ममता के राज में शाहजहां की कालिख का संदेशखाली



पिछले कुछ दिनों से ममता बनर्जी के शासन वाले बंगाल का संदेशखाली द्वीप मीडिया की सुर्खियों में है। यहां पर टीएमसी के एक बाहुबली नेता पर कई महिलाओं के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा है। स्थानीय महिलाओं का आरोप है कि सुदर महिलाएं देखकर उनको बुलाया जाता था और दूसरे दिन छोड़ दिया जाता था। खास बात यह है कि जो महिलाएं इस गैंगस्टर की यातनाओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा रही हैं, टीएमसी की सरकार द्वारा उनको ही गिरफ्तार किया जा रहा है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस मामले में मंगलवार को अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने महिलाओं को सुरक्षा देने और उनकी शिकायत पर पुलिस को निष्पक्ष जांच करने का आदेश दिया है। साथ ही पीड़ित महिलाओं से मिलने के लिए विपक्षी नेताओं को संदेशखाली जाने की अनुमति दी है। सत्ताधारी टीएमसी इसको भाजपा को प्रोपेगेंडा बता रही है तो भाजपा ने कहा है कि ममता बनर्जी की सरकार बनने के बाद बंगाल पाकिस्तान बन चुका है, जहां पर हिंदू सुरक्षित नहीं हैं। लोकसभा चुनाव से पहले बंगाल में संदेशखाली सबसे बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है।


संदेशखाली राजधानी कलकत्ता से दक्षिण—पूर्व दिशा में करीब 76 किलोमीटर दूर है। यह क्षेत्र समुद्र के बिलकुल पास में पड़ता है। बंगाल के उत्तर 24 परगना जिले में संदेशखाली द्वीप कुछ महीने पहले तक मानचित्र पर सिर्फ एक बिंदु था, लेकिन इन दिनों यह द्वीप राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है, जिसकी वजह स्थानीय गैंगेस्टर शेख शाहजहां है। बंगाल में विपक्षी भाजपा और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच एक प्रमुख टकराव बिंदु संदेशखाली में बाहुबली ने शेख शाहजहां है। 


पहली नज़र में देखने से ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनाव से पहले राज्‍य के दो प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चल रहा है, लेकिन गहराई में जाने से पता चलता है कि शेख शाहजहां ने पूरे संदेशखाली को अपनी उंगलियों पर नचा रखा है। समुद्र के करीबी इस द्वीप को शाहजहां ने सत्ता में हस्तक्षेप के साथ ही अपनी निजी जागीर बना लिया है। यहां के किसान, मछुआरे और राजनीतिक दलों के तमाम कार्यकर्ता गैंगस्टर टीएमसी नेता शाहजहां से आगे बौने साबित हो रहे हैं।


शेख शाहजहां की करतूतों वाली कहानी बेहद चौंकाने वाली है। ऐसा नहीं है कि शाहजहां किसी बड़े नेता या बाहुबली का बेटा अथवा भाई है। शाहजहां के जीवन का सफर 1990 के दशक की फिल्मों में दिखाए जाने वाले गुंडों के आतंक की याद ताजा करते हैं। संदेशखाली में शाहजहां के भाई बनने की कहानी बेहद फिल्मी है। 42 साल का शाहजहां कभी एक मजदूर हुआ करता था। वह शुरुआत में में मछली पालन करने वाला एक वर्कर था। उसने कुछ समय तक ईंट—भट्‌टे में भी काम किया। इसके बाद गैर कानूनी धंधे में घुस गया। बाद में अवैध धंधे के जरिए उसने इलाके में अपना वर्चस्व स्थापित कर राजनीतिक रसूख बना ली।


बदसूरत दिखाई देने वाला बिलकुल शाहजहां का संदेशखाली में ताकतवर आदमी बनने का सफर टीएमसी के सत्ता में आने से काफी पहले शुरू हो गया था। इसकी शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। पंचायत चुनाव के लिए उनके नामांकन पत्र में शैक्षणिक योग्यता का कॉलम खाली छोड़ दिया था। 90 के दशक में मजदूर के रूप में काम शुरू करने वाला शाहजहां 20 साल पहले संदेशखाली और पड़ोसी सरबेरिया के किनारे आने वाले पर्यटकों को बुलाकर उनसे किराया वसूलते देखा जाता था। उसके मामा मुस्लिम शेख स्थानीय सीपीएम से पंचायत प्रमुख था। मुस्लिम शेख के रसूख का सहारा लेकर 2005 के आसपास महत्वाकांक्षी शाहजहां ने स्थानीय मछली व्यापार की देखभाल करना शुरू कर दिया। तब तक भी शाहजहां कोई कोई नेता नहीं था, वह सिर्फ अपने चाचा की छत्रछाया में काम करता था, उसे राजनीति में कोई इंस्ट्रेस्ट भी नहीं था। वह चाचा के चुनावों में लोगों को डराने—धमकाने और उनसे वोट दिलाने के लिए की मदद भी करता था। इसके एवज में उसको मुस्लिम शेख द्वारा कारोबारी मदद मिलती थी।


पश्चिमी बंगाल में 34 साल बाद 2013 में वामपंथियों को सत्ता से बेदखल कर टीएमसी की ममता बनर्जी सीएम बनी थीं। 2010 के आसपास चाचा की सियासी छाया में शेख शाहजहां का कारोबार और संपत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही थी, लेकिन उसपर किसी राजनेता या बड़े कारोबारी का ध्यान नहीं गया। यही वो समय था, जब शाहजहां शेख ने संदेशखाली में अपनी पहचान बनानी भी शुरू कर दी। इसी दौरान उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागी, जिसको टारगेट करते हुए उसने लोगों को अपने पक्ष में करना शुरू किया। इसके लिए उसने लोगों में पेठ बनाने का तरीका निकाला। वह संकट के समय स्थानीय निवासियों की मदद करने लगा। किसी की शादी के लिए धन की व्यवस्था करनी हो या बच्चों की शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे माता-पिता की मदद करना हो, शाहजहां सबसे आगे रहने वाला व्यक्ति बन गया। 


हालांकि, शाहजहां उनको ही मदद करता था, जो उसके लिए दिन रात गुणगान करने का काम करते थे। जो उसका प्रचार नहीं करते थे, उनको मदद नहीं करता था, जैसे नए नेता क्षेत्र में खुद की पहुंच बनाने के लिए करते हैं। इसका मतलब उसने राजनीति को टारगेट कर लिया था। उस दौर में शाहजहां अपने चाचा मुस्लिम शेख को देखकर राजनीति सीख रहा था। इससे चाचा को भी लगा कि आगे चलकर शाहजहां उनके लिए ही फायदेमंद साबित होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 


2010 के आसपास बंगाल की राजनीति में सीपीएम का दौर नरम पड़ रहा था, तो टीएमसी का ग्राफ बढ़ रहा था। शाहजहां को अपने चाचा मुस्लिम से पहले ही सत्तारूढ़ सीपीएम के खिलाफ बदलाव की हवा का अहसास हो गया था। इसलिए शाहजहां ने धीरे-धीरे खुद को सीपीएम से दूर करना शुरू कर दिया, क्योंकि 2011 के चुनावों से पहले ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने बढ़त हासिल कर ली थी। शाहजहां भले ही अनपढ़ था, लेकिन वो इस बात को समझ चुका था कि जब सत्ता बदलेगी तो उसका कारोबार प्रभावित होगा। 


उसकी गणना तब सही साबित हुई, जब वामपंथियों का 34 साल का शासन समाप्त हुआ और तृणमूल सत्ता में आई। इस बीच तृणमूल नेता ज्योतिप्रिय मल्लिक शाहजहां शेख पर नजर रख रहा था। ज्योतिप्रिय मल्लिक अभी भ्रष्टाचार के मामले में जेल में है। ज्योतिप्रिय ने मुस्लिम शेख के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए शाहजहां का इस्तेमाल करके सीपीएम को झटका देने की योजना बनाई थी। ज्योतिप्रिय के प्रस्ताव पर 2013 में शाहजहां सीपीएम छोड़कर तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गया। इसके बाद चुनाव में पासा पलट गया और भतीजे ने अपने चाचा मुस्लिम शेख को हरा दिया। सीपीएम की राजनीतिक बंद होने के कारण कुछ साल बाद मुस्लिम शेख को भी पार्टी छोड़कर टीएमसी में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।


संदेशखाली के पास अकुंजीपारा मोड़ पर सफेद, नीले और पीले रंग में रंगे तीन महलनुमा घर हैं। इनमें से नीले और सफेद रंग के घरों पर शाहजहां शेख के रिश्तेदारों का कब्जा है। ईडी की छापेमारी के डर से भागने से पहले 50 वर्षीय शाहजहां यहीं पर पीले रंग के घर में रहता था। पंचायत चुनावों के लिए जमा किए गए दस्तावेजों में कहा गया है कि शाहजहां के पास 17 कारें, 23 एकड़ जमीन और 2 करोड़ से अधिक के आभूषण हैं। उस समय उसका बैंक बैलेंस करीब 2 करोड़ रुपये था। संदेशखाली के सबसे ताकतवर शेख शाहजहां ने चुनावी दस्तावेजों में अपना पेशा 'व्यवसाय' बताते हुए अपनी वार्षिक आय लगभग 20 लाख रुपये दिखाई, जबकि वास्तविक संपत्ति उससे कहीं अधिक है। उसके पास पैसा कहां से आ रहा था, इसकी जानकारी उसके बेहद करीबी लोगों को ही पता है। उसके पास दो ईंट—भट्टे हैं। ताकत का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि शाहजहां के गुर्गे वसूली करने के लिए अत्याधुनिक गन रखते थे। गन पॉइंट पर ये लोग मछली का व्यापार करने वाले लोगों से हर महीने मोटा पैसा वसूलते हैं। इलाके में इसका इतना आतंक है कि किसी की विरोध करने की हिम्मत नहीं होती थी।


संदेशखाली में कृषि उत्पादन भूमि में पिछले एक दशक में बहुत तेजी से गिरावट आई है, जिसकी वजह भी शाहजहां ही है। इसका कहना है कि 'सोना खारे पानी में उगता है'। शाहजहां की यह धमकी लोगों को पलायन करने और अपनी जमीनें छोड़ने को मजबूर करती रही हैं। इसका यहां की उपजाऊ जमीनों में "सोना उगाने" का खेल भी निराला है। उसने पहले स्थानीय किसानों को छोटा—मोटा कर्जा देकर उनकी जमीनों पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसके आदमी समुद्र के खारे पानी को कृषि भूमि में प्रवाहित करने के लिए तटबंध तोड़ देते थे। ऐसा करके उसने स्थानीय किसानों की जमीन को खारे पानी से भर दिया, ताकि वहां कोई किसान फसल न लगा सकें और फिर इस जमीन पर मछली पालन किया जाता है। शाहजहां के सहयोगी उत्तम सरदार और शिबू हाजरा ने सैकड़ों किसानों के साथ ऐसा किया, जहां पर अब ये लोग झींगा मछली पालकर मोटा पैसा कमा रहे हैं।


जहां ये लोग पानी नहीं भर सकते थे, वहां पर किसान को जबरन मछली पालने के लिए मजबूर करते थे। किसानों के पास जमीनें हैं तो वो लोग मछली पालन क्यों करें, लेकिन शाहजहां के गुर्गे किसानों को डराकर उनसे मछली पालन करवाते हैं। किसान पहले चावल उगाते थे और उससे अपना गुजारा करते थे। जो चावल नहीं लगाते थे, वो किसान दूसरी फसलें उगाकर अपना पेट भरते थे। इस क्षेत्र में 10 साल पहले तक मछली पालन और चावल उत्पादन ही बहुतायत में था, लेकिन अब सबकुछ बंद हो गया है। यहां पर न कोई सब्जी उगती है न कोई फसल होती है। किसानों की गायों के पास खाने के लिए चारा नहीं है, क्योंकि जमीन पर पानी भर जाने के कारण घास उगती ही नहीं है। शाहजहां की इन हरकतों का विरोध करने पर गंभीर अंजाम भुगतना पड़ता है। हालांकि, अब कुछ किसान इसका विरोध भी कर रहे हैं, क्योंकि भूख से मरते किसानों के पास इस अन्याय को बर्दाश्त करने की हिम्मत नहीं बची है। 


इस गैंगस्टर के अन्याय की इंतहा ऐसी है कि केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के तहत उनके खातों में आने वाले पैसे का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही किसानों और मछली पालकों को मिलता है। ग्रामीण नौकरी गारंटी योजना और नरेगा के तहत काम के भुगतान का भी पैसा नहीं मिलता है। शाहजहां के आदमी सरकारी योजनाओं का पैसा लेने वालों को घरों से उठा लेते थे, उनका पूरा पैसा ले लिया जाता था, केवल 500 रुपये देते थे और इसका विरोध करने पर पिटाई होती थी। सड़क बनाने या तालाब खोदने का भुगतान भी शाहजहां और उसके लोगों द्वारा छीन लिया जाता था। हालात यह थे कि क्षेत्र में सड़क बन गई है, लेकिन भुगतान नहीं किया जाता, तालाब खोदा तो इसके पैसे नहीं मिलते थे।


शाहजहां शेख के लोग महिलाओं को जबरदस्ती पार्टी ऑफिस में बुलाते थे। जहां पार्टी की मीटिंग होती थी, जिसमें गांव के सभी लोगों को जाना होता है। जो नहीं जाता, उसके साथ वे मारपीट करते थे। मीटिंग के बाद मर्दों को घर भेज देते थे, औरतों को वहीं रोक लेते थे। उनके साथ गलत हरकतें करते थे। कोई महिला ऑफिस आने से मना करती, जो उनके पति को उठा लेते थे। छोटी बच्चियों के साथ तो ये सब नहीं हुआ, लेकिन 18 साल, 20 साल की लड़कियों और 30-40 साल की महिलाओं साथ हो रहा था। किसी भी उम्र की हो, जो महिला उन्हें अच्छी लगी, वो उसे उठा लेते थे।


सरकार और पुलिस के आर्शीवाद के कारण शाहजहां शेख की दादागिरी का आलम यह था कि 5 जनवरी को संदेशखाली स्थित उसके घर पर छापा मारने गई प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों की एक टीम पर भीड़ ने हमला कर दिया था। अफसरों को जान बचाकर भागना पड़ा। उलटा पश्चिम बंगाल पुलिस ने ED के अफसरों पर केस दर्ज कर लिया। उस भीड़ का फायदा उठाते हुए वह फरार हो गया, तभी से वह लापता है। महिलाओं द्वारा उत्पीड़न के हालिया आरोपों ने राजनीतिक तूफान खड़ा हो गया है और हाईकोर्ट द्वारा राज्य पुलिस को कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। किंतु पुलिस अब भी उसके खिलाफ काम करने से बच रही है। पुलिस ने दिखावे के तौर पर अभी तक शाहजहां के सहयोगी शिबू हाजरा और उत्तम सरदार को गिरफ्तार किया है, लेकिन शाहजहां अभी भी फरार है। उसके 18 साथी पकड़े जा चुके हैं। महिलाओं का आरोप है कि शाहजहां शेख भी संदेशखाली में ही है, लेकिन पुलिस उसको पकड़ना नहीं चाहती है। हाईकोर्ट ने बंगाल पुलिस को लताड़ते हुए शाहजहां शेख को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करने को कहा है। 


मामला बढ़ने पर पश्चिम बंगाल की CM ममता बनर्जी ने जांच के लिए स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम बनाई है। CID में तैनात DIG सोमा दास मित्रा इसे लीड कर रही हैं। टीम की बाकी मेंबर भी महिलाएं हैं। अब तक 30 से अधिक महिलाओं ने शिकायत दी हैं, लेकिन एफआईआर सिर्फ एक की हुई है। जिन महिलाओं ने आरोप लगाए हैं, उनसे ही उलटे सवाल पूछे जा रहे हैं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ममता सरकार की पुलिस क्या खेल कर रही है। टीएमसी का नेता है, टीएमसी की सरकार है और ममता बनर्जी खुलेआम बयान दे चुकी हैं कि संदेशखाली आरएसएस का अड्डा है। ममता का बयान इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि सरकार अपने नेता पर कोई कार्यवाही नहीं करना चाहती है, बल्कि इसको राजनीति का रंग बताकर पीड़ित महिलाओं को ही गुनहगार साबित करने पर तुली है। हाईकोर्ट की एंट्री के बाद न्याय की कुछ उम्मीद जगी है, लेकिन फिर भी जमीनी स्तर पर काम स्थानीय पुलिस प्रशासन को ही करना है, जिसकी कार्यप्रणाली से साफ हो रहा है कि पुलिस न्याय के लिए काम नहीं करेगी। 

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