी की मस्जिद के लिए ठीक नहीं थीं, इसलिए इन्हें हटा दिया गया, पर इसके अवशेष आज भी हैं। मस्जिद के विस्तार व स्तंभ युक्त बरामदे के निर्माण के लिए पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों जैसे खंभे, भित्ति स्तंभ आदि का उपयोग बहुत कम किया था। जिनका उपयोग किया था, उन्हें जरूरत के अनुसार बदल दिया गया था। मस्जिद की इमारत की पश्चिमी दीवार, जिसे पहले से मौजूद रहे मंदिर का शेष भाग माना जाता है, मस्जिद उसी के पत्थरों से बनी है और पूरी तरह सुसज्जित की गई है। उत्तर और दक्षिण हॉल के मेहराबदार प्रवेश द्वारों को अवरुद्ध कर दिया गया है और उन्हें हॉल में बदल दिया गया है। सर्वे के दौरान मिला शिलालेख, जो संस्कृत भाषा से मिलता-जुलता है।
उत्तर दिशा के प्रवेश द्वार पर छत की ओर जाने के लिए बनी सीढ़ियां आज भी प्रयोग में हैं, जबकि छत की ओर जाने वाले दक्षिण प्रवेश द्वार को पत्थर से बंद किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि किसी भी इमारत की कला व वास्तुकला न केवल उसकी तारीख, बल्कि उसके स्वभाव का भी संकेत देती है। केंद्रीय कक्ष का कर्ण-रथ और प्रति-रथ पश्चिम दिशा के दोनों ओर दिखाई देता है। मस्जिद में सबसे महत्वपूर्ण चिह्न ‘स्वस्तिक’ है, जो हिंदू धर्म का पवित्र चिन्ह है, मुस्लिम स्वास्तिक का कभी इस्तेमाल नहीं करते। यहां पर एक एक अन्य बड़ा प्रतीक शिव का ‘त्रिशूल’ है।
करीब 30 साल पहले 1991 में भगवान विश्वेश्वर नाथ का मुकदमा दाखिल करके पहली बार पूजा पाठ की अनुमति मांगी गई। जिला अदालत ने सुनवाई की और मामला विचाराधीन ही था कि दो साल के दौरान 1993 में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दे दिया। मामला ही चल रहा था, लेकिन मोदी की पहली सरकार के आखिरी समय 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर की वैधता छह महीने बताई। इसके बाद 2019 वाराणसी की जिला अदालत ने मामले की सुनवाई फिर शुरू की।
चार साल बाद 2023 में जिला जज की अदालत ने मस्जिद के सील वजू खाने को छोड़कर ज्ञानवापी परिसर के सर्वे का आदेश दिया। सर्वे पूरा हुआ और रिपोर्ट अदालत में दाखिल की गई। इसी बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 के भगवान विश्वेश्वर मामले में स्टे ऑर्डर हटा दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने पूरे परिसर का एएसआई से सर्वे कराने और उसकी विस्तृत रिपोर्ट फास्ट ट्रेक बनाई गई निचली अदालत में दाखिल करने का आदेश दिया। 18 दिसंबर को ही एएसआई ने अपनी रिपोर्ट दी थी। 24 जनवरी 2024 में जिला जज की अदालत ने एएसआई की सर्वे रिपोर्ट पक्षकारों को उपलब्ध कराने का आदेश पारित किया है, जिसके बाद सभी दावेदार और मुस्लिम पक्ष भी इसका अध्ययन कर रहा है।
इस मामले को हिंदू पक्ष सुप्रीम कोर्ट ले जाने वाला है। हिन्दू पक्ष के वकील सुभाष नंदन चतुर्वेदी ने कहा कि ज्ञानवापी में पहला दावा सच हो गया है। अब वजूटैंक और कथित शिवलिंग के सर्वे को लेकर हम होमवर्क कर रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट में लंबित याचिका पर सुनवाई के लिए अपील की जाएगी। इसमें वजू स्थल के सील एरिया खोले जाने, कथित वजू स्थल टैंक का साइंटिफिक सर्वे और कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने के बिंदु शामिल रहेंगे।
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने दावा किया कि ASI की रिपोर्ट से साफ हो गया है कि ज्ञानवापी मस्जिद वहां पहले से मौजूद एक पुराने मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी, जिसमें मंदिर के सभी पिलर और पत्थरों का उपयोग किया गया। एक तरफ जहां एएसआई की सर्वे रिपोर्ट आने के बाद हिंदुओं में उत्साह है, वो सुप्रीम कोर्ट जाकर मामले को जल्द से जल्द सुलझाने की अपील करेंगे तो दूसरी ओर मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने चेतावनी देते हुए मामले में राजनीति करना शुरू कर दिया है, जबकि मामला अभी भी कोर्ट में है।
वर्तमान स्थल मंदिर का है, जिस पर गुंबद रख दिए गए। अब मामले में शेष बचे वजू स्थल के एएसआई सर्वे के लिए एडवोकेट तैयार हैं, इसके लिए याचिका तैयार की जा रही है जिसे सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जाएगा। यानी काशी विश्वनाथ का मामला भी राम मंदिर की तरह अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा। अब सवाल यह उठता है कि क्या सुप्रीम कोर्ट मस्जिद परिसर वाली जगह हिंदुओं को सौंपने का निर्णय दे सकता है, या मस्जिद को तोड़कर उसकी जगह मंदिर बनाने का आदेश दे सकता है?
इसके सामने वो कानून आड़े आ रहा है, जो 1991 के दौरान कांग्रेस सरकार ने बनाये थे। 1991 का पूजा अधिनियम राम मंदिर को छोड़कर 15 अगस्त 1947 से पहले सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात कहता है। इस कानून के अनुसार सभी उपासना स्थल इतिहास की परंपरा के मुताबिक ज्यों के त्यों बने रहेंगे। उसे किसी भी अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता है।
यह अधिनियम तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार के समय 1991 में आया था, तब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा, बिहार में उनकी गिरफ्तारी और उत्तर प्रदेश में कारसेवकों पर गोलीबारी ने सांप्रदायिक तनाव बढ़ा दिया था। उसी दौरान संसद में विधेयक को पेश करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री एसबी चव्हाण ने कहा था कि सांप्रदायिक माहौल को खराब करने वाले पूजा स्थलों के रूपांतरण के संबंध में समय-समय पर उत्पन्न होने वाले विवादों को देखते हुए इन उपायों को लागू करना आवश्यक है, तब के मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने इस विधेयक का पुरजोर शब्दों में कड़ा विरोध किया था।
इस विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के वकील सुब्रमण्यम स्वामी, एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय समेत कई वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर रखी है। यदि इनकी अपीलों पर शीर्ष कोर्ट ने फैसला सुनाया तो 30 साल पुराना पूजा स्थल कानून खत्म हो जाएगा। दूसरी तरफ देशभर में भाजपा की केंद्र सरकार पर भी वक्फ एक्ट की तरह इसे भी समाप्त करने का काफी दबाव है। यदि केंद्र की भाजपा वाली मोदी सरकार इसे खत्म करती है तो देश में सैकड़ों जगह मंदिर तोड़कर बनाई गई मस्जिदों के नीचे दबे मंदिर निकालने के लिए आंदोलन शुरू हो जाएंगे। व्यासजी के तहखाने में पूजा करने की अनुमति मिलने के बाद अब इस परिसर में बने पौराणिक शिव मंदिर को वापस लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने और आंदोलन भी होने की संभावना बढ़ गई है। हालांकि, इस बार आरएएस या भाजपा ने इसपर कुछ भी नहीं बोला है। इससे यह बात साफ हो गई है कि अयोध्या में राम मंदिर की तरह भाजपा या संघ ज्ञानवापी के लिए आंदोलन नहीं करेगा।
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