जिस कारण से 2018 में वसुंधरा राजे सरकार सत्ता से बाहर हुई थी, उसी तरह के कारणों से इस बार अशोक गहलोत सरकार सत्ता से बेदखल हो रही है। गहलोत—वसुंधरा बीते 25 साल से राज कर रहे हैं, लेकिन अब इनके राज का अंत होता दिखाई दे रहा है। एक तरफ जहां भाजपा ने वसुंधरा को नजरअंदाज कर दिया है तो दूसरी ओर गहलोत ने आखिरी पारी समाप्त कर ली है।
पिछली बार सबसे बड़ा कारण वसुंधरा राजे ने नाराजगी था, जिसको भाजपा भांप नहीं पाई और उनको ही चेहरा बना दिया, इस बार भाजपा ने चेहरा बदल दिया है।
—आनंदपाल एनकाउंटर से नाराज राजपूत समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया, जिसके कारण पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ, इस बार कर्नल केसरी सिंह को आरपीएससी सदस्य बनाए जाने के कारण जाट—गुर्जर कांग्रेस से बुरी तरह नाराज है।
—पिछली बार सचिन पायलट चेहरा थे, जिनके के कारण गुर्जर समाज ने एकतरफा वोटिंग की थी, 11 में से 8 जीते थे, भाजपा के सभी 8 गुर्जर प्रत्याशी चुनाव हार गए थे, इस बार कांग्रेस ने पायलट को दरकिनार कर रखा है। इससे किसान जातियां कांग्रेस से काफी नाराज हैं।
—जिन गहलोत को जनता ने तीन चार बार दरकिनार किया, उनको ही कांग्रेस ने थोप दिया, जनता ने पांच साल उनको भोगा है, अब कांग्रेस को सबक सिखाने का समय आ गया है।
—गहलोत को जाट विरोधी माना जाता है, इस बार पर केसरी सिंह की नियुक्ति ने ठप्पा लगा दिया है। कांग्रेस को लाखों वोटों का नुकसान हो चुका है।
—पायलट का नहीं होना कांग्रेस की हालत 2013 जैसी होती दिख रही है। पायलट ने भी ठान लिया है कि जो पांच साल सीएम रहा है, वो दम है तो अपने दम पर सत्ता लाकर दिखाएं। आलाकमान को भी समझ आ जाएगा कि पायलट क्या चीज हैं?
—भाजपा को पहली किसानों के अनुकूल नहीं माना जाता था, लेकिन इस बार उपराष्ट्रपति से लेकर प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। सतीश पूनियां सबसे बड़े किसान नेता बनकर उभरे हैं। ज्योति मिर्धा को भी नागौर में बेनीवाल के तोड़ के रूप में लिया गया है। कुछ और किसान नेताओं को भाजपा जोड़ने जा रही है।
—मीणा समाज के सबसे बड़े नेता किरोडीलाल मीणा को टिकट देकर मीणा समाज में भाजपा ने सेंधमारी कर डाली है। कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के बेटे को मैदान में उतारकर आरक्षण आंदोलन से जुड़े गुर्जर समाज को साधने का प्रयास किया है।
—दीया कुमारी को आगे करके राजपूत समाज को बता दिया है कि वसुंधरा राजे की जगह असली राजपूत परिवार से आने वाली महिला को आगे किया जा रहा है। वसुंधरा राजे को पीछे करने का मतलब जनता की नाराजगी से बचना ही है।
—स्थापित और पुराने नेताओं के टिकट काटकर नयों को मौका दिया जा रहा है, ताकि प्रत्याशी विरोधी लहर को खत्म किया जा सके। ऐसा प्रयोग गुजरात में सफल रहा है।
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