राजस्थान में विधानसभा के चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं। अब 3 दिसंबर को मतगणना के साथ ही परिणाम जारी किया जाएगा और उसके बाद नई सरकार के गठन की तैयारियां शुरू हो जाएंगी। इस चुनाव में भाजपा ने पीएम मोदी और कमल के फूल को आगे कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का दावा किया है, तो कांग्रेस ने सीएम अशोक गहलोत को वन मैन शॉ के रूप में प्रस्तुत कर बड़ा मुश्किल दांव खेला है। तीसरे मोर्चे के रूप में आरएलपी—एएसपी गठबंधन ने भी करीब सवा सौ सीटों पर उम्मीदवार उतारकर सत्ता की चाबी उनके हाथ होने का दावा किया है। इनके बीच छोटे दलों और निर्दलीयों ने भी ताक झौंकी है। अधिकांश सीटों पर भाजपा—कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि करीब 60 सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई दे रहा है। इस़ी तरह से करीब दो दर्जन सीटों पर चतुष्कोणीय जंग भी चली है। मतगणना की बात की जाए तो पिछली बार से कुछ ही प्रतिशत वोट अधिक पड़े हैं। अधिक वोट हमेशा सत्ता बदलने के तौर पर देखे जाते हैं, लेकिन बेहद कम प्रतिशत बढ़ा है, जो प्रचंड बहुमत की तरफ इशारा नहीं करता है।
अब सवाल यह उठता है कि यदि भाजपा सत्ता में आई तो उसके प्रमुख कारण क्या होंगे और यदि जीत नहीं पाई तो उसके क्या कारण रहेंगे? अगर इस चुनाव में भाजपा बहुमत तक पहुंच जाती है, तो पूरी भाजपा इसका श्रेय पीएम मोदी को देंगे, उनकी रणनीति को देंगे, पार्टी की एकजुटता को देंगे और इसके साथ ही सत्ताधारी कांग्रेस के विफलता को बड़ा कारण बताएंगे। यह बात सही है कि पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया है और जीत मिलती है तो बड़ा कारण मोदी का चेहरा ही होगा। इसके साथ अंतिम दिनों भाजपा में कोई बगावती बयान नहीं होना भी काफी महत्वपूर्ण हो गया है। भले ही वसुंधरा, राठौड़, पूनियां, शेखावत जैसे बड़े नेता एक मंच पर साथ नहीं आए हों, लेकिन फिर भी पार्टी में सीएम पद के लिए किसी ने दो शब्द नहीं बोले, जो एकजुटता का परिचायक कहा जा सकता है। ठीक इसी तरह से भाजपा ने कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार, अपराध, महिला अत्याचार, तुष्टिकरण, समाजों को बांटने और जनता को अपने हाल पर छोडने की कहानी को जनता तक पहुंचाने का काम किया है। यदि कांग्रेस सत्ता से बाहर होती है तो ये भी बहुत बड़े कारक होंगे।
यदि भाजपा हार जाती है तो बड़े कारणों में वसुंधरा की अनदेखी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा। टिकटों की दो अंतिम सूचियों में राज्य के कुछ बड़े नेताओं पर बेचने तक के आरोप लगे हैं, जो महत्वपूर्ण कारण होने वाला है। इसी तरह से बड़े नेताओं का एक मंच पर नहीं आना भी कारण रहेगा। साथ ही यह भी कहा जाएगा कि पीएम मोदी लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन उनके नाम पर राज्यों का चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसी तरह से कहा जाएगा कि भाजपा के पास कांग्रेस 7 गारंटियों का कोई तोड़ ही नहीं था। यह भी कहा जाएगा कि कांग्रेस की गारंटियों के आगे मोदी की गारंटी फैल हो गई। भाजपा द्वारा वोटर्स को हिंदू—मुस्लिम में बांटने का आरोप लगाकर भी विपरीत माहौल बनाया जाएगा।
ठीक इसी तरह से यदि कांग्रेस सत्ता में रिपीट हुई तो अशोक गहलोत पार्टी में देश के सबसे बड़े नेता दिखाए जाएंगे। उनकी पीआर डिजाइन बॉक्स के पास अगले पांच साल तक भरपूर काम होगा। गांधी परिवार और खड़गे भी गहलोत के बिना हिल नहीं पांएगे। कहा जाएगा कि गहलोत की 7 गारंटियों पर जनता ने जमकर प्यार लुटाया है। पूरे देश में ओपीएस लागू करने, फ्री की स्कीम चालू करने का दबाव बनाया जाएगा। गहलोत मॉडल बनाकर देशभर में कांग्रेस की ओर से पीएम पद का दावेदार बताया जाएगा। सबसे बड़ी बात यह है कि इस परिणाम के बाद सचिन पायलट और गोविंद सिंह डोटासरा जैसे नेताओं का भविष्य ही अंधकार में डूब जाएगा। सचिन पायलट का राजनीति भविष्य कांग्रेस में समाप्त हो जाएगा, उनको राजनीति करने के लिए नई जगह तलाशनी होगी। डोटासरा को अध्यक्ष भले ही गहलोत ने बनाया हो, लेकिन पिछले दिनों गहलोत—डोटासरा के बीच में बनी खाई के कारण उनको जीतने पर मंत्री भी नहीं बनाया जाएगा। गहलोत को कांग्रेस का चाणक्य स्थापित कर दिया जाएगा, जहां से कांग्रेस आलाकमान संचालित होगा।
इसके विपरीत हारने पर गहलोत को ही विलैन बनाया जाएगा। सबसे बड़ा आरोप यही लगेगा कि जिन गहलोत के चेहरे पर कांग्रेस दो—दो बार विधानसभा चुनाव हार चुकी थी, उस चेहरे को आगे करने की क्या जरूरत थी। कहा जाएगा कि सचिन पायलट के बिना कांग्रेस जीत ही नहीं सकती है। लाल डायरी पर भी विधवा विलाप किया जाएगा, साथ ही भविष्य में गहलोत की 7 गारंटी जैसी कोई पार्टी गारंटी नहीं दे पाएगी। भाजपा इस बात को स्थापित करने में कामयाब हो जाएगी कि जनता को फोकट का कुछ नहीं चाहिए, देश के लिए जनता सब कुछ त्याग करने को तैयार बैठी है, उसको केवल जागरूक करना बाकी है। इसके साथ ही पायलट—गहलोत का एक मंच पर नहीं आना भी बहुत बड़ा कारण होगा, तो गुर्जर समाज की नाराजगी को गांधी परिवार तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा। आगे कांग्रेस को राजस्थान में जीवित रहना है तो सचिन पायलट को पूरी आजादी देकर भविष्य की गारंटी के साथ फिर से कमान सौंपी जाएगी। गोविंद सिंह डोटासरा का कद बढ़ेगा। सचिन पायलट के बाद वही कांग्रेस के सबसे बड़े नेता होंगे। गहलोत को यहां से केंद्र में भेज दिया जाएगा, जो अहमद पटेल की जगह गांधी परिवार के सलाहकार के तौर पर काम करेंगे।
इसी तरह से तीसरे मोर्चे के तौर पर आरएलपी एएसपी के अलाइंस ने यदि सत्ता की चाबी अपने पास ले ली, तो हनुमान बेनीवाल सीएम की कुर्सी के बिलकुल नजदीक पहुंच जाएंगे। इस गठबंधन की पहली शर्त ही सीएम की कुर्सी होगी। बेनीवाल के 15 साल का संघर्ष समाप्त हो जाएगा और राज्य में सीएम के तौर पर एक नए युग की शुरुआत होगी। चंद्रशेखर आजाद को भी एक राज्य की सत्ता में हिस्सेदारी मिलने से वो दूसरे राज्यों में आसानी से पैर पसारने लगेंगे। बसपा का वोट पूरी तरह से आजाद समाज पार्टी के पास चला जाएगा। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा या कांग्रेस को इस गठबंधन के साथ उसी की शर्तों पर अलाइंस करना होगा। पांच साल पहले बनी एक पार्टी का सत्ता में आना दिल्ली के बाद दूसरा चमत्कार हो जाएगा। बीते 30 साल से भाजपा—कांग्रेस की सरकारों का युग भी थम जाएगा। यहां पर भी यूपी, बिहार और दूसरे राज्यों की तरह तीसरी सबसे मजबूत पार्टी बन जाएगी।
कुल मिलाकर बात यह है कि सब कुछ 3 दिसंबर पर निर्भर करेगा, जब ईवीएम से परिणाम बाहर आएगा, जो तय करेगा कि किसके सिर पर जीत का मुकुट सजेगा और किसके माथे पर हार का ठीकरा फूटेगा।
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