दो दिन पहले पांच बजे चुनाव प्रचार का शोर थम गया है। आज, यानी 25 नवंबर को पूरे प्रदेश में मतदान हो रहा है। प्रदेश की 199 सीटों पर एक ही चरण में सुबह 7 से शाम 6 बजे तक मतदान किया जाएगा। इसके बाद 3 दिसंबर को मतगणना के बाद परिणाम जारी किया जाएगा। सरकार बनाने का मन राजस्थान के मतदाताओं ने बना लिया है। अब तक मन में जो कुछ बनाया गया है, वो 25 तारीख को ईवीएम में कैद हो जाएगा, 3 दिसंबर शाम तक राजस्थान में अगली सरकार किस दल की होगी, स्पष्ट हो जाएगा। यह भी साफ हो कि 30 साल से दल बदलकर सरकार बनाने का रिवाज बदलेगा या राज।
परंपरा बदले या परंपरा जारी रहे, यह तो अगले 10 दिन में सपष्ट हो ही जाएगा, लेकिन आज सवाल यह उठता है कि प्रदेश के करीब 5.26 करोड़ मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है। बीते पांच साल में 51.42 लाख मतदाता बढ़े हैं। युवा मतदाताओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा, सरकारी नौकरी, सुरक्षा जैसे प्रमुख मुद्दे रहे हैं, तो गृहणियों के लिए महंगाई, निशुल्क सहायता, चिकित्सा और अपराध पर नियंत्रण जैसे मुद्दे हावी रहे हैं। बाकी मतदाताओं की बात की जाए तो किसानों के लिए कर्जमाफी, किसान सम्मान निधि, पेंशन, बिजली, पानी, ईआरसीपी जैसे अहम चीजें वोट की चोट तय करेगी।
राजस्थान पिछले पांच साल में कुछ मामलों में सिरमौर बन चुका है। जिनमें महिला अत्याचार, बलात्कार, दलित उत्पीड़न, पेपर लीक, भ्रष्टाचार जैसे मामलों में पूरे देश में राजस्थान टॉप पर बैठा है। इन्हीं मुद्दों को भाजपा ने भुनाया है। आप देखेंगे तो भाजपा के प्रचार में इनको प्रमुखता से उठाया गया है। पीएम मोदी ने बड़े पैमाने पर सीटों को प्रभावित किया है। पीएम मोदी ने 14 सभाएं और दो रोड शो कर प्रदेश की 122 सीटों को प्रभावित किया है। इसी तरह से सीएम गहलोत ने 30 सभा, 2 रोड शो कर 50 विधानसभा सीटों को कवर किया है। पूर्व सीएम राजे ने 45 सभाएं और कई छोटे कार्यक्रम करके 50 सीटों पर प्रचार किया है। इसी तरह से तीसरे मोर्चे के सीएम उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल ने 20 सभाएं, 3 रोड शो कर 40 सीटों को कवर किया है। देश की राजनीति के चाण्क्य अमित शाह ने 11 सभाएं, 3 रोड शो कर 25 सीटों को प्रभावित किया है।
मुद्दों में जहां पूर्वी राजस्थान के लिए ईआरसीपी सबसे बड़ा मुद्दा है, तो शेखावाटी के लिए बिजली, पानी अहम रहा। मारवाड़ में मीठे पानी, बिजली, सुरक्षा जैसे मुद्दों पर जोर रहा है। मेवाड़ में सुरक्षा पहले स्थान पर रही। वागड़ में सुरक्षा के साथ बिजली, पानी को प्रमुखता से रखा गया है। पूरे राजस्थान में पेपर लीक, अपराध, तुष्टिकरण, महिला अत्याचार, गैंगरेप, हत्याएं, कन्हैयालाल का गला काट देना, शिवलिंग को सरकार द्वारा ड्रिल करके उखाड़ देना, विधायकों को बिकना, समर्थन देना, वापस लेना अहम रहे हैं।
इस बीच पांच साल तक उठती, पड़ती, लुड़कती सरकार और गहलोत व पायलट के बीच जंग ने जनता का खूब मनोरंजन किया है। गहलोत की सरकार गिर रही है, बच रही है, मजबूत है, कमजोर है, कांग्रेस विधायक पाला बदल रहे हैं, बिक रहे हैं, 2 करोड़ से 40 करोड़ तक रेट खुद सीएम अशोक गहलोत ने तय की। भाजपा को घसीटा, लेकिन हकीकत यह है कि गहलोत ने गांधी परिवार को अपने चंगुल में फंसाए रखने के लिए तमाम षड्यंत्र रचे गए, प्रचारित किए गए, जाल बिछाया गया, फंसाया गया और अपने आलाकमान व विधायकों—मंत्रियों को लगातार डराया गया। इसके लिए ना भाजपा को कुछ करना पड़ और ना पांच साल होने के बाद भी सचिन पायलट ने पार्टी बदली। इस सारी हॉरर स्टोरी की सारी स्क्रिप्ट गहलोत गहलोत द्वारा रची गई, अभिनीत की गई और अंतत: होटलों, ढाबों में कैद रही सरकार ने पांच साल पूरे कर इस कहानी का बिना किसी कलाइमैक्स के अंत भी हो गया।
भाजपा ने वही किया, जो 2003 और 2013 में किया। गहलोत सरकार को गलतियां करने का अवसर दिया और उनको संकलित करती रही। सही समय पर चोट करने में माहिर भाजपा ने चुनाव का इंतजार किया और प्रचार के दौरान पूरे मुद्दों को जनता के सामने रख दिया। जनता को यह याद दिला दिया कि जिस कांग्रेस को आपने सचिन पायलट को सीएम बनाने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के नाम पर वोट दिया था, उसमें न तो सचिन पायलट सीएम बन पाए और जिस भ्रष्टाचार का आरोप सीएम रहते वसुंधरा राजे पर लगाया गया था, वो डिसेंट्रलाइज होकर हर विधायक के हाथ से हुआ है।
मीडिया और सोशल मीडिया पर भाजपा के आगे कांग्रेस कहीं नहीं टिकी। अशोक गहलोत ने सबको दरकिनार कर डिजाइन वाले बॉक्स से वन मैन आर्मी बनने का प्रयास किया, लेकिन जिस चेहरे को जनता तीन चार बार सत्ता से बाहर फैंक चुकी है, उसको पॉलिस करके स्थापित नहीं किया जा सकता है। जिन सचिन पायलट के चेहरे पर कांग्रेस ने सत्ता पाई, उनको ही अपमानित किया गया, उनकी प्रतिभा को दबाया गया। उनके विजन से प्रदेश का भला हो सकता था, लेकिन गांधी परिवार चले जादू से जनता ने बासी चेहरे का पांच साल ढोया है। अब समय आ गया है, जब जनता वोट की चोट से अपना हिसाब बराबर करने वाली है। पायलट समर्थकों ने धैर्य से पांच साल इंतजार किया। पूरे प्रदेश में पायलट के सपोर्टर 25 नवंबर का इंतजार कर रहे हैं, जब नाकारा, निकम्मा, झगड़ालू जैसे शब्दों को बदला ईवीएम पर दिखाएंगे।
इस बीच गहलोत का जाट विरोधी चेहरा फिर देखने को मिला। बीते करीब पौने चार साल से अध्यक्ष होने के बाद भी गोविंद सिंह डोटासरा को गहलोत ने कुछ नहीं समझा। असल बात यह है कि गहलोत दिखावे के लिए जाट समाज के उन्हीं विधायकों को साथ रखते हैं, जो उनकी पदचम्पी करते हैं, जैसे ही कोई नेता उनके बराबर या उपर उठने की तरफ बढ़ता है, वैसे ही उसको जड़ों में से काट देते हैं। कुछ दिन डोटासरा को विज्ञापन में दिखाया, लेकिन अपने अंतिम विज्ञापन में न तो दलित राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को जगह दी और ना ही जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा की फोटो विज्ञापनों में लगाई। जाट समाज के साथ यही दोहरा चरित्र गहलोत के जाट विरोधी होने का सबसे बड़ा सबूत बन गया है। शाही परिवार के राहुल गांधी को उपर रखा, लेकिन इसमें न तो राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे हैं और ना ही प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटसारा की फोटो है।
इन सबके साथ यदि लाल डायरी की बात नहीं की जाए तो मजा किरकिरा रहा जाएगा। जुलाई 2020 को राजेंद्र गुढ़ा द्वारा अशोक गहलोत के कहने पर धर्मेंद्र राठौड़ के फ्लैट से बरामद की गई लाल डायरी जुलाई के महीने में अचानक से बाहर आई तो कांग्रेस और गहलोत को पूरे छह महीने लाल करके रखा है। सदन में स्पीकर सीपी जोशी ने गहलोत सरकार को बचा लिया, लेकिन धीरे धीरे निकल रहे पन्ने चुनाव में तड़के का काम कर गए। अंतिम दिन तक पन्ने बाहर आ रहे हैं और हारती सरकार की दाल में तड़का लगाने का काम लाल डायरी कर रही है।
इस चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह से बिखरी रही। पायलट गहलोत एक मंच पर नहीं आए, तो अध्यक्ष होकर भी डोटासरा केवल अपनी सीट तक बचाने में जुटे रहे। राहुल, प्रियंका जैसे चुनाव में रस्म अदायगी करने आए और बैमन से भाषण देते हुए डीजल, पेट्रोल पर जीएसटी जैसी बातें कर भाजपा को बैठे—बिठाए कांग्रेस पर हमला करने के मुद्दे देकर चले गए। पीएम मोदी ने शाही परिवार, पायलट के साथ अन्याय, गुर्जर समाज को अपमानित करना, तुष्टिकरण, अपराध, पेपर लीक, किसान कर्जमाफी से लेकर हर छोटे—बडे मुद्दे को उठाया। बीते 20 साल से राजस्थान की राजनीति के केंद्र में रहीं वसुंधरा राजे इस बार प्रदेश के बजाए दो—चार सीटों की प्रचारक नेता बनकर रह गईं। भाजपा के प्लान के मुताबिक ही वसुंधरा राजे को सीन से गायब कर दिया गया। नेता प्रतिपक्ष सीट बचाने की पुरजोर कोशिशों में जुटे रहे, तो अध्यक्ष को पीएम के साथ शॉ पीस बनाकर दिखाया गया। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत चुनाव नहीं लड़कर भी सीएम गहलोत से बराबर लोहा लेते हुए सियासत के केंद्र में बने रहे। पूर्व अध्यक्ष और उपनेता प्रतिपक्ष सतीश पूनियां ने कई सीटों पर सभाएं कीं, रोड शो किया और हर बार पार्टी बदलने के लिए विख्यात अपनी सीट को भाजपा के लिए मजबूत किला सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है।
3 दिसंबर के चुनाव परिणाम के बाद कौनसा दल सत्ता में आएगा और कौन सत्ता से दूर हो जाएगा, यह देखने वाली बात होगी, लेकिन सरकार गठन से लेकर अप्रैल मई में होने वाले लोकसभा चुनाव तक राजस्थान में सियासत में बहुत कुछ अप्रत्याशित होता हुआ देखने को मिलेगा।
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