चुनाव परिणाम के इंतजार के साथ ही सबको इस बात का इंतजार है कि बीजेपी को बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री कौन होगा? कांग्रेस की वैसे तो जीत की संभावना नहीं के बराबर है, फिर भी यदि चमत्कार हो जाए तो भी सीएम चौथी बार भी अशोक गहलोत ही बनने जा रहे हैं। सचिन पायलट का नंबर इस बार भी नहीं आएगा। इस बात को पायलट चुनाव से पहले ही जान चुके थे, और यही कारण रहा है कि पायलट ने गहलोत के साथ एक भी मंच साझा नहीं किया। जो पायलट गहलोत पांच साल पहले एक हेलीकॉप्टर में जाते, चुनाव प्रचार करते, एक ही होटल में रहते, मंच साझा करते और वादा का पिटारा खोलते थे, वो इस बार एक भी मंच पर साथ नहीं थे। यानी कांग्रेस को जिस कारण से पांच साल पहले सत्ता मिली थी, उसी कारण से कांग्रेस इस बार सत्ता से बेदखल हो जाएगी।
अब सवाल यह उठता है कि भाजपा को कितनी सीटों पर जीत मिल रही है? टीवी चैनल के एग्जिट पॉल आपने देखे होंगे! अधिकांश ने राजस्थान में भाजपा को बहुमत के करीब दिखाया है। 10 में से 7 के अनुसार भाजपा को सत्ता मिल रही है और 3 के मुताबिक कांग्रेस सत्ता में रिपीट हो रही है। असल बात यह है कि 2018 और 2013 के एग्जिट पोल में 40 से 50 सीटों का अंतर था। एक्जिट पोल केवल मन खुश करने का साधन है, इससे अधिक कुछ भी नहीं हैं। जिस दल को बहुमत दिखाया जा रहा है, वो खुश हैं, और जो नजदीक नहीं है, वो कह रहे हैं कि एक्जिट पोल से इतर सच है।
भाजपा की जीत 80 से 110 तक जीतता दिखाया गया है। वास्तविकता की बात की जाए तो भाजपा को इससे कहीं अधिक सीटों पर जीत मिल रही है। मेरा मानना है कि भाजपा 120 से अधिक सीटों पर जीत हासिल कर रही है। सचिन पायलट का गहलोत के साथ नहीं होना और गुर्जर समाज की भारी नाराजगी के अलावा अपराध, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे अहम रहे हैं। भाजपा की ओर से वसुंधरा राजे अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुट गई हैं, बाकी कोई भी नेता अपना मुंह नहीं खोल रहा है। राजेंद्र राठौड़ जीतकर भी सीएम नहीं बन पाएंगे। संघ की नजर में वो विश्वसनीय नहीं हैं। सतीश पूनियां छह महीने पहले ही मजबूत दावेदार बन रहे थे, उनको चुनाव से कुछ महीने पहले ही अध्यक्ष पद से हटाकर विवाद को खत्म करने का प्रयास किया गया था। गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव नहीं लड़ने का क्या संकेत दिया गया है, यह समझ नहीं आया। ओम बिड़ला का नाम उनके समर्थक ले रहे हैं, बाकी कोई नहीं लेता।
सीटों के बंटवारे में किसकी चली और कौन पीछे रहा, यह सवाल अब पीछे छूट गया है। अब सवाल यह पूछा जा रहा है कि भाजपा की सरकार बनने जा रही है, लेकिन मुख्यमंत्री कौन होगा? इससे पहले के वीडियो में मैंने आपको तथ्यों के साथ बताया है कि नेता प्रतिपक्ष होने के बाद भी राजेंद्र सिंह राठौड़ इस रेस में पीछे क्यों छूट गए हैं? आज बात करेंगे सीएम की रेस में आखिर किस वजह से सांसद दीया कुमारी आरएसएस की पहली पसंद बनकर लिस्ट में टॉप पर पहुंच चुकी हैं। इसके साथ ही यह भी बात करेंगे इस रेस में और कौन कौन हैं, जो सीएम बन सकते हैं।
सबसे पहले तो यह बात जान लीजिए कि चाहे भाजपा कितनी भी सीटों पर जीते, वसुंधरा राजे सीएम नहीं होंगी। दूसरी बात यह है कि कभी उनके करीबी रहे राजेंद्र राठौड़ जीतकर भी सीएम नहीं बन पाएंगे। दीया कुमारी जयपुर के पूर्व राजघराने से आती हैं। वो 2013 में भाजपा सदस्य बनने के बाद सवाई माधोपुर से चुनाव लड़कर विधायक बनीं। इसके बाद मई 2019 में वो राजसमंद से सांसद बनीं। हाल ही में पुष्कर—मेडता रेल लाइन का ऐलान किया गया है, जो दीया कुमारी के प्रयासों से ही सफल हुआ है।
दीया कुमारी का नाम भाजपा की पहली सूची में था और वो भी भाजपा की सबसे मजबूत सीट से। सुनने में आया है कि दीया कुमारी को खुद संघ ने ही विद्याधर नगर से टिकट दिया था। पहली सूची के साथ ही संघ ने यह भी राय रखी थी कि सरकार बनने पर वसुंधरा राजे को रिप्लेस कर दीया कुमारी को लाया जाएगा। समझने वाली बात यह है कि वसुंधरा राजे को रिप्लेस करने का मतलब क्या होता है? क्या महिला की जगह महिला लाया जा रहा है, या फिर राजपूत महिला की जगह राजपूत महिला को एडजस्ट किया जा रहा है?
दरअसल, वसुंधरा राजे 70 साल से अधिक उम्र की हो चुकी हैं। जब उनको राजस्थान की राजनीति में लगाया गया था, तब उनकी उम्र भी लगभग उतनी ही थी, जितनी आज दीया कुमारी की है। वसुंधरा के पीछे उनकी मां का बड़ा नाम था, जबकि दीया कुमारी के साथ उनकी दादी का नाम तो है, लेकिन वो काफी पुरानी बात हो चुकी है। जब पहली बार विधायक बनीं तब दीया कुमारी को सार्वजनिक रूप से बोलना कम ही आता था, लेकिन बीते पांच साल में उन्होंने जितना बदलाव किया है, वो काबिले तारीफ है। आज ना केवल शानदार वक्ता बन चुकी हैं, बल्कि निर्विवाद होने के कारण पार्टी में उनका कोई भी अहित चाहते वाला नहीं है।
व्यक्ति के बजाए संगठन को सर्वोपरी रखती हैं, इसलिए संघ में उनका समर्थन करने वाले काफी पदाधिकारी हैं। जयपुर की सीट से चुनाव लड़ाने का मतलब यह तो नहीं होता कि सीएम बनाना ही है, किंतु सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाने का मतलब यह जरूर है कि संघ और संगठन ने दीया कुमारी को लेकर कोई बड़ी योजना बनाई है। भाजपा के सूत्रों का दावा है कि संघ ने दीया कुमारी को उसी जगह स्थापित करने का मन बनाया है, जिस जगह वसुंधरा राजे थीं।
यही सबसे बड़ा कारण है, जो दीया कुमारी को सबसे सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाया गया है और सीएम रेस में सबसे आगे करता है। पार्टी अगले पांच साल में ऐसी महिला नेत्रियां तैयार करेगी, जो 33 फीसदी महिला आरक्षण के मामले में मजबूत कदमों के साथ आगे बढ़ सके। अगले चुनाव में पार्टी को आज के हिसाब से कम से कम 66 टिकट देने होंगे और यदि 2026 के परिसीमन में 50 सीट बढ़ गईं तो 83 टिकट हो जाएंगे। ऐसे में महिलाओं का नेतृत्व करने के लिए मजबूत और ऐसी आकर्षक नेता की जरूरत है, तो अगले 20 साल तक लीडरशिप में रह सके।
पार्टी ने दीया कुमारी को आज लीडरशिप में लिया तो अगले दो दशक तक पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं होगी। इसी सोच के साथ संघ ने दीया कुमारी का सपोर्ट किया है। देखना यह होगा कि राजस्थान में भाजपा राणी की जगह राजकुमारी को आगे तो कर चुकी है, अब सियासत में स्थापित करने का क्या फॉर्मूला रहेगा? क्योंकि वसुंधरा राजे की वैसे भी उम्र के हिसाब से राजनीति मुश्किल से पांच साल बची है, जो उनको केंद्र में मंत्री या किसी राज्य में राज्यपाल बनाकर गुजारा जा सकता है। त्र
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