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भजनलाल का तात्पर्य नई पीढ़ी नहीं, नई आकांक्षा है



ढाई दशक बाद राजस्थान नई उड़ान की ओर है। राज्य की नई उम्मीदों और अपेक्षाओं का पक्षी आसमान में उड़ रहा है। राजस्थान जो आन—बान—शान का प्रतीक है, शौर्य की धरती है। प्राकृतिक रूप से सभी प्रकार के मौसम, जलवायु, वातावरण और भूमि का मिश्रण यहां पाया जाता है, उसके जन को ढाई दशक बाद नया चेहरा मिला है। यह सरकार केवल सरकार नहीं है, बल्कि 8 करोड़ जनता की उम्मीदों का अपार समुद्र है, जिसका संतुलित दोहन कर जनमानस की अपेक्षाओं का घड़ा भरने का भार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उनके मंत्रिमंडल के ऊपर है, जो न केवल आयु वर्ग के अनुसार युवा हैं, बल्कि जन अपेक्षाओं के मुताबिक भी जोशीला दल है।

पहली बार जीते भजनलाल शर्मा और उनका मंत्रिमंडल कई समानताएं लिए हुए है। भजनलाल भी 55 वर्ष के हैं, उनका मुख्य सचिव भी लगभग 55 वर्ष का है और अधिकांश मंत्री भी करीब उन्हीं की आयु वर्ग के हैं। पूरी टीम राजनीति के अनुसार युवा है। अनुभव भले ही भजनलाल को प्रशासनिक नहीं होगा, किंतु संगठन में काम करने का 3 दशक का हो चुका है। पहले एबीवीपी में, फिर युवा मोर्चा से होते हुए भाजपा में इतना लंबा अनुभव उनको प्रत्येक कार्यकर्ता की कार्यशैली से अवगत कराने के लिए काफी है। यह अनुभव उनको इस बात का भी आभास कराता रहेगा कि कार्यकर्ता और आम आदमी सरकार से क्या अपेक्षा रखता है। 

राजस्थान में करीब 2 दशक बाद सत्ता का नेतृत्व बदला है। हालांकि, यह काम कांग्रेस को पांच साल पहले करना चाहिए था, किंतु कांग्रेस ऐसा नहीं कर पाई। पांच साल पहले अशोक गहलोत को सत्ता का सुख भोगते 2 दशक बीत चुके थे, लेकिन शायद कांग्रेस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि गहलोत की जगह युवा सचिन पायलट को सत्ता की चाबी सौंपती। भाजपा ने इस काम को जितने धौर्य से किया, उतनी ही ताकत से अंजाम तक पंहुचाया। भाजपा ने इसकी नींव पांच साल पहले सत्ता से बेदखली के साथ ही रखी दी थी। इन पांच वर्षों में पार्टी ने अध्यक्ष बदलने का निर्णय बहुत सूझबूझ के साथ लिया। अध्यक्ष के तौर पर डॉ. सतीश पूनियां को 3 वर्ष फ्री हैंड करके काम करने का अवसर दिया और जब तमाम बुरी ताकतों द्वारा अध्यक्ष के खिलाफ माहौल बनाया गया तो चेहरा बदलने में कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई। 

भाजपा ने चुनाव मोदी और कमल के फूल पर चुनाव लड़ने की घोषणा करके अपने इरादे जाहिर कर दिये थे, किंतु वसुंधरा राजे फिर भी मानने को तैयार नहीं थीं कि उनको कोई हटा सकता है, और इस तरह से एक झटके में हटा सकता है। अपनी मां के दम पर राजनीति में आईं और 10 साल तक राजस्थान पर पूरी तानाशाही से राज किया, उससे भाजपा का आम कार्यकर्ता त्रस्त था। अब समय बदल गया है। एक आम कार्यकर्ता सत्ता का मुखिया है और एबीवीपी निकला चेहरा पार्टी का चेहरा है। ऐसे में दोनों के पास पार्टी के आम कार्यकर्ताओं के साथ काम करने का अनुभव है, उनका दुख—दर्द समझने का भी लंबा अनुभव है। 

भजनलाल शर्मा आम कार्यकर्ता जैसे हैं। अभी तक वो जिस तरह से जनता के बीच में हैं, उससे उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। कोई भी मुख्यमंत्री जितना जनता के लिए आम बना रहेगा, उतनी ही लोकप्रियता बढ़ती रहेगी। पूर्व सीएम वसुंधरा—गहलोत ने इस मामले में जनता का खूब उपहास उड़ाया। भजनलाल रात—दिन मेहनत कर रहे हैं। रैन बसेरों में जाना, जनता के बीच में खड़े होकर उनकी बात को सुनना, आम व्यक्ति की तरह सुबह पार्क में टहलते हुए साधारण जनों से बात करना, अचानक आधी रात थानों में पहुंच जाना और उसके साथ ही अपने निवास पर आमजन से बिना भेदभाव के मिलना उनके कद में वृद्धि कर रहा है और यही कार्य भजनलाल को खास सीएम बनाता है। 

हालांकि, उनको इसमें थोड़ी सावधानी भी रखनी होगी कि कहीं उनके साथ फोटो खिंचवाकर सत्ता और संगठन में दलाली करने वाले 'भ्रष्ट' उनकी तस्वीरों के साथ उनकी छवि को भी नहीं बेच दें। पिछले दिनों देखा कि पार्क में टहलते हुए उनको कुछ दलालों ने घेर लिया था। हालांकि, एक आम कार्यकर्ता की भांति उनको भी इस बात का ध्यान नहीं रहा होगा, किंतु फिर भी सावधानी से ही उनकी छवि बची और बनी रहेगी। 

जिस चीज से जनता पिछले 25 वर्षों में दुखी रही, वो यही थी कि मुख्यमंत्री जनता से आसानी से मिलता ही नहीं था। दोनों सीएम का बर्ताव ऐसे था, जैसे कोई महा पराक्रमी सम्राट हो, जिसके दर्शन करने को भी लोग तरस जाते थे। भजनलाल को अधिकारी वर्ग से बेहद सावधान रहने की जरूरत है। यह वर्ग सीएम की छवि को जनता से दूर करने की बनाता है। यह वर्ग न तो स्वयं आम जन से मिलता है और न ही यह चाहता है कि सीएम या मंत्री जनता से मिले। परिणाम यह होता है कि जनता सरकार से नाराज हो जाती है। 

विकास अपनी जगह है, किंतु आमजन और पार्टी कार्यकर्ता सबसे बड़ी अपेक्षा यही रखते हैं कि मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक से उनकी बिना किसी तामझाम के मुलाकात हो जाए। ऐसी ही छवि सीएम भजनलाल को स्वयं और अपनी सरकार की बनानी है, अन्यथा पांच वर्ष बीतने में समय नहीं लगता है। आज गहलोत—वसुंधरा से लोग मिलना भी नहीं चाहते हैं, वो नए सीएम भजनलाल से नई उम्मीद के साथ मिलना भी चाहते हैं और अपनी बात सीधे सीएम, मंत्री तक पहुंचाना भी चाहते हैं। सीएम, मंत्री जितना आमजन से मिलेंगे, उतनी ही उनकी और सरकार की छवि स्वच्छ व जनहितैषी होती चली जाएगी। यह अवसर भजनलाल को बेहद आसानी से मिला है, किंतु इस अवसर को बड़े अवसर में बदलने की कमान अब उनके ही हाथ में है। देखते हैं, कमान कितनी मजबूती से पकड़े रखते हैं। 


रामगोपाल जाट

वरिष्ठ पत्रकार

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