देश में लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने ही वाली है। संभावना है कि फरवरी के आखिर या मार्च के पहले सप्ताह तक आम चुनाव के लिए आचार संहिता लग जाएगी। पिछली बार की तरह इस बार भी अप्रैल—मई में लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो जाएंगे। इंडिया गठबंधन एक तरफ बनने से पहले बिखराव के रास्ते पर है तो दूसरी तरफ एनडीए अलाइंस का दायरा बढ़ रहा है।
पंजाब में आम आदमी पार्टी के बाद पश्चिमी बंगाल में ममता बनर्जी ने भी इंडी अलाइंस का पार्ट बनने से इनकार कर दिया है। ममता ने तो इससे भी आगे बढ़कर राहुल गांधी को सिलिगुडी में यात्रा निकालने से ही मना कर दिया है। दूसरी ओर बिहार में नीतिश कुमार ने इंडी गठबंधन को छोड़कर एक बार फिर से एनडीए का हिस्सा बन गए हैं।
इधर, राजस्थान में से कांग्रेस सचिन पायलट को राष्ट्रीय महासचिव तो बना दिया, लेकिन अभी यह रोडमैप नहीं है कि राज्य की 25 लोकसभा सीटों पर जीत की रणनीति क्या होगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बुढापे के कारण निष्क्रिय हैं तो पार्टी के बड़े कहे जाने वाले नेता केवल राहुल गांधी की आंख का तारा बनने को ट्वीटर पर सक्रिय है।
अशोक गहलोत तीन बार सीएम के तौर पर राज करने के बाद अब आराम फरमा रहे हैं, उनको लोकसभा चुनाव में अपने बेटे को टिकट दिलाकर जिताने के लिए अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। पार्टी की जीत या हार से उनको कोई मतलब ही नहीं है।
वो केवल टीवी मीडिया को बयान देना ही अपना धर्म समझ बैठै हैं। उनको लगता है कि वो टीवी मीडिया को बयान देंगे और दुनिया उनके पीछे पीछे दौड़ पड़ेगी, लेकिन भूल जाते हैं कि उनको कोई भी देखना सुनना नहीं चाहता है।
गहलोत की तरह ही वसुंधरा राजे भी खुद को अपने 'ओरे' से बाहर नहीं निकाल पा रही हैं। वो सोचती हैं कि भाजपा उनको मनाने का काम करेगी और उनसे पूछेगी कि वो क्या चाहती हैं, लेकिन वो भूल जाती हैं कि अब उनका समय बीत चुका है, अब भाजपा नेतृत्व को आंख दिखाने से कुछ भी नहीं होने वाला है।
पार्टी नई लीडरशिप को आगे कर चुकी है। न केवल सीएम नए हैं, बल्कि अधिकांश मंत्री भी एकदम नए हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि पार्टी अगली पीढ़ी की तरफ शिफ्ट हो चुकी है। राजस्थान कांग्रेस की बात करें तो सचिन पायलट भी बीते 10 साल से नई पीढ़ी को आगे लाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अशोक गहलोत जैसे भुगते हुए नेता नहीं चाहते कि कांग्रेस युवाओं की पार्टी बने।
पायलट ने इसको लेकर 2018 में अपनी टीम भी बनाई, जिसके 2 दर्जन से ज्यादा सदस्य जीतकर आए भी, लेकिन सत्ता मिलने के बाद जब उनके साथ खड़े होने की बारी आई तो कई कांग्रेस नेताओं ने उनका साथ छोड़ दिया। इस बार फिर से पायलट ने अपने युवा साथियों को आगे बढ़ाने का काम किया है।
इनमें मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, मनीष यादव, ललित यादव, विकास चौधरी जैसे एक दर्जन नेता जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। हालांकि, इस दौरान अपने कुछ साथियों को टिकट नहीं दिला पाए, किंतु फिर भी कई साथी लोकसभा की तैयारी कर रहे हैं।
राजस्थान की अधिकांश सीटों पर गहलोत खेमा विधानसभा चुनाव की तरह जहां बूढे उम्मीवारों को उतारना चाहता है, तो पायलट कैंप का मानना है कि लगातार दो बार से हार रही कांग्रेस को हार की हैट्रिक से बचाने के लिए नए लोगों को अवसर दिया जाना चाहिए।
इसी वजह से लोकसभा चुनाव की तैयारी में कांग्रेस पिछड़ती नजर आ रही है। भाजपा ने जहां बिना किसी विरोध के एक झटके में पीढ़ी बदल दी तो कांग्रेस ने पांच साल अंतर्कलह झेलकर भी यह काम नहीं किया।
अब फिर से कांग्रेस के पास अवसर है कि लोकसभा चुनाव के माध्यम से युवाओं को आगे कर वोटर्स में संदेश दे सकती है, लेकिन इसके लिए बड़े फैसले लेने की जरूरत है। राजस्थान में कांग्रेस के पास लोकसभा चुनाव के लिए दावेदार तो बहुत हैं, लेकिन पार्टी वर्तमान विधायकों पर फोकस कर रही है।
बड़े चेहरों के दम पर भाजपा के उम्मीदवारों से मुकाबला करने की योजना है। दूसरी ओर सचिन पायलट इस चुनाव में युवा उम्मीदवारों पर दांव खेलने की योजना शुरू कर दी है। उन्होंने पार्टी में अपने खेमे के युवाओं लोकसभा चुनाव में उताराना चाहते हैं।
सचिन पायलट समर्थकों में जयपुर ग्रामीण से अनिल चौपड़ा बीते दस साल से फील्ड पर तैयारी कर रहे हैं। इस बार उनके सामने कांग्रेस में अशोक गहलोत खेमे से राजेश चौधरी भी तैयारी कर रहे हैं।
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