पिछली सरकार के आखिरी सत्र के दौरान विधानसभा के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए राजेंद्र राठौड़ ने कहा था कि भाजपा 150 पार नहीं आएगी, तब तक वो इस दरवाजे पर नहीं आएंगे। भाजपा तो 150 पार के बजाए 115 के साथ सरकार बना चुकी है, लेकिन राठौड़ विधानसभा तक नहीं पहुंच पाए, वो पहली बार चुनाव हार गए। राजस्थान विधानसभा चुनाव होने के और मुख्यमंत्री बनने के बाद दो मुद्दे बहुत ज्यादा चर्चा में हैं। पहला भाजपा द्वारा चौंकाते हुए पहली बार जीतकर आए भाजपा के प्रदेश महामंत्री भजनलाल शर्मा को सीएम बनाने का आश्चर्य और दूसरा पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ द्वारा हारने के बाद तारानगर में सभा करके चूरू सांसद राहुल कस्वां के परिवार को जयचंद और विभीषण की उपाधि देना। दोनों ही विषय ऐसे हैं, जिनकी वजह से सोशल मीडिया पर खूब विवाद हो रहा है। इसलिए इन दोनों विषयों के बारे में जानना जरूरी है, ताकि आमजन के मन में जो जहरीली धारणाएं बन रही हैं, वो नहीं बनें और जातिगत आधार पर जो वैमनस्य नेताओं द्वारा फैलाने का काम किया जा रहा है, उससे जनता को मुक्ति मिले।
भजनलाल शर्मा भरतपुर से टिकट मांग रहे थे, लेकिन पार्टी द्वारा उनको सांगानेर से टिकट दिया गया। हालांकि, उनको इतना भी समय नहीं मिला कि चुनाव से पहले वो पूरे क्षेत्र में जाकर जन संपर्क कर पाते। किंतु सांगानेर सीट पर भाजपा समर्थक मतदाताओं की संख्या अधिक होने के कारण भजनलाल शर्मा 48000 से अधिक वोटों से जीत गए। जीतने के बाद जब सीएम बनने के लिए भाजपा द्वारा आठ दिन तक मंथन किया गया, तब भी किसी ने भजनलाल शर्मा को सीएम पद की रेस में नहीं माना था। तमाम टीवी चैनल और सट्टेबाजों द्वारा भजनलाल को इस रेस में कहीं नहीं बताया गया। यहां तक कि जब सीएलपी की मीटिंग से पहले विधायकों की फोटो खींची जा रही थी, तब भी उनको आखिरी पंक्ति में खड़े होने की जगह मिली थी। तब तक भी किसी व्यक्ति को पता नहीं था कि अगले 15 मिनट बाद यह व्यक्ति चुनाव के लिहाज से प्रदेश का पहला नागरिक बनने जा रहा है। सीएलपी की मीटिंग से पहले जिन भजनलाल से कोई विधायक रुचि लेकर बात नहीं कर रहा था, मीटिंग के बाद हर विधायक उनसे मिलना चाहता था।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी, मध्य प्रदेश में ओबीसी और राजस्थान में जनरल वर्ग के नेता को सीएम बनाया गया। यानी भाजपा ने एक संतुलन बनाने का प्रयास किया है। किंतु इसके बाद भी कुछ लोग इसको भाजपा की जातिगत मानसिकता कहकर प्रचारित कर रहे हैं। भजनलाल शर्मा ब्राह्मण समाज से आते हैं और स्वाभाविक सी बात है कि इस समाज के जोशीले युवा इसका जश्न मना रहे हैं। कुछ अति जोशीले लोग इसको ब्राह्मणों की जीत बता रहे हैं, कुछ इसको ब्राह्मण राज करार दे रहे हैं। दूसरी तरफ जो सीएम पद पर भजनलाल शर्मा के चयन को जातिगत आधार पर गलत बता रहे हैं, वो एक नया समीकरण बताते हुए भाजपा को ब्राह्मणवादी पार्टी कहकर भला बुरा कह रहे हैं। नया समीकरण ऐसा बैठा है कि ऊपर से नीचे तक भाजपा में ब्राह्मण हैं। राज्यपाल कलराज मिश्र, सीएम भजनलाल शर्मा, भाजपा अध्यक्ष सीपी जोशी, महामंत्री भजनलाल शर्मा, उपाध्यक्ष मुकेश दाधीच, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर, मुख्य सचिव उषा शर्मा, डीजीपी उमेश मिश्र, आरपीएससी अध्यक्ष संजय क्षैत्रीय समेत अनेक पदों पर सिर्फ ब्राह्मण ही हैं।
मतदाताओं की बात की जाए तो वास्तव में केवल ब्राह्मण ही वोट देते तो भाजपा चार सीट भी नहीं जीत सकती थी। यदि राजपूत और कायस्थ समाज को भी जोड़ दें तो भी कुल वोटर संख्या 20 फीसदी के आसपास रहती है। ऐसे में जो जातिवादी लोग केवल ब्राह्मण समाज के कारण सत्ता प्राप्त होने का दावा कर रहे हैं वो और भाजपा को केवल ब्राह्मण, राजपूत और बनिया की पार्टी कहते हैं, उनको इस बात का ध्यान होना चाहिए कि 60% जाट, 70% गुर्जर, 40% माली, 70% यादव, 40% मीणा, 60% एससी, 75% ब्राह्मण, 80% वैश्य समाज ने बीजेपी को वोट दिया। देश की आखिरी जनगणना के अनुसार भाजपा में ब्राह्मण 3 व 3.2% है, जबकि यही स्थिति राजस्थान की है।
इसलिए केवल ब्राह्मणों से ही भाजपा की सरकार आई है, ऐसी गलतफहमी किसी को नहीं रखनी चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो भाजपा की इस जीत और ब्राह्मण नेता भजनलाल शर्मा को सीएम बनाने में ओबीसी, एससी, एसटी का योगदान 80 फीसदी है। यह बात सही है कि अभी केवल सरकार बनी है और काफी कुछ बदलना है। आज की तारीख में यदि सीएम के चेहरे को हटा दें तो आप देखेंगे कि गहलोत सरकार के आखिरी समय में संवैधानिक, राजनीतिक और ब्यूरोक्रेसी की टॉप सीटों पर ब्राह्मण ही हैं। जैसे राज्यपाल कलराज मिश्र, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी, बीजेपी अध्यक्ष सीपी जोशी, मुख्य सचिव ऊषा शर्मा, डीजीपी उमेश मिश्रा, आरपीएससी चेयरमैन संजय क्षौत्रीय और कर्मचारी चयन बोर्ड अध्यक्ष भी ब्राह्मण ही हैं। इसके अलावा राजस्थान के 2 संभागीय आयुक्त, प्रदेश के 15 जिलों के कलेक्टर, एक पुलिस कमिश्नर, दो आईजी और 14 जिला एसपी ब्राह्मण हैं।
भजनलाल शर्मा का नाम तो इस सूची में चुनाव परिणाम के बाद आया है। इसलिए यह कहना बिलकुल गलत है कि भाजपा केवल ब्राह्मणों की ही पार्टी है और कांग्रेस सभी जातियों को मौका देती है। भजनलाल शर्मा को सीएम बनाने के पक्ष में जो लोग प्रदेश में ब्राह्मण सरकार होने का दावा करते हुए खुश हो रहे हैं वो भी और जो यह सूची वायरल कर भाजपा के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं वो भी अच्छे से जान लें कि इस सूची में एक भजनलाल शर्मा को छोड़कर सभी नियुक्तियां कांग्रेस के अशोक गहलोत सरकार के समय ही हुई थीं।
दूसरा मुद्दा पूर्व नेता प्रतिपक्ष रहे राजेंद्र राठौड़ की हार से जुड़ा है। खुद राठौड़ ने तारानगर की धन्यवाद सभा में कहा है कि जो भारत माता की जयकारे बोलते हुए उनको हराने में लगे हुए थे, वो जयचंद और विभीषण उनकी पवित्र पार्टी भाजपा से दूर रहें। पहली बात तो भाजपा राजेंद्र राठौड़ की जन्मदात्री राजनीतिक पार्टी नहीं है। राठौड़ पहली बार 1990 का चुनाव जनता दल से लड़े थे। चुनाव जीतने के बाद में वो भाजपा में शामिल हो गए थे। यानी उन्होंने अपनी पहली पार्टी जनता दल के साथ धोखा किया था। दरअसल, राठौड़ अपने जीवन का आठवां विधानसभा चुनाव चूरू की तारानगर सीट से लड़ रहे थे, जो हार गए। उनको 6800 से अधिक वोटों से कांग्रेस के नरेंद्र बुढ़ानिया ने हराया है। उससे पहले एक बार 2008 में इसी सीट से विधायक रह चुके हैं, बाकी सभी चुनाव वो चूरू विधानसभा सीट से जीते हैं। राठौड़ का बयान भाजपा के ही सांसद राहुल कस्वां को लेकर माना जा रहा है, क्योंकि जिस मंच पर राठौड़ बोल रहे थे, उसी मंच से एक अन्य नेता ने रामसिंह कस्वां, राहुल कस्वां और उनकी मां को गद्दार साबित करने का प्रयास किया है। हालांकि, राठौड़ ने नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने राहुल कस्वां के परिवार को ही जयचंद और विभीषण कहा है।
अब इस बात को समझना जरूरी है कि आखिर जयचंद है कौन? इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो जयचंद राठौड़ एक राजपूत राजा था, जिसने मोहम्मद गौरी का साथ देने के लिए सम्राट पृथ्वीराज चौहान को धोखा दिया था। पृथ्वीराज चौहान जब दिल्ली का राजा बना, तब कन्नौज का राजपूत राजा जयचंद था, जो चौहान से ईर्ष्या करता था। पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद की बेटी संयोगिता से स्वयंवर किया था, जिसके कारण वह नाराज था। उसने मुस्लिम शासक मुहम्मद गौरी का साथ दिया था, जिसके कारण पृथ्वीराज युद्ध हार गए थे। इस वजह से जयचंद को गद्दार या देशद्रोही कहा जाता है। इसी तरह से रावण का भाई विभीषण था, जिसने राम को युद्ध में रावण की कमजोरी बताई थी, जिसके कारण राम ने रावण पर विजय पाई थी। इस तरह से जब भी गद्दार या धोखेबाज का नाम आता है तो जयचंद और विभीषण की उपाधि दी जाती है।
दरअसल, चूरू जिला जाट बहुल है। यहां की सभी विधानसभाओं में जाट सर्वाधिक हैं। चूरू में जब भी राठौड़ चुनाव जीते, तब जाट समाज के कारण ही जीते हैं। पहली बार चुनाव हारते ही राठौड़ ने राहुल कस्वां के परिवार को जयचंद और विभीषण कहा है, जो जाट समाज से आते हैं। राठौड़ के चुनाव प्रचार के दौरान उनके बेटे पराक्रम ने राठौड़ के सामने ही सभा में कहा था कि राजपूत समाज का कोई भी व्यक्ति आता है तो उसकी सबसे पहले मदद करते हैं, उनको केवल अपना नाम बताना होता है, नाम के आगे सिंह होने से वो जान जाते हैं कि राजपूत है और वो उसको आगे बुलाकर सबसे पहले काम करते हैं, ऐसा ही वो आगे भी करते रहेंगे। उस बयान के बाद से ही चूरू में जातिवाद का जहर घुल गया था, परिणाम यह हुआ कि जिस जाट समाज के दम पर राठौड़ सात बार विधायक बने, उसको ही परिणाम के बाद जयचंद और विभीषण कह दिया। अब इस बयान के बाद चूरू समेत राजस्थान का जाट समाज राठौड़ से बुरी तरह नाराज हो गया है। सोशल मीडिया पर लोग राजेंद्र राठौड़ को बहुत भला बुरा बोल रहे हैं। वास्तव में देखा जाए तो इस बयान के कारण राठौड़ ने चूरू में जीतने के अपने रास्ते बंद कर लिए हैं।
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