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पांच साल बाद पकड़ में आया अशोक गहलोत का किसानों से किया गया धोखा



राजस्थान में चुनाव नजदीक आ रहे हैं। चुनाव को लेकर दोनों प्रमुख दलों समेत पहली क्षेत्रीय पार्टी ने भी तैयारी तेज कर दी है। एक तरफ भाजपा जहां सत्ता के लिए परिवर्तन यात्रा निकाल रही है, तो सत्ताधारी कांग्रेस टिकटों की माथापच्ची में लगी हुई है। इस बीच आरएलपी ने 14 तारीख को जयपुर में बड़ी रैली कर ताकत दिखाने की तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस पार्टी ने अपनी सभी कमेटियों का गठन कर दिया है, जो टिकट वितरण से लेकर चुनावी घोषणा पत्र तक बनाने का काम करेगी।

सत्ता में होने के कारण कांग्रेस के पास इस समय सारी सरकारी मशीनरी है, फिर भी सरकार के मंत्री धरना दे रहे हैं, तो विधायक धरने की तैयारी कर रहे हैं। इस बीच सत्ता का हिस्सा रहे बर्खास्त मंत्री राजेंद्र गुढ़ा ने शिवसेना का दामन थाम लिया है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अपने क्षेत्र में रैली के दौरान राजेंद्र गुढ़ा ने कांग्रेस छोड़कर शिवसेना की सदस्यता ले ली।

इससे पहले राजेंद्र गुढ़ा 2008 में बसपा के टिकट पर जीते थे, लेकिन बाद में अपनी सभी 5 अन्य साथियों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। तब उनको राज्यमंत्री बनाया गया था। 2013 में उनको कांग्रेस ने टिकट दिया, लेकिन चुनाव हार गए। साल 2018 में कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया, तो फिर से बसपा का टिकट ले आये। पिछले चुनाव में भी बसपा के 6 विधायक जीते, लेकिन कुछ समय बाद ही वो सभी दूसरी बार कांग्रेस में शामिल हो गए।

हालांकि, राजेंद्र गुढ़ा को मंत्री नहीं बनाया गया, लेकिन आखिरी दो साल में उनको राज्य मंत्री बना दिया गया। इस बीच वह पायलट कैंप में चले गए। बाद में विधानसभा सत्र के बीच में ही मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। उसके बाद सदन में चर्चित लाल डायरी प्रकरण हुआ, जो कांग्रेस सरकार को बहुत भारी पड़ा। कांग्रेस के सर्वे बता रहे हैं कि पार्टी किसी भी सूरत में सत्ता में नहीं आ रही है।

इसके बाद भी अशोक गहलोत जनता को लुभाने के लिए फ्री योजनाएं चलाकर प्रदेश का खजाना खाली करने में लगे हुए हैं। ऐसा लगता है कि अशोक गहलोत ने यह ठान लिया है कि सरकार से जाते जाते प्रदेश को पूरी तरह से आर्थिक कंगाली के मुहाने पर छोड़कर जाएंगे।

साल 2018 में किए गए वादे आज दिन तक पूरे नहीं हुए हैं। कांग्रेस ने पिछली बार कई वादे किए थे। जिनमें से किसान कर्जमाफी, बेरोजगारी भत्ता, पत्रकार सुरक्षा कानून जैसे कई वादे अभी तक भी अधूरे ही हैं। किसान कर्जमाफी तो ऐसा वादा था, जिसके दम पर पूरी सरकार बनी थी, लेकिन इसी में प्रदेश की सबसे बड़ी किसान आबादी के साथ धोखा किया गया।

राहुल गांधी ने वादा किया था कि सरकार बनने के 10 दिन के भीतर सरकार सभी किसानों का कर्ज माफ कर देगी, लेकिन उस दस दिन के वादे को आज 1725 दिन बाद भी पूरा नहीं किया गया है। कांग्रेस के नेताओं ने जहां सरकार चुनाव के दौरान झूठ बोलकर वोट लिया, तो सरकार बनने के बाद सरकार ने ही भी झूठ बोला।

अशोक गहलोत सरकार ने अपना पहला आदेश किसान कर्जमाफी का निकाला था, जिसमें कहा गया था कि सहकारी बैंकों का सारा कर्ज माफ किया जाएगा, जबकि राष्ट्रीयकृत बैंकों का 2 लाख रुपये तक कर्ज माफ किया जाएगा। तत्कालीन मुख्य सचिव डीबी गुप्ता के हस्ताक्षर वाला यह पत्र अब फिर से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें सरकार ने वादा करने के बाद भी राष्ट्रीयकृत बैंकों का एक रुपया कर्ज माफ नहीं किया।

राहुल गांधी समेत चुनाव प्रचार में उतरे सभी कांग्रेस नेताओं और अशोक गहलोत सरकार के झूठ का नतीजा यह हुआ कि राज्य के करीब 20 हजार किसानों की जमीनें नीलाम हो चुकी हैं। दर्जनों किसान कर्जमाफी के इंतजार में खुदकुशी कर चुके हैं। बीते पांच साल से अशोक गहलोत बयानबाजी करते हैं कि किसान का कर्जा माफ किया। साथ में राष्ट्रीय बैंकों का कर्जा माफ करने के लिए केंद्र की मोदी सरकार को कोसते हैं, जबकि वादा कांग्रेस ने किया था। फिर भी लगातार मांग करते रहे कि केंद्र सरकार को देश के सभी किसानों का कर्ज माफ करना चाहिए।

अशोक गहलोत की सीएम के रूप में शपथ लेने के दो दिन बाद 19 दिसंबर 2018 को डीबी गुप्ता ने आदेश जारी किया। जिसमें लिखा 'राजस्थान राज्य के सहकारी बैंकों के राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पात्रता अनुसार पात्र पाए गए ऋणी कृषकों का दिनांक 30 नवंबर 2018 की स्थिति में समस्त बकाया अल्पकालीन फसली ऋण माफ किया जाता है। राज्य सरकार द्वारा ये भी निर्णय लिया गया है कि सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों, अनुसूचित बैंकों व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के वे सभी कृषक जो आर्थिक रुप से संकटग्रस्त हैं और अपना ऋण नहीं चुका पा रहे हैं, उनका सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार पात्र पाए जाने पर दिनांक 30 नवंबर 2018 की स्थिति में दो लाख रुपये की सीमा तक का कालातीत या अवधिपार अल्पकालीन फसली ऋण माफ किया जाता है।'

जबकि इसके बाद भी सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों का एक रुपये का भी कर्जा माफ नहीं किया। इसका परिणाम यह हुआ कि राज्य के हजारों किसान सरकार के कर्ज माफी के इंतजार में मोटा ब्याज चुकाने का मजबूर हुए। हजारों किसानों को साहूकारों से कर्ज लेकर बैंकों का कर्ज चुकाना पड़ा। इसके अलावा जिनको साहूकारों से भी कर्ज नहीं मिला, उनकी जमीनों को बैंकों ने नीलाम कर दिया। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार इस दौरान करीब 20 हजार किसानों की जमीनें नीलाम हो गईं। अशोक गहलोत आज भी केंद्र सरकार द्वारा कर्ज माफ करने का बयान देते हैं। जबकि वादा कांग्रेस के राहुल गांधी, अशोक गहलोत और सचिन पायलट समेत कांग्रेस नेताओं ने किया था।

अशोक गहलोत अपनी इस नाकामी और झूठ को छुपाने के लिए पिछले विधानसभा सत्र में किसान कर्ज आयोग का बिल लेकर सदन में पहुंचे थे। इस बिल में कहा गया कि जो किसान कर्ज नहीं चुका पाएगा, उसकी जमीन बैंक सीधे ही नीलाम नहीं कर पाएगा, बल्कि उसको पहले कर्ज आयोग के सामने अपनी बात रखनी होगी। आयोग इसके बाद किसान का भी पक्ष सुनेगा, लेकिन इस बिल में कहीं भी जिक्र नहीं किया गया है कि जो किसान कर्ज नहीं चुका पाएगा, उसका कर्ज माफ हो जाएगा या उसकी कभी जमीन नीलाम नहीं होगी। यानी अपने एक झूठे वादे को छुपाने के लिए झूठा आदेश जारी किया और उस झूठ पर पर्दा डालने के लिए अब किसान कर्ज आयोग का झुनझुना पकड़ा दिया, जो किसी भी काम का नहीं है।

इसी तरह से राज्य के सभी बेरोजगारों को मासिक 3500 रुपये भत्ता देने का वादा किया था, लेकिन तीन साल तक कुछ नहीं किया। बाद में कहा गया कि लड़कियों को 3500 और लड़कों को 3000 रुपये मासिक मिलेंगे। उसके बाद पात्रता में ऐसी शर्तें जोड़ दीं, जिससे राज्य के 45 लाख में से केवल 55 हजार युवा ही लाभ ले पाए। उनसें भी हर दिन सरकारी कार्यालय में हाजिरी लगाने और काम कराने का सिस्टम बनाया गया, जिससे अधिकांश युवा बाहर हो गए। राजस्थान में सरकारी नौकरियों का ऐलान तो खूब किया, लेकिन 17 बार पेपर लीक हुआ। सरकार के अधिकारी, कर्मचारी, विधायक और मंत्रियों तक के नाम पेपर बेचने में आया, किंतु फौरी तौर पर छोटे लोगों पर कार्यवाही कर इतिश्री कर ली।

राजस्थान में पत्रकारिता का जितना सत्यानाश इस अशोक गहलोत सरकार ने किया है, उतना किसी ने नहीं किया था। शुरुआत में ही कह किया था कि जो सरकार के पक्ष में लिखेंगे, उनको ही विज्ञापन मिलेगा, बाकी किसी को विज्ञापन नहीं दिया जाएगा। नतीजा यह हुआ कि जो मीडिया संस्थान या पत्रकार सरकार के गुणगान नहीं करते हैं, उनको ना केवल विधानसभा, सचिवालय जैसे सरकारी संस्थानों में कवरेज पास नहीं दिया गया, बल्कि सरकार की विज्ञापन नीति में भी उनको बाहर कर दिया गया। अपने चहेते सोशल मीडिया वालों को सरकारी विज्ञापन दिया गया, लेकिन जिस पत्रकार की आजीविका के लिए पत्रकारिता के अलावा दूसरा साधन नहीं है, उसको कोई विज्ञापन नहीं दिया गया। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि सरकार बनते ही पत्रकार सुरक्षा कानून बनाया जाएगा, लेकिन न तो कानून बना और सबसे बड़ी बात यह रही कि पत्रकारों को आज जान जाने का सबसे अधिक डर सरकार में बैठे लोगों से ही है।

कांग्रेस ने अपने 40 पेज के जन घोषणा पत्र में 27 प्रकार के वादे किए गए थे, जिनमें उपवादे अलग से थे। हालांकि, इनमें से आधे भी पूरे नहीं किए गए हैं। बल्कि चुनाव जीतने के लिए बिजली फ्री, सस्ता सिलेंडर, फूड पैकेट, मोबाइल बांटने जैसे काम किए जा रहे हैं, जिससे प्रदेश को कंगाली में धकेला जा रहा है। सियासी दल भूल जाते हैं कि इस सोशल मीडिया के जमाने में कुछ भी भुलाए जाने योग्य नहीं है। इन दलों को समझना होगा कि जनता उस घोषणा पत्र के वादों पर वोट करती है, जो उन्होंने चुनाव से पहले जनता से किए थे, ना कि मिलावटी फूड पैकेट खाने और चाइनीज मोबाइल पाने के लिए दिए थे।।

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