लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही कांग्रेस के नेताओं की धड़कन तेज होने लगी हैं। पीएम नरेंद्र मोदी के तीसरी बार तूफान का खौफ ऐसा है कि राजस्थान कांग्रेस के दिग्गज नेता मैदान छोड़कर भागते दिखाई दे रहे हैं। मोदी की लहर पर सवार भाजपा 2014, 2019 के बाद लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता के मुहाने पर खड़ी है तो राजस्थान में सभी 25 सीटों हैट्रिक लगाने की तैयारी कर चुकी है। इस बात का अंदाजा खुद कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी है। यही कारण है कि पूर्व सीएम अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम और राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट, कांग्रेस के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व मंत्री उदयलाल आंजना, पूर्व सांसद रघुवीर मीणा समेत अधिकांश बड़े नेताओं ने लोकसभा चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया है।
स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में इन सभी बड़े नेताओं ने स्पष्ट रूप से अपने आलाकमान को कह दिया है कि वो लोकसभा चुनाव लड़ने के बिलकुल भी इच्छुक नहीं हैं। इससे पहले कांग्रेस आलाकमान चाहता था कि नरेंद्र मोदी के तूफान से मुकाबला करने के लिए पार्टी के सभी बड़े नेता लोकसभा का चुनाव लड़ें, ताकि जीत नहीं तो कम से कम मुकाबला तो किया जा सके। पूर्व सीएम अशोक गहलोत को पार्टी जोधपुर से चुनाव लड़ाना चाहती थी, जहां पर पिछली बार उनके बेटे वैभव गहलोत करीब पौने तीन लाख वोटों से केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से हार गए थे।
इस सीट पर 1998 तक अशोक गहलोत लगातार पांच बार सांसद रह चुके हैं, ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि यदि अशोक गहलोत को उतारा जाएगा तो वो भाजपा के उम्मीदवार से मुकाबला कर सकते हैं, किंतु अशोक गहलोत ने मैदान में उतरने से साफ मना कर दिया है। वास्तव में देखा जाए तो जब गहलोत जोधपुर से जीतते थे, तब और आज की परिस्थितियों में दिन रात का अंतर है। आज केंद्र में मोदी जैसा बड़ा चेहरा है, जो देशभर में भाजपा को जीत दिला रहा है।
यही वजह है कि अशोक गहलोत नहीं चाहते हैं कि भाजपा के उम्मीदवार से हारकर अपने अजेय होने के रिकॉर्ड को खराब किया जाए, ऊपर से पैसा खर्च हो जाएगा जो अलग है और राजनीतिक बेइज्जती होगी तो पार्टी में उनको कद भी घट जाएगा। इन सब से बचने के लिए अशोक गहलोत ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है।
इसी तरह से पार्टी राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट को टोंक—सवाई माधोपुर से लड़ाना चाहती है। पायलट ने पार्टी को चुनाव लड़ने से इनकार नहीं किया है, लेकिन उन्होंने कहा है कि वो हाल ही में विधानसभा का चुनाव लड़कर जीते हैं, ऐसे में लोकसभा में उन युवा चेहरों को अवसर दिया जाना चाहिए, जो बरसों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं, लेकिन जिनको अभी तक चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला है। इसके साथ ही दूसरा तर्क यह भी दिया गया है कि सचिन पायलट को यदि चुनाव लड़ा जाएगा तो वो एक क्षेत्र में बंध जाएंगे, जबकि पार्टी को आज उनकी राष्ट्रीय स्तर पर जरूरत है। यही वजह है कि सचिन पायलट भी आम चुनाव नहीं लड़ेंगे।
पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी इसी पंक्ति में थे कि सीकर से लोकसभा का चुनाव लड़ें, लेकिन डोटासरा की ओर से भी यही बहाना बनाया गया है कि वो अध्यक्ष हैं, इसलिए उनको पूरे प्रदेश में चुनाव का काम देखना है, यदि वो चुनाव लड़ेंगे तो पार्टी कमजोर पड़ जाएगी। इसी बहाने के कारण डोटासरा भी चुनाव मैदान में जाने से हट चुके हैं। इन्होंने भी कहा है कि सभी 25 सीटों पर युवाओं को मौका देना चाहिए, जो अभी तक चुनाव से दूर हैं।
गहलोत की तरह ही उनकी सरकार में मंत्री रहे उदयलाल आंजना, महेंद्रजीत सिंह मालवीय, रघुवीर मीणा, गोविंदराम मेघवाल जैसे सभी नेताओं ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। हालांकि, अभी भी कुछ नेताओं को लोकसभा चुनाव में टिकट देकर लड़ाने की बातें हो रही हैं, लेकिन जिस तरह से बड़े नेता पीछे हटे हैं, उससे पूर्व मंत्री और विधायक भी लोकसभा के टिकट में रूचि नहीं दिखाएंगे।
हालांकि, अशोक गहलोत अपने बेटे वैभव गहलोत को इस बार जालौर—सिरोही से लोकसभा में चुनाव लड़ाना चाहते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र से वर्तमान सांसद देवजी पटेल तीसरी बार सांसद हैं और हाल ही के विधानसभा चुनाव में सांचौर से उनकी हार हुई है। ऐसे में गहलोत को लगता है कि उनके बेटे को इस सीट से जिताया जा सकता है। पिछली बार की हार को देखते हुए उनको जोधपुर से नहीं लड़ाया जाएगा। इसी तरह से पाली या जोधपुर सीट पर इस बार दिव्या मदेरणा मैदान में उतर सकती हैं, जो हाल के विधानसभा चुनाव में ओसियां से हारी हैं।
इसी तरह से पाली सीट पर जोधपुर विवि के पूर्व अध्यक्ष सुनील चौधरी ने तैयारी तेज कर रखी है। जयपुर ग्रामीण सीट पर राजस्थान विवि के पूर्व अध्यक्ष अनिल चोपड़ा भी युद्ध स्तर पर लोकसभा चुनाव की तैयार कर रहे हैं। इसी तरह से कई सीटों पर कांग्रेस के युवा नेता लोकसभा टिकट का इंतजार कर रहे हैं।
इधर, अलवर सीट पर लगातार तीसरी बार भंवर जितेंद्र सिंह टिकट मांग रहे हैं, जो गांधी परिवार के करीबी माने जाते हैं। लोकसभा के इस महासमर में कांग्रेस के पास टिकट मांगने वाले योग्य उम्मीदवारों की भी कमी बताई जाती है। ऐसे में एक तरफ जहां बड़े कांग्रेसी नेता चुनाव से हट रहे हैं, तो मोदी लहर के सामने पार्टी के युवा उम्मीदवार दावेदारी जता रहे हैं, जो कांग्रेस में भी पीढ़ी बदलने का संकेत है।
इधर, भाजपा में विधानसभा चुनाव की तरह ही लोकसभा टिकट के लिए भी मारी मारी है। भाजपा नेताओं को पता है कि किसी भी सीट से टिकट मिलेगा तो मोदी के तूफान पर सवार होकर जीत पक्की हो जाएगी। ऐसे में भाजपा के वर्तमान सांसद जहां फिर से टिकट चाहने की जुगत में लगे हैं, तो पार्टी में एक एक सीट पर दर्जनों दावेदार सामने आ रहे हैं। माना जा रहा है कि पार्टी इस बार आधे से अधिक सांसदों के टिकट काटेगी। भाजपा के अलवर से बालक नाथ, जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्धन राठौड़ और राजसमंद से दिया कुमारी विधानसभा चुनाव जीतकर विधायक बने चुके हैं। ऐसे में इन तीनों सीटों पर नए उम्मीदवारों को अवसर दिया जाएगा, जबकि जयपुर शहर, अजमेर, चित्तौड़गढ़, टोंक सवाई माधोपुर, भरतपुर, सीकर, जोधपुर समेत एक दर्जन से अधिक सीटों पर नए नेताओं को मौका देने पर विचार चल रहा है।
भाजपा यूपी में आरएलडी से गठबंधन कर चुकी है, ऐसे में राजस्थान में आरएलपी से भी गठबंधन की बातें सामने आ रही हैं। आरएलपी के साथ पिछले चुनाव में भाजपा ने नागौर सीट पर गठबंधन किया था, जहां खुद हनुमान बेनीवाल सांसद बने थे। बेनीवाल इस बार खींवसर से विधायक बन चुके हैं। माना जा रहा है कि जल्द ही दोनों दलों के बीच गठबंधन की बात पूरी हो जाएगी। हालांकि, इस बार बेनीवाल ना तो खुद लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे और न ही भाई नारायण बेनीवाल को लड़ाएंगे, बल्कि उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल चुनाव लड़ सकती हैं। बेनीवाल की आरएलपी ने 2018 के विधानसभा चुनाव में करीब साढ़े 8 लाख वोटों के साथ तीन सीटों जीत हासिल की थी, जिसके कारण 2019 के आम चुनाव में उनका भाजपा के एक सीट पर अलाइंस हुआ था। इस बार आरएलपी ने भले केवल एक सीट जीती हो, लेकिन उनकी पार्टी को 10 लाख वोट मिले हैं, जिसके कारण आरएलपी दो लोकसभा सीटों की मांग कर सकती है। यदि भाजपा—आरएलपी के बीच अलाइंस हुआ तो हनुमान बेनीवाल राजस्थान सरकार में मंत्री बन सकते हैं।
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