राजस्थान भाजपा ने अपनी दूसरी सूची जारी की। इस सूची में भाजपा ने 14 लोगों के टिकट काटे हैं, जिनको 2018 में टिकट मिले हैं। इनमें वर्तमान विधायक अशोक लाहोटी, चंद्रभान आक्या, मोहनराम चौधरी, रुपाराम मोरवतिया, सूर्यकांता व्यास जैसे भी शामिल हैं। राजेंद्र राठौड़ की सीट बदलकर सुरक्षित करने का प्रयास किया गया है। भाजपा की दूसरी सूची में वसुंधरा कैंप के करीब 15 जनों के टिकट मिलने का दावा किया जा रहा है। जिनमें प्रताप सिंह सिंघवी, कालीचरण सराफ, श्रीचंद कृपलानी जैसे नाम हैं। इन लोगों ने मुखर होकर वसुंधरा का पक्ष लिया था। इसके अलावा उनके करीबी माने जाने वाले अभिषेक मटोरिया, रामस्वरूप लांबा, गुरदीप सिंह शहपीणी, सिद्धी कुमारी, कैलाश वर्मा, शैलेश सिंह, सुरेंद्र सिंह राणावत, ओटाराम देवासी और नरपत सिंह राजवी जैसे नाम शामिल हैं। 83 जनों की दूसरी सूची सामने आने के बाद से ही वसुंधरा कैंप के फिर से भारी होने का दावा किया जा रहा है। साथ ही यह भी हवा बनाई जा रही है कि वसुंधरा राजे फिर से भाजपा के बड़े नेताओं पर भारी पड़ी हैं, किंतु क्या यही सच है? इसके अलावा और कौनसे फैक्टर हैं, जिनके कारण भाजपा ने पुराने विधायकों और विधायक प्रत्याशियों को मौका दिया है? क्या केवल वसुंधरा के कहने से इनको टिकट दिया गया है, या फिर क्षेत्र में सर्वे की रिपोर्ट के कारण सबकुछ तय हुआ है। यह बात सही है कि सर्वे रिपोर्ट और वसुंधरा के करीबियों का होना एक संयोग ही है, लेकिन इसको जिस तरह से मीडिया मैनेजेमेंट के मास्टर्स द्वारा वसुंधरा कैंप के भारी होने के रूप में भुनाने और प्रचारित करने का प्रयास किया जा रहा है, संभवत: ऐसी अपेक्षा तो खुद वसुंधरा राजे को भी नहीं रही होगी।
निष्पक्ष रूप से विशलेषण करने वालों का दावा है कि जो मैन स्ट्रीम के मीडिया में दिखाने का प्रयास किया जा रहा है, वह सच नहीं है। सच बात यह है कि यह केवल संयोग ही है कि जिनको पार्टी ने अपनी सर्वे रिपोर्ट में टिकट दिए गए हैं, उनमें और वसुंधरा के करीबी माने जाने वाले विधायक कॉमन हैं। असल में यह कोई विज्ञान नहीं है कि इसको समझा नहीं जा सकता हो। सारा मामला चर्चा तक सीमिट कर रह गया है, जबकि इस खबर की नींव तक जाने का प्रयास करना जरूरी है। तो आइए समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर किस वजह से वसुंधरा के करीबी माने जाने वालों को टिकट दिया गया है?
यहां पर मैं कुछ उदाहरणों के द्वारा यह समझाने का प्रयास करुंगा कि जो लोग कह रहे हैं कि वसुंधरा के कहने पर उनके करीबियों को टिकट मिला है, यह बात पूरी सच नहीं है। यह बात सही है कि वसुंधरा ने अपने करीबी लोगों को टिकट दिलाने की सिफारिश की थी, लेकिन यह पूरा सच नहीं है कि केवल उनके कहने से ही टिकट मिल गए हैं। असल बात यह है कि इसके पीछे कई बातों हैं, जिनको देखकर ही टिकट फाइलन हुए हैं। सबसे पहले राजधानी के टिकटों की बात करें तो नरपत सिंह रावजी का टिकट काटकर उनके चित्तौड़गढ़ भेजा गया है, जहां पर अभी भाजपा के चंद्रभान आक्या विधायक हैं। राजवी इसी सीट से तीन बार, 1993, 1998 और 2003 में चुनाव लड़ चुके हैं, और दो बार विधायक रह चुके हैं। साल 1998 का दूसरा चुनाव हार गए थे। चंद्रभान आक्या विधायक हैं, लेकिन राजवी का टिकट काटने के बाद उनको कहीं से टिकट देना ही था, क्योंकि वो भैरोंसिंह शेखावत के दामाद हैं, जिनकी भाजपा 100वीं जयंति मना रही है। ऐसे में उनके पहले बयान के बाद ही भाजपा के प्रभार अरूण सिंह ने घर जाकर मुलाकात करके आश्वस्त किया था।
ऐसे ही श्रीचंद कृपलानी को टिकट मिला है, वह पिछली बार यूडीएच मंत्री थे और वसुंधरा कैंप से आते हैं। कृपलानी तीन बार विधायक का चुनाव जीते हैं, जबकि दो बार सांसद रह चुके हैं। वो पिछला चुनाव हार गए थे, लेकिन भाजपा के तीन सर्वे की रिपोर्ट में वही जिताउ थे, यही वजह है कि उनको टिकट रिपीट किया गया है। ऐसे ही छबड़ा से प्रताप सिंह सिंघवी अभी विधायक हैं, लेकिन वसुंधरा कैंप के पक्ष में खुलकर बोलते हैं, उनकी सीट पर भी भाजपा के पास सिंघवी से बड़ा जिताउ चेहरा नहीं मिल रहा था। मालवीय नगर से कालीचरा सराफ भी वसुंधरा के करीबी हैं। उनकी उम्र भी 70 से अधिक है और लगातार 7 चुनाव लड़ चुके हैं। उससे पहले चार बार जौहरी बाजार सीट से चुनाव जीते थे। वह बीते तीन चुनाव तो मालवीय नगर से ही जीत रहे हैं। यहां पर भी पार्टी को सर्वे में सराफ ही सबसे बड़ा चेहरा मिले हैं।
इसके साथ ही पुष्पेंद्र सिंह राणावत को बाली से फिर टिकट मिला है। बाली में भाजपा इनको लगातार तीन बार से टिकट दे रही है। पिछली बार भी जीते थे, जबकि 2013 में जीतकर मंत्री बने थे। विवादों और गुटबाजी से दूर लॉ प्रोफाइल रहते हैं, लेकिन माना जाता है कि ये भी वसुंधरा कैंप को ही सपोर्ट करते हैं। पाली से ज्ञानचंद पारख को टिकट मिला है। पारख भी लगातार 5 बार से चुनाव जीत रहे हैं। इनके सामने भी कोई मजबूत जिताउ चेहरा नहीं है। सिरोही से ओटाराम देवासी को वसुंधरा कैंप से माना जाता है, लेकिन वो देवासी समाज के धर्मगुरू हैं और अपने क्षेत्र में मजबूत हैं, इस बार यदि कांग्रेस संयम लोढा को टिकट देती हैं तो देवासी काफी मजबूत दिखाई दे रहे हैं। इसके साथ ही खुद वसुंधरा की बात की जाए तो झालरापाटन से वह लगातार चार चुनाव जीत चुकी हैं। उससे पहले झालावाड़ से ही लगातार पांच बार सांसद रही हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनको टिकट क्यों रिपीट किया गया है।
ये वो बड़े उदाहरण हैं, जिनके गुजरात मॉडल के कारण टिकट कटने की संभावना थी, लेकिन रिपीट किए गए हैं। जैसे किसी भी गुट के नहीं होने पर भी कई प्रत्याशियों को टिकट मिला है, उसी तरह से वसुंधरा कैंप के बताए जा रहे अन्य प्रत्याशियों के टिकट मिलने का कारण भी भाजपा की अंदरुनी सर्वे रिपोर्ट ही बताई जाती हैं। वैसे देखा जाए तो पार्टी ने पहली सूची में नए लोगों को अधिक अवसर दिया था, लेकिन दूसरी सूची में पुराने लोगों पर विश्वास जताया है। जहां पर टिकट कटे हैं, वहां पर भी अधिक नए चेहरे नहीं हैं, बल्कि उम्र के हिसाब से पुराने ही हैं। पहली 41 जनों की लिस्ट में सात सांसद थे, दूसरी 83 जनों की लिस्ट में एक भी नहीं है। हालांकि, भाजपा कुछ और सांसदों को मौका दे सकती है, जहां पर विधायकों के खिलाफ रिपोर्ट है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि वसुंधरा के कहने पर टिकट नहीं मिले हैं, तो क्या अब वो कमजोर हो गई हैं, कि जिद करके अपने लोगों को भी टिकट नहीं दिला सकती हैं? दरअसल, 2002 से 2018 तक वसुंधरा राजे ने राजस्थान भाजपा पर एक तरफा राज किया है। उसके बाद जब पार्टी ने उनकी नापसंद के बाद भी डॉ. सतीश पूनियां को अध्यक्ष बनाया, तब यह चीज साफ हो गई थी कि भाजपा आलाकमान उनको साइड लाइन कर रहा है। साढे तीन साल में सतीश पूनियां ने अपना काम बखूबी किया और जब वसुंधरा कैंप ने उनको लेकर विवाद बढ़ाया तो अध्यक्ष चैंज करके विवाद को विराम लगाया गया। फिर भी वसुंधरा उस तरह से मजबूत नहीं हुईं, जैसे 2003 से 2018 तक हुआ करती थींं। चार बार वसुंधरा ने जिस चाहा टिकट दिया और जो उनकी आंख में खटका, उसको टिकट नहीं दिया, लेकिन इस बार परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं
यही वजह है कि वसुंधरा के करीबी बताए जा रहे प्रत्याशियों को टिकट मिलने के बाद भी चुनाव बाद सीएम पद की दौड़ के लिए पार्टी आलाकमान पर वैसे दबाव नहीं बना पाएंगी, जैसे 2009 में नेता प्रतिपक्ष के लिए और 2017 में पार्टी अध्यक्ष के लिए बना चुकी हैं। भाजपा ने दो सूचियों में 124 जनों को टिकट दिया है, लेकिन इनमें वसुंधरा के करीबी 20 से अधिक नहीं हैं। पार्टी अभी 76 जनों की सूची जारी करेगी, किंतु पहली और दूसरी लिस्ट ने ही साबित कर दिया है कि वसुंधरा अपने करीबियों को टिकट दिलाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। पार्टी ने अभी सीएम फेस नहीं बनाया है, लेकिन जिस तरह की गतिविधि दिखाई दे रही है, उससे साफ है कि इस बार प्रदेश को 25 साल बाद नया चेहरा देखने को मिलेगा। भाजपा इस बार राजस्थान में वो गलती नहीं करेगी, जो कांग्रेस 2018 में कर चुकी है।
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