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कैसे बनी भजनलाल की ऐसी सरकार, जिसमें वसुंधरा कुनबा साफ हो गया



राजस्थान में भाजपा की भजनलाल सरकार का गठन हो गया। शनिवार को 22 मंत्रियों की शपथ के साथ ही सरकार पूरी हो चुकी है। सरकार में खुद मुख्यमंत्री और दोनों उप मुख्यमंत्रियों समेत 20 मंत्री ऐसे हैं, जो पहली बार मंत्री पद का सुख भोगने वाले हैं। हालाकि, एक केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि 20 साल में पहली इस बार वसुंधरा राजे और उनके करीबियों को बिलकुल बाहर कर दिया है। वसुंधरा के करीबी सभी विधायक मंत्रिमंडल से बाहर हो चुके हैं, बल्कि संगठन से भी पूरी तरह से बाहर हो चुके हैं। इसी शुरुआत तब हुई थी, जब डॉ. सतीश पूनियां को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया था। 

करीब साढ़े तीन साल के कार्यकाल में सतीश पूनियां ने संगठन के निर्देशों पर वसुंधरा के सभी साथियों को संगठन से बाहर कर दिया, उनमें से केवल वही लोग संगठन का हिस्सा रहे, जो वसुंधरा को छोड़कर भाजपा के प्रति वफादार हो चुके थे। संगठन को जितना अच्छे तरीके से वसुंधरा की छत्रछाया से निकाला जा सकता था, उतने ही अच्छे तरीके से सतीश पूनियां ने संगठन को मजबूत कर कांग्रेस सरकार से सड़क पर लड़ने का भी काम किया। हालांकि, चुनाव से कुछ महीने पहले वसुंधरा, किरोड़ी, राठौड़, ओम माथुर जैसे बड़े नेताओं के दबाव में भाजपा ने सतीश पूनियां की सीपी जोशी को अध्यक्ष बना दिया। इसके कारण भी भाजपा को नुकसान हुआ, लेकिन फिर भी सतीश पूनियां ने इतना काम कर दिया था कि पूर्ण बहुमत की सरकार बनी सकती थी।

इसके बाद खुद पीएम मोदी ने कमान संभाली और अमित शाह की रणनीति से वसुंधरा राजे को चुनाव से ही बाहर करने का रास्ता दिखा दिया गया। जब परिणाम आया तो साफ हो गया कि वसुंधरा राजे का नंबर नहीं आने वाला है। राजनाथ सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा गया। खुद वसुंधरा राजे से ही सीएम पद के लिए भजनलाल शर्मा का नाम प्रस्तावित करवाया गया। पर्ची में नाम पढ़कर वसुंधरा राजे खुद चौंक गईं। शायद उनको भी इतना भरोसा नहीं था कि पहली बार के जीतकर आए विधायक को सीएम की कुर्सी सौंप दी जाएगी, किंतु उनके पास कोई चारा नहीं था। 
जब सीएम और डिप्टी सीएम फाइनल हो गये तो लगा कि अब शायद वसुंधरा कैंप के विधायकों को मंत्री बनाकर संतुलन बिठाने का काम किया जाएगा, लेकिन शनिवार को जब मंत्री बने तो सब हक्के बक्के रह गए। पिछली वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रहे गजेंद्र सिंह खींवसर और ओटाराम देवासी को छोड़कर किसी को मंत्री नहीं बनाया गया। इनका भी नंबर इसलिए आया, क्योंकि दोनों ने संगठन की वफादारी स्वीकार कर ली थी और क्षेत्र के हिसाब से इनको साधना जरूरी था, अन्यथा सत्ता में वसुंधरा कैंप की जीरो भागीदारी ने साफ कर दिया कि मोदी—शाह और वसुंधरा के बीच 2013 में शुरू होकर 2018 में चरम पर पहुंची सियासी दुश्मनी में अंतत: मोदी—शाह की ही जीत हुई है।
 
अब मंत्रियों के सलेक्शन की बात की जाए तो सबसे अधिक ध्यान क्षेत्र के उपर रखा गया है। राज्य के करीब—करीब हर जिले से मंत्री बनाया गया है। सीएम और डिप्टी सीएम के अलावा जिनको मंत्री बनाया गया है, उनमें भी 17 जने पहली बार मंत्री बने हैं। इससे पहले किरोड़ीलाल मीणा, गजेंद्र खींवसर, मदन दिलावर, ओटाराम देवासी, सुरेंद्र पाल टीटी राज्य में और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ केंद्र में मंत्री रहे हैं। सबसे सीनियर मंत्री किरोड़ीलाल मीणा हैं, जो राज्यसभा सांसद रहते हुए राजस्थान में कांग्रेस राज के दौरान सबसे मुखर रहे। उन्होंने पेपर लीक से लेकर हर मुद्दे पर सड़क पर आंदोलन किए, संसद से लेकर हर मोर्चे पर घेरा। एसटी समुदाय के मुखर चेहरे के तौर पर उनकी पहचान है। बेबाकी से बोलने और तथ्यों के साथ मुद्दे उठाने के लिए जाने जाते हैं। सियासत में आने से पहले ही संघ से जुड़े रहे हैं, 70 के दशक में इमरजेंसी के दौरान जेल गए। किरोड़ी को मंत्री बनाकर पूर्वी राजस्थान के सियासी समीकरण साधे गए हैं। सबसे पहले शपथ दिलाकर किरोड़ीलाल मीणा को सबसे सीनियर मंत्री के तौर पर जगह दी गई है।

इसी तरह से गजेंद्र सिंह खींवसर को दूसरा सीनियर मंत्री बनाया गया है, जो वसुंधरा राजे की दोनों सरकारों में मंत्री रहे। पिछली वसुंधरा सरकार में वे कैबिनेट मंत्री थे, उन्हें दूसरी बार कैबिनेट मंत्री बनाया है। हालांकि, गजेंद्र खींवसर को वसुंधरा राजे का नजदीकी माना जाता है, लेकिन विवादों से दूर रहते हैं, गुटबाजी के समय भी वसुंधरा राजे के खेमे में सक्रिय नहीं थे। मारवाड़ के सियासी समीकरणों को साधने के अलावा उन्हें मंत्री बनाकर पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को भी साधा गया है। खींवसर की छवि पार्टी के सरल राजपूत चेहरे के तौर पर रही है। दो बार मंत्री रहने के कारण उनको प्रशासनिक अनुभव है।

तीसरे नंबर पर झोटवाड़ा के विधायक राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को शपथ दिलाई गई, जो मोदी की पहली सरकार में केंद्र में मंत्री रहे थे। जयपुर ग्रामीण से दो बार सांसद रहे। पहली बार विधायक बने और कैबिनेट मंत्री बनाकर दो मैसेज दिए गए हैं। पूर्व फौजी अफसर और ओलंपिक चैंपियन को कैबिनेट मंत्री बनाकर और जातीय समीकरणों के हिसाब से भी राजपूत वर्ग से एक उभरते चेहरे को महत्व देने का मैसेज दिया है। राजधानी से वे चौथे नेता हैं, जो कैबिनेट में हैं। सीएम भजनलाल, डिप्टी सीएम दिया कुमारी, प्रेमचंद बैरवा के बाद वे चौथे चेहरे हैं जो जयपुर से हैं। हालांकि, हार्डकोर राजपूत चेहरा हैं, लेकिन सरल और साधारण राजपूत भी उनको अपने जैसा नहीं मानता है। चुनाव प्रचार के दौरान कठोर शैली में भाषण देने के कारण सौम्य राजपूतों ने उनसे दूरी भी बनाई है।

सबसे सरल और सुकून देने वाला नाम झाड़ोल से विधायक बाबूलाल खराड़ी हो, जिनको मंत्री बनाकर आदिवासी इलाके के लोगों को एक मैसेज दिया गया है कि उनके जैसे ही आम आदमी को मंत्री बनाया है। खराड़ी अब भी कच्चे घर में ही रहते हैं। पिछली बार उन्हें राजस्थान विधानसभा का सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया था। उनकी गिनती आदिवासी इलाके के जागरूक और ग्रासरूट से जुड़े नेता के तौर पर होती है। संघ के बेहद खास कार्यकर्ता हैं, जिनको सोशल मीडिया पर तब पहचान मिली, जब तत्कालीन अध्यक्ष सतीश पूनियां ने उनका इंटरव्यू लिया था।

इसी तरह से से पूर्व मंत्री मदन दिलावर की गिनती बीजेपी में मुखर हिंदूवादी चेहरे की होती है। बेबाक और उग्र रूप से बोलने के लिए जाने जाते हैं। मदन दिलावर पार्टी का प्रमुख दलित चेहरा भी है। इससे पहले भैरासिंह शेखावत सरकार और वसुंधरा राजे सरकार में मंत्री रह चुके हैं। विधानसभा में विपक्ष में रहते हुए काफी मुखर रहते आए हैं। शुरू से ही आरएसएस से जुड़े रहे हैं और दूसरे हिंदूवादी संगठनों में भी लगातार सक्रिय रहे हैं। मदन दिलावर पार्टी के प्रमुख दलित चेहरे हैं, जिनके जरिए हाड़ौती के सियासी समीकरण साधे गए हैं।

मारवाड़ में पटेल समाज के मुखर और पढ़े लिखे चेहरे के तौर पर मौका दिया गया है। आंजना, पटेल बीजेपी का वोट बैंक माना जाता है। जोगाराम पटेल हाईकोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं। मारवाड़ में पार्टी के वोट बैंक और ओबीसी वर्गों को प्रतिनिधित्व देने का मैसेज दिया गया है। इससे पहले जोगाराम पटेल पूर्व की वसुंधरा राजे सरकार के समय संसदीय सचिव रहे हैं। उन्हें संसदीय मामलों का अच्छा जानकार माना जाता है, इसलिए फ्लोर मैनेजमेंट में भी उनकी भूमिका खासी रहने वाली है।

अजमेर, राजसमंद के मगरा क्षेत्र में रावत समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर रहा है। इस समाज से सुरेश सिंह रावत को मंत्री बनाकर अपने कोर वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। सुरेश सिंह रावत इससे पहले वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव रह चुके हैं, लेकिन पहली बार मंत्री बने हैं।

अविनाश गहलोत सैनी समाज से पार्टी का प्रमुख चेहरा हैं। पाली जिला बीजेपी का गढ़ माना जाता है। अशोक गहलोत के प्रभाव को छोड़कर सैनी समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है। क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधे गए हैं। पहली बार मंत्री बनाकर काली समाज को मैसेज दिया है कि अशोक गहलोत से इतर भी माली हैं, जो मंत्री—संत्री बन सकते हैं।

माली की तरह से कुमावत समाज परंपरागत रूप से बीजेपी का वोटर माना जाता रहा है। वसुंधरा राजे सरकार में कुमावत समाज से एक मंत्री रहा है। इस बार भी कुमावत समाज से जोराराम कुमावत को कैबिनेट मंत्री बनाकर मैसेज दिया है। पाली के सुमेरपुर से दूसरी बार के विधायक कुमावत संघ से जुड़े रहे हैं।

किरोड़ी लाल मीणा को पूर्वी राजस्थान का मीणा नेता माना जाता है, लेकिन जब आदिवासी समाज की बात आती है तो फिर डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ जैसे जिलों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। आदिवासी बेल्ट में बीजेपी का प्रदर्शन इस बार बीएपी के प्रभाव की वजह से उतना अच्छा नहीं रहा, जितना 2013 में था। प्रतापगढ़ से बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री नंदलाल मीणा के बेटे हेमंत मीणा के जरिए क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधे गए हैं। हेमंत मीणा पहली बार विधायक बने हैं।

राज्य की सबसे बड़ी आबादी जाट समुदाय से दो कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। हालांकि, लंबे समय से जारी जाट सीएम की मांग भाजपा ने भी पूरी नहीं की है, लेकिन सबसे अधिक 4 मंत्री बनाकर साफ कर दिया है कि जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी मिलेगी जरुर। इसके साथ ही सांप्रदायिक रूप से बहुत ही संवेदनशील टोंक जिले के मालपुरा क्षेत्र से कन्हैयालाल को मंत्री बनाकर जातीय-क्षेत्रीय समीकरण साधे हैं। सचिन पायलट के प्रभाव वाले टोंक जिले में कन्हैयालाल चौधरी को कैबिनेट मंत्री बनाकर बीजेपी ने किसान वर्ग को साधने का पूरा प्रयास किया है।

इसी क्रम में दूसरा नाम है सुमित गोदारा का, जिनके जरिए बीकानेर और नहरी क्षेत्र के जिलों में किसान वोटर्स को साधने का प्रयास किया है। दूसरी बार के विधायक सुमित गोदारा के जरिए जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को सुधारने का प्रयास भी किया गया है। पंजाब और दिल्ली में किसान आंदोलन के बाद बीजेपी के वोट बैंक में आई दरार को पाटने के लिए बीजेपी ने नए चेहरे पर दांव खेला है।

सीएम भजनलाल के अलावा एक और ब्राह्मण मंत्री बनाया गया है। अलवर जिले में कोर वोट बैंक को साधने का प्रयास किया है। अलवर शहर से दो बार के विधायक संजय शर्मा को आरएसएस का समर्थन बताया जाता है। इस जिले में बीजेपी का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा था, फिर भी जिले से एक मंत्री बनाकर क्षेत्रीय समीकरण साधने का काम किया गया है। ब्राह्मणों के भाजपा से 12 विधायक जीते हैं। हालांकि, पार्टी में ऊपर से नीचे तक ब्राह्मणों का ही वर्चस्व है।

मंत्रियों की शपथ के साथ ही विवाद हुआ सुरेंद्र पाल टीटी के सलेक्शन को लेकर। चुनाव के दौरान किसी उम्मीदवार को मंत्री बनाकर देश में नया उदाहरण पेश कर दिया है। श्रीकरणपुर सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार गुरमीत कुन्नर के निधन के बाद वहां चुनाव रद्द हो गया था। श्रीकरणपुर में 5 जनवरी को वोटिंग है। सुरेंद्र पाल सिंह टीटी श्रीकरणपुर से बीजेपी के उम्मीदवार हैं और अब राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बन गए हैं। बताया जा रहा है कि देश में चलते चुनाव के दौरान किसी को मंत्री बनाए जाने का पहला मामला है। इस मामले में कानून मौन है, हालांकि, नैतिकता के नाते चलते चुनाव में मंत्री बनाए जाने पर सवाल उठ सकते हैं, लेकिन इस मामले में कानून मौन होने से यह वैधानिक रूप से गलत नहीं है। बीजेपी ने इसे लेकर चुनाव आयोग और वरिष्ठ कानूनी जानकारों से भी राय ली थी। मेवाड़ क्षेत्र से गौतम दक को मौका दिया है। आरएसएस की पसंद होने का फायदा मिला। मंत्रिमंडल में वे एक मात्र वैश्य चेहरा हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के बढ़ते प्रभाव के कारण शेखावाटी में बीजेपी को इस बार कम सीटें मिली हैं। शेखावाटी के सीकर जिले की श्रीमाधोपुर सीट से झाबर सिंह खर्रा को मंत्री बनाकर जातीय और जातीय क्षेत्रीय समीकरण साधे गये हैं। झाबर सिंह के पिता हरलाल सिंह खर्रा भैरोसिंह शेखावत सरकार में मंत्री रहे हैं। लोकसभा स्पीकर के क्षेत्र से कोटा से भी मंत्री बनाया गया है। हीरालाल नागर कोटा जिले में किसान वर्ग की नागर जाति के प्रमुख चेहरे हैं। नागर, धाकड़ समाज बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है।

इसी तरह से पूर्व मंत्री ओटाराम देवासी के जरिए जातिगत, धार्मिक और क्षेत्रीय तीन तरह के समीकरण साधे गए हैं। देवासी समाज के धर्म गुरु होने से पूरे सिरोही क्षेत्र के देवासी, रेबारी और दूसरे समाजों पर प्रभाव है। नागौर जिले की जायल सीट से दूसरी बार की विधायक मंजू बाघमार क्षेत्र में पार्टी के प्रमुख दलित चेहरे के तौर पर मानी जाती हैं। नागौर से दूसरी मंत्री हैं, इसलिए क्षेत्र के साथ ही आसपास के दलित वोटर्स को मैसेज दिया गया है।

नागौर की नावां सीट से सीएम अशोक गहलोत के खास और कांग्रेस राज में सरकारी मुख्य सचेतक रहे महेंद्र चौधरी को हराकर दूसरी बार जीते विजय सिंह चौधरी को मंत्री बनाया गया है। इससे पहले उनके पिता रामेश्वर लाल चौधरी निर्दलीय विधायक रहे थे विजय सिंह चौधरी किसान वर्ग से चौथे मंत्री हैं। ऐसे ही मारवाड़ में प्रभावशाली विश्नोई समाज को साधने का प्रयास। पहली बार के विधायक केके विश्नोई वसुंधरा राजे के सलाहकार रहे लादूराम विश्नोई के बेटे हैं। सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाने से नाराज गुर्जर समाज को भी एक मंत्री पद दिया गया है। भरतपुर की नगर सीट से जवाहर सिंह बेढम को मंत्री बनाकर पूर्वी राजस्थान और गुर्जर वोटर्स को मैसेज दिया गया है। सचिन पायलट फैक्टर की वजह से गुर्जर वोटर्स का रुझान बदल गया था, बीजेपी उसे वापस मोड़ने का प्रयास कर रही है। बेड़म कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के साथ गुर्जर आंदोलन में लगातार सक्रिय रहे थे।

इस तरह से इस पूरे मंत्रिमंडल से एक तरफ जहां वसुंधरा राजे गुट को बाहर कर दिया है तो साथ ही बदलाव करने की हिम्मत खो चुकी कांग्रेस को भी सीधा सीधा संदेश हैं कि भाजपा ने अपनी पीढ़ी बदल दी है, यानी आगे सत्ता रिपीट कराने का रास्ता तैयार किया जा रहा है। अब यदि कांग्रेस भी पायलट जैसे युवा और जोशीले नेता को आगे नहीं करेगी, तब तक चुनाव जीतकर सत्ता पाने का सपना नहीं देखना बेकार है। भाजपा ने स्पष्ट कर दिया है कि सीनियर या जूनियर नहीं चलेगा, बल्कि जो पार्टी की रीति नीति के अनुसार चलेगा, वही सत्ता और संगठन का भागीदार बनेगा। 

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