पुरानी योजनाएं बंद करना नई बात नहीं है



नई सरकार बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या पुरानी सरकार की योजनाएं बंद हो जाएंगी?यह परम्परा बन चुकी है। दलों की विचारधारा ने विकास को कुंद करने का काम भी खूब किया है। बीते दो दशक से पिछली सरकार की योजनाओं पर ताला लगाने का रिवाज बना लिया है। अभी तक कमेटी नहीं बनी है, किंतु कांग्रेस सरकार की अंतिम वर्ष में शुरू की गई अधिकांश योजनाओं पर भाजपा सरकार ने अघोषित रूप से विराम लगा दिया गया है। सरकारी आदेश में सधे हुए कदमों से उस दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं, जिसकी आशंका जताई जा रही थी।

वैसे तो इस परम्परा को शुरू करने का काम 1998 के दौरान किया गया था। फिर 2003 में इसको आगे बढ़ाया गया। 2008 में इस परम्परा को मजबूती मिली और 2013 में नि:शुल्क दवा और जांच योजना की तस्वीर बदकर परम्परा को पुख्ता किया गया। पांच साल पहले योजनाओं को बंद करने और उनका नाम बदलने का क्रम आरम्भ हुआ। अन्नपूर्णा रसोई, भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना, किसानों को मिलने वाले बिजली अनुदान जैसी योजनाओं का नाम बदला गया। यह बात भी सही है कि अधिक प्रचलित मानी जारी वाली योजनाओं को आखिरी वर्ष में शुरू कर चुनावी लाभ का कारोबार किया जाता है। अब फूड पैकेट, महिलाओं को मोबाइल, 100 यूनिट और किसानों को 2000 यूनिट के अलावा आरजीएचएस और चिरंजीवी को लेकर बंद करने की सुगबुगाहट ने वोटर्स के कान खड़े कर दिए हैं। प्रदेश के करीब साढ़े सात लाख सरकारी कर्मचारियों के मन में ओपीएस को लेकर सबसे अधिक चिंता है, जिसका कानून बनाने का वादा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया था। हालांकि, यह योजना मधुमक्खियों के छत्ते के समान है, जिसमें हाथ डालते हुए कार्मिकों के डंक लगने की संभावना भी बहुत ज्यादा है। बाकी योजनाओं पर जनता की कितनी प्रतिक्रया होगी, यह तो समय बताएगा। आरजीएचएस सरकारी कर्मचारियों के लिए सबसे फायदेमंद साबित हो रही है, इसलिए सरकार इसका क्या करेगी, यह भी विचारणीय विषय है।

नई सरकार ने आदेश जारी कर सभी नए टेंडर रोक दिए गए हैं। पुराने टेंडर भी अब लंबित रहेंगे। अग्रिम आदेश का मतलब यही है कि पुराने सभी टेंडर की जांच करके ही आगे बढ़ा जाएगा। वर्तमान में राज्य के खजाने से 30 हजार करोड़ के बिल लंबित पड़े हैं। सरकार पर 5.59 लाख करोड़ का कर्जा है। बीते पांच साल में कर्ज 3.36 लाख करोड़ से बढ़कर यहां तक पहुंच चुका है। सरकार के पास प्रतिवर्ष आय 1.40 लाख करोड़ है, जबकि कर्ज को चुकाने के लिए भी उधार लिया जा रहा है। सरकार चलाने और फ्री रेवड़ियां बांटने के लिए रिजर्व बैंक से प्रतिभूति जारी करवाने का काम युद्ध स्तर पर किया गया। नई सरकार को इस बात की जांच कर सार्वजनिक करना चाहिए कि सरकार की कितनी संपत्तियां गिरवी रख दी गई हैं।

सरकार के समक्ष कई चुनौतियां हैं, लेकिन अपराध और भ्रष्टाचार के बाद खजाने पर बोझ की चुनौती सबसे चुनौतीपूर्ण है। यह बात सही है कि सरकार की फ्री योजनाओं को बंद करना आसान काम नहीं है, खासकर जब चार महीने बाद आम चुनाव हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि पूर्व सरकार की सभी योजनाएं कम से कम मई महीने तक यथावत चलेंगी, उसके उपरांत निर्णय लिया जाएगा। डिस्कॉम पर 2018 तक कोई कर्ज नहीं था, लेकिन आज 76 हजार करोड़ का ऋण है, जो हम महीने करीब 15 हजार करोड़ बढ़ रहा है। उपभोक्ताओं को 100 यूनिट और किसानों को 2000 यूनिट का लाभ डिस्कॉम को कंगाली की तरफ ले जा रहा है। बिजली छीजत रोकने का काम बिलकुल निम्न स्तर पर चला गया है। कमर्शियल कनेक्शन के साथ सबसे अधिक बिजली छीजत चल रही है। अधिकारी और कर्मचारी कितना लाभ ले रहे हैं, इसकी भी जरूरी मॉनिटरिंग होनी चाहिए।

इंदिरा रसोई को अन्नपूर्णा किया जाएगा, चिरंजीवी को बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, आरजीएचएस पर तलवार लटक रही है तो ओपीएस के लिए केंद्र सरकार को निर्णय करना है। फूड पैकेट और महिलाओं को मोबाइल पर अघोषित रोक लग गई है। चिरंजीवी योजना प्राइवेट अस्पतालों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया है। बीते 15 साल से सरकारों ने सार्वजनिक क्षेत्र की चिकित्सा व्यवस्था को डंप करने का काम किया है। इस बात की तो सीबीआई से जांच होनी चाहिए कि निजी अस्पतालों में किस—किस पूर्व सीएम का कितना हिस्सा है? किस नेता या अधिकारी की कितनी साझेदारी है? यदि इसकी ही ईमानदारी से जांच हो जाए तो पता चला जाएगा कि सार्वजनिक चिकित्सा की इतनी बुरी गत क्यों हुई है।

आंगनबाड़ी से लेकर दवा योजना और फूड पैकेट से लेकर तमाम सरकारी योजनाओं की जांच और हर समय मॉनिटरिंग नहीं होगी, तब तक सरकारी घाटा कम नहीं होगा, बल्कि बढ़ता चला जाएगा। सीएम का चेहरा तो 25 साल बाद नया मिल गया, किंतु प्रशासनिक अनुभव की कमी के कारण ब्यूरोक्रेसी क्या खेल करेगी, इसके ऊपर जब तक केंद्र सरकार निगरानी नहीं होगी, हर आदेश को जांचा परखा नहीं जाएगा, तब तक नयेपन की उम्मीद करना बेकार है। मंत्रियों के बनने के बाद पूरी ब्यूरोक्रेसी को काम करना है। सीएम ने अधिकारियों को आश्वस्त तो कर दिया कि पूर्वाग्रह के बिना काम करेंगे, लेकिन इसी ब्यूरोक्रेसी ने प्रदेश का यह हाल किया है, इसलिए ईमानदार अधिकारियों की टीम बनाकर उनको निगरानी के लिए रखना होगा। इतना सब कुछ होने के बाद भी केवल अधिकारियों के भरोसे सरकार चलाई तो पांच साल बाद भाजपा को फिर से विपक्ष में बैठने की तैयारी अभी से कर लेनी चाहिए।

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