केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने देश के दो पूर्व प्रधानमंत्रियों चौधरी चरण सिंह और पीवी नरसिम्हा राव के साथ ही कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनारायण को भारत रत्न देने की घोषणा की है। भारत रत्न पाने वाले दोनों पूर्व प्रधानमंत्री भाजपा से नहीं रहे हैं। तीनों को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले भारत रत्न देने की घोषणा करने को दो पहलूओं से समझा जा सकता है। पहला सामाजिक और आर्थिक फायदे—नुकसान के रूप में देखना होगा। दूसरा राजनीतिक नफा—नुकसान है, जिसे समझे बिना इतने बड़े कदम को ठीक से नहीं समझा जा सकता है।
किसान नेता चौधरी चरणसिंह करीब 6 महीनों के लिए देश के प्रधानमंत्री बने थे। यह भी एक रिकॉर्ड ही है कि प्रधानमंत्री के रूप में चौधरी चरणसिंह कभी संसद नहीं गए। चौधरी कुंभाराम आर्य के सहयोग से चौधरी चरणसिंह द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था।
एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और मूल किसानों को खातीदारी का अधिकार मिला। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया था। चौधरी चरण सिंह 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन एक साबद बाद ही 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दुबारा 17 फ़रवरी 1970 के वे मुख्यमंत्री बने। उसके बाद वो केन्द्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल आयोग और अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की। 1979 में वित्त मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक, यानी नाबार्ड की स्थापना की थी। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस यू के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। उनकी सरकार को छोटा सा सहयोग तब के जनसंघ से भी मिला था।
उनकी विरासत कई जगह बंटी। आज जितनी भी जनता दल परिवार की पार्टियाँ हैं, वो सभी चौधरी चरण सिंह की जनता दल से निकले हुए हैं। उड़ीसा में बीजू जनता दल हो या बिहार में राष्ट्रीय जनता दल या जनता दल यूनाएटेड अथवा ओमप्रकाश चौटाला का लोक दल, अजीत सिंह का राष्ट्रीय लोक दल हो या मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी हो, ये सभी दल चरण सिंह की विरासत हैं।
भारत रत्न पाने वाले दूसरे पूर्व प्रधानमंत्री पामुलापति वेंकट नरसिम्हा राव गारू उर्फ पीवी नरसिम्हाराव हैं, जो कांग्रेस के नेता थे। 90 के दशक में आर्थिक सुधारों के युग में उनकी ही सरकार ने कई अहम फैसले किए थे, जिसके कारण देश आर्थिक प्रगति के मार्ग पर बढ़ सका है।
20 जून 1991 को राव प्रधानमंत्री बने थे। वो 16 मई 1996 तक पूरे पांच साल पीएम पद पर रहे। 1991 के चुनाव के दौरान ही राजीव गांधी की हत्या के बाद नरसिम्हा राव पीएम बने थे। पीवी नरसिम्हाराव कहते थे कि भारत को फिर से आत्म निर्भर बनने की जरूरत है, भारत को दूसरे देशों के साथ कारोबार करना है, दान नहीं चाहिए। दान देने से देश आत्म निर्भर नहीं बन सकता।
यही नीति मोदी सरकार की है। मोदी सरकार भी देश को आर्थिक रूप से मजबूत करना चाहती है, ताकि दुनिया के किसी देश के आगे हाथ नहीं फैलाने पड़ें। देश में उत्पादन बढ़ाने के फैसलों की सबसे पहले पीवी नरसिम्हाराव ने शुरुआत की थी। आज मोदी सरकार उसी नीति को आगे ले जा रही है। इससे नरसिम्हाराव और मोदी सरकार में समानता कही जा सकती है।
नरेंद्र मोदी कहते हैं कि जिस तरह से देश में कारखानों की जरुरत है, ठीक इसी तरह से कृषि में सुधारों की आवश्यकता है। इसलिए कृषि क्षेत्र को मजबूत करना होगा। भारत को परंपरागत खेती से आधुनिक खेती के मुहाने पर खड़ा करने का अहम योगदान कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का रहा है। एमएस स्वामीनाथन ने देश में खाने की कमी से मुक्ति पाने के लिए कृषि की पढ़ाई की थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा था, जिसने उन्हें झकझोर कर रख दिया। इसे देखते हुए उन्होंने 1944 में मद्रास एग्रीकल्चरल कॉलेज से कृषि विज्ञान में बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री हासिल की। एमएस स्वामीनाथन पर परिवार वालों की तरफ से सिविल सेवा की परीक्षा की तैयारी करने का भी दवाब बनाया गया था।
स्वामीनाथन सिविल सेवा की परीक्षा में भी शामिल हुए और भारतीय पुलिस सेवा में उनका चयन भी हुआ। उसी दौरान नीदरलैंड में आनुवंशिकी में यूनेस्को फेलोशिप के रूप में कृषि क्षेत्र में एक मौका मिला। स्वामीनाथन ने पुलिस सेवा को छोड़कर नीदरलैंड जाना सही समझा। 1954 में वह भारत आ गए और यहीं कृषि के लिए काम करना शुरू कर दिया।
स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की, इसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और आज भारत गेहूं का निर्यात करता है।
स्वामीनाथन को उनके काम के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिसमें 1967 पद्श्री, 1972 पद्मभूषण, 1989 पद्मविभूषण, 1971 में मैग्सेसे पुरस्कार और 1987 में विश्व खाद्य पुरस्कार महत्वपूर्ण हैं। पिछले साल 28 सितंबर को एमएस स्वामीनाथन का चेन्नई में निधन हो गया था। कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए भारत रत्न देने की घोषणा की गई है।
अब इस सम्मान के दूसरे पहलू की बात करते हैं। चौधरी चरण सिंह आजादी से पहले और बाद में किसान वर्ग के सबसे बड़े नेताओं में से एक रहे हैं। पश्चिमी यूपी, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और कृषि क्षेत्र दिल्ली में चौधरी चरण सिंह सबसे बड़ा चेहरा थे। किसान आंदोलन और पहलवान आंदोलन के बाद से ही किसान वर्ग में भाजपा को लेकर नाराजगी सामने आ रही थी।
100 दिन में आम चुनाव है और उसके बाद हरियाणा में विधानसभा चुनाव हैं। हरियाणा में जाट आरक्षण के कारण भाजपा से नाराजगी है। पांच राज्यों में जाट समाज को सीधा संदेश देने के लिए यह कदम बेहद जरूरी था। मोदी सरकार इसके जरिये दो संदेश दे रही है। पहला किसान वर्ग के साथ तालमेल का और दूसरा जाट समाज की नाराजगी दूर करने का।
पश्चिमी यूपी की 27 लोकसभा, हरियाणा की 10, दिल्ली की 7, पंजाब की 10 और राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों जाट समाज का खासा प्रभाव है। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के लिए किसान वर्ग लंबे समय से मांग कर रहा था। नरेंद्र मोदी सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा करके इन सीटों को साधने का प्रयास किया है।
चौधरी चरण सिंह का किसान परिवारों में प्रभाव का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब वो प्रधानमंत्री बने तब यूपी के चौधरियों ने दिल्ली के कनॉट पैलेस में गुड बंटवाया था। जब उनको भारत रत्न देने का ऐलान हुआ है तब दूसरी बार कनॉट पैलेस में गुड में बांटा गया है। चौधरी चरण सिंह जब प्रधानमंत्री थे, तब एक बार रात को पुराने कपड़ों में थाने का दौरा किया। उन्होंने किसान बनकर थानेदार से मुकदमा दर्ज करने की गुहार लगाई, लेकिन थानेदार में एफआईआर दर्ज नहीं की, बदले में रुपये मांगे।
कुछ समय बाद रुपये लेकर वापस आए और एफआईआर दर्ज हुई। जब आवदेन पर हस्ताक्षर मांगे गए तो चौधरी चरण सिंह ने हस्ताक्षर के साथ प्रधानमंत्री की मोहर भी लगा दी। थारेदार और पूरा थाना हक्का—बक्का रह गया। चौधरी चरण सिंह ने थानदेार समेत पूरे स्टाफ को निलंबित कर दिया। देशभर में आदेश दिया कि जब भी कोई किसान थाने जाएगा तो उसकी बिना विलंब किए एफआईआर दर्ज की जाएगी।
यूपी में भाजपा—आरएलडी के बीच गठबंधन 2002 और 2009 में भी हो चुका है, लेकिन तब पार्टी के मुखिया अजीत सिंह हुआ करते थे, आज उनके बेटे और चौधरी चरण सिंह के पौते जयंत सिंह पार्टी प्रमुख हैं। माना जा रहा है कि भाजपा—आरएलडी के बीच एक बार फिर अलाइंस होने जा रहा है।
इसमें आरएलडी को चार लोकसभा सीट, एक राज्यसभा सीट के साथ ही केंद्र में एक मंत्री और एक मंत्री राज्य में मिलने पर सहमति बन चुकी है। इसका मतलब मोदी सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर एक तीर से तीन शिकार कर लिए हैं। पहला किसान वर्ग की मांग पूरी कर दी, दूसरा भाजपा से बाहर की पार्टी के नेता को सम्मान देकर स्पष्ट कर दिया कि यह सम्मान दलगत राजनीति से उपर उठकर दिया है। आरएलडी को अपने पक्ष में कर लिया और तीसरा इंडी अलाइंस को भी कमजोर कर दिया है।
दूसरा नाम राजनीति के चाणक्य पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव का है, जो 90 के दशक में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे। कहा जाता है कि जब उनका निधन हुआ तो उनके शव को दर्शानार्थ कांग्रेस मुख्यालय में रखने से इनकार कर दिया गया था, विरोध के कारण कांग्रेस कार्यालय के दरवाजे बंद कर दिए गए थे। खुद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी कांग्रेस कार्यालय में मौजूद थीं, लेकिन इसके बावजूद नरसिम्हा राव के शव को कांग्रेस कार्यालय में रखने का स्थान नहीं दिया गया था।
पीवी नरसिम्हा राव मूल रुप से आंद्रप्रदेश से आते हैं, उन्होंने वर्तमान तेलंगाना में अध्ययन किया था। तेलंगाना में पिछले दिनों चुनाव के बाद सत्ता से बाहर हुई केसीआर की बीआरएस में नरसिम्हा राव की बेटी एमएलसी हैं। यहां पर क्षेत्रीय राजनीति में केसीआर ने नरसिम्हा राव का वोट साधने का प्रयास कर रखा, तो भाजपा ने नरसिम्हा राव को भारत रत्न देकर दो तरफा जीत हासिल की है।
पहली तो दक्षिण के बड़े नेता को सम्मान देकर दक्षिण में अपना जनाधार मजबूत करने का प्रयास किया तो साथ ही कांग्रेस के बड़े नेता को भारत रत्न देकर साफ कर दिया है कि कांग्रेस में सिर्फ गांधी परिवार को ही भारत रत्न दिया जा सकता है, इस परिवार से बाहर के व्यक्ति की कांग्रेस में कोई वैल्यू नहीं है। नरसिम्हा राव को भारत रत्न देकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि योग्य व्यक्ति भले किसी भी दल का नेता हो, उसको सम्मान देने से किसी तरह की हिचक नहीं रहेगी।
इससे पहले हाल ही में बिहार के समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को भी भारत रत्न की घोषणा की है। केंद्र सरकार ने भाजपा के केवल एलके आडवाणी को ही भारत रत्न दिया है, अन्यथा इस साल पांच में चार सम्मान भाजपा के अलावा हस्तियों दिया जा रहा है।
इसी तरह से कृषि वैज्ञानिक रहे हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न देकर स्पष्ट किया है कि जो व्यक्ति राजनीति के अलावा भी देश के लिए अहम योगदान देगा, उसे भी पूरा सम्मान दिया जाएगा। तमिलनाडु के कुभकोणम में जन्मे स्वामीनाथन का किसान वर्ग में बहुत सम्मान है। खासतौर पर 'हरित क्रांति' कार्यक्रम के तहत ज़्यादा उपज देने वाले गेहूं और चावल के बीज किसानों के खेतों में लगाने के कारण पंजाब—हरियाणा में खासा प्रभाव है।
स्वमीनाथन ने गेहूं की उन्नत किस्म का आविष्कार किया, जिसके कारण भारत दुनिया में खाद्यान्न की सर्वाधिक कमी वाले देश के कलंक से उबारकर 25 वर्ष से कम समय में आत्मनिर्भर बन गया। उस समय से भारत के कृषि पुनर्जागरण ने स्वामीनाथन को 'कृषि क्रांति आंदोलन' के वैज्ञानिक नेता के रूप में ख्याति दिलाई। उनके द्वारा सदाबाहर क्रांति की ओर उन्मुख अवलंबनीय कृषि की वकालत ने उन्हें अवलंबनीय खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में विश्व नेता का दर्जा दिलाया।
एम. एस. स्वामीनाथन को 'विज्ञान एवं अभियांत्रिकी' के क्षेत्र में 'भारत सरकार' द्वारा सन 1967 में 'पद्म श्री', 1972 में 'पद्म भूषण' और 1989 में 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया था। ये महान कृषि वैज्ञानिक इनका निधन 98 वर्ष की अवस्था में बीमारी के कारण अपने आवास चेन्नई में हो गया। स्वमीनाथन के सम्मान से किसान वर्ग और दक्षिण भारत में भाजपा के लिए सकारात्मक संदेश जाएगा।
इससे पहले 3 फरवरी को भाजपा के दिग्गज नेता रहे लालकृष्ण आडवाणी और 23 जनवरी को बिहार के दिवंगत समाजवादी कर्पूरी ठाकुर को भी भारत रत्न देने की घोषणा की गई थी। बीते 18 दिन में पांच हस्तियों के लिए देश के सर्वोच्च सम्मान की घोषणा हुई है, जबकि स्वतंत्रता के बाद अब तक कुल 53 जनों को यह सम्मान मिला है।
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