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एक साल सीएम बनकर गहलोत वाला खेल करना चाहती हैं वसुंधरा!



—अशोक गहलोत ने पांच साल पहले पांच महीने के लिए सीएम बनकर 13 सांसद जिताने का वादा कर पांच साल सत्ता भोगी

राजस्थान में अगले पांच साल पहले राज करने वाले मुख्यमंत्री का निर्णय हो जाएगा। किंतु उससे पहले पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने आखिरी बार मुख्यमंत्री बनने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। भाजपा सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से फोन पर वसुंधरा राजे की बात हुई, जिसमें राजे ने कहा कि उनको केवल एक साल के लिए सीएम बना दिया जाए, उसके बाद वो खुद ही इस्तीफा दे देंगी। हालांकि, यह बात सामने नहीं आई है कि इसके जवाब में नड्डा ने क्या कहा?

दरअसल, राजे के इस दांव के पीछे वही खेल माना जा रहा है जो पांच साल पहले अशोक गहलोत ने पांच माह सीएम बनने के बाद पांच साल तक किया था। 10 दिसंबर 2018 को विधानसभा परिणाम में कांग्रेस को 100 सीटों पर जीत मिली थी, जिसके बाद सीएम बनने की बारी आई तो अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच जंग चली। इस दौरान गहलोत ने गांधी परिवार से वादा किया कि वो राज्य की नस-नस को जानते हैं, इसलिए लोकसभा में कांग्रेस को बहुमत दिलाने के लिए राजस्थान जीतना जरूरी है।

इसके लिए गहलोत ने कहा कि वो सीएम रहेंगे तो कम से कम 13 कांग्रेस को जिताएंगे। पांच महीने बाद मई में चुनाव हो गए, और कांग्रेस लगातार दूसरी बार सभी 25 सीटें हार गई। इसके उपरांत जब पायलट ने गांधी परिवार से कहा कि गहलोत से इस्तीफा लें, तो गहलोत ने आनाकानी करनी शुरू कर दी। कुछ महीने का समय मांग लिया और इस दौरान विधायकों और मंत्रियों को अपने पाले में कर लिया। साथ ही पायलट कैंप के मंत्रियों की फाइल्स सीएमआर मंगवानी शुरू कर दीं। जब पायलट खेमे के मंत्री प्रताड़ित होने लगे तो उनपर दबाव बना दिया गया।

असल बात यह है​ कि गहलोत ने पायलट को अध्यक्ष या मंत्री पद में से एक रखने का अभियान चला दिया। यानी पायलट जहां गहलोत को हटाने का दबाव बनाने की सोच रहे थे, उससे पहले ही गहलोत ने पायलट को अपने जाल में फंसा लिया। पायलट और उनके साथी समझ ही नहीं पाए कि गहलोत क्या गेम खेल रहे हैं? गांधी परिवार पूरी तरह से गहलोत के कब्जे में था, वो जैसा चाह रहे थे, वैसा ही हो रहा था। पायलट की सुनवाई न तो गहलोत ने की और न ही गांधी परिवार ने। ऐसे में कहीं पर भी सुनवाई नहीं होने के कारण युवा सचिन पायलट खुद ही गहलोत के जाल में फंस गए। गहलोत यही चाहते थे कि प्रेशर में आकर पायलट कोई उल्टा-सीधा कदम उठाएं। परिणाम यह हुआ कि 11 जुलाई 2020 को पायलट कैंप ने बगावत कर दी।

उसके बाद पांच साल तक जो हुआ, वो पूरे देश ने देखा। अब वसुंधरा राजे भी वही करना चाह रही हैं, जो पांच साल पहले गहलोत ने किया था। दो बार की सीएम होने के कारण राजे के पास भाजपा में एक पूरा सिस्टम है, जिसको केवल जागृत करना शेष है। राजे को पता है कि जब सरकारी तंत्र उनके हाथ में होगा तो वो अपने हिसाब से भाजपा विधायकों और अधिकारियों के जरिए सारे सरकारी तंत्र को अपने हिसाब से मोड सकती हैं। एक साल सीएम रहने के बाद राजे से इस्तीफा लेना भाजपा शीर्ष नेतृत्व के बहुत मुश्किल हो जाएगा।

आपको याद होगा साल 2009 का वो दौर, जब वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाया गया था। तब कैसे वसुंधरा राजे ने अपने समर्थक विधायकों को इस्तीफा देने के लिए दिल्ली भेज दिया था। उसके बाद भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने दबाव में आकर वसुंधरा राजे को फिर से नेता प्रतिपक्ष बना दिया था। राजे की प्रेशर पॉलिटिक्स की प्रेक्टिस बहुत पुरानी है। उनको पता है कि एक बार सरकारी तंत्र को अपने हाथ में ले लिया तो उसके बाद बदलाव करना कठिन हो जाएगा। उनको यह भी पता है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटों पर मोदी लहर का प्रभाव रहेगा और भाजपा सभी सीटें जीत जाएगी, जिसके बाद आलाकमान को यह कहने की अधिकारी भी हो जाएंगी कि उन्होंने सभी सीटें जिता दीं।

किंतु इस बार समीकरण काफी बदल चुके हैं। पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने ही साफ कह दिया है कि राजस्थान को 25 साल बाद नया चेहरा देखने को मिलेगा। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में नये चेहरे आने के बाद राजस्थान में भी नया चेहरा बनना तय हो चुका है। राजस्थान के किसी नेता को पता नहीं है कि कौन सीएम बनने जा रहा है। 

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