विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा के जयपुर और सीकर स्थिति ठिकानों पर ईडी की रेड ने राजस्थान की राजनीति को सुर्खियों के लिए एक नया मुद्दा दे दिया है। प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों ने 8 घंटे तक सर्च और पूछताछ की। डोटासरा ने दावा किया की ईडी के अधिकारियों ने उनके और उनके दोनों बेटों के मोबाइल जब्त किए हैं, इसके साथ ही दोनों बेटों की मेल आईडी भी ले ली है।
उनकी ईमेल आईडी चुनाव को देखते हुए नहीं ली है, लेकिन उसको डिलीट नहीं करने का शपथ पत्र लिया गया है। डोटासरा ने यह भी दावा किया है कि उनसे कलाम कोचिंग सेंटर से संबंधित ही बातें पूछी गई हैं, इसके अलावा रीट या आरएएस भर्ती को लेकर कोई सवाल नहीं किया गया है। डोटासरा का दावा कितना सच है, इस बात की पुष्टि तो केवल ईडी के अधिकारी ही कर सकते हैं, लेकिन ईडी की इस रेड को लेकर सीएम अशोक गहलोत जिस तरह के आपत्तिजनक भाषा में बयान दे रहे हैं, ये उनकी परिपक्व नेता की छवि को धूमिल करने के लिए एक और मील का पत्थर साबित होगा।
गहलोत ने दो दिन में ईडी के अधिकारियों को पहले टिड्डी दल की संज्ञा दी और दूसरे दिन कहा कि ईडी कुत्तों की तरह घूम रही है। समझ में यह नहीं आता है कि जब कांग्रेस के अध्यक्ष और सीएम ईमानदार हैं, तो ईडी या अन्य किसी भी जांच एजेंसी से डरने की जरूरत क्या है? आखिर क्यों अशोक गहलोत इतने तिलमिलाए हुए हैं? गहलोत के बार बार और आपत्तिजनक बयान साबित करते हैं कि दाल में काला है, अन्यथा इतना गुस्सा नहीं आना चाहिए था।
अशोक गहलोत बार बार यह भी गिना रहे हैं कि जब यूपीए की सरकार थी तो 10 साल में ईडी की कितनी कार्यवाही हुई थी, और बीते 10 साल में कितनी बढ़ी हैं। लेकिन गहलोत यह नहीं बताते हैं कि जिन मामलों पर कार्यवाही हो रही है, वो अधिकांश मामले यूपीए सरकार के समय से चल रहे हैं, नए मामले तो बेहद कम है। जिन नेताओं और अधिकारियों पर ईडी ने कार्यवाही की है, वो अधिकांश वो ही हैं, जिनकी अवैध कमाई का जरिया यूपीए सरकार के समय ही रहा है। ऐसे में गहलोत का यह आरोप लगाकर ध्यान डायवर्ट करने के अलावा कुछ नहीं है।
जब देश की इकोनॉमी बूम पर है, विकास के काम तेज हो रहे हैं, पैसे का ट्रांजेक्शन तेजी से हो रहा है, अधिकारियों और नेताओं ने लेनदेन अधिक किया है जो जाहिर सी बात है कि जांच एजेंसियां इनकी अवैध गतिविधियों की जांच भी करेगी। साथ ही डिजीटल ट्रांजेक्शन बढ़ने के कारण भी ट्रांसपेरेंसी का स्तर बढ़ा है, इसके चलते भी जांच का दायरा काफी बढ़ गया है। ऐसे में स्वाभाविक सी बात है कि जांच और रेड मारने की संख्या भी बढ़ेगी।
एक बड़ा कारण यह है कि एनडीए सरकार से पहले तक इस तरह की अधिकांश जांच सीबीआई करती थी, लेकिन उसको राज्य सरकारों अपने यहां घुसने की अनुमति नहीं देती है, जिसके कारण ईडी को अधिक काम करना पड़ रहा है। असल में संवैधानिक रूप से सीबीआई को किसी भी राज्य में जांच करने के लिए जाने से पहले संबंधित राज्य की अनुमति लेनी होती है, लेकिन ईडी इसके लिए बाध्य नहीं है।
किंतु सोचने वाली बात यही है कि आखिर ईमानदारी, गांधीवादी और मैच्योर राजनेता का लबादा ओढ़े अशोक गहलोत को जांच एजेंसियों से डर किस बाता का है? आखिर क्यों एक ईमानदारी आदमी इन जांच से डर रहा है? आपको याद होगा जब नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे, तब दंगों के बाद सीबीआई, एसआईटी ने 9 साल तक जांच की थी। तब मोदी ने एक दिन भी यह नहीं कहा कि उनको राजनीतिक तौर पर टारगेट किया जा रहा है।
सब कुछ पॉलिटिकल मोटिवेट होने के बाद भी कभी नहीं कहा कि उनके साथ बदले की भावना से काम किया जा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि खुद को मोदी से बड़ा फकीर कहने वाले अशोक गहलोत को किस बात का डर सता रहा है? क्यों उनको लगता है कि उनको फंसाया जाएगा, जबकि सबूतों के बिना इतने बड़े लोगों पर कोई कार्यवाही होती ही नहीं है।
अब बात गोविंद सिंह डोटासरा की करें तो शिक्षा मंत्री रहते हुए उन पर रीट और आरएएस भर्ती परीक्षा में घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। कलाम कोचिंग सेंटर से अधिकांश बच्चों को सलेक्शन हुआ, जबकि इस कोचिंग संस्थान में डोटासरा की भागीदारी बताई जाती है। ईडी ने इसी कलाम कोचिंग सेंटर के लेनदेन को टारगेट किया है। ईडी जानना चाहती है कि इस कोचिंग संस्थान को कहां से इतना पैसा मिल रहा है और कमाई किसके पास जा रही है?
खुद डोटासरा ने भी इस बात की तस्दीक कर दी है कि कलाम कोचिंग को लेकर ही उनसे पूछताछ की जा रही है। हालांकि, डोटासरा ने साफ कहा है कि उनका या उनके परिवार का कलाम कोचिंग से कोई लेना देना नहीं है, यदि उसने गलत किया है तो उसपर कार्यवाही करे। डोटासरा ने यह भी दावा किया है कि उनके परिवार के जो लोग आरएएस बने हैं, वो सब अपनी योग्यता के आधार पर बने हैं, लेकिन भाजपा बदले की भावना से ये कार्यवाही करवा रही है।
दरअसल, रीट समेत तमाम भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने के मामले में भाजपा ने डोटासरा को टारगेट किया था। भाजपा हमेशा से कहती रही है कि शिक्षा मंत्री रहते हुए डोटासरा ने अपने लोगों को आरएएस बनाए और अपने कोचिंग संस्थान कलाम से भी बहुत बड़े पैमाने पर सलेक्शन करवाए हैं। कलाम कोचिंग को भाजपा ने हमेशा से ही डोटासरा की भागीदारी वाला बताया है।
राजस्थान सरकार के इस कार्यकाल में भाजपा 17 भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने और इसके चलते भर्ती रद्द होने के आरोप लगाती रही है, लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने पेपर लीक करने वालों को आजीवन कारावास की सजा का कानून बनाया है, जिसके कारण अब तक 200 लोगों को पकड़ा गया है, लेकिन सोचनीय बात यह है कि डीपी जारौली को गिरफ्तार करने के बाद सबूत होने पर भी आरोप मुक्त कर दिया, तमाम बड़े लोगों का नाम जारौली ले रहा था, लेकिन उसको पहले भूमिगत कर दिया गया, बाद में उसने बयान ही बदल डाले।
पहले उसने कहा था कि पेपर लीक में बड़ी मछलियां शामिल हैं, लेकिन बाद में उसने उनका नाम लेना बंद कर दिया। पेपर लीक के मामले तो खूब दर्ज हुए, योगी सरकार की स्टाइल में एक दो जगह बुलडोजर चलाकर कार्यवाही करने की वाहवाही लूटी, लेकिन हकीकत में किसी भी बेरोजगार को आज दिन तक मुआवजा देने या उसके घावों पर मरहम लगाने का काम सरकार ने नहीं किया।
भाजपा का आरोप है कि राज्य के 70 लाख युवाओं के साथ भर्ती परीक्षाओं के पेपर बेचकर कांग्रेस की सरकार ने भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं लांघ दी हैं, इसलिए इस सरकार को सत्ता में रहने का कोई अधिकार नहीं है। डोटासरा को लेकर भी भर्ती परीक्षाओं में घपले करने के आरोप हैं। यदि भर्ती परीक्षाओंं के पेपर लीक होने की करें तो यह एक रिकॉर्ड है। सरकार ने विभिन्न भर्ती परीक्षाओं के आवेदन के नाम पर 400 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की, लेकिन फिर भी बेरोजगारों को नौकरी नहीं मिली।
पेपर लीक की सिलसिलेवार पड़ताल की जाए तो सबसे पहले सरकार गठन से कुछ समय पहले कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 2018, 11 मार्च को लीक हुआ और 17 मार्च को परीक्षा रद्द की गई। इसके बाद लाइब्रेरियन भर्ती परीक्षा 2018 का आयोजन 29 दिसंबर 2019 को हुआ और पेपर लीक होने के चलते रद्द किया गया। JEN सिविल डिग्रीधारी भर्ती परीक्षा 2018 का आयोजन 6 दिसंबर 2020 को हुआ था, जिसे एसओजी की रिपोर्ट के आधार पर बोर्ड ने रद्द कर दिया गया। रीट लेवल 2 परीक्षा 2021 में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की ओर से 26 सितंबर को आयोजित की गई थी। यह पर्चा भी लीक हो गया और करीब 4 माह बाद सरकार ने पेपर लीक मानते हुए रद्द कर दिया। यह सबसे बड़ी परीक्षा थी, जिसमें करीब 26 लाख युवा शामिल हुए थे।
इसी तरह से बिजली विभाग टेक्निकल हेल्पर भर्ती परीक्षा 2022 ऑनलाइन हुई थी। इस परीक्षा में पेपर लीक को लेकर काफी बवाल मचा था। इसमें 6 केंद्रों की परीक्षा रद्द हुई थी। चोरों को पकड़ने वाली पुलिस की भर्ती का पेपर भी लीक हो गया। राजस्थान पुलिस मुख्यालय की ओर से कांस्टेबल भर्ती परीक्षा 2022 का आयोजन 14 मई 2022 को हुआ था। दूसरी पारी का पेपर वायरल होने पर इसे रद्द कर पुन: परीक्षा आयोजित करवाई गई। वनरक्षक भर्ती परीक्षा 2020 का आयोजन राजस्थान चयन बोर्ड ने 12 नवंबर 2022 को किया था, लेकिन पेपर के विकल्प सोशल मीडिया पर वायरल होने की वजह से इस पारी की परीक्षा को बोर्ड ने रद्द किया गया।
पेपर लीक करने वाले कोर्ट तक पहुंच गए। हाईकोर्ट एलडीसी भर्ती परीक्षा 2022 का पेपर लीक होने के बाद रद्द किया गया। सेकंड ग्रेड 2022 का पेपर भी लीक होने की वजह से रद्द हुआ था। इस परीक्षा में भी लाखों बच्चों का भविष्य बर्बाद हुआ। मेडिकल ऑफिसर भर्ती परीक्षा ऑनलाइन आयोजित की गई थी, लेकिन परीक्षा का पेपर लीक होने के बाद सरकार ने परीक्षा को रद्द करते हुए ऑफलाइन परीक्षा का आयोजन करवाया गया। राजस्थान में पटवारी पद पर कुल 5,378 भर्तियां निकाली गई थी। इस भर्ती के लिए करीब 15.62 लाख से ज्यादा युवाओं ने आवेदन किया था। पेपर लीक मामले में भरतपुर से 12 जनों को पकड़ा गया था।
इसके अलावा आधा दर्जन परीक्षाओं में आरोप लगे, लेकिन सरकार ने परीक्षा रद्द नहीं की। यहां तक कि विवि और कॉलेजों की सालाना परीक्षाओं के पेपर भी लीक हुए। सरकार ने पांच साल में ऐसा कोई मैकेनिज्म नहीं बनाया, जिससे पेपर लीक रुकते। ऊपर से आरोपियों को समय के साथ सबूतों के अभाव में छोड़ना भी बेरोजगारों के लिए किसी दंश से कम नहीं है।
सख्त सजा नहीं मिलने के कारण ये लोग युवाओं का भविष्य खराब करने के लिए फिर से नए कारनामे करने में जुट जाते हैं। पेपर लीक के मामले में राजस्थान की सरकार जितनी इस बार विफल नजर आई है, उतनी कभी नहीं थी। डोटासरा के रेड तो डल चुकी है, लेकिन अभी उसका परिणाम आना बाकी है। कहा जा रहा है कि समय के साथ अभी 6 विधायक और 3 मंत्री भी चपेटे में आएंगे।
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